दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।
बुधवार, 30 नवंबर 2022
भील सरदार कण्णप्प की भक्ति की कहानी!!
भील सरदार कण्णप्प वन में भटकते-भटकते एक मंदिर के समीप पहुंचा। मंदिर में भगवान शंकर की मूर्ति देख उसने सोचा- भगवान इस वन में अकेले हैं। कहीं कोई पशु इन्हें कष्ट न दे। शाम हो गई थी। कण्णप्प धनुष पर बाण चढ़ाकर मंदिर के द्वार पर पहरा देने लगा। सवेरा होने पर उसे भगवान की पूजा करने का विचार आया किंतु वह पूजा करने का तरीका नहीं जानता था।
वह वन में गया, पशु मारे और आग में उनका मांस भून लिया। मधुमक्खियों का छत्ता तोड़कर शहद निकाला। एक दोने में शहद और मांस लेकर कुछ पुष्प तोड़कर और नदी का जल मुंह में भरकर मंदिर पहुंचा। मूर्ति पर पड़े फूल-पत्तों को उसने पैर से हटाये मुंह से ही मूर्ति पर जल चढ़ाया, फूल चढ़ाए और मांस व शहद नैवेद्य के रूप में रख दिया।
उस मंदिर में रोज सुबह एक ब्राहमण पूजा करने आता था। मंदिर में नित्य ही मांस के टुकड़े देख ब्राहमण दुखी होता। एक दिन वह छिपकर यह देखने बैठा कि यह करता कौन है? उसने देखा कण्णप्प आया। उस समय मूर्ति के एक नेत्र से रक्त बहता देख उसने पत्तों की औषधि मूर्ति के नेत्र पर लगाई, किंतु रक्त बंद नहीं हुआ।
तब कण्णप्प ने अपना नेत्र तीर से निकालकर मूर्ति के नेत्र पर रखा। रक्त बंद हो गया। तभी दूसरे नेत्र से रक्त बहने लगा। कण्णप्प ने दूसरा नेत्र भी अर्पित कर दिया। तभी शंकरजी प्रकट हुए और कण्णप्प को हृदय से लगाते हुए उसकी नेत्रज्योति लौटा दी और ब्राहमण से कहा- मुझे पूजा पद्धति नहीं, #श्रद्धापूर्ण भाव ही प्रिय है।
वस्तुत: ईश्वर पूर्ण समर्पण के साथ किए स्मरण मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं और मंगल आशीषों से भक्त को तार देते हैं।
जय महाकाल ❣
#by_शरारती_छोरीi
नवरात्रि में माता का वाहन
#चैत्र #नवरात्रि में माता का वाहन #घोड़ा है अर्थात माँ घोडे पर सवार होकर आ रही हैं जिसका तात्पर्य है युद्ध की संभावना और उनके जाने का वाहन भैंसा है जिसका अर्थ रोग और शोक होता है ।
देवी का आगमन किस वाहन पर हो रहा है, यह दिनों के आधार पर तय होता है. सोमवार या रविवार को घट स्थापना होने पर मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं. शनिवार या मंगलवार को नवरात्रि की शुरुआत होने पर देवी का वाहन घोड़ा माना जाता है. गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्र शुरू होने पर देवी डोली में बैठकर आती हैं. बुधवार से नवरात्र शुरू होने पर मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं।
इन तथ्यों को देवी भागवत के इस श्लोक में वर्णन किया गया है :--
शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे चदोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता ।।
माता दुर्गा जिस वाहन से पृथ्वी पर आती हैं, उसके अनुसार सालभर होने वाली घटनाओं का भी अनुमान किया जाता है. इनमें कुछ वाहन शुभ फल देने वाले और कुछ अशुभ फल देने वाले होते हैं. देवी जब हाथी पर सवार होकर आती है तो पानी ज्यादा बरसता है.
घोड़े पर आती हैं तो युद्ध की आशंका बढ़ जाती है. देवी नौका पर आती हैं तो सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और डोली पर आती हैं तो महामारी का भय बना रहता हैं. इसका भी वर्णन देवी भागवत में किया गया है :--
गजे च जलदा देवी क्षत्र भंग स्तुरंगमे।
नोकायां सर्वसिद्धि स्या ढोलायां मरणंधुवम्।।
देवी भगवती का आगमन भी वाहन से होता है और गमन भी निश्चित वाहन से ही करती हैं. यानी जिस दिन नवरात्र का अंतिम दिन होता है, उसी के अनुसार देवी का वाहन भी तय होता है. इसी के अनुसार जाने के दिन व वाहन का भी शुभ अशुभ फल होता है.
विवार या सोमवार को देवी भैंसे की सवारी से जाती हैं तो देश में रोग और शोक बढ़ता है. शनिवार या मंगलवार को देवी मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं, जिससे दुख और कष्ट की वृद्धि होती है. बुधवार या शुक्रवार को देवी हाथी पर जाती हैं. इससे बारिश ज्यादा होती है.
गुरुवार को मां दुर्गा मनुष्य की सवारी से जाती हैं. इससे सुख और शांति की वृद्धि होती है.
शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा।
शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।।
बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा।
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥
#by_शरारती_छोरीi https://www.facebook.com/profile.php?id=100048197207048
बुधवार, 23 नवंबर 2022
एक कालगर्ल का खुला खत,,,,
सभ्य समाज का आईना,,,
जी नहीं ! मुझे यह कहने में जरा भी शर्म नहीं है कि मैं एक वेश्या यानी सेक्स वर्कर हूँ! मेरे कई नाम हो सकते हैं- वेश्या, कॉलगर्ल, एस्कोर्ट, धन्धेवाली, कोठे वाली, रण्डी, सेक्स वर्कर, प्रोस्टीच्यूट....।
मुझे मालूम है कि आप मेरे काम को एक गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आपको एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि जिनके घर फूस के हों उन्हें दूसरों के घर पर जलती तीलियां नहीं फेंकनी चाहिए। मैंने शताब्दियों से कोई जवाब नहीं दिया तो सिर्फ इसलिए कि मुझे आपके कुछ भी कहने से फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अब मुझे लगता है कि आपको भी आईना दिखा ही दिया ही जाए।
एक बात बताइए, अगर मैं इतनी ही बुरी हूं और मेरा काम इतना ही बुरा है तो फिर मेरा कारोबार इतना जबरदस्त कैसे चल रहा है? क्या हमारे पास मंगल ग्रह से एलियन आते हैं? या वे आते हैं जो दिन-भर चरित्र और सभ्यता के मुखौटे लगाए घूमते हैं और शाम ढलते-ढलते हमारे आस-पास चक्कर काटने लगते हैं?
पहले हमारी दुकानें सिर्फ एक जगह होती थीं, लेकिन अब हमारी दुकानें कॉलोनियों के अंदर, धर्मस्थलों के आस-पास, कॉलेजों के पीछे और मॉलों-शॉपिंग आर्केड के आसपास भी खूब फल-फूल रही हैं। भगवान सलामत रखे इन ढोंगियों को, जो दिन भर हमें हिकारत से देखते हैं और शाम को हमारी रोजी-रोटी का बंदोबस्त करते हैं।
जब आपकी पूरी व्यवस्था ही खरीदने-बेचने को लेकर चल रही है तो मेरे काम को लेकर ही इतना हो-हल्ला क्यों है?
बाजार सिर्फ चौराहों और रास्तों पर नहीं रह गया है, वह हमारे घरों में घुस गया है। इंसानियत, ईमानदारी, सच्चाई, क्या नहीं बिक रहा यहां? जरा बताइए कि आपके यहां सरकारी नौकरियों के कोठे नहीं सजते हैं क्या?
शब्दों की दलाली करके कितने छुटभइये महान साहित्यकार का दर्जा पा गए और डिग्रियों का सौदा करके कितने अनपढ़ शिक्षाविद् बन गए। क्या आपकी राजनीति धनकुबेरों का बिस्तर नहीं गर्म नहीं कर रही और क्या जनता पर शासन करने वाले ये राजे-रजवाड़े जिन्हें आप नौकरशाह कहते हैं, नोट की गड्डियाँ देखते ही नंगे नहीं हो जाते हैं?
मुझे पता है कि सबको बड़ा नाज है इस विवाह संस्था पर। लेकिन दहेज में कार, फ्लैट देखते ही लार टपकाने वाले आपके युवा में एक जिगोलो जितना आत्मसम्मान भी है क्या? क्या अधिकांश युवतियां कोई और करियर ऑप्शन न होने के कारण विवाह की नौकरी नहीं करतीं, जहां वे अपनी देह से दिन में चूल्हा तपाती हैं और रात में बिस्तर?
सुना है कानपुर और आगरा में चमड़े का बहुत बड़ा कारोबार है। लेकिन उससे भी कई गुना बड़ा चमड़े का कारोबार तो मुम्बई में होता है, जिसे आप फिल्म इंडस्ट्री कहते हैं। मेकअप की परतों, फोटोशॉप के चमत्कारों, बोटॉक्स, सिलिकॉन और स्टेरॉयड की मेहरबानी से चलते इस उद्योग में अभिनय बिकता है या हड्डियों पर टिकी ये एपीथिलीयल टिश्यू की परतें, ये आप अपने आप से पूछिए।
फैशन की भी क्या कहूं ! शरीर की रक्षा के लिए बने कपड़ों को लाज-शर्म की अश्लील भावनाओं से जोड़ कर आपने जो गुल खिलाए हैं, उसकी तो पूछो ही मत। हद है कि लाखों-करोड़ों का कारोबार सिर्फ इसलिए चल रहा है कि कपड़े पहन कर नंगई किस तरह दिखाई जाए!!
धर्म की बात तो बस रहने ही दो, ईश्वर और धर्म की दलाली करने वालों के सामने तो हमारे यहां के दल्ले भी पानी मांग जाएं। दया आ जाए तो हम तो शायद ग्राहक पर पचास रुपये छोड़ दें, लेकिन आपके दक्षिणाजीवी तो दस रुपये के लिए जमीन पर लोट जाएंगे और आपकी सात पुश्तों की मां-बहन एक कर देंगे। राजनैतिक दलों की गोद में बैठते आपके धर्मगुरुओं को देख कर सच मुझे भी शर्म आने लगती है। आप लोगों की समझ का भी लोहा मानना पड़ेगा कि चंद पैसे लेकर लाशों को फूंकने वाले महामना को तो आप अछूत कहते हैं, लेकिन कंगाल को भी चूस लेने वाले आपके बाबा, गुरु, ज्योतिषी की चरणवंदना करते हैं।
साम्प्रदायिकता का बड़ा हल्ला है आजकल लेकिन मैं जानती हूं कि हमसे ज्यादा धर्मनिरपेक्ष, पंथनिरपेक्ष और वादनिरपेक्ष कोई नहीं है। कोई भी हमारे पास आता है हम उसे अपनी सेवाएं बिना किसी भेदभाव के देती हैं। मजेदार बात तो यह है कि एक बार कपड़े उतर जाएँ तो हर सम्प्रदाय के मर्द सब एक सा ही व्यवहार करते हैं।
डिस्क्लेमर – मेरे आर्टिकल पर सेक्स और सेक्सुअलिटी के सम्बन्ध में बात इसलिए की जाती है कि पूर्वाग्रहों, कुंठाओं से बाहर आ कर, इस विषय पर संवाद स्थापित किया जा सके, और एक स्वस्थ समाज का विकास किया जा सके | यहाँ किसी की भावनाएं भड़काने, किसी को चोट पहुँचाने, या किसी को क्या करना चाहिए ये बताने का प्रयास हरगिज़ नहीं किया जाता |
मैं शून्य हूँ
शनिवार, 19 नवंबर 2022
दिल्ली के पत्रकार का आगरा में धमाल
फ़ेसबुक पर बहुत लोग हैं लेकिन इस आभासी दुनिया के हीरों-नगीनों को साथ जोड़ कर वास्तविक दुनिया में एक साथ उतार लाने का कार्य दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार संजय सिन्हा करते रहते हैं। इंडियन एक्सप्रेस और आजतक ग्रुप में लम्बे समय तक कार्यरत रहे संजय सिन्हा पिछले कई वर्षों से वे रोज़ एक कहानी फ़ेसबुक पर लिखते हैं। इस से प्रभावित होकर उनके चाहने वालों का लम्बा चौड़ा फ़ेसबुक परिवार बन गया है। इस फ़ेसबुकी परिवार के सदस्यों का कल जमावड़ा आगरा में हुआ। नीचे की तस्वीर गवाह है कि प्रेम में डूबा ऐसा आयोजन भी हो सकता है।
कल के इस सफल आयोजन को लेकर आज संजय सिन्हा ने जो थैंकयू पोस्ट एफबी पर पब्लिश किया है, उसे पढ़िए-
चांद ही चांद
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शुक्रिया। शुक्रिया। शुक्रिया। शुक्रिया। शुक्रिया। शुक्रिया। शुक्रिया।शुक्रिया।शुक्रिया।
जी हां, नौ बार शुक्रिया। नौ बार अपना संजय सिन्हा फेसबुक परिवार अलग-अलग शहरों में आपस में मिल चुका है। साल 2014 में दिल्ली के पहले मिलन से लेकर साल 2022 के आगरा मिलन समारोह में मेरे पास कहने को कुछ नहीं है, सिवाय शुक्रिया के।
मैंने बहुत तरह के कार्यक्रम देखे हैं। बहुत तरह के आयोजन देखे हैं, पर ये स्वयंभू संचालित कार्यक्रम बिना किसी व्यवधान के संपूर्ण हो जाए तो इसके मायने ही कुछ और हैं। ऐसा लगता है, जैसे हर परिजन जी-जान से जुट जाता है इस कार्यक्रम को सफल बनाने में।
इस बार कार्यक्रम में पचास से अधिक वो परिजन थे, जो पहली बार इस परिवार से जुड़े थे। इस बार बहुत-सी महिला परिजन अपने पतियों को मना कर लाने में कामयाब रहीं। इस बार बहुत से नए परिजन आए तो बहुत से परिजन तमाम तैयारियों के बाद किन्ही कारणों से नहीं पहुंच पाए। पर जो आए, जितने आए, संपूर्ण दिल से आए।
कार्यक्रम झमाझम हुआ। सुबह नाश्ते से लेकर देर रात तक खाने पर परिजन भोजन का स्वाद लेते रहे और सारा दिन कार्यक्रम के रंग में डूबे रहे। “मजा आ गया।” जी हां, मजा आ गया। ये सिर्फ मैं नहीं कह रहा, हर परिजन यही कहते हुए मुझसे विदा लेकर गए हैं।
टीम आगरा ने कार्यक्रम को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किसी एक का क्या नाम लूं सभी जी-जान से कार्यक्रम से जुड़े रहे और कभी ये विचार भी उठा था कि चार चांद लगाएंगे इस मिलन समारोह में, तो मेरा यकीन कीजिए, इस बार के मिलन समारोह में चार नहीं सच्ची में आठ चांद लगे थे। चांद ही चांद।
बहुत से वो परिजन भी कार्यक्रम में आए थे, जो पहली बार से हमसे जुड़े हैं। कई बहनें तो आकर मुझसे गले लिपट कर रो ही पड़ीं, जैसे कि बरसों से बिछड़ा भाई उन्हें मिल गया हो।
इस बार के मिलन समारोह की खुमारी एक रात में नहीं उतरेगी। कई दिनों तक मुहब्बत का नशा सिर चढ़ कर बोलता रहेगा।
कोलकाता से पहली बार अपने पुलिसिया पति को संग लेकर आगरा पहुंची मनीषा उपाध्याय के पति ने जाते हुए मुझसे कहा, “संजय जी, यकीन नहीं होता कि दुनिया में ऐसा भी कोई कार्यक्रम होता है।” उन्होंने वादा किया कि फिर आऊंगा। बार-बार आऊंगा। उनकी तरह ही बीकानेर की सुनीता चावला के पति भी इस बार कार्यक्रम में आए। ये देख कर खुश हुए कि उनकी पत्नी पिछली दफा अपनी बहन ज्योति चिब के संग जिस भाई से मिलने जबलपुर पहुंची थी, उस संग रिश्ता रखा जा सकता है। बार-बार मुझसे कह गए, “कमाल है। कमाल है। कमाल है।”
किन-किन के नाम गिनाऊं? बहनों के संग पहली बार जिनके पति आए, उनके नाम बता कर अपनी वाहवाही लूट रहा हूं। आगरा से ही अपनी पुलिस वाली बहन वंदना मिश्र अपने पति संग ये कहते हुई मिलीं कि भैया, मां ने कहा था…”संजय भैया से मिलना।” मां-पापा दोनों कोविड में चले गए, रह गईं यादें।
जबलपुर की सोनिया सैनी भी अपने पति को संग लिए अपने ssfb परिवार में चली आई थीं। जाते हुए अपने जीजा ने कहा, “संजय जी सचमुच यकीन नहीं होता कि संसार में ऐसा भी परिवार होता है।”
बहनें जब रैंप पर उतरीं, तो संसार की आंखें हैरान रह गईं। वाह! क्या परिवार है?
पचास पार वाली भी खुल्ले में स्वीकार करके रैंप पर उतरीं कि पचास पार हैं तो क्या? अपने घर में तो हमीं विश्व सुंदरी हैं। उनके अंदाज-ए- कदम देख कर हर कोई दांतों तले उंगली दबा गया।
और परिवार के सदस्य ही जज बने, क्या मजाल जो जजमेंट में जरा-सी चूक रह गई हो। न्यायप्रिय परिवार।
मेरे पास असल में कहने को इतना कुछ है कि मैं कुछ कह ही नहीं पा रहा। इस बार सच में इतनी कहानियां हैं इस आगरा मिलन समारोह की कि एक नहीं सुना पाऊंगा अगर ऐसे ही बहक कर कुछ का कुछ लिखता रहा।
मैं लिखूंगा। रुक-रुक कर लिखूंगा।
इस बार मिलन समारोह डेढ़ दिन का हुआ। 12 की रात हम मिले फिर अगले दिन 13 को सारा दिन मिलते रहे। बहुत से लोग बहुत से लोगों से पहली बार मिले थे, पर रिश्ता बना ऐसा जैसे बरसों से बिछड़े हुए हम आज यहां आ मिले। जो पहले से आ रहा है उसे तो रिश्तों का स्वाद पता था, लेकिन जो पहली बार आया, ये कह कर गया कि सचमुच ऐसा नहीं देखा, ऐसा नहीं सुना।
लोगों ने रिश्तों में भरोसे को जिया। लोगों ने रिश्तों में प्यार को जिया। लोगों ने रिश्तों में बेफिक्री को जिया। आज जब संसार में सबसे बड़ी समस्या ही अकेलेपन की है तो ये परिवार इस संसार को प्यार बांट रहा है।
कार्यक्रम खूब सफल रहा। हालांकि हर कार्यक्रम में कुछ लोगों को शिकायत भी रह जाती है। कुछ लोगों के मन में नाराज़गी भी रह जाती है। जिनके मन में नाराज़गी रह गई उनसे माफी। इतने बड़े आयोजन में छोटी-छोटी चूक रह जाती हैं। हमारी कोशिश थी सभी को जोड़ने की। कुछ लोग छूटे भी। पर इसका अफसोस नहीं करना चाहिए। अच्छे को याद रखिए। कमियों को भूलिए। यही हैं रिश्ते। यही है परिवार।
आज इससे अधिक कुछ नहीं। जो कमियां रह गईं उसके लिए माफी मैं मांग रहा हूं। जो कुछ अच्छा हुआ उसका श्रेय आपको दे रहा हूं। प्यार में कुछ कमियों को नज़रअंदाज़ कर देना होता है। आप भी कीजिएगा जो मेरे प्यार में कोई कमी रह गई हो।
फिर मिलेंगे। अगले साल। किसी नई जगह पर।
संजय सिन्हा के बारे में ज़्यादा जानने और उनकी रोज़ की कहानियाँ पढ़ने के लिए फ़ेसबुक पर #ssfbFamily लिख कर सर्च करें!
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शिवशरण सिंह-
शुभ संध्या #SanjaySinha #ssfbfamily के परिजनों एवं सहेलियों तथा हम सब की परिजनानियों…..पारिवारिक मिलन समारोह अद्वितीय था इसमें कोई दो राय नहीं. संजय भाई तो हीरा पन्ना और जो भी आप सोच सकते हैं उसके भी दो तीन इंच ऊपर हैं. रसायन शास्त्र का एक सिद्धांत है ‘Like dissolves like’
मेरा अनुभव है कि आप भला तो जग भला… इतने सारे परिजन जो डेढ़ दिवसीय परवारिक मिलन समारोह में इकट्ठे हुए थे उनमें बहिन,जीजा,भैया एवं भाभियां ही अधिक थी, फूआ और फूफा लगभग नदारद थे. सच बताऊं तो कुछ कह नहीं सकता निःशब्द हूं. एक बात और मैं थोड़ा भोजन भट्ट हूं, खाता भी हूं और खिलाता भी हूं हिक्कम तोड़. मेरे बाबूजी कहा करते थे कि किसी को खिलाओ तो भर पेट और पीटो तो भी हिक्कम तोड़. खैर मंतव्य है दिल से खिलाना और प्रेम से.
मैं आगरा में अपने सरकारी नौकरी के आखिरी अढ़ाई साल बतौर सहायक आयुक्त औषधि गुजारे हैं, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन उत्तर प्रदेश सरकार में. हम दवाइयों की गुणवत्ता का ध्यान रखते थे और हमारे सहकर्मी खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता का. बहरहाल मेरी यह स्वीकारोक्ति है कि दोनों दिन भोजन की गुणवत्ता उच्चतम स्तर की थी, सिर्फ भौतिक नहीं भाव का रंग मुझे नजर आया, और थोड़ा बनारसी अंदाज़ में दबा कर खाया भी. डॉ पुनीत मंगला इतनी बढ़िया व्यवस्था करके एक पेटू मोल लिए हैं (बतर्ज मुसीबत). आगरा के मेरे मित्रों का प्यार मुझे बुलाता रहता है, अब उनको अगली यात्राओं में तंग करूंगा तो उनकी शिकायत पर आपलोग ध्यान मत दीजिएगा.
राजगीर में सोने का रहस्य?
दुनियाभर में भारत अपनी पुरानी संस्कृति के लिए जाना जाता है। इसके अलावा देश में कई रहस्यमयी जगहें हैं जो आज भी वैज्ञानिकों के लिए पहेली हैं। इन्हीं में शामिल है बिहार में स्थित एक सोने का भंडार। जहां पर एक रहस्यमयी दरवाजा है, जिसे हजारों कोशिशों के बाद भी आजतक कोई भी खोल नहीं पाया है। इस दरवाजे को कई बार खोलने की कोशिश हुई, लेकिन कभी कामयाबी नहीं मिली। यह सोने का भंडार बिहार के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल राजगीर में एक गुफा के अंदर स्थित है।
जानकारों के मुताबिक, बिम्बिसार की पत्नी ने इस गुफा का निर्माण करवाया था। यह सोन भंडार आज भी दुनियाभर के लिए एक रहस्य है जिसे देखने के लिए देश और विदेश से हर साल हजारों पर्यटक आते हैं। यहां पर आने वाले पर्यटकों में इस अनसुलझी पहेली को जानने की इच्छा होती है।
प्राचीन समय में मगध की राजधानी राजगीर में ही भगवान बुद्ध ने बिम्बिसार को धर्म के बारे में बताया था। बिहार के प्रसिद्ध स्थलों में शामिल यह स्थान भगवान बुद्ध से जुड़े स्मारकों के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि यह खजाना पूर्व मगध सम्राट जरासंघ का है, लेकिन इस बात के अधिक प्रमाण हैं कि यह खजाना हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार का है, क्योंकि इस गुफा से कुछ दूरी पर वह जेल थी जिसमें अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार को बंदी बना कर रखा हुआ था। उस जेल के अवेशष आज भी हैं, इसलिए इस खजाने को बिम्बिसार का ही माना जाता है।
इस गुफा के दरवाजे पर रखे पत्थर पर शंख लिप में कुछ लिखा गया है जिसे आज तक कोई नहीं पढ़ पाया। माना जाता है कि इसमें खजाने के दरवाजे को खोलने के बारे में बताया गया है। अगर इसको पढ़ने में कामयाबी मिल जाती है, तो खजाना तक पहुंचा जा सकता है।