शनिवार, 19 नवंबर 2022

दिल्ली के पत्रकार का आगरा में धमाल

 फ़ेसबुक पर बहुत लोग हैं लेकिन इस आभासी दुनिया के हीरों-नगीनों को साथ जोड़ कर वास्तविक दुनिया में एक साथ उतार लाने का कार्य दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार संजय सिन्हा करते रहते हैं। इंडियन एक्सप्रेस और आजतक ग्रुप में लम्बे समय तक कार्यरत रहे संजय सिन्हा पिछले कई वर्षों से वे रोज़ एक कहानी फ़ेसबुक पर लिखते हैं। इस से प्रभावित होकर उनके चाहने वालों का लम्बा चौड़ा फ़ेसबुक परिवार बन गया है। इस फ़ेसबुकी परिवार के सदस्यों का कल जमावड़ा आगरा में हुआ। नीचे की तस्वीर गवाह है कि प्रेम में डूबा ऐसा आयोजन भी हो सकता है।

कल के इस सफल आयोजन को लेकर आज संजय सिन्हा ने जो थैंकयू पोस्ट एफबी पर पब्लिश किया है, उसे पढ़िए-

चांद ही चांद
—————
शुक्रिया। शुक्रिया। शुक्रिया। शुक्रिया। शुक्रिया। शुक्रिया। शुक्रिया।शुक्रिया।शुक्रिया।

जी हां, नौ बार शुक्रिया। नौ बार अपना संजय सिन्हा फेसबुक परिवार अलग-अलग शहरों में आपस में मिल चुका है। साल 2014 में दिल्ली के पहले मिलन से लेकर साल 2022 के आगरा मिलन समारोह में मेरे पास कहने को कुछ नहीं है, सिवाय शुक्रिया के।

मैंने बहुत तरह के कार्यक्रम देखे हैं। बहुत तरह के आयोजन देखे हैं, पर ये स्वयंभू संचालित कार्यक्रम बिना किसी व्यवधान के संपूर्ण हो जाए तो इसके मायने ही कुछ और हैं। ऐसा लगता है, जैसे हर परिजन जी-जान से जुट जाता है इस कार्यक्रम को सफल बनाने में।

इस बार कार्यक्रम में पचास से अधिक वो परिजन थे, जो पहली बार इस परिवार से जुड़े थे। इस बार बहुत-सी महिला परिजन अपने पतियों को मना कर लाने में कामयाब रहीं। इस बार बहुत से नए परिजन आए तो बहुत से परिजन तमाम तैयारियों के बाद किन्ही कारणों से नहीं पहुंच पाए। पर जो आए, जितने आए, संपूर्ण दिल से आए।

कार्यक्रम झमाझम हुआ। सुबह नाश्ते से लेकर देर रात तक खाने पर परिजन भोजन का स्वाद लेते रहे और सारा दिन कार्यक्रम के रंग में डूबे रहे। “मजा आ गया।” जी हां, मजा आ गया। ये सिर्फ मैं नहीं कह रहा, हर परिजन यही कहते हुए मुझसे विदा लेकर गए हैं।

टीम आगरा ने कार्यक्रम को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किसी एक का क्या नाम लूं सभी जी-जान से कार्यक्रम से जुड़े रहे और कभी ये विचार भी उठा था कि चार चांद लगाएंगे इस मिलन समारोह में, तो मेरा यकीन कीजिए, इस बार के मिलन समारोह में चार नहीं सच्ची में आठ चांद लगे थे। चांद ही चांद।
बहुत से वो परिजन भी कार्यक्रम में आए थे, जो पहली बार से हमसे जुड़े हैं। कई बहनें तो आकर मुझसे गले लिपट कर रो ही पड़ीं, जैसे कि बरसों से बिछड़ा भाई उन्हें मिल गया हो।

इस बार के मिलन समारोह की खुमारी एक रात में नहीं उतरेगी। कई दिनों तक मुहब्बत का नशा सिर चढ़ कर बोलता रहेगा।

कोलकाता से पहली बार अपने पुलिसिया पति को संग लेकर आगरा पहुंची मनीषा उपाध्याय के पति ने जाते हुए मुझसे कहा, “संजय जी, यकीन नहीं होता कि दुनिया में ऐसा भी कोई कार्यक्रम होता है।” उन्होंने वादा किया कि फिर आऊंगा। बार-बार आऊंगा। उनकी तरह ही बीकानेर की सुनीता चावला के पति भी इस बार कार्यक्रम में आए। ये देख कर खुश हुए कि उनकी पत्नी पिछली दफा अपनी बहन ज्योति चिब के संग जिस भाई से मिलने जबलपुर पहुंची थी, उस संग रिश्ता रखा जा सकता है। बार-बार मुझसे कह गए, “कमाल है। कमाल है। कमाल है।”

किन-किन के नाम गिनाऊं? बहनों के संग पहली बार जिनके पति आए, उनके नाम बता कर अपनी वाहवाही लूट रहा हूं। आगरा से ही अपनी पुलिस वाली बहन वंदना मिश्र अपने पति संग ये कहते हुई मिलीं कि भैया, मां ने कहा था…”संजय भैया से मिलना।” मां-पापा दोनों कोविड में चले गए, रह गईं यादें।

जबलपुर की सोनिया सैनी भी अपने पति को संग लिए अपने ssfb परिवार में चली आई थीं। जाते हुए अपने जीजा ने कहा, “संजय जी सचमुच यकीन नहीं होता कि संसार में ऐसा भी परिवार होता है।”

बहनें जब रैंप पर उतरीं, तो संसार की आंखें हैरान रह गईं। वाह! क्या परिवार है?

पचास पार वाली भी खुल्ले में स्वीकार करके रैंप पर उतरीं कि पचास पार हैं तो क्या? अपने घर में तो हमीं विश्व सुंदरी हैं। उनके अंदाज-ए- कदम देख कर हर कोई दांतों तले उंगली दबा गया।
और परिवार के सदस्य ही जज बने, क्या मजाल जो जजमेंट में जरा-सी चूक रह गई हो। न्यायप्रिय परिवार।

मेरे पास असल में कहने को इतना कुछ है कि मैं कुछ कह ही नहीं पा रहा। इस बार सच में इतनी कहानियां हैं इस आगरा मिलन समारोह की कि एक नहीं सुना पाऊंगा अगर ऐसे ही बहक कर कुछ का कुछ लिखता रहा।

मैं लिखूंगा। रुक-रुक कर लिखूंगा।

इस बार मिलन समारोह डेढ़ दिन का हुआ। 12 की रात हम मिले फिर अगले दिन 13 को सारा दिन मिलते रहे। बहुत से लोग बहुत से लोगों से पहली बार मिले थे, पर रिश्ता बना ऐसा जैसे बरसों से बिछड़े हुए हम आज यहां आ मिले। जो पहले से आ रहा है उसे तो रिश्तों का स्वाद पता था, लेकिन जो पहली बार आया, ये कह कर गया कि सचमुच ऐसा नहीं देखा, ऐसा नहीं सुना।

लोगों ने रिश्तों में भरोसे को जिया। लोगों ने रिश्तों में प्यार को जिया। लोगों ने रिश्तों में बेफिक्री को जिया। आज जब संसार में सबसे बड़ी समस्या ही अकेलेपन की है तो ये परिवार इस संसार को प्यार बांट रहा है।

कार्यक्रम खूब सफल रहा। हालांकि हर कार्यक्रम में कुछ लोगों को शिकायत भी रह जाती है। कुछ लोगों के मन में नाराज़गी भी रह जाती है। जिनके मन में नाराज़गी रह गई उनसे माफी। इतने बड़े आयोजन में छोटी-छोटी चूक रह जाती हैं। हमारी कोशिश थी सभी को जोड़ने की। कुछ लोग छूटे भी। पर इसका अफसोस नहीं करना चाहिए। अच्छे को याद रखिए। कमियों को भूलिए। यही हैं रिश्ते। यही है परिवार।

आज इससे अधिक कुछ नहीं। जो कमियां रह गईं उसके लिए माफी मैं मांग रहा हूं। जो कुछ अच्छा हुआ उसका श्रेय आपको दे रहा हूं। प्यार में कुछ कमियों को नज़रअंदाज़ कर देना होता है। आप भी कीजिएगा जो मेरे प्यार में कोई कमी रह गई हो।
फिर मिलेंगे। अगले साल। किसी नई जगह पर।

संजय सिन्हा के बारे में ज़्यादा जानने और उनकी रोज़ की कहानियाँ पढ़ने के लिए फ़ेसबुक पर #ssfbFamily लिख कर सर्च करें!


ये भी पढ़ें-

शिवशरण सिंह-

शुभ संध्या #SanjaySinha #ssfbfamily के परिजनों एवं सहेलियों तथा हम सब की परिजनानियों…..पारिवारिक मिलन समारोह अद्वितीय था इसमें कोई दो राय नहीं. संजय भाई तो हीरा पन्ना और जो भी आप सोच सकते हैं उसके भी दो तीन इंच ऊपर हैं. रसायन शास्त्र का एक सिद्धांत है ‘Like dissolves like’

मेरा अनुभव है कि आप भला तो जग भला… इतने सारे परिजन जो डेढ़ दिवसीय परवारिक मिलन समारोह में इकट्ठे हुए थे उनमें बहिन,जीजा,भैया एवं भाभियां ही अधिक थी, फूआ और फूफा लगभग नदारद थे. सच बताऊं तो कुछ कह नहीं सकता निःशब्द हूं. एक बात और मैं थोड़ा भोजन भट्ट हूं, खाता भी हूं और खिलाता भी हूं हिक्कम तोड़. मेरे बाबूजी कहा करते थे कि किसी को खिलाओ तो भर पेट और पीटो तो भी हिक्कम तोड़. खैर मंतव्य है दिल से खिलाना और प्रेम से.

मैं आगरा में अपने सरकारी नौकरी के आखिरी अढ़ाई साल बतौर सहायक आयुक्त औषधि गुजारे हैं, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन उत्तर प्रदेश सरकार में. हम दवाइयों की गुणवत्ता का ध्यान रखते थे और हमारे सहकर्मी खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता का. बहरहाल मेरी यह स्वीकारोक्ति है कि दोनों दिन भोजन की गुणवत्ता उच्चतम स्तर की थी, सिर्फ भौतिक नहीं भाव का रंग मुझे नजर आया, और थोड़ा बनारसी अंदाज़ में दबा कर खाया भी. डॉ पुनीत मंगला इतनी बढ़िया व्यवस्था करके एक पेटू मोल लिए हैं (बतर्ज मुसीबत). आगरा के मेरे मित्रों का प्यार मुझे बुलाता रहता है, अब उनको अगली यात्राओं में तंग करूंगा तो उनकी शिकायत पर आपलोग ध्यान मत दीजिएगा.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें