बुधवार, 13 दिसंबर 2023

Dr रुपाली की सलाह / पेशाब में जलन

 पेशाब की जलन को मिटाने के लिए कौन-सी चीजों को खुराक में शामिल करना चाहिए?

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पेशाब की जलन को मिटाने के लिए इन चीजों को अपनी खुराक में शामिल करें जो इस प्रकार हैं:-


1. दही में पिसी हुई प्याज की चटनी मिलाकर कुछ दिन खाने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है।


2. इमली के पत्तों का रस पीने से पेशाब की जलन मिट जाती है।


3. गन्ने का रस पीने से पेशाब की जलन ठीक हो जाती है।


4. सुबह-शाम 4–5 गुलाब के फूलों के साथ 3 ग्राम मिश्री मिलाकर खाने से कुछ दिनों में पेशाब की जलन दूर हो जाती है।


5. तुलसी की 4–5 पत्तियां दिन में 2 बार चबाकर ऊपर से 2 घूंट पानी पीने से पेशाब की जलन में लाभ होता है। सुबह के समय खाली पेट लें।


इसलिए दोस्तों इन चीजों का इस्तेमाल करें और पेशाब की जलन से छुटकारा पाएं।


रतन वर्मा और यह सम्मान


16 दिसंबर, को रतन वर्मा को 'बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान' से अलंकृत किया जाएगा 


झारखंड के जाने-माने कथाकार, कवि, साहित्यकार रतन वर्मा को 16 दिसंबर को 'बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान' से अलंकृत किया जाएगा। यह सम्मान उन्हें वर्ष 2022 हेतु उत्कृष्ट कथा लेखन के लिए  प्रदान किया जाएगा। 'बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान समारोह' आरा (बिहार) के तत्वाधान में आयोजित होने वाला  यह सम्मान समारोह  16 दिसंबर को पटना  के 'जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान' सभा कक्ष में सम्पन्न होगा। आयोजित इस सम्मान समारोह में पूनम सिंह, 2018 (कहानी),  डॉ  विनय कुमार, 2019 ( कविता) , रामदेव सिंह, 2020 ( कहानी), अनिल विभाकर , 2021 (कविता), रतन वर्मा, 2022  (कहानी), विनय  सौरभ, 2023 (कविता) के लिए 'बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान' प्रदान कर अलंकृत किया जाएगा।

सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में  प्रख्यात साहित्यकार आलोक धन्वा एवं रामधारी सिंह दिवाकर सम्मिलित होंगे । सम्मान समारोह की अध्यक्षता मदन कश्यप और हृषीकेश  सुलभ करेंगे।  इस समारोह में रांची  के प्रख्यात साहित्यकार रवि भूषण की  सद्य प्रकाशित  कृति 'आजादी' :  सपना और हकीकत' का लोकार्पण किया जाएगा।  सम्मान समारोह का उद्घाटन रवि भूषण के कर कमल द्वारा सम्पन्न होगा।  आयोजित कार्यक्रम में अवधेश प्रीत, मदन कश्यप, डॉ रवि भूषण, सुनीता गुप्ता, राकेश रंजन, संतोष दिक्षित, शिवदयाल, सतीश कुमार राय एवं यादवेंद्र  सम्मानित  कथाकारों एवं कवियों की कृतियों पर चर्चा करेंगे।

पूनम सिंह, डॉ विनय कुमार, रामदेव सिंह, अनिल विभाकर, रतन वर्मा एवं विनय सौरभ को 'बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान' से अलंकृत किए जाने की घोषणा पर साहित्यिक संस्था 'परिवेश' के संयोजक विजय केसरी, कथाकार डॉ विकास कुमार, कथाकार भैया विवेक प्रियदर्शी,कथाकार सुबोध सिंह 'शिवगीत' ने संयुक्त बयान जारी कर कहा है कि सम्मान समारोह केआयोजक मंडल ने कविता और कहानी के क्षेत्र में जिन छह साहित्यकारों को सम्मानित करने का निर्णय लिया है, इन सबों की कृतियों से हिंदी साहित्य गौरान्वित है। 


विजय केसरी,

(संयोजक)

'परिवेश'

(साहित्यिक/ सांस्कृतिक/वैचारिक एवं सामाजिक संस्था)

रामनगर रोड, 'केसरी निवास', हजारीबाग : 825 301.

 मोबाइल नंबर : 92347 99550.

 दिनांक : 13. 12. 2023.

बुधवार, 6 दिसंबर 2023

टीएमयू के वीसी प्रो. रघुवीर सिंह को हायर एजुकेशन लीडर अवार्ड

 

श्याम सुंदर भाटिया


जयपुर की 9वीं एडुलीडर्स समिट में एक्सट्राओरडिनरी कंट्रीब्यूशन के लिए नवाजे गए, ओबीई के एक्सपर्ट प्रो. सिंह अपनी शैक्षणिक विकास यात्रा में 50 से अधिक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित


ख़ास बातें


कुलाधिपति श्री सुरेश जैन बोले, प्रो. सिंह की लीडरशिप में टीएमयू नित नई बुलंदियों को छुएगी

एआई टेक्नोलॉजी का चमत्कार है, लेकिन यह एक दोधारी तलवार की मानिंद: प्रो. रघुवीर सिंह

ब्रेनवंडर्स और माइंडसेज के फाउंडर्स ने प्रो. सिंह को ट्राफी और सर्टिफिकेट देकर किया सम्मानित

9वीं एडुलीडर्स समिट में देश की 100 से अधिक यूनिवर्सिटीज के जाने-माने शिक्षाविदों ने शिरकत की



तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के वीसी प्रो. रघुवीर सिंह हायर एजुकेशन लीडर ऑफ द ईयर-2023 के अवार्ड से नवाजे गए हैं। प्रो. सिंह को यह अवार्ड एजुकेशन सेक्टर में उनके एक्सट्राओरडिनरी कंट्रीब्यूशन-विशेष योगदान के लिए मिला है। ब्रेनवंडर्स की ओर से जयपुर के होटल क्लार्क्स में आयोजित 9वीं एडुलीडर्स समिट में यह अवार्ड ब्रेनवंडर्स के फाउंडर एवम् सीईओ श्री मनीष नायडू और माइंड सेज इंटरनेशनल की फाउंडर एलिजाबेथ टेलर ने संयुक्त रूप से प्रो. सिंह को ट्राफी और सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया। समिट में देश की 100 से अधिक यूनिवर्सिटीज के नामचीन शिक्षाविदों ने शिरकत की। उल्लेखनीय है, ओबीई के एक्सपर्ट प्रो. सिंह अपनी अब तक की शैक्षणिक विकास यात्रा में 50 से अधिक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, जीवीसी श्री मनीष जैन और एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन ने वीसी प्रो. रघुवीर सिंह को हायर एजुकेशन सेक्टर का ऊर्जावान व्यक्तित्व का धनी बताते हुए कहा, प्रो. सिंह की लीडरशिप में तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी नित नई बुलंदियों को छुएगी।


समिट में वीसी प्रो. सिंह रोल ऑफ एआई इन हायर एजुकेशन पर व्याख्यान देते हुए बोले, एआई टेक्नोलॉजी का चमत्कार है, लेकिन यह एक दोधारी तलवार की मानिंद है। टेक्नोलॉजी ने हमारी लिविंग, वर्किंग, एजुकेशन, इंफॉर्मेशन सरीखी रिसीविंग और लर्निंग के तौर-तरीकों को बदल दिया है। इसीलिए एआई का प्रयोग करते समय सावधानी बरतने की दरकार है।

प्रश्न यह है, आप इसे प्रयोग क्यों करना चाहते हैं? यदि हम इसके गुलाम हो गए तो शिक्षा के क्षेत्र में इसका परिणाम विनाशकारी हो सकता है। आपको इसे बचाना होगा। हम एआई और चैट जीपीटी जैसी तकनीक की वजह से परिवर्तन के दौर में हैं। यदि इस पर अति निर्भर होते हैं तो एआई वास्तव में खतरा है। इस कटु सच्चाई को भी नहीं नकारा जा सकता यदि आप एआई पर मुकम्मल तौर पर फोकस कर लेते हो तो आप एजुकेशन को मिस कर देते हो, लेकिन सामान्य और बार-बार होने वाले मेमोरी बेस्ड टास्क और एक्टीविटीज के लिए एआई उचित विकल्प हो सकती है। एआई एंड चैट जीपीटीज मानव को ट्रिक कर सकती हैं।


एआई की मिस इंफॉर्मेशन से प्रोफेशनल एडिटर्स शॉक्ड हैं। पर्सनलाइज, कस्टमाइज एंड क्यूरेडिट ही लर्निंग है, क्योंकि युवा क्या सीखना चाहते हैं और क्या रेलेवेंट है, यही एडल्ट लर्निंग है। फॉर्मल एजुकेशन का लिमिटिड यूज नहीं है। एआई एक कुंजी की तरह है। यह सब पब्लिक डोमेन में है। एआई एजुकेशन के लिए सपोर्टिड होनी चाहिए। प्रो. सिंह ने बताया, स्टुडेंट्स दो तरह से सीखते हैं। इसके लिए थिंकिंग, प्रॉब्लम सोलविंग, हयूमन रिलेशंस, माइंड सेट, सेंसिटिविटी की दरकार है। टीचर्स में एआई से रिप्लेसिंग का डर बना है। यदि टीचर्स खुद को चेंज या अपडेट नहीं करेगा तो वह स्वतः ही रिप्लेस हो जाएगा। टेक्नोलॉजी से अपनी तुलना मत करो, बल्कि अपने रिच एरिया जैसे- हॉटर्स, ड्राइव और शॉॅफ्ट स्किल्स को पहचानो और उसमें बेस्ट बनो।


रविवार, 3 दिसंबर 2023

ज्यादा देर तक ना रोके पेशाब


ज्यादा समय तक पेशाब रोकने से कौन सी परेशानियां हो सकती हैं?

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यूरीन रोकना हेल्थ के लिए सबसे खतरनाक चीज होती है। यूरीन रोकने से आपका ब्‍लैडर बैक्‍टीरियों को अधिक विकसित करता है जिससे कई प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं पैदा होती हैं। हम आपको बता रहे हैं कि यूरीन को ज्‍यादा देर तक रोक कर रखने से क्या नुकसान होता है।


• ऐसा करने से यूरिनरी ब्लेडर, Aslam या पेशाब की नली में जलन और सूजन की समस्या हो सकती है। यह किडनी के लिए बेहद हानिकारक है।


• इससे किडनी की कार्य प्रणाली में बाधा होती है और उसकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। यह किडनी में पथरी यानि किडनी स्टोन या किडनी संक्रमण का कारण बन सकता है।


• शरीर की अशुद्धियों को यूरिन के माध्यम से बाहर निकाला जाता है। अगर सही समय पर यूरीन त्याग न हो तो शरीर में संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है, जो सबसे ज्यादा किडनी को प्रभावित करता है।


• देर तक यूरिन रोकने से यूरिनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन या मूत्र मार्ग संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है, जो आपकी सेहत को प्रभावित करता है।


• ऐसा करने से ब्लेडर में सूजन आने का खतरा बढ़ जाता है और डिस्चार्ज के दौरान तेज दर्द होने की समस्या हो सकती है।

सर्दियों में खाएं लहसुन का अचार, / डॉ. रुपाली आर्य


सर्दियों में खाएं लहसुन का अचार, कई बीमारियां होंगी कोसों दूर

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इम्यूनिटी होती है मजबूत 


लहसुन का अचार एंटी बैक्टीरियल और एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है, इसलिए अगर आप सर्दियों के मौसम में लहसुन के अचार का सेवन करते हैं, तो इससे इम्यूनिटी (Immunity) मजबूत होती है। जो आपके शरीर को वायरस और बैक्टीरिया से सुरक्षित रखने में मदद करता है। 


कोलेस्ट्रॉल होता है कंट्रोल 


सर्दियों के मौसम में कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) बढ़ने की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है, लेकिन अगर आप सर्दियों के मौसम में लहसुन के अचार का सेवन करते हैं, तो इससे शरीर में बढ़ता खराब कोलेस्ट्रॉल कम होता है। जिससे हार्ट अटैक का खतरा कम होता है। 


जोड़ों के दर्द में फायदेमंद 


सर्दियों के मौसम में जोड़ों में दर्द (Joint pain) और सूजन की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है, लेकिन सर्दियों के मौसम में अगर आप लहसुन के अचार का सेवन करते हैं, तो इसमें मौजूद एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं। 


सर्दी-जुकाम में फायदेमंद 


सर्दियों के मौसम में सर्दी-जुकाम (Cold) की शिकायत होना एक आम बात हैं, लेकिन सर्दी-जुकाम की शिकायत होने पर अगर आप लहसुन के अचार का सेवन करते हैं, तो इसमें मौजूद एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल गुण सर्दी-जुकाम की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं। 


डायबिटीज में फायदेमंद 


डायबिटीज (Diabetes) के मरीजों के लिए लहसुन के अचार का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि लहसुन का अचार कई गुणों से भरपूर होता है, जो ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मददगार होता है। 


लिवर के लिए फायदेमंद 


लहसुन के अचार का सेवन लिवर (Liver) के लिए बेहद फायदेमंद होता है। क्योंकि लहसुन का अचार खाने से टॉक्सिन्स बाहर निकलते हैं, जिससे लिवर स्वस्थ रहता है, साथ ही इसका सेवन फैटी लिवर की समस्या को धीरे-धीरे कम करता है और लिवर की कार्यक्षमता को बढ़ाने में भी मदद करता है। 


पाचन तंत्र होता है मजबूत 


लहसुन के अचार का सेवन पाचन (Digestion) से जुड़ी समस्या होने पर फायदेमंद होता है। क्योंकि लहसुन के अचार का सेवन करने से पाचन तंत्र में सुधार होता है और एसिडिटी, अपच जैसी समस्या दूर होती है।

सर्दियों में खाएं फूल गोभी की सब्जी, / डॉ. रुपाली आर्य


सर्दियों में खाएं फूल गोभी की सब्जी, मिलते हैं ये 7 फायदे

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हृदय के लिए फायदेमंद 


हृदय (Heart) स्वास्थ्य के लिए फूल गोभी का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि फूल गोभी एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है, जो हृदय को स्वस्थ बनाए रखने में और हृदय संबंधी बीमारियों के जोखिम को कम करने में मदद करता है। 


कैंसर का खतरा होता है कम 


फूल गोभी का सेवन कैंसर (Cancer) जैसी घातक बीमारी के खतरे को कम करने के लिए लाभकारी होता है। क्योंकि फूल गोभी एंटी कैंसर गुणों से भरपूर होता है, जो कैंसर के सेल्स को पनपने से रोकने में मदद करता है। 


हड्डियों के लिए फायदेमंद 


फूल गोभी का सेवन करने से हड्डियां (Bones) मजबूत होती है और हड्डियों से जुड़ी बीमारियों का जोखिम कम होता है। क्योंकि फूल गोभी विटामिन के से भरपूर होता है, जो हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी होते हैं। 


वजन कम करने में मददगार 


बढ़ता वजन (Weight) कई बीमारियों को जन्म दे सकता है, इसलिए इसको कंट्रोल करना जरूरी होता है। वजन को कंट्रोल करने के लिए सर्दियों के मौसम में फूल गोभी का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि फूल गोभी फाइबर से भरपूर होता है, जो वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है। 


कोलेस्ट्रॉल कम करने में मददगार 


कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) को कम करने के लिए फूल गोभी का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि फूल गोभी में हाइपोकोलेस्टेरॉलिक (कोलेस्ट्रॉल कम करने वाला) प्रभाव पाया जाता है। जो शरीर में बढ़ते खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा कम होता है। 


इम्यूनिटी होती है बूस्ट 


फूल गोभी विटामिन सी से भरपूर होता है, इसलिए अगर आप सर्दियों के मौसम में फूल गोभी का सेवन करते हैं, तो इससे इम्यूनिटी (Immunity) बूस्ट होती है, जिससे आप वायरस और बैक्टीरिया की चपेट में आने से बच सकते हैं। 


स्किन के लिए फायदेमंद 


सर्दियों के मौसम में फूल गोभी का सेवन स्किन (Skin) को भी कई लाभ पहुंचाता है। क्योंकि फूल गोभी विटामिन सी से भरपूर होता है, जो त्वचा को हेल्दी बनाए रखने में मदद करता है, साथ ही इसका सेवन स्किन को मॉइस्चराइज रखता है।


बुधवार, 22 नवंबर 2023

DDA की नई हाउसिंग स्कीम

 *DDA की नई हाउसिंग स्कीम जल्द होगी लॉन्च, इन जगहों पर बेचे जाएंगे 32,000 से ज्यादा फ्लैट्स*


दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के निर्णय लेने वाले सर्वोच्च निकाय ने 'त्योहार विशेष आवासीय योजना 2023'-DDA HS -2023 



 (DDA Housing Scheme)

शुरू करने की बुधवार को मंजूरी दे दी.अधिकारियों ने बताया कि इस योजना के तहत विभिन्न श्रेणियों में 32,000 से ज्यादा फ्लैट बिक्री के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे. उन्होंने बताया कि पहली बार 1,100 से अधिक लक्जरी फ्लैट बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे.योजना शुरू करने का निर्णय उपराज्यपाल वीके सक्सेना की अध्यक्षता में हुई एक बैठक के दौरान लिया गया. सक्सेना डीडीए के अध्यक्ष भी हैं. एक आधिकारिक बयान में बताया गया है कि ये फ्लैट द्वारका, लोक नायक पुरम और नरेला जैसे स्थानों पर हैं. भले ही लोगों के पास पहले से ही दिल्ली में कोई फ्लैट या प्लॉट हो तो भी वे डीडीए फ्लैट खरीद सकते हैं.

शनिवार, 18 नवंबर 2023

:देव कार्तिक छठ मेला का हुआ भव्य उद्घाटन, दे

 औरंगाबाद:देव कार्तिक छठ मेला का हुआ भव्य उद्घाटन,

 देव कार्तिक छठ मेला और चैती छठ मेला को मिला राजकीय मेला का दर्जा


धीरज पांडेय


मंत्री ने कहा कि मैं यह गर्व से कह सकता हू कि देव के कार्तिक छठ मेला और चैती छठ मेला दोनो मेला को राजकीय मेला का दर्जा हमारी सरकार ने दे दिया है और धीरे धीरे यहां सुविधाएं बढ़ाई जाएगी

Magadh Express:-ऐतिहासिक ,पौराणिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण सौर तीर्थ देव के लगने वाले चार दिवसीय कार्तिक छठ मेला 23 के प्रथम दिन नहाए खाय को सूर्यकुंड तालाब परिसर में आज शुक्रवार को बिहार सरकार के मंत्री राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग सह जिले के प्रभारी मंत्री आलोक मेहता ,सदर विधायक औरंगाबाद आनंद शंकर सिंह ने संयुक्त रूप से मेला का उद्घाटन किया ।इस उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता जिलाधिकारी औरंगाबाद श्रीकांत शास्त्री ने किया जबकि मंच का संचालन जिला प्रशासन की ओर से हेरंब मिश्रा ने किया ।सर्वप्रथम मंत्री राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग सह जिले के प्रभारी मंत्री आलोक मेहता को जिलाधिकारी ने देव सूर्य मंदिर का प्रतीक चिन्ह और गुलदस्ता देकर स्वागत किया ।वहीं विधायक आनंद शंकर सिंह का स्वागत एडीएम औरंगाबाद ने किया ।


कार्यक्रम को संबोधित करते हुए औरंगाबाद जिलाधिकारी ने देव सूर्य मंदिर के ऐतिहासिक महत्व को सभी के समक्ष रखा और कहा कि यह सूर्य मंदिर का निर्माण काल लगभग ढाई लाख वर्ष पुराना है ।इस वर्ष 10 लाख श्रद्धालुओ को आने की संभावना है ।श्रद्धालुओ को ठहरने के लिए दस जगह आवासन स्थल बनाया गया है जो चार लाख वर्ग फिट में है।वहीं 10हजार छोटे बड़े वाहनों के पार्किंग के लिए दस जगह चयनित किए गए है ।6 बेड का एक अस्थायी अस्पताल का निर्माण किया गया है ।जिलाधिकारी ने श्रद्धालुओ को दी जाने वाली सुविधाओं जैसे पेयजल, यातायात,प्रकाश,आवासन, शौचालय,पार्किंग,सहित अन्य सुविधाओं से अवगत कराया ।


जिलाधिकारी के संबोधन के बाद उपस्थित लोगो को संबोधित करते हुए नगर अध्यक्ष पिंटू कुमार शाहील ने नगर पंचायत की ओर से सभी का स्वागत किया और देव में बेहतर सुविधाओं की मांग को लेकर प्रभारी मंत्री मांग किया कि एक बैठक कर मास्टर प्लान बनाकर कार्य किया जाय ताकि भविष्य में श्रद्धालुओ की संख्या अगर बीस पच्चीस लाख भी हो जाय तो श्रद्धालुओ को बेहतर सुविधा मिल सके तथा रिंग रोड की मांग की जिससे भविष्य में ट्रैफिक तथा पार्किंग की बेहतर व्यवस्था हो सके ।

वहीं संबोधित करते हुए कांग्रेस विधायक आनंद शंकर सिंह ने कहा कि देव में प्रत्येक वर्ष लाखो लोग आते है , जगह सिमट सी गई है इसे और कैसे बेहतर बनाकर श्रद्धालुओ को सुविधा दिया जाय इसपर काम करने की जरूरत है । देव में आने वाली कई सड़के जो देव को जोड़ती है जैसे औरंगाबाद से आनंदपुरा, दधपा होते हुए देव आने वाली सड़क,केताकी से देव आने वाली सड़क,बालूगंज से बेढ़नी होते हुए देव आने वाली सड़क तथा कंचनपुर रोड की स्थिति खराब है जिसको बेहतर बनाने की जरूरत है ताकि देव आने वाली सड़को से यदि श्रद्धालु देव पहुंचे तो उन्हें कोई कष्ट नहीं हो ।विधायक ने कहा कि देव में दो शौचालय है एक सूर्यकुण्ड तालाब तथा दूसरा सूर्य मंदिर के नजदीक है ।ऐसे दो चार और भी बेहतर शौचालय बनाने की जरूरत है क्योंकि जहां जहां आवासन स्थल बनता है वहां बेहतर शौचालय की बेहद जरूरत है क्योंकि व्रतियों का ठहराव वहीं होता है ।


विधायक ने कहा कि देव में सरकारी कॉलेज की व्यवथा हो , क्योंकि यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र है और यहां के बच्चो में प्रतिभाएं है ,यहां के बच्चो को स्नातक ,पीजी सहित कई विषयों की पढ़ाई के लिए १५से २० किलोमीटर दूर औरंगाबाद ,गया तथा अन्य जगह जाना होता है अगर यहां सरकारी कॉलेज का निर्माण हो तो यहां के युवाओं का उतरोतर विकास होगा ।विधायक ने प्रभारी मंत्री से मांग किया कि देव में मेडिकल कॉलेज की स्थापना हो उस ओर भी हम सभी को मिलकर प्रयास करना चाहिए , मेडिकल कॉलेज से इलाके का विकास होगा तथा यहां मेडिकल कॉलेज बनने से औरंगाबाद ,गया,तथा झारखंड के इलाको तथा ग्रामीण जंगली इलाकों को इलाज के लिए १०० ,२०० किलोमीटर ,गया ,बनारस जाने की जो जरूरत होती है ,मेडिकल कॉलेज निर्माण से लोगो को बेहतर चिकित्सा उपलब्ध मिलेगी ।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मंत्री राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग सह जिले के प्रभारी मंत्री आलोक मेहता ने कहा कि पिछले वर्ष कार्तिक मेला के दौरान मुझसे यह मांग रखी गई थी कि देव मेला को राजकीय मेला का दर्जा मिले ।मैने आश्वासन दिया था कि मैं इस ओर प्रयास करूंगा ,उसके बाद भगवान सूर्य के जन्मोत्सव देव महोत्सव में भी बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव के समक्ष यहां के लोगो ने और मैने देव मेला को राजकीय मेला घोषित करने की मांग की थी ।आज मैं जब पुनः यहां मेला उद्घाटन करने आया हूं तो मैं अपने वादे पूरे करके आया हू ।मंत्री ने कहा कि मैं यह गर्व से कह सकता हू कि देव के कार्तिक छठ मेला और चैती छठ मेला दोनो मेला को राजकीय मेला का दर्जा हमारी सरकार ने दे दिया है और धीरे धीरे यहां सुविधाएं बढ़ाई जाएगी ।

मंत्री ने नगर पंचायत अध्यक्ष को बधाई दिया है और कहा कि नगर पंचायत के गठन के बाद देव का समुचित विकास होगा ।

इस दौरान जिलाधिकारी श्रीकांत शास्त्री, पुलिस अधीक्षक महोदया स्वप्ना गौतम मेश्राम, पूर्व विधायक सुरेश मेहता,जिला परिषद अध्यक्ष प्रमिला कुमारी,जिला परिषद सदस्य गायत्री देवी ,नगर पंचायत अध्यक्ष देव पिंटू कुमार साहिल,नगर पंचायत उपाध्यक्ष गोलू गुप्ता,जिला पार्षद शंकर यादवेन्दु, अनिल यादव, सुरेंद्र यादव,राजद जिलाध्यक्ष अमरेंद्र कुशवाहा,जिलाध्यक्ष कांग्रेस राकेश कुमार सिंह उर्फ पप्पू सिंह,राजद जिला प्रवक्ता डॉ रमेश यादव,जिला परिषद प्रतिनिधि संजय यादव,प्रदेश महासचिव राजद कौलेश्वर यादव, बादशाह यादव,लोजपा जिलाध्यक्ष चंदभूषण सिंह उर्फ सोनू सिंह सहित अन्य उपस्थित रहे ।वहीं धन्यवाद ज्ञापन अनुमंडल पदाधिकारी श्री विजयंत ने किया ।

रविवार, 22 अक्तूबर 2023

भारत यायावर बने रहेगें हमेशा प्रासंगिकता / विजय केसरी


(22 अक्टूबर,कवि भारत यायावर की  द्वितीय पुण्यतिथि पर  विशेष)


भारत यायावर की कविताएं सदा मुस्कुराती रहेंगी / विजय केसरी 


झारखंड के जाने माने साहित्यकार कवि, संपादक, आलोचक, समीक्षक भारत यायावर की कविताएं सदा समय से संवाद करती नजर आती है है । उनकी कविताएं  लोगों के बीच सदा मुस्कान  बिखेरती ही रहेंगी । भारत यायावर  सदैव लोगों को गले लगाते रहे थे।  आज  वे हमारे बीच नहीं हैं। । इसके बावजूद उनके मन से उपजी कविता की पंक्तियां लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती हैं। उनकी कविताएं मन में उठते सवालों का जवाब भी देती नजर आती हैं । उनकी कविताएं  पाठकों से वार्तालाप भी करती रहती हैं । उनकी कविता की पंक्तियों की यह खासियत है।  उनके मन की उपजी  कविताएं जितनी बार भी पढ़ी जाती हैं, हर बार एक नए अर्थ और रस के साथ उपस्थित हो जाती हैं। जब तक यायावर इस धरा पर रहें, सदा गतिशील रहें, सदा रचना रत रहें । साहित्य के अलावा उन्होंने इधर उधर बिल्कुल झांका नहीं। हिंदी साहित्य ही उनके जीवन का सब कुछ था । वे हिंदी साहित्य के इनसाइक्लोपीडिया  बन गए थे । हिंदी साहित्य पर क्या कुछ लिखा जा रहा है ? उनके पास बिल्कुल ताजा जानकारी रहती थी ।  पूर्व के रचनाकारों ने हिंदी साहित्य को किस तरह समृद्ध किया है ? इस पर उनकी टिप्पणी सुनते बनती थी । उनकी बातों को सुनकर प्रतीत होता था कि उन्हें हिंदी साहित्य की कितनी जानकारी थी।  एक बार प्रख्यात कथाकार रतन वर्मा, कवि भारत यायावर के साथ फणीश्वर नाथ रेणु के गांव एक साहित्यिक कार्यक्रम में जा रहे थे। उन दोनों के बीच हिंदी साहित्य पर लंबी वार्ता हुई थी। इस वार्ता पर रतन वर्मा ने कहा कि 'भारत यायावर निश्चित तौर पर हिंदी के एक मर्मज्ञ विद्वान थे। उन्हें हिंदी साहित्य की हर विधा की जानकारी थी।

कवि भारत यायावर की लगभग साठ पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनकी  कुछ महत्वपूर्ण पांडुलिपियां अभी भी  प्रकाशान के लिए तैयार हैं, जिन्हें  यायावर ने अपने जीवन काल में ही तैयार कर लिया था। उन्होंने जो कुछ भी रचा और संपादन किया । सभी महत्वपूर्ण कृतियां बन गई हैं । आज उनकी पुण्यतिथि पर  एक महत्वपूर्ण कृति  'कविता फिर भी मुस्कुराएगी' कविता संग्रह की विशेष रूप से चर्चा करना चाहता हूं। इस संग्रह में कुल उनहत्तर कविताएं दर्ज हैं।  सभी कविताएं विविध विषयों पर लिखी गई हैं। कविताओं के पाठन के उपरांत मैं यह विमर्श कर रहा था कि आखिर भारत यायावर ने इस संग्रह का नामकरण 'कविता फिर भी मुस्कुराएगी' शीर्षक कविता को ही क्यों चुना ? इस संग्रह की कविताओं के पाठ से लगा कि उन्हें संपादन की भी बड़ी अच्छी समझ थी । इस संग्रह का नामकरण इससे बेहतर और कुछ हो भी नहीं सकता था।

'कविता फिर भी मुस्कुराएगी' कविता के माध्यम से कवि भारत यायावर ने दर्ज किया है।  टहनियां सूख जाएंगी/  अपना होने का अर्थ मिट जाएगा/ कविता फिर भी मुस्कुराएगी। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि टहनियां सुख जाएंगी । अपना होने का अर्थ मिट जाएगा। फिर भी कविता मुस्कुराएगी । अर्थात यह जीवन एक वृक्ष के समान है । समय के साथ एक वृक्ष का उदय होता है । समय के साथ वृक्ष पुष्पित और पल्लवित होता है और  अपना संपूर्ण आकार ग्रहण करता है । लेकिन एक न एक दिन उसकी टहनियां धीरे धीरे कर सूखती चली जाती है।  एक समय ऐसा आता है, जब वृक्ष का अस्तित्व मिट जाता है। लेकिन मनुष्य के जीवन के  वृक्ष से निकले उदगार और कर्म  कविता के रूप में फिर भी मुस्कुराते रहेंगे । भारत यायावर की पंक्तियां एक जीवन के समान हैं।  उनकी पंक्तियां चंद शब्दों के मिलान भर नहीं है, बल्कि मनुष्य का संपूर्ण जीवन है।  मनुष्य का जीवन अनंत काल से है। और अनंत काल तक बना रहेगा । कविता का जन्म ना मरने के लिए होता है । कविता की पंक्तियां कालजई होती हैं । कविता अमरता का वरदान लेकर ही पैदा होती हैं। कविता जब भी किसी पाठक के पास पहुंचती हैं। कविता पुनः गतिशील हो जाती हैं।  कविता गीता के श्लोकों की तरह सदा साक्षी भाव में रहती हैं।  कविता दुःख - सुख दोनों में सदा  मुस्कुराती रहती हैं। यही कविता की खूबसूरती है। कविता किसी राजनेता की आलोचना कर रही होती है, तब भी मुस्कुराती रही होती है। कविता जब किसी श्रमिक के बहते पसीने पर अपनी बात कह रही होती है, तब भी कविता मुस्कुराती रही होती है । कवि के लिए कविता एक जीवन के समान है। जीवन के समान निरंतर गतिमान बनी रहती है । जीवन का आना जाना लगा रहता है।  लेकिन कविता जीवन के आने जाने से मुक्त होकर  कवि के मन के  भावों को सदा सदा के लिए अमर बना देती हैं।


आगे पंक्तियां कहती हैं। कविता / मेरे धीरे-धीरे मरने का संगीत ही नहीं/ कविता/ सृष्टि को अकेले में / या भीड़ में भोगी / संवेदना का गीत ही नहीं /लोग /रेंगते/ घिसटते / थके - हारे लोग / कविता सिर्फ कविता। अर्थात कविता सिर्फ मेरे धीरे धीरे मरने का संगीत ही नहीं बल्कि मेरे जीवन के संघर्ष की सहचर भी हैं। लोग रेंगते हैं। लोग घिसटते हैं।  थक कर चूर हो जाते हैं । इन तमाम संघर्ष और परेशानियों के बीच मनुष्य रहकर भी  चलता ही रहता है । यह संघर्ष ही उसे गतिमान बनाता है। यह परेशानियां ही उसे जीने का एक नया अर्थ प्रदान करती हैं। मनुष्य के जीवन में संघर्ष ना हो।  परेशानियां ना हो।  तब यह जीवन किस काम का ? जीवन के संघर्ष और परेशानियां ही मनुष्य को  साधारण से असाधारण बनाता है । इसलिए मनुष्य को कविताओं से प्रेरणा लेनी चाहिए।  कविता का जन्म किसी भी कालखंड में क्यों ना हुआ हो । जब भी उसे पढ़ा जाता है। कविता पूरी शिद्दत के साथ अपनी बातों को रखती हैं । कविता लोगों को  प्रेरणा देती हैं। फिर मनुष्य क्यों अपने संघर्ष और परेशानियों से घबराता है ? उसे कविता की तरह ही विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुराने की जरूरत है।


मेरे अंदर / टूटती है शिलाएं रोज / फिर भी मैं गहरे अंधेरे में खो जाता हूं / रोशनी मेरी आंखों में / ढेर सारा धुआं उड़ने लगती है /लगातार जारी इस बहस से/ आजाद कब होओगे, भाई ! / इस विफल यात्रा की झूठ को ढोता थक गया हूं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बहुत ही महत्वपूर्ण बातों की ओर इशारा करते हुए कहना चाहते हैं कि हर रोज लोगों के अंदर नए-नए विचार उत्पन्न होते हैं । विचारों की शिलाएं रोज बनती हैं। टूटती हैं । और ना जाने ये विचार किस भंवर में समा जाती है ? जैसे लगता है कि आंखों के सामने सब कुछ दिख रहा है।लेकिन कुछ भी  दिख नहीं हो रहा है।  जैसे किसी ने ढेर सारा धुआं आंखों के सामने उड़ेल दिया हो।  जब से मनुष्य आया है।  तब से यह बहस जारी है कि मेरी यह यात्रा किस लिए है ? लेकिन अब तक किसी ने इस यात्रा  के रहस्य को समझा ही नहीं पाया।  मनुष्य अनंत काल से जन्म लेता चला रहा है।  शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य का जन्म अनंत काल तक होता रहेगा । मनुष्य एक राहगीर के समान है।  वह इस राह पर कब तक चलता रहेगा ? उसे मालूम ही नहीं । मनुष्य इस विफल यात्रा से मुक्ति चाहता है । आखिर इस विफल यात्रा के झूठ को मनुष्य कब तक ढोता चला जाएगा ? मनुष्य इस यात्रा से मुक्ति की नई राह को ढूंढता नजर आता है।  जिसकी तलाश ना जाने कितने महापुरुषों ने  की थीं । उन्हें इस विफल यात्रा से मुक्ति मिली अथवा नहीं ? ये भी बातें रहस्य बन कर रह गई हैं।


आगे पंक्तियां कहती हैं । आओ / हम अपने को नंगा कर / स्वतंत्र हो जाएं/ यातनाओं के बीच / हमारी अस्मिता का सुंदर रुप हो/ लय हो/ टहनियां सूख जाएंगी/ हमारे होने का अर्थ मिट जाएगा/ कविता फिर भी मुस्कुराएगी। कवि इन पंक्तियों में एक संदेश वाहक के रूप में यह कहना चाहते हैं कि यह जीवन सिर्फ माया का एक बंधन है।  मनुष्य खाली हाथ आया है । और इस धरा से खाली हाथ ही चला जाएगा।  मनुष्य इस धरा से फूटी कौड़ी भी नहीं ले जा सकता है।  तो फिर मनुष्य धन, यश और पद के पीछे क्यों भाग रहा है ?  ये सारी चीजें उसे माया में ही बांधती चली जाएगी।  इसलिए मनुष्य को इन बंधनों से मुक्त होने के लिए नंगा होना होगा । खुद को इन बंधनों से मुक्त करना होगा।  स्वतंत्र होना होगा । तभी इस यात्रा से मुक्ति संभव है।  जीवन में जो दुःख, संघर्ष, खुशी आदि हैं।  इन्हीं के बीच अपनी अस्मिता को सुंदर बनाया जा सकता है।  जब मनुष्य माया के बंधनों से मुक्त होता है, तभी उसका रूप निखर कर सुंदर होता है। और इसी रूप का लय होना सच्चे अर्थों में इस यात्रा से मुक्ति का मार्ग है ।


विजय केसरी,


( कथाकार / स्तंभकार) 


पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301


 मोबाइल नंबर : 92347 99550.

बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

अद्भुत_है_राजगीर_का_ग्लास_ब्रिज अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर में

 #प्रवीण परिमल


वैसे तो पर्यटकों को लुभानेवाले कई प्रमुख दर्शनीय स्थल पहले से मौजूद हैं, जैसे सप्तधारा ब्रह्मकुंड (गर्म जल का झरना), विश्व शांति स्तूप, घोड़ा कटोरा, जरासंध का अखाड़ा, पांडु पोखर, अशोक स्तूप शिखर, सोन भंडार गुफाएँ, मनियार मठ आदि। लेकिन पर्यटकों को आजकल ज़्यादा आकर्षित कर रहा है, नेचर सफारी पार्क में चीन के हांग्झोऊ ग्लास ब्रिज के तर्ज़ पर हाल ही में बना पारदर्शी ग्लास ब्रिज, जिसे ग्लास स्काई वाॅक भी कहा जाता है। 

     प्राप्त जानकारी के अनुसार यह ब्रिज 85 फुट लंबा और 6 फुट चौड़ा है। इसकी ऊँचाई लगभग 200 फुट है। एक बार में इसके आख़िरी छोर तक मात्र 10 से 12 लोगों को ही जाने की इजाज़त रहती है, जिन्हें नयनाभिराम नज़ारों को अपनी आँखों और मोबाइल के कैमरों मे क़ैद करने के लिए सिर्फ 5 से 7 मिनट का ही समय दिया जाता है। 15 मिली मीटर मोटाई वाली काँच की तीन परतों से इसका निर्माण किया गया है।

  यहाँ ऑनलाइन टिकट लेकर जाना ही सुविधाजनक रहता है। वैसे ऑन द स्पॉट टिकट भी उपलब्ध होता है। नेचर सफारी पार्क का प्रवेश शुल्क 150/ रुपए है तथा ग्लास ब्रिज पर जाने के लिए 150/ रुपए अलग से देने होते हैं। नेचर सफारी में प्रवेश के बाद ग्लास ब्रिज की लगभग दस किलोमीटर की दूरी वहाँ उपलब्ध 25- सीटर गाड़ियों से तय करनी होती है।

        राजगीर में बना यह ग्लास ब्रिज भारत का दूसरा और बिहार का पहला ग्लास ब्रिज है। भारत का पहला ग्लास ब्रिज सिक्किम के पहाड़ी शहर पेलिंग में है। चीन का ग्लास ब्रिज विश्व का पहला और सबसे बड़ा ब्रिज है, जिसे देखने के लिए पूरी दुनिया के लोग चीन पहुँचते हैं।

      राजगीर के इस ब्रिज पर चलने में एक अद्भुत आनंद का अनुभव होता है। कहा जाता है कि इसकी ख़ूबसूरती चीन के ग्लास ब्रिज से भी अधिक है। यहाँ से चारों तरफ़ प्राकृतिक सुंदरता देखने को मिलती है। हरे- भरे प्राकृतिक वातावरण में इस पुल पर चलना लोगों में रोमांच भर देता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम हवा में चल रहे हों। जूते- चप्पल पहनकर इस पर प्रवेश निषेधित है। इस पर चलने के लिए एक ख़ास कपड़े के बने मोजे उपलब्ध कराए जाते हैं, जिसे पहनकर ही ख़ूबसूरत वादियों से घिरे इस ख़ूबसूरत ग्लास ब्रिज का आनंद लिया जा सकता है।

     ग्लास स्काई वाॅक यानी ग्लास ब्रिज से थोड़ी ही दूरी पर एक और ब्रिज है जिसे सस्पेंशन ब्रिज कहा जाता है। यह ब्रिज इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध ब्रिज की तर्ज़ पर बनाया गया है। यह राजगीर की पाँच पहाड़ियों में शामिल वैभारगिरि की दो पर्वत श्रृंखलाओं को आपस में जोड़ता है। 135 मीटर लंबा और 6 फुट चौड़ा यह ब्रिज इस इलाके का इकलौता सस्पेंशन ब्रिज है।

    

 इसमें रस्सों के दो सेट लगे हैं जो रास्ते के दोनों तरफ़ रज्जुवक्र  की आकृति में लटक रहे हैं। यह ब्रिज लोहे के बने मोटे रस्सों के सहारे टंगा है। चलने के लिए इसमें लकड़ी के प्लास्टिक कोटेड पटरे लगे हैं। सुरक्षा की दृष्टि से इसके दोनों ओर लोहे के मोटे तारों से बनी जालियाँ लगी हैं। इस पर चलने में शरीर में एक अजीब सी लचक पैदा होती है। तार की जालियों या रस्सों का सहारा लेकर ब्रिज के दूसरी तरफ जाया जा सकता है। इस ब्रिज पर न तो विजिटर्स की संख्या सीमित है और न ही समय का कोई बंधन है। इस पर जाने के लिए जूते- चप्पल खोलने की अनिवार्यता भी नहीं है। और हाँ, ग्लास ब्रिज के टिकट के साथ यह सुविधा मुफ़्त में उपलब्ध है। यदि कोई ग्लास ब्रिज न जाकर केवल सस्पेंशन ब्रिज पर जाना चाहे तो सुविधा शुल्क मात्र ₹ 10/ देय है।



मंगलवार, 10 अक्तूबर 2023

 महाराजा मित्रजित सिंह की बेगम 


अल्ला ज़िल्लाई


महाराजा मित्रजित सिंह के मुस्लिम पत्नी अल्ला ज़िल्लाई उर्फ़ बरसाती बेगम, एक बेहद सुंदर ईरानी पर्शियन महिला थी,


पर्शियन महिला के बारें -- 


वैसे तो दुनिया की सारी महिलाएं बेहद खुबसूरत होती है लेकिन कुछ देश की महिलाओं को कुछ अलग तरह का खूबसूरत कहा जाता है. इसी तरह ईरान की महिलाओं को दुनियां की खुबसूरत महिलाओं में एक कहा जाता है. उनकी खुबसूरती को ईरान की भौगोलिक और आनुवंशिक स्थिति को बताया जाता है. ईरान की ज्‍यादातर महिलाएं आरामदायक ज़िन्दगी जीती हैं. वह चाहे नेत्री, अभिनेत्री या फिर कोई साधारण महिला हो, उनकी जीवनशैली दुनिया के बाकी महिलाओं से थोड़ी अलग होती है. वह अपना शारीरिक बनावट सही रखने के लिए हर कोशिश करती रहती हैं.


हालांकि कहा यह भी जाता है कि पर्शियन महिला की खूबसूरती उनके जन्‍म से जुड़ी होती है. उनकी चर्म बचपन से ही बहुत तीखा और चमकदार होती है. उनकी चमकदार चर्म पर उनकी आंखें बहुत ही खूबसूरत दिखती हैं. इन महिलाओं का सुंदरता का अपना ही एक मुकाम है. पर्शियन महिलाएं अपने बालों की भी प्राकृतिक तरीके से देखभाल करती है. ईरान की महिला, जब घर से बाहर जाती है तो खुद को पूरी तरह से हिजाब से ढक लेती है. ईरान में महिला को पहनने में हिजाब प्रचलन है. हिजाब से उनका पूरा शरीर ढका होता है, लेकिन चेहरा दिखना चाहिए. ईरानी महिलाएं काला रंग का ही परिधान ज्यादा पहनती हैं. वे चटख रंग भी खूब ओढ़ती-पहनती हैं. औरतें सामाजिक रीती का पालन करती हैं, लेकिन इन हदों में रहकर अपने हुस्न का जश्न मनाया करती है.


अल्ला ज़िल्लाई उर्फ़ बरसाती बेगम के बारें में --


आम ईरानी महिलाओं के तरह, अल्ला ज़िल्लाई भी दिखने में बेहद ख़ूबसूरत, लम्बी कद काठी, गोरी पर्शियन महिला थी. उनकी सुन्दरता ने सभी मानकों को तोड़ दिया था.


अल्ला ज़िल्लाई के पूर्वज  ईरान देश की रहने वाले थे. ईरान में उनकी परिवार की आर्थिक दशा ठीक नहीं रहने के कारण, पूरा परिवार ईरान देश को छोड़कर कश्मीर में आ कर बस गया था.

कुछ दिन बाद उनमें से कुछ लोग लखनऊ चले आये और अवध के दरबार में नौकरी करने लगे. इनकी मां अवध के नवाब के राज दरबार में मुख्य राज नर्तकी थी.


सन १७६४  में टिकारी राज का प्रांतीय मुख्यालय कुछ दिन के लिए अवध, लखनऊ, उत्तर प्रदेश था. 


सन १७६५ में बक्सर युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मुग़ल शासन पर जीत के बाद टिकारी राज का प्रांतीय मुख्खालय बंगाल प्रान्त से हट कर अवध प्रान्त में हो गया था. उस समय टिकारी राज का प्रांतीय मुख्खालय अवध, लखनऊ होता था.


टिकारी राज के राजा को समय समय पर कार्यवश या औपचारिकतावश  समय समय पर प्रांतीय मुख्खालय लखनऊ में जा कर अवध के नवाब से मिलना होता था.


महाराजा मित्रजित सिंह -----


महाराजा मित्रजित सिंह का कद ७ फीट लम्बा, अच्छे कद काठी, गोरा व्यक्तित्व के थे. वे देखने में बेहद खूबसूरत थे, एक अच्छे लेखक और कवि भी थी. 


वे पर्शियन भाषा के बहुत अच्छे जानकार थे, उन्होंने साहित्य पर विशेष ध्यान देते हुये उसके विकाश के लिए काफी कार्य किया. उन्होंने अपने राज के लेखक और कवि को प्रोत्साहित किया और उन्हें समय पर पुरुस्कृत किया.


मित्रजित सिंह को संगीत क्षेत्र में काफी रूचि थी. उन्होंने ने इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए गायक, कवि, गीतकार को प्रोत्साहिक किया और समय समय उन लोगों को इनाम भी दिया. उनलोगों के लिए संगीत सभाएं आयोजित करवाते थे.


इन्होने कृषि पर एक पुस्तक भी लिखी थी "कृषि शास्त्रंम" जो उस ज़माने में काफी लोकप्रिय हुई थी. उन्होंने अपने राज्य में कृषि के विकाश के लिए कई परियोजना शुरू की थी जो उस ज़माने में काफी सफल और लोकप्रिय हुआ था.


महाराजा मित्रजित सिंह के समय, टिकारी राज का आमदनी १ करोड़ सालाना थी. अंग्रेज के ईस्ट इंडिया कंपनी उनके सम्पन्नता पर बहुत ईष्या करती थी. उसने इनके राज को काट-काट कर छोटा करना शुरू कर दिया था. बहुत से छोटे छोटे स्टेट बना कर, उस स्टेट को टिकारी राज से उसको अलग कर दिया था.  


महाराजा मित्रजित सिंह ने पटना के बांकीपुर के ज्यादातर मकान और दुकान को खरीद लिया था. पटना के छाज्जुबाग में काफी ज़मीन थी.


मित्रजित सिंह ने औरंगाबाद के कुछ गाँव को टिकारी राज से काट कर अल्लाह ज़िल्लाई से उत्पन्न अपने प्रिय पुत्र खान बहादुर खान को देकर एक अलग स्टेट बनाया दिया था. बाद में राजा खान बहादुर खान के मरने के बाद, यह औरंगाबाद स्टेट अँगरेज़ ने ले लिया था.


अल्ला ज़िल्लाई से भेट ---


कहा जाता है की एक बार महाराजा मित्रजित सिंह अवध के नवाब के दरबार में उनसे मिलने के लिय गए हुए थे. उसी समय अल्ला ज़िल्लाई भी अपनी माँ के साथ राज दरबार में आई हुयी थी. अल्ला ज़िल्लाई पर नज़र पड़ते ही महाराजा मित्रजित सिंह मंत्रमुग्ध हो गए और उसे अपनी दूसरी पत्नी बनाने के लिय, मन बना लिए थे.


उनकी खुबसूरती पर महाराजा मित्रजित फ़िदा हो गए, वह उसकी माँ के पास विवाह करने के प्रस्ताव भेजे, जिसे उसकी माँ ने ससहर्ष तैयार हो गयी थी.


कहा जाता है की उनको भी महाराजा मित्रजित सिंह पसंद आ गए थे. इसलिए दोनों के तरफ से रिश्ता को स्वीकार करने में किसी तरह का परेशानी और देर नहीं हुई.


महाराजा मित्रजित सिंह ने उनसे विवाह कर उसे अपने दूसरी पत्नी बना कर टिकारी राज लेते आये. उस समय राजा की दूसरी पत्नि को उप रानी भी कहते थे.


महाराजा मित्रजित सिंह ने उनके रहने के लिए मुख्य महल के दक्षिण - पश्चिम के कोना से कुछ दूर पर एक छोटा महल बनवाया था. यह वर्तमान में खंडहर के रूप में मौजूद है और अब इसे मुनि राजा के किला भी कहा जाता है. महाराजा के विद्वान पुत्र खान बहादुर खान को मुनि राजा भी कहा जाता था.


महाराजा मित्रजित सिंह ने पारंपरिक, व्यवहारिक एवं पारिवारिक परेशानियों से बचने के लिय उनके लिए अलग छोटा सा महल बनवाया था. इस महल के खाना पीना, रहन सहन, कर्मचारी, सुरक्षा पहरी, दैनिक कार्य में आने वाले जरुरत का चीजे, ये सब मुख्य महल से अलग था.  


मित्रजित सिंह अपने पर्शियन पत्नी के प्रेम के ऐसे दीवाने थे की उनके साथ साथ रहते हुए पर्शियन भाषा के बहुत ही अच्छे जानकार हो गये थे. उन्होंने ने पर्शियन भाषा में पुस्तक भी लिखी थी.


उनके जीवन शैली, खान पान, बातचित, पहनावा और व्यवहार टिकारी राज के अन्य स्त्रियों से एकदम अलग था. कहीं से उनलोगों में सामंजस्य होने का सवाल ही नहीं था. उनकी धर्म उनलोगों के दूरियों को और बढ़ा दिया था. इसलिए मित्रजित सिंह ने उनके लिए छोटा महल का निर्माण करवाना उचित समझा था.   


कहा जाता है की उनको संगीत में खास रूचि थी विशेष कर गायन शैली में. वह अच्छी गाती थी.


कहा जाता है की वे शिक्षित और अच्छी तहजीब वाली घरेलु महिला थी. वह हिंदी, उर्दू, पर्शियन भाषा के अच्छी जानकार थी. 


कहा जाता है की उनमें दूसरों की इज्जत करना, प्यार से बात करना और सच का साथ देना आदि ऐसे बहुत से गुण थे जिसमें त्याग, ममता, बड़ों का आदर, आत्म सम्मान, सहन शक्ति गुण समाएं हुए थी.


वे टिकारी राज के पारिवारिक सदस्यों सबको को सामान इज्ज़त देती थी. राज के लोगों और कर्मचारियों को आदर और सम्मान देती थी. वह प्रायः ईरान के परिधान हिजाब में रहा करती थी.


कहा जाता है की वह एक धर्म परायण महिला थी, इनका अधिकांश समय धार्मिक कार्य में लगा होता था.  


महाराजा मित्रजित सिंह के द्वारा उनको राज दरबार या किसी समारोह, सार्वजनिक कार्यक्रम में जाने से रोक था. उन्हें प्रमुख सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन में जगह जाने / भाग लेने के लिए महाराजा से पहले अनुमति लेनी पड़ती थी.


कहा यह भी जाता है की इनकी एक मात्र पुत्र राजा खान बहादुर खान भी अपनी माँ के तरह धार्मिक विचार के थे.


वे अपने पुत्र के पढाई पर बहुत ध्यान देती थी. उनको पढ़ने के लिए दूर दूर से खोज कर हर भाषा के जानकार और विद्वान लोग को राज में बसाया गया था. पुत्र को अच्छा तालीम दिलवाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ा.


अल्ला ज़िल्लाई के  पुत्र राजा खान बहादुर उर्फ़ मुनि राजा बहुत ही प्रतिभावान थे. इनका अधिकतर समय पठन-पाठन में गुज़रता था. हिंदी, संस्कृत, उर्दू और फारसी के अच्छे ज्ञाता थे.


कहा जाता है की महाराजा मित्रजित सिंह उनको बहुत मानते थे. उनकी हर जरूरते को हर समय, ध्यान देते हुए पूरा करते थे. महाराजा मित्रजित सिंह उनके पुत्र खान बहादुर खान को बहुत मानते थे उसे अपने तरह लेखक, कवि और शायर बनाना चाहते थे. 


कहा जाता है है की महाराजा मित्रजित सिंह अपनी दूसरी पत्नि अल्ला ज़िल्लाई के साथ छज्जुबाग, पटना में विशाल परिसर वाला बंगला में अधिकतर समय निवास करते थे. 


छज्जुबाग का इलाका टिकारी राज का था. यह कई एकड़ में फैला हुआ था. उसमें से एक बड़ा भू भाग, सन १८५७ में उनके बड़े पुत्र महाराजा हितनारायण सिंह ने, अपने स्कॉटिश पत्नी के साथ पटना प्रवास के समय, एक अंगरेज जॉन एलेग्जेंडर बोयलार्ड के हाथ से बेच दी थी. 


उस अंगरेज जॉन एलेग्जेंडर बोयलार्ड की पत्नी मर चुकी थी. उसने उस भू- भाग को अपनी पत्नि के यादगार में ख़रीदा और एक बगीचा के रूप में विकसित करके, उसे छज्जुबाग के नाम से नामकरण कर दिया.


आजादी के समय उस अँगरेज़ को यहाँ से जाने के बाद उसके सम्पति पर बिहार सरकार का कब्ज़ा हैं. आज के समय उस ज़मीन पर बिहार सरकार के बंगला और फ्लैट बने हुए हैं. 


अल्ला ज़िल्लाई से एक पुत्र हुए थे. 


राजा खान बहादुर खान उर्फ़ मुनि राजा - महाराजा मित्रजित सिंह और अल्ला ज़िल्लाई के लड़के थे. इन्हें टिकारी राज परिवार का विद्वान सदस्य कहा गया है. 

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पत्थरकट्टी गांव खिज़रसराय, गया/ रजनीश वाजपेयी

 


बिहार में शिल्प कला का इतिहास गौरवशाली रहा है. सम्राट अशोक के समय से ही भवन निर्माण में पत्थरों का प्रयोग प्रारंभ हो गया था. अशोक ने पत्थरों का लगभग 40 स्तंभों का भी निर्माण कराया था. उस समय शिल्प कला की तकनीक कितनी उन्नत थी. इसका पता इससे चलता है कि आज भी अशोक स्तम्भ  की पॉलिश शीशे जैसे काफी चमकती है. 


पटना और दीदारगंज से मिली यक्षी की मूर्तियां विशेष रूप से शिल्प कला के दृष्टिकोण से अद्वितीय हैं. मूर्तियों के निर्माण के लिए चिकने काले रंग की कसौटी वाले पत्थरों एवं धातुओं का चयन किया गया था.  


कसौटी एक सघन घनत्व वाले काले पत्थर बिहार में गया क्षेत्र के पत्थरकट्टी पहाड़ वाले इलाके में ही मिलते हैं. पत्थरकट्टी एक पहाड़ की तलहटी में बसा एक गांव है, जो गांव कटारी में आता है. कटारी तीन छोटे-छोटे गांवों का घिरा है जिसमें पहला गांव कटारी, दूसरा पत्थरकट्टी और तीसरा झरहा, जिसे कटारी-पत्थरकट्टी के नाम से जाना जाता है. पत्थरकट्टी दो शब्दों का युग्म है, पत्थर और कट्टी यानी पत्थरों को काटना. 


ऐसा माना जाता है कि सन 1857 के विद्रोह के दौरान पत्थरकट्टी के स्थानीय लोगों ने नियामतपुर गांव के मुसलमानों के साथ मिलकर अपने पराक्रम से अंग्रेजों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था. उस विद्रोह में वीर गति प्राप्त वीरों को स्थानीय समाज ने कट्टर कहकर सम्मानित किया था और तब से उस गांव का नाम कटारी-पत्थरकट्टी हो गया.


गया की तरफ से मानपुर-सर्बह्दा सड़क पर करीब तैंतीस किलोमीटर बढ़ने पर पत्थरकट्टी गांव आता है. इसी सड़क पर ठीक अगला गांव खुखरी है. पटना के रास्ते जहानाबाद और वहां से वाया इस्लामपुर और सर्बहद्दा भी पहुंचा जा सकता है. राजगीर और गया रेलवे स्टेशन भी पत्थरकट्टी के नजदीक है. जहां से एक-डेढ़ घंटे में वहां पहुंचा जा सकता है.


गया के साथ पत्थरकट्टी का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध है. वर्तमान में यहाँ से तराशे गए मूर्तियां और घरेलू उपयोग के उत्पादों को राजगीर, गया और बोधगया के बाजार में बिका करते हैं. 


पत्थरकट्टी गांव का इतिहास गया के विश्व विख्यात विष्णुपद मंदिर से भी जुड़ा हुआ है, इंदौर की महारानी देवी अहिल्या बाई होल्कर ने सन 1787 में इस अष्टकोणीय मंदिर का पुनः निर्माण करवाया था. यह मंदिर फल्गू नदी के किनारे पर स्थित है, जिसके दर्शनों के लिए पूरे देश से श्रद्धालु गण आते रहते हैं. 


महारानी अहिल्या बाई होल्कर के विशेष निमंत्रण पर जयपुर से करीब 1300 शिल्पी गौड़ ब्राह्मण गया आये थे. 


मंदिर के जीर्णोद्धार का काम पत्थरकट्टी के ही काले पत्थरों को तराशकर किया गया था. कहा जाता है कि शिल्पियों को इसके लिए काले पत्थरों की जरूरत थी और इसके लिए उन्होंने उस समय यहाँ से असम तक छानबीन की थी. अंतत: मंदिर के जीर्नोदार के लिए उन्होंने पत्थरकट्टी पहाड़ के काले पत्थरों को ही सबसे उपयुक्त पाया. विष्णुपद मंदिर का सम्पूर्ण स्वरुप का निर्माण पत्थरकट्टी गांव में हुआ था. तराशे गए समस्त पत्थरों को गया ले जाने की व्यवस्था टिकारी राजा द्वारा की गई थी. 


विष्णु पद मंदिर के जिर्नोदार कार्य संपन्न होने के पश्चात् अनेक शिल्पी जयपुर वापस लौट गये और उसमें से कुछ शिल्पकार पत्थरकट्टी गांव में ही बस गये. 


महारानी अहिल्याबाई होल्कर के बाद स्थानीय टिकारी राज के महाराजा और अन्य स्थानीय जमींदार का संरक्षण गौड़ ब्राह्मण शिल्पी कलाकारों मिला. जिसके कारण उनका कारोबार तीन-चार पीढ़ियों तक खूब फला-फूला. 


आजादी के बाद राजतंत्र का अंत हो गया था और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में आर्थिक संकट गहरा गया था, तब उनके द्वारा निर्मित मूर्तियों का मांग काफी कम हो गई थी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो गई थी. इन परिस्थितियों में लाचारी वस् इनलोगों का पलायन वापस अपने मातृभूमि जयपुर के तरफ शुरू हो गया. 


शिल्पियों को काफी भूमि दान टिकारी राजा के द्वारा दिया गया था, जो भूमि पत्थरकट्टी से बथानी गांव तक थी.


पत्थरकट्टी में टिकारी राज की छत्री और कचहरी थी. टिकारी राज के पहले देवमूर्ति बनाने पर मुगलों द्वारा रोक लगा दी गई थी. पुनः टिकारी राजा के आदेश से देवस्थल और देवमूर्ति का निर्माण होना आरंभ हुआ.


उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में गौड़ ब्राह्मण शिल्पियों के सिर्फ चार परिवार पत्थरकट्टी में थे, जिनके सदस्यों की कुल संख्या 90 के आसपास है. 


जहां तक गांव की बसावट का प्रश्न है, इस गांव में शुरुआती तौर पर सिर्फ गौड़ ब्राह्मण परिवार थे.


पत्थरकट्टी गांव में गौड़ ब्राह्मण शिल्पियों के बसने के बाद अन्य जाति के लोगों ने भी धीरे-धीरे यहाँ बसना शुरू किया. जिसमें भूमिहार ब्राह्मण नवादा के बज्र इलाके से आये. केनार गांव से कोयरी आये थे. गौड़ ब्राह्मणों के साथ इन दो जातियों के लोग सबसे पहले बसे. कोयरी जाति के लोगों के पत्थरकट्टी में बसने के बाद केनार गांव से ही ब्राह्मण समाज के लोग भी वहां पहुंचे. जो स्थानीय मुस्लिम जमींदार से प्रताड़ित थे. राजपूत, कायस्थ, दुसाध, सोनार आदि जातियां गौड़ ब्राह्मण के बसने के बाद यहाँ बसी थी. 


यहाँ के स्थानीय कारीगर काले कठोर पत्थर पर नक्काशी करते हैं, जो की अपने आप में हस्त कला का एक अनोखा नमूना है.


पत्थरकट्टी गांव पत्थरों से मूर्ति एवं वस्तुएं को तराशने के लिए काफी प्रसिद्ध है. यहाँ के कुशल कारीगर ग्रेनाइट, सफ़ेद बलुआ पत्थर, संगमरमर को विभिन्न स्वरुप देने में कुशल हैं. इन पत्थरों से घरेलु सामान भी बनाये जाते हैं. अगर आप पत्थर से बनी वस्तुएं रखने के शौक़ीन हैं, तो एक बार पत्थरकट्टी गांव जरूर जाएं.


वर्तमान में पत्थरकट्टी के गौड़ ब्राह्मण परिवार को काफी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. उनके द्वारा निर्मित मूर्तियों का मांग स्थानीय बाज़ार राजगीर, गया और बोध गया में कम हो गई है. मूर्ति निर्माण की लागत काफी बढ़ गई है. इस कारण बचे हुए गौड़ ब्राह्मण शिल्पी, अब वापस अपने मातृभूमि जयपुर की ओर पलायन करने का मन बना रहे है.


वर्तमान में पत्थर कट्टी में कुशल शिल्पकार सुरेश गौड़ और रवि गौड़ अपने पूर्वज़ के बनाये हुए मूर्ति कला व्यवसाय को जीवित रखे हुए हैं और किसी तरह पत्थर कट्टी में अपने जीवन का निर्वाह कर रहे हैं.

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रजनीश वाजपेयी 

वाजपेयी भवन 

टिकारी गया

अमिताभ बच्चन की सक्रियता अनुकरणीय / विजय केसरी


 ( 11 अक्टूबर, महानायक अमिताभ बच्चन की 81 वीं जयंती पर विशेष)


अमिताभ बच्चन की सक्रियता अनुकरणीय / विजय केसरी



अमिताभ बच्चन के गतिशील जीवन से हम  सबों को जीवन जीने की कला सीखने की जरूरत है। आज वे 81 वर्ष की उम्र की दलहीज में  कदम रख चुके हैं । वे उसी जोश और जुनून के साथ फिल्मों सहित अन्य गतिविधियों में सक्रिय । सोनी टीवी द्वारा प्रायोजित 'कौन बनेगा करोड़पति ?' में अमिताभ बच्चन उसी सक्रियता के साथ काम कर रहे हैं, जैसा कू पहली कड़ी में काम किया था ।उनकी उम्र के कई साथी कलाकार फिल्मों से अलग-थलग पड़ गए हैं अथवा सेवानिवृत्ति का जीवन जी रहे हैं । निश्चित तौर पर अमिताभ बच्चन का जीवन हम सबों के लिए अनुकरणीय है। आखिर क्या बात है ? अमिताभ बच्चन में, उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच कर भी वे एक युवा की तरह ही गतिशील बने हुए हैं । अमिताभ बच्चन का जीवन आम आदमी की तरह ही है।  वे सहज, सरल, मृदुभाषी हैं। वे अपने काम से बेहद मोहब्बत करते हैं । वे अपने काम को  जीते हैं । वे पूरी लगन और ईमानदारी के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं।  समय का कदापि दुरुपयोग नहीं करते हैं। समय के पाबंद भी हैं।  दर्शकों ने उन्हें सुपरस्टार और महानायक बना दिया, लेकिन आज भी वे अपने को एक साधारण कलाकार ही मानते हैं। उनकी सादगी और सरलता से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।  उनका संतुलित बयान और व्यवहार उन्हें सबसे अलग बनाता है।

 हिन्दी सिनेमा में चार दशकों से ज्यादा का वक्त बिता चुके अमिताभ बच्चन को उनकी फिल्मों ने ‘एंग्री यंग मैन’ की उपाधि प्रदान किया है। उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच कर भी उनकी सक्रियता ही उन्हें एंग्री यंग बनाए हुए हैं । वे हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े और सबसे प्रभावशाली अभिनेता माने जाते हैं। उन्हें लोग ‘सदी के महानायक’ के तौर पर भी जानते हैं । लोग उन्हें प्‍यार से बिग बी, शहंशाह भी कहते हैं। अमिताभ बच्चन के फिल्मों में बोले गए डायलॉग लोगों की जुबान पर रहती हैं। यह उनके अभिनय की जीवंतता को दर्शाता है।

  अमिताभ बच्चन ने  राजनीति में भी अपनी किस्‍मत्  आजमाई थी। वे राजीव गांधी के करीबी दोस्‍त् थे।  इसलिए उन्‍होंने कांग्रेस पार्टी जॉइन की थी। उन्होंने इलाहाबाद से  आठवां लोक सभा का चुनाव एक ताकतवर नेता एच. एन. बहुगुणा से लड़ा था, और अपनी जीत दर्ज की थी।  राजीव गांधी जैसे दोस्त के कहने पर उन्होंने चुनाव तो जरूर लड़ लिया था, जीत भी लिया था, लेकिन वे राजनीति के घोर पेंच से  अनजान थे । राजनीति उनके बस की ना थी, ऐसा उन्होंने महसूस किया था।  चूंकि वे एक कलाकार थे। एक संवेदनशील इंसान थे । उन्होंने राजनीति से अपने को किनारा कर लेना ही उचित समझा था।  उन्‍होंने मात्र तीन साल में राजनीति से अलविदा  कह दिया था।

अमिताभ बच्चन के  पिता  हरिवंश राय बच्चन हिंदी जगत के मशहूर कवि रहे हैं। उनकी मां का नाम तेजी बच्चन था। उनके एक छोटे भाई भी हैं, जिनका नाम अजिताभ है। अमिताभ का नाम पहले इंकलाब रखा गया था, लेकिन उनके पिता के साथी रहे कवि सुमित्रानंदन पंत के कहने पर उनका नाम अमिताभ रखा गया। जिस कालखंड में अमिताभ बच्चन का जन्म हुआ था, उनके जन्म के तीन माह पूर्व ही देश में 'भारत छोड़ो आंदोलन' का प्रस्ताव पारित हुआ था । स्वाधीनता संग्राम की लहर संपूर्ण देश में जन जन तक पहुंच चुकी थी। उनको बचपन से ही घर पर एक साहित्यिक माहौल मिला था ।  वे अंदर से एक कलाकार थे।  इस बात को उनकी मां बखूबी समझती थी।  उनकी मां चाहती थी कि अमिताभ बच्चन एक कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाए। हरिवंश राय बच्चन का कविता संग्रह 'मधुशाला' को जन जन तक पहुंचाने में अमिताभ बच्चन के अवदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता है।

 अमिताभ बच्चन बचपन से ही एक मेधावी छात्र रहे । पढ़ाई में उन्हें बहुत मन लगता था। उन्होंने  शेरवुड कॉलेज, नैनीताल से स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी । इसके बाद की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से की थी।  उनकी गिनती एक अच्छे छात्र के रूप में होती थी। अमिताभ बच्चन बच्चन प्रारंभ से ही एक अच्छे श्रोता रहे । वे सामने वाले की बातों को बड़े ही ध्यान से सुनते थे । वे अपना जवाब बहुत ही संतुलित दिया करते थे। आज भी उनका स्वभाव यही बना हुआ है।

 आज जो अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता देखने को मिल रही है , उनसे मिलने की चाह करोड़ों लोग रखते हैं।  वे जहां भी जाते हैं, उनके चाहनेवालों की एक लंबी कतार लग जाती है । यह लोकप्रियता उन्हें ऐसे नहीं मिली है,बल्कि इस लोकप्रियता की लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी है । आज भी वे लगातार कड़ी मेहनत कर रहे। उनकी  शुरूआत फिल्मों में वॉयस नैरेटर के तौर पर फिल्म 'भुवन शोम' से हुई थी।   अभिनेता के तौर पर उनके करियर की शुरूआत फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' से हुई। इसके बाद उन्होंने कई फिल्में की , लेकिन वे ज्यादा सफल नहीं हो पाईं। फिल्म 'जंजीर' उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। इसके बाद उन्होंने लगातार हिट फिल्मों की झड़ी तो लगाई ही, इसके साथ ही साथ वे हर दर्शक वर्ग में लोकप्रिय हो गए । उन्होंने अपने अभिनय के बल पर फिल्म इंडस्ट्री में अपने  लोहा भी मनवाया। जिस कालखंड में युवा अमिताभ बच्चन फिल्मों में अभिनय  कर रहे थे, देश के युवा हो रही पीढ़ी को एक मार्गदर्शक की जरूरत थी।  उन्होंने करोड़ों युवाओं के इच्छाओं के अनुकूल  अभिनय किया  । उन्होंने युवाओं की आवाज को अपना स्वर प्रदान किया। देखते ही देखते अमिताभ बच्चन  बॉलीवुड के सुपरस्टार व महानायक बन गए। सुपरस्टार बनने के बाद जैसा कि अन्य कलाकारों में होता रहा है,.. 'मैं' की भावना से ग्रस्त हो जाते हैं, लेकिन अमिताभ बच्चन ने जितनी बुलंदियों को छुआ, वे उतना ही सहज और सरल बनते गए । यही उन्हें सबसे अलग करता है।

 सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के तौर पर उन्हें तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा चौदह बार उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड भी मिल चुका है। फिल्मों के साथ साथ वे गायक, निर्माता और टीवी प्रजेंटर भी रहे हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान से भी नवाजा है। कौन बनेगा करोडपति, सोनी टीवी का एक लोकप्रिय ज्ञान वर्धक कार्यक्रम साबित हुआ।  अमिताभ बच्चन लगातार एक संचालक की भूमिका में सराहनीय योगदान दे रहे हैं। आज भी यह शो जनता के बीच में प्रसिद्ध है।  जिस अंदाज में वे प्रतिभागियों से मुखातिब होते हैं, सबसे अलग होता है । लाखों लोग कौन बनेगा करोड़पति के प्रतिभागी बनने की इच्छा रखते हैं ।

 अमिताभ बच्चन को अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था । उन्होंने जीवन के हर मुश्किलों का सामना पूरी शक्ति के साथ किया।  1982 में कुली फिल्म की शूटिंग के दौरान उन्‍हे गंभीर चोट लगी गई थी। वे कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे थे। उनके स्वास्थ्य की मंगल कामना के लिए देशभर में दुआएं की गई थी। वे पूर्णतः स्वस्थ हो गए और पुनः फिल्मों में सक्रिय हो गए थे। उन्होंने फिर से कड़ी मेहनत कर एक के बाद एक सफल फिल्मों में  अभिनय किया। इसी दौरान उन्होंने एक फिल्म निर्माण कंपनी का भी शुभारंभ किया था, जो पूरी तरह असफल साबित हुआ था।  इस फिल्म कंपनी निर्माण में उनका करोड़ों रुपया का नुकसान हुआ था। कई बैंकों की देनदारी भी हो गई थी।  वे इससे तनिक भी विचलित नहीं हुए। वे लगातार अभिनय नहीं करते रहे थे।  इसी बीच सोनी पर कौन बनेगा करोड़पति का शुरू हुआ।  आगे कई विज्ञापन के लिए भी काम किया। फलत: उनका सारा कर्जा समाप्त हो गया।

 एक बार अमिताभ बच्चन कौन बनेगा करोड़पति शो के दौरान कहा था कि उनका लिवर 75 परसेंट डैमेज हो चुका है।  इसके बावजूद वे नियमित संतुलित आहार व्यायाम कर स्वयं को स्वस्थ रखे हुए हैं। लोग थोड़ी सी बीमारी को होने पर चिंतित हो जाते हैं। वैसे लोगों को अमिताभ बच्चन से सीख लेनी चाहिए । 

इन तमाम शारीरिक और सामाजिक झंझवटों  के बीच रहकर अमिताभ बच्‍चन लोगों की मदद के लिए भी हमेशा आगे खड़े रहते हैं। वे सामाजिक कार्यों में काफी आगे रहते हैं। उन्होंने कर्ज में डूबे आंध्रप्रदेश के 40 किसानों को 11 लाख रूपए की मदद की। ऐसे ही विदर्भ के किसानों की भी उन्‍होंने 30 लाख रूपए की मदद की। इसके अलावा और भी कई ऐसे मौके रहे हैं जिसमें अमिताभ ने दरियादिली दिखाई है और लोगों की मदद की है। इसके साथ ही वे कई स्वास्थ संबंधी राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विज्ञापनों में  नजर आते हैं। इसमें अधिकांश विज्ञापन वे मुफ्त में करते हैं। अमिताभ बच्चन को चाहने वाले, विश्व के कई देशों  के लोग हैं। अमिताभ बच्चन का जीवन सदैव गतिशील बना रहा है। वे काम को इंजॉय करते हैं।  आज समस्त देशवासियों को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए । हम सब उनके स्वस्थ और दीर्घायु जीवन की कामना करते हैं।


विजय केसरी,

( कथाकार / स्तंभकार)

 पंच मंदिर चौक, हजारीबाग -825301

 मोबाइल नंबर :- 9234799550.

युद्ध के 72 घंटे के बाद

संघर्ष के 72 घंटे के अंदर करीब 1600 की मौत; हमास ने दी इस्राइली बंधकों की हत्या की धमकी


अमेरिका की शीर्ष जांच एजेंसी एफबीआई ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी नागरिकों की जान पर किसी भी संभावित खतरे की वह जांच कर रहे हैं और अमेरिकी नागरिकों को बचाने के लिए कोई भी सख्त कदम उठाने से पीछे नहीं हटेंगे। एफबीआई की यह चेतावनी ऐसे समय आई है, जब इस्राइल और हमास के बीच लड़ाई छिड़ी हुई है।


हमास के हवाई हमले में बाल-बाल बची अमेरिकी पत्रकार की जान

इस्राइल में घुसकर फलस्तीन की आतंकी संगठन हमास ने खुलेआम सड़कों पर गोलीबारी करने के साथ हवाई हमले भी किए, जिसमें अबतक 900 के करीब इस्राइली नागरिकों की मौत हो चुकी है। जहां इस हमले से डरकर लोग अपने घरों में छिपने के लिए मजबूर हो गए हैं, तो वहीं अमेरिकी न्यूज चैनल की रिपोर्टर और उनकी टीम ने इस हमले को काफी करीब से देखा है। उन्होंने हमास द्वारा किए गए इस हमले का जिक्र करते हुए अपनी दास्तां बताई हैं।




 हमास के हवाई हमले में बाल-बाल बची अमेरिकी पत्रकार की जान, लाइव टेलीकास्ट के दौरान पास में गिरा रॉकेट*


इस्राइल में घुसकर फलस्तीन की आतंकी संगठन हमास ने खुलेआम सड़कों पर गोलीबारी करने के साथ हवाई हमले भी किए, जिसमें अबतक 900 के करीब इस्राइली नागरिकों की मौत हो चुकी है। जहां इस हमले से डरकर लोग अपने घरों में छिपने के लिए मजबूर हो गए हैं, तो वहीं अमेरिकी न्यूज चैनल की रिपोर्टर और उनकी टीम ने इस हमले को काफी करीब से देखा है। उन्होंने हमास द्वारा किए गए इस हमले का जिक्र करते हुए अपनी दास्तां बताई हैं। 

अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन की मुख्य अंतर्राष्ट्रीय संवाददाता क्लेरिसा वार्ड एक लाइव सेगमेंट के बीच थी, तभी उन्होंने रॉकेटों की तेज आवाज सुनी। आवाज सुनते ही वह अपनी तीन साथियों के साथ सड़क किनारे जाकर छिप गई। इस दौरान कैमरामैन को बोलते सुना गया, 'ठीक है, ठीक है।'

संवाददाता वर्ड ने इस दौरान अपनी स्थिति के लिए सीएनएन टीम से माफी मांगी और वहां के दृश्य का वर्णन किया। उन्होंने बताया, 'हम यहां भारी मात्रा में रॉकेट आते हुए देख रहे हैं। यह हमसे ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए हमें छिपने के लिए सड़क किनारे आना पड़ा।'


 

इजरायल और हमास से युद्ध के बीच दिल्ली में सख्त पहरा, इजरायली दूतावास और यहूदियों के धार्मिक स्थलों की बढ़ाई सुरक्षा*


मिडिल ईस्ट में इजरायल और फलस्तीन के बीच जारी जंग को ध्यान में रखते हुए दिल्ली पुलिस ने इजरायली दूतावास के आसपास सुरक्षा कढ़ी कर दी है. इस बात की जानकारी एक अधिकारी ने आज मंगलवार (10 अक्टूबर) को दी. अधिकारी ने बताया कि दिल्ली पुलिस ने इजरायल-हमास संघर्ष के मद्देनजर इजरायली दूतावास और चाबड़ हाउस के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी है। 


उन्होंने आगे कहा कि नई दिल्ली में इजरायली दूतावास और मध्य दिल्ली के चांदनी चौक स्थित चाबड़ हाउस के आसपास तैनात स्थानीय पुलिस को कड़ी निगरानी बनाए रखने का निर्देश दिया गया है. इज़रायली दूतावास और भारत में इज़रायली रजादूत नोर गिलों के अधिकारिक आवास के बाहर अतिरिक्त पुलिस तैनात की गई है. इसके अलावा नई दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में यहूदियों के धार्मिक स्थल चबाड़ हाउस के पास भी सुरक्षा बढ़ा दी गई है।




इजराइल का गाजा बॉर्डर पर कब्जा, 1500 लड़ाके मारे: नेतन्याहू बोले- ऐसी कीमत वसूलेंगे कि पीढ़ियां याद रखेंगी; हमास की धमकी- बंधकों को मार देंगे*


इजराइली सेना के प्रवक्ता ने बताया है कि उन्होंने गाजा पर 2,000 में हुई लेबनान जंग से भी 5 गुना ज्यादा बमबारी की है।


इजराइल-हमास के बीच आज जंग का चौथा दिन है। *टाइम्स ऑफ इजराइल* Newspaper के मुताबिक, इजराइल की सेना ने घोषणा की है कि उसने गाजा के बॉर्डर पर कब्जा कर लिया है। सेना ने बताया कि रातभर में उसने गाजा में 200 जगहों को निशाना बनाया है अब तक हमास के 1,500 लड़ाके मारे जा चुके हैं। जंग में इजराइल के करीब 123 सैनिकों की अब तक मौत हो चुकी है।


दूसरी तरफ हमास के हमलों में थाईलैंड के अब तक 18 नागरिकों की मौत हो चुकी है। सोमवार को इजराइल के रक्षा मंत्री ने पूरी गाजा पट्टी पर कब्जे का आदेश दिया था। इसके बाद रात भर इजराइल ने गाजा पर हमले किए। जवाब में हमास ने धमकी दी है कि वो इजराइल से पकड़े करीब 150 बंधकों की हत्या कर देंगे।


नेतन्याहू बोले- हम पर जंग थोपी गई, अब इसे हम ही खत्म करेंगे

दूसरी तरफ, जंग के बीच इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि हमास ने हम पर हमला करके सबसे बड़ी गलती की है। हम इसकी ऐसी कीमत वसूलेंगे, जिसे हमास और इजराइल के बाकी दुश्मनों की पीढ़ियां दशकों तक याद रखेंगी।


PM नेतन्याहू ने कहा- हम युद्ध नहीं चाहते थे। हम पर बहुत क्रूर तरीके से यह थोपा गया। हमने भले ही युद्ध शुरू नहीं किया, लेकिन इसका अंत हम ही करेंगे। इजराइल सिर्फ अपने लोगों के लिए नहीं बल्कि बर्बरता के खिलाफ खड़े हर देश के लिए लड़ रहा है।


बीते 7 अक्टूबर से शुरू हुए इस जंग में अब तक कुल 1,587 लोगों की मौत हो गई है। इजराइल में 900 लोग मारे गए हैं, जबकि 2,300 लोग घायल हैं। वहीं गाजा पट्टी में 140 बच्चों समेत 687 फिलिस्तीनी मारे गए हैं। वहीं 3,726 लोग घायल हुए हैं। इसके अलावा इजराइल की सेना ने अपने क्षेत्र में 1,500 हमास के लड़ाकों को भी मार गिराया है।


शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2023

साहित्य का नॉवेल

 * पहली किताब आत्महत्या पर लिखी; कमेटी ने कहा- वे लोगों की अनकही भावनाएं सामने लाए*


साहित्य का नोबेल प्राइज 64 साल के नॉर्वे के राइटर जॉन फॉसे को दिया गया है। कमेटी ने माना है कि उनके नाटकों और कहानियों ने उन लोगों को आवाज दी है जो अपनी बातें कहने में सक्षम नहीं थे। जॉन ने अपने नाटकों में ड्रामा के जरिए उन इंसानी भावनाओं को जाहिर किया है जो आमतौर पर जाहिर नहीं की जा सकती हैं। जिसे समाज में टैबू समझा जाता है।


जॉन ने अपने पहले ही उपन्यास रेड एंड ब्लैक में आत्महत्या जैसे गहरे और संवेदनशील मुद्दे पर लिखा था। इनकी मशहूर किताबों में पतझड़ का सपना भी शामिल है। साहित्य में अब तक 120 लोगों को नोबेल मिला है। इसमें केवल 17 महिलाएं हैं। इसकी वजह से नोबेल कमेटी की काफी आलोचना भी हुई है।


नोबेल जीतने वाले को 8.33 करोड़नोर्वे क़ो रुपए की राशि और एक गोल्ड मेडल दिया जाता है। नोबेल की घोषणा के बाद जॉन ने कहा- मैं काफी खुश हैं। मुझे लगता है कि ये प्राइज उस तरह के साहित्य के लिए दिया गया है, जो साहित्य के अलावा कुछ नहीं।


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गुरुवार, 28 सितंबर 2023

दयालबाग़ : धर्म शिक्षा जनसेवा और परोपकार की धरती

 दयालबाग, एक  ऐसा  स्थान  ज़िस  मे  खुशबू  बसती  हैं  अध्यातम , धर्म , शिक्षा , जन  कल्याण  और  सर्व  धर्म सम्भाव की, परम  पूज्ये  गुरुओ  की  महान  शिक्षा  की  | 


सन 1915 मे  उस  समय  के  आचार्य  साहब  जी  महाराज  ने  इस  आश्रम  की  नीव  रखी थी , जमीन  विधिवत  अधिग्रहीत  करी गई  थी तथा  उस  समय  यहां  ऊबड  खाबड  भूमि  को  जो  कि  किसी  भी  प्रकार  से  उपयोग  की  स्थिती  मे  नहीं  थी , उस  का  सुधार   कई  सालों  के  कठिन  परिश्रम  के  बल  पर  सत्संगी  लोगो  द्वारा  किया  गया , यह  ही  नहीं  साहब  जी  महाराज  ने  स्वदेशी  की  महत्ता  को बहुत  पहले   समझ  कर  यहां  कई  रोजाना इस्तेमाल  की  वस्तुओ  के  निर्माण  हेतु  कारखाने स्थापित  किये , ज़िस में  न  सिर्फ  इस  मत  के  अनुयायी  बल्कि अन्य  कई  non satsangi लोगो  को  भी  रोजगार  मिला , यह  बात  हैं सन  1915 से 1937 तक के  बीच  की , जब  देश  अंग्रेजो  के  राज  मे  था  और  देश  मे  तमाम  संकट  थे , उस  वक्त  उन्होने  हिंदुस्तानी  जनता  की  भलाई  हेतु  REI नामक  intermediate तक का  स्कूल  खोला  और  इस  स्कूल  के  छात्र  जो  कि आज  भी  90% से  अधिक  non satsangi  परिवारो  से  आते  हैं  उन्होने  देश  विदेश  मे  बड़ा  नाम  कमाया, यही  नहीं  सरन  आश्रम अस्पताल  की  भी  स्थापना  करी  जो  आज  भी  पूरे शहर  के  लोगो  को  बेहतरीन  इलाज  फ्री  मे  प्रदान  करता हैं , यहां  सिर्फ  2 रूपये  का  पर्चा  बनता  हैं  जो  1 साल  तक  चलता  हैं , गरीब  को  इस  से  अच्छा, फ्री  और  आसानी  से  उपलब्ध  इलाज  कहीं  और  मिलता हो तो जाने , यहां  के  DEI विश्वविध्यालय  का  नाम  पूरे  देश विदेश  मे  हैं , जहां  हजारो  बच्चे  पढ़  कर  अपना  भविष्य  उज्जव  करते  हैं , यहां  भी  शिक्षक  और  students  non satsangi भी हैं , students तो  अधिकतर  non satsangi ही  हैं |


पूरे  आगरा  मे  अगर  कहीं  concrete जंगल  नहीं  बना  हैं  तो  वो  जगह  दयालबाग  ही  हैं , वरना  builders और भूमाफीआ  यहां  भी  बड़ी  बड़ी  बिल्डिंग  तान  देते  और  शहर  का  eco-सिस्टम खराब  कर  चुके  होते , दयालबाग  को आगरा  का  environment park भी  कह  सकते हैं  जो  पूरे  शहर  को  fresh oxigen  देने  का  काम  करता हैं , यहां  कई  प्रजाती  के  पौधे  लगाये  ज़ाते  हैं  और  उन  की  चिकित्सा  मे  उपयोग  पर  शोध  भी  हो  रहा  हैं | 


दयालबाग  का  योगदान  समाज  मे केवल  यही  नहीं हैं , यहां  हिन्दु  धर्म  मे  व्याप्त  कई  कुरीतिया  जैसे जात  पात ,

ऊँच  नीच  आदि  को  भी अपने  समाज  मे  पनपने  का  मौका नहीं  दिया  गया  हैं , किसी  भी  जात  का  व्यक्ति  यहां  समान  अधिकार और  सम्मान पाता  हैं  जो  किसी  और  को  प्राप्त हो , यहां विवाह , रिश्ते  जात  देख कर  नहीं  किये  ज़ाते  वरन  जो  योग्य हैं  उस  को प्राथमिकता  मिलती  हैं |


दयालबाग , अध्यातम , सुरत  शब्द  अभ्यास  द्वारा  साधना  कर  के  उस  परम  पिता  परमात्मा  से  मिलने  का  द्वार  हैं, यहां  नियमित  तौर  पर  धर्म , चेतना  तथा  व्यक्तिक  विकास  पर  गहन शोध  तथा  conferences होती  रहती  हैं , यहां  की  university की  distence education की  branches पूरे  देश  मे  कई  शहरो  मे  हैं  जहां  बच्चे पढ़  कर अपना  जीवन  सुधारते हैं | 


यहां समाज  के  बच्चो  को  superman बनने  की  शिक्षा  बचपन  से  मिलती  हैं , उन  के  चरित्रनिर्माण  तथा  शारीरिक  तथा  मानसिक  विकास  और  मजबूती  पर  बल  दिया  जाता  हैं , क्यो  किया  जाता  हैं  तो यह  बताना भी  ज़रूरी  हैं , देश  और  विदेश  मे  राजनीतिक  और  समाजिक  उठा  पटक सदा  से  चली  आई  हैं  इस  लिये  हमें  आने  वाले  कल  के  लिये  इस  समाज से   volunteers तैयार  करने  हैं  जो  उस  मुशकिल  वक्त  मे  जन  कल्यान  के  हेतु  तत्पर  रहे , यह  कोई  फौज  नहीं  बन रही पर  यह  volunteers की  फौज  आने  वाले  समय  मे  जनता  और  निरीहजन  के  सहयोग  के लिए  बनाई  जा  रही  हैं | 


कुछ  समय  से  दयालबाग  और  सत्संगी  लोगो  पर  निराधार  आरोप समाचार पत्रो  तथा  social media पर लगाये 

जा  रहे  हैं , जो  वास्तविकता  से  कोसो  परे  हैं , न  तो  वो  varified हैं  और  न  ही किसी  भी  रूप  मे  स्वीकार  करने  योग्य| 


दयालबाग  की  भूमि  किसी 1 व्यक्ति  की  मालकियत  नहीं हैं , यह  विधिवत  अधिग्रहित  की  गई  हैं , इस  से  सम्बंधी  सभी  दस्तावेज  राधास्वामी  सत्संग  सभा  के  पास  सुरक्षित  हैं  तथा  प्रशासन या  उस  का वकील  जब  चाहे  उन  का अवलोकन  करें  परंतु  इस  प्रकार  की  कार्येवाही  ज़िस  मे  निर्दोष  लोगो  को  मारा  पीटा  गया , छोटे  बच्चो  तक  को बक्शा  नहीं  गया  वो सभ्य  समाज मे  घोर  निन्दनीय  हैं  और  और  वर्तमान  जनकल्यान  की  नीति  पर  चलने  वाली  B J P सरकार  के  शासन  काल  मे  तो  इस  प्रकार  की  बर्बारिक  अत्याचार  की तो  कोई  उम्मीद  भी  नहीं  कर  सकता | 


सरकार  से  आशा  हैं  कि  वो  न्याय  करेगी  और जनता  से भी  यह  उम्मीद  हैं  कि  वो  पीत  पत्रकारिता  से  प्रभावित  हुये  बिना  अपनी  विवेक  बुद्धि  का  इस्तेमाल  करेगे  किसी  पर  भी  बेबुनियाद  आरोप  लगाने  से पहले  सोचे , सत्संगी  जन  भी  समाज  का  हिस्सा  हैं  और  उन  को  भी  अपनी  बात  सरकार  और  समाज  मे  रखने  का  पूरा  अधिकार  हैं , कोई  जंगलराज  नहीं  चल  रहा  कि  सोशल  media पर  किसी  का  भी  चरित्रहनन कर दिया  जाये और उस  को प्रताडित  किया  जाये |


जो  कुछ  भी  सत्य  होगा  वो  समय  आने  पर खुद  ब  खुद  सामने  आयेगा, पहले  भी  आया  था  और  अब भी  आयेगा  और  वो  समय  आँख  खोलने  वाला  होगा | 


जय  हिन्द / रा धा स्व आ mi🙏


एक जन  सेवक❤️❤️🙏