बुधवार, 23 नवंबर 2022

एक कालगर्ल का खुला खत,,,,

 सभ्य समाज का आईना,,,



जी नहीं ! मुझे यह कहने में जरा भी शर्म नहीं है कि मैं एक वेश्या यानी सेक्स वर्कर हूँ! मेरे कई नाम हो सकते हैं- वेश्या, कॉलगर्ल, एस्कोर्ट, धन्धेवाली, कोठे वाली, रण्डी, सेक्स वर्कर, प्रोस्टीच्यूट....।


मुझे मालूम है कि आप मेरे काम को एक गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आपको एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि जिनके घर फूस के हों उन्हें दूसरों के घर पर जलती तीलियां नहीं फेंकनी चाहिए। मैंने शताब्दियों से कोई जवाब नहीं दिया तो सिर्फ इसलिए कि मुझे आपके कुछ भी कहने से फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अब मुझे लगता है कि आपको भी आईना दिखा ही दिया ही जाए।


एक बात बताइए, अगर मैं इतनी ही बुरी हूं और मेरा काम इतना ही बुरा है तो फिर मेरा कारोबार इतना जबरदस्त कैसे चल रहा है? क्या हमारे पास मंगल ग्रह से एलियन आते हैं? या वे आते हैं जो दिन-भर चरित्र और सभ्यता के मुखौटे लगाए घूमते हैं और शाम ढलते-ढलते हमारे आस-पास चक्कर काटने लगते हैं?


पहले हमारी दुकानें सिर्फ एक जगह होती थीं, लेकिन अब हमारी दुकानें कॉलोनियों के अंदर, धर्मस्थलों के आस-पास, कॉलेजों के पीछे और मॉलों-शॉपिंग आर्केड के आसपास भी खूब फल-फूल रही हैं। भगवान सलामत रखे इन ढोंगियों को, जो दिन भर हमें हिकारत से देखते हैं और शाम को हमारी रोजी-रोटी का बंदोबस्त करते हैं।

जब आपकी पूरी व्यवस्था ही खरीदने-बेचने को लेकर चल रही है तो मेरे काम को लेकर ही इतना हो-हल्ला क्यों है?


बाजार सिर्फ चौराहों और रास्तों पर नहीं रह गया है, वह हमारे घरों में घुस गया है। इंसानियत, ईमानदारी, सच्चाई, क्या नहीं बिक रहा यहां? जरा बताइए कि आपके यहां सरकारी नौकरियों के कोठे नहीं सजते हैं क्या?

शब्दों की दलाली करके कितने छुटभइये महान साहित्यकार का दर्जा पा गए और डिग्रियों का सौदा करके कितने अनपढ़ शिक्षाविद् बन गए। क्या आपकी राजनीति धनकुबेरों का बिस्तर नहीं गर्म नहीं कर रही और क्या जनता पर शासन करने वाले ये राजे-रजवाड़े जिन्हें आप नौकरशाह कहते हैं, नोट की गड्डियाँ देखते ही नंगे नहीं हो जाते हैं?

मुझे पता है कि सबको बड़ा नाज है इस विवाह संस्था पर। लेकिन दहेज में कार, फ्लैट देखते ही लार टपकाने वाले आपके युवा में एक जिगोलो जितना आत्मसम्मान भी है क्या? क्या अधिकांश युवतियां कोई और करियर ऑप्शन न होने के कारण विवाह की नौकरी नहीं करतीं, जहां वे अपनी देह से दिन में चूल्हा तपाती हैं और रात में बिस्तर?


सुना है कानपुर और आगरा में चमड़े का बहुत बड़ा कारोबार है। लेकिन उससे भी कई गुना बड़ा चमड़े का कारोबार तो मुम्बई में होता है, जिसे आप फिल्म इंडस्ट्री कहते हैं। मेकअप की परतों, फोटोशॉप के चमत्कारों, बोटॉक्स, सिलिकॉन और स्टेरॉयड की मेहरबानी से चलते इस उद्योग में अभिनय बिकता है या हड्डियों पर टिकी ये एपीथिलीयल टिश्यू की परतें, ये आप अपने आप से पूछिए।


फैशन की भी क्या कहूं ! शरीर की रक्षा के लिए बने कपड़ों को लाज-शर्म की अश्लील भावनाओं से जोड़ कर आपने जो गुल खिलाए हैं, उसकी तो पूछो ही मत। हद है कि लाखों-करोड़ों का कारोबार सिर्फ इसलिए चल रहा है कि कपड़े पहन कर नंगई किस तरह दिखाई जाए!!


धर्म की बात तो बस रहने ही दो, ईश्वर और धर्म की दलाली करने वालों के सामने तो हमारे यहां के दल्ले भी पानी मांग जाएं। दया आ जाए तो हम तो शायद ग्राहक पर पचास रुपये छोड़ दें, लेकिन आपके दक्षिणाजीवी तो दस रुपये के लिए जमीन पर लोट जाएंगे और आपकी सात पुश्तों की मां-बहन एक कर देंगे। राजनैतिक दलों की गोद में बैठते आपके धर्मगुरुओं को देख कर सच मुझे भी शर्म आने लगती है। आप लोगों की समझ का भी लोहा मानना पड़ेगा कि चंद पैसे लेकर लाशों को फूंकने वाले महामना को तो आप अछूत कहते हैं, लेकिन कंगाल को भी चूस लेने वाले आपके बाबा, गुरु, ज्योतिषी की चरणवंदना करते हैं।


साम्प्रदायिकता का बड़ा हल्ला है आजकल लेकिन मैं जानती हूं कि हमसे ज्यादा धर्मनिरपेक्ष, पंथनिरपेक्ष और वादनिरपेक्ष कोई नहीं है। कोई भी हमारे पास आता है हम उसे अपनी सेवाएं बिना किसी भेदभाव के देती हैं। मजेदार बात तो यह है कि एक बार कपड़े उतर जाएँ तो हर सम्प्रदाय के मर्द सब एक सा ही व्यवहार करते हैं।


डिस्क्लेमर – मेरे आर्टिकल पर सेक्स और सेक्सुअलिटी के सम्बन्ध में बात इसलिए की जाती है कि पूर्वाग्रहों, कुंठाओं से बाहर आ कर, इस विषय पर संवाद स्थापित किया जा सके, और एक स्वस्थ समाज का विकास किया जा सके | यहाँ किसी की भावनाएं भड़काने, किसी को चोट पहुँचाने, या किसी को क्या करना चाहिए ये बताने का प्रयास हरगिज़ नहीं किया जाता |


मैं शून्य हूँ

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