पेशाब की जलन को मिटाने के लिए कौन-सी चीजों को खुराक में शामिल करना चाहिए?
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दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।
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(संयोजक)
'परिवेश'
(साहित्यिक/ सांस्कृतिक/वैचारिक एवं सामाजिक संस्था)
रामनगर रोड, 'केसरी निवास', हजारीबाग : 825 301.
मोबाइल नंबर : 92347 99550.
दिनांक : 13. 12. 2023.
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• इससे किडनी की कार्य प्रणाली में बाधा होती है और उसकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। यह किडनी में पथरी यानि किडनी स्टोन या किडनी संक्रमण का कारण बन सकता है।
• शरीर की अशुद्धियों को यूरिन के माध्यम से बाहर निकाला जाता है। अगर सही समय पर यूरीन त्याग न हो तो शरीर में संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है, जो सबसे ज्यादा किडनी को प्रभावित करता है।
• देर तक यूरिन रोकने से यूरिनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन या मूत्र मार्ग संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है, जो आपकी सेहत को प्रभावित करता है।
• ऐसा करने से ब्लेडर में सूजन आने का खतरा बढ़ जाता है और डिस्चार्ज के दौरान तेज दर्द होने की समस्या हो सकती है।
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लहसुन का अचार एंटी बैक्टीरियल और एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है, इसलिए अगर आप सर्दियों के मौसम में लहसुन के अचार का सेवन करते हैं, तो इससे इम्यूनिटी (Immunity) मजबूत होती है। जो आपके शरीर को वायरस और बैक्टीरिया से सुरक्षित रखने में मदद करता है।
सर्दियों के मौसम में कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) बढ़ने की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है, लेकिन अगर आप सर्दियों के मौसम में लहसुन के अचार का सेवन करते हैं, तो इससे शरीर में बढ़ता खराब कोलेस्ट्रॉल कम होता है। जिससे हार्ट अटैक का खतरा कम होता है।
सर्दियों के मौसम में जोड़ों में दर्द (Joint pain) और सूजन की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है, लेकिन सर्दियों के मौसम में अगर आप लहसुन के अचार का सेवन करते हैं, तो इसमें मौजूद एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं।
सर्दियों के मौसम में सर्दी-जुकाम (Cold) की शिकायत होना एक आम बात हैं, लेकिन सर्दी-जुकाम की शिकायत होने पर अगर आप लहसुन के अचार का सेवन करते हैं, तो इसमें मौजूद एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल गुण सर्दी-जुकाम की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं।
डायबिटीज (Diabetes) के मरीजों के लिए लहसुन के अचार का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि लहसुन का अचार कई गुणों से भरपूर होता है, जो ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मददगार होता है।
लहसुन के अचार का सेवन लिवर (Liver) के लिए बेहद फायदेमंद होता है। क्योंकि लहसुन का अचार खाने से टॉक्सिन्स बाहर निकलते हैं, जिससे लिवर स्वस्थ रहता है, साथ ही इसका सेवन फैटी लिवर की समस्या को धीरे-धीरे कम करता है और लिवर की कार्यक्षमता को बढ़ाने में भी मदद करता है।
लहसुन के अचार का सेवन पाचन (Digestion) से जुड़ी समस्या होने पर फायदेमंद होता है। क्योंकि लहसुन के अचार का सेवन करने से पाचन तंत्र में सुधार होता है और एसिडिटी, अपच जैसी समस्या दूर होती है।
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हृदय (Heart) स्वास्थ्य के लिए फूल गोभी का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि फूल गोभी एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है, जो हृदय को स्वस्थ बनाए रखने में और हृदय संबंधी बीमारियों के जोखिम को कम करने में मदद करता है।
फूल गोभी का सेवन कैंसर (Cancer) जैसी घातक बीमारी के खतरे को कम करने के लिए लाभकारी होता है। क्योंकि फूल गोभी एंटी कैंसर गुणों से भरपूर होता है, जो कैंसर के सेल्स को पनपने से रोकने में मदद करता है।
फूल गोभी का सेवन करने से हड्डियां (Bones) मजबूत होती है और हड्डियों से जुड़ी बीमारियों का जोखिम कम होता है। क्योंकि फूल गोभी विटामिन के से भरपूर होता है, जो हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी होते हैं।
बढ़ता वजन (Weight) कई बीमारियों को जन्म दे सकता है, इसलिए इसको कंट्रोल करना जरूरी होता है। वजन को कंट्रोल करने के लिए सर्दियों के मौसम में फूल गोभी का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि फूल गोभी फाइबर से भरपूर होता है, जो वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है।
कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) को कम करने के लिए फूल गोभी का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि फूल गोभी में हाइपोकोलेस्टेरॉलिक (कोलेस्ट्रॉल कम करने वाला) प्रभाव पाया जाता है। जो शरीर में बढ़ते खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा कम होता है।
फूल गोभी विटामिन सी से भरपूर होता है, इसलिए अगर आप सर्दियों के मौसम में फूल गोभी का सेवन करते हैं, तो इससे इम्यूनिटी (Immunity) बूस्ट होती है, जिससे आप वायरस और बैक्टीरिया की चपेट में आने से बच सकते हैं।
सर्दियों के मौसम में फूल गोभी का सेवन स्किन (Skin) को भी कई लाभ पहुंचाता है। क्योंकि फूल गोभी विटामिन सी से भरपूर होता है, जो त्वचा को हेल्दी बनाए रखने में मदद करता है, साथ ही इसका सेवन स्किन को मॉइस्चराइज रखता है।
औरंगाबाद:देव कार्तिक छठ मेला का हुआ भव्य उद्घाटन,
देव कार्तिक छठ मेला और चैती छठ मेला को मिला राजकीय मेला का दर्जा
धीरज पांडेय
( कथाकार / स्तंभकार)
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301
मोबाइल नंबर : 92347 99550.
महाराजा मित्रजित सिंह के मुस्लिम पत्नी अल्ला ज़िल्लाई उर्फ़ बरसाती बेगम, एक बेहद सुंदर ईरानी पर्शियन महिला थी,
पर्शियन महिला के बारें --
वैसे तो दुनिया की सारी महिलाएं बेहद खुबसूरत होती है लेकिन कुछ देश की महिलाओं को कुछ अलग तरह का खूबसूरत कहा जाता है. इसी तरह ईरान की महिलाओं को दुनियां की खुबसूरत महिलाओं में एक कहा जाता है. उनकी खुबसूरती को ईरान की भौगोलिक और आनुवंशिक स्थिति को बताया जाता है. ईरान की ज्यादातर महिलाएं आरामदायक ज़िन्दगी जीती हैं. वह चाहे नेत्री, अभिनेत्री या फिर कोई साधारण महिला हो, उनकी जीवनशैली दुनिया के बाकी महिलाओं से थोड़ी अलग होती है. वह अपना शारीरिक बनावट सही रखने के लिए हर कोशिश करती रहती हैं.
हालांकि कहा यह भी जाता है कि पर्शियन महिला की खूबसूरती उनके जन्म से जुड़ी होती है. उनकी चर्म बचपन से ही बहुत तीखा और चमकदार होती है. उनकी चमकदार चर्म पर उनकी आंखें बहुत ही खूबसूरत दिखती हैं. इन महिलाओं का सुंदरता का अपना ही एक मुकाम है. पर्शियन महिलाएं अपने बालों की भी प्राकृतिक तरीके से देखभाल करती है. ईरान की महिला, जब घर से बाहर जाती है तो खुद को पूरी तरह से हिजाब से ढक लेती है. ईरान में महिला को पहनने में हिजाब प्रचलन है. हिजाब से उनका पूरा शरीर ढका होता है, लेकिन चेहरा दिखना चाहिए. ईरानी महिलाएं काला रंग का ही परिधान ज्यादा पहनती हैं. वे चटख रंग भी खूब ओढ़ती-पहनती हैं. औरतें सामाजिक रीती का पालन करती हैं, लेकिन इन हदों में रहकर अपने हुस्न का जश्न मनाया करती है.
अल्ला ज़िल्लाई उर्फ़ बरसाती बेगम के बारें में --
आम ईरानी महिलाओं के तरह, अल्ला ज़िल्लाई भी दिखने में बेहद ख़ूबसूरत, लम्बी कद काठी, गोरी पर्शियन महिला थी. उनकी सुन्दरता ने सभी मानकों को तोड़ दिया था.
अल्ला ज़िल्लाई के पूर्वज ईरान देश की रहने वाले थे. ईरान में उनकी परिवार की आर्थिक दशा ठीक नहीं रहने के कारण, पूरा परिवार ईरान देश को छोड़कर कश्मीर में आ कर बस गया था.
कुछ दिन बाद उनमें से कुछ लोग लखनऊ चले आये और अवध के दरबार में नौकरी करने लगे. इनकी मां अवध के नवाब के राज दरबार में मुख्य राज नर्तकी थी.
सन १७६४ में टिकारी राज का प्रांतीय मुख्यालय कुछ दिन के लिए अवध, लखनऊ, उत्तर प्रदेश था.
सन १७६५ में बक्सर युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मुग़ल शासन पर जीत के बाद टिकारी राज का प्रांतीय मुख्खालय बंगाल प्रान्त से हट कर अवध प्रान्त में हो गया था. उस समय टिकारी राज का प्रांतीय मुख्खालय अवध, लखनऊ होता था.
टिकारी राज के राजा को समय समय पर कार्यवश या औपचारिकतावश समय समय पर प्रांतीय मुख्खालय लखनऊ में जा कर अवध के नवाब से मिलना होता था.
महाराजा मित्रजित सिंह -----
महाराजा मित्रजित सिंह का कद ७ फीट लम्बा, अच्छे कद काठी, गोरा व्यक्तित्व के थे. वे देखने में बेहद खूबसूरत थे, एक अच्छे लेखक और कवि भी थी.
वे पर्शियन भाषा के बहुत अच्छे जानकार थे, उन्होंने साहित्य पर विशेष ध्यान देते हुये उसके विकाश के लिए काफी कार्य किया. उन्होंने अपने राज के लेखक और कवि को प्रोत्साहित किया और उन्हें समय पर पुरुस्कृत किया.
मित्रजित सिंह को संगीत क्षेत्र में काफी रूचि थी. उन्होंने ने इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए गायक, कवि, गीतकार को प्रोत्साहिक किया और समय समय उन लोगों को इनाम भी दिया. उनलोगों के लिए संगीत सभाएं आयोजित करवाते थे.
इन्होने कृषि पर एक पुस्तक भी लिखी थी "कृषि शास्त्रंम" जो उस ज़माने में काफी लोकप्रिय हुई थी. उन्होंने अपने राज्य में कृषि के विकाश के लिए कई परियोजना शुरू की थी जो उस ज़माने में काफी सफल और लोकप्रिय हुआ था.
महाराजा मित्रजित सिंह के समय, टिकारी राज का आमदनी १ करोड़ सालाना थी. अंग्रेज के ईस्ट इंडिया कंपनी उनके सम्पन्नता पर बहुत ईष्या करती थी. उसने इनके राज को काट-काट कर छोटा करना शुरू कर दिया था. बहुत से छोटे छोटे स्टेट बना कर, उस स्टेट को टिकारी राज से उसको अलग कर दिया था.
महाराजा मित्रजित सिंह ने पटना के बांकीपुर के ज्यादातर मकान और दुकान को खरीद लिया था. पटना के छाज्जुबाग में काफी ज़मीन थी.
मित्रजित सिंह ने औरंगाबाद के कुछ गाँव को टिकारी राज से काट कर अल्लाह ज़िल्लाई से उत्पन्न अपने प्रिय पुत्र खान बहादुर खान को देकर एक अलग स्टेट बनाया दिया था. बाद में राजा खान बहादुर खान के मरने के बाद, यह औरंगाबाद स्टेट अँगरेज़ ने ले लिया था.
अल्ला ज़िल्लाई से भेट ---
कहा जाता है की एक बार महाराजा मित्रजित सिंह अवध के नवाब के दरबार में उनसे मिलने के लिय गए हुए थे. उसी समय अल्ला ज़िल्लाई भी अपनी माँ के साथ राज दरबार में आई हुयी थी. अल्ला ज़िल्लाई पर नज़र पड़ते ही महाराजा मित्रजित सिंह मंत्रमुग्ध हो गए और उसे अपनी दूसरी पत्नी बनाने के लिय, मन बना लिए थे.
उनकी खुबसूरती पर महाराजा मित्रजित फ़िदा हो गए, वह उसकी माँ के पास विवाह करने के प्रस्ताव भेजे, जिसे उसकी माँ ने ससहर्ष तैयार हो गयी थी.
कहा जाता है की उनको भी महाराजा मित्रजित सिंह पसंद आ गए थे. इसलिए दोनों के तरफ से रिश्ता को स्वीकार करने में किसी तरह का परेशानी और देर नहीं हुई.
महाराजा मित्रजित सिंह ने उनसे विवाह कर उसे अपने दूसरी पत्नी बना कर टिकारी राज लेते आये. उस समय राजा की दूसरी पत्नि को उप रानी भी कहते थे.
महाराजा मित्रजित सिंह ने उनके रहने के लिए मुख्य महल के दक्षिण - पश्चिम के कोना से कुछ दूर पर एक छोटा महल बनवाया था. यह वर्तमान में खंडहर के रूप में मौजूद है और अब इसे मुनि राजा के किला भी कहा जाता है. महाराजा के विद्वान पुत्र खान बहादुर खान को मुनि राजा भी कहा जाता था.
महाराजा मित्रजित सिंह ने पारंपरिक, व्यवहारिक एवं पारिवारिक परेशानियों से बचने के लिय उनके लिए अलग छोटा सा महल बनवाया था. इस महल के खाना पीना, रहन सहन, कर्मचारी, सुरक्षा पहरी, दैनिक कार्य में आने वाले जरुरत का चीजे, ये सब मुख्य महल से अलग था.
मित्रजित सिंह अपने पर्शियन पत्नी के प्रेम के ऐसे दीवाने थे की उनके साथ साथ रहते हुए पर्शियन भाषा के बहुत ही अच्छे जानकार हो गये थे. उन्होंने ने पर्शियन भाषा में पुस्तक भी लिखी थी.
उनके जीवन शैली, खान पान, बातचित, पहनावा और व्यवहार टिकारी राज के अन्य स्त्रियों से एकदम अलग था. कहीं से उनलोगों में सामंजस्य होने का सवाल ही नहीं था. उनकी धर्म उनलोगों के दूरियों को और बढ़ा दिया था. इसलिए मित्रजित सिंह ने उनके लिए छोटा महल का निर्माण करवाना उचित समझा था.
कहा जाता है की उनको संगीत में खास रूचि थी विशेष कर गायन शैली में. वह अच्छी गाती थी.
कहा जाता है की वे शिक्षित और अच्छी तहजीब वाली घरेलु महिला थी. वह हिंदी, उर्दू, पर्शियन भाषा के अच्छी जानकार थी.
कहा जाता है की उनमें दूसरों की इज्जत करना, प्यार से बात करना और सच का साथ देना आदि ऐसे बहुत से गुण थे जिसमें त्याग, ममता, बड़ों का आदर, आत्म सम्मान, सहन शक्ति गुण समाएं हुए थी.
वे टिकारी राज के पारिवारिक सदस्यों सबको को सामान इज्ज़त देती थी. राज के लोगों और कर्मचारियों को आदर और सम्मान देती थी. वह प्रायः ईरान के परिधान हिजाब में रहा करती थी.
कहा जाता है की वह एक धर्म परायण महिला थी, इनका अधिकांश समय धार्मिक कार्य में लगा होता था.
महाराजा मित्रजित सिंह के द्वारा उनको राज दरबार या किसी समारोह, सार्वजनिक कार्यक्रम में जाने से रोक था. उन्हें प्रमुख सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन में जगह जाने / भाग लेने के लिए महाराजा से पहले अनुमति लेनी पड़ती थी.
कहा यह भी जाता है की इनकी एक मात्र पुत्र राजा खान बहादुर खान भी अपनी माँ के तरह धार्मिक विचार के थे.
वे अपने पुत्र के पढाई पर बहुत ध्यान देती थी. उनको पढ़ने के लिए दूर दूर से खोज कर हर भाषा के जानकार और विद्वान लोग को राज में बसाया गया था. पुत्र को अच्छा तालीम दिलवाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ा.
अल्ला ज़िल्लाई के पुत्र राजा खान बहादुर उर्फ़ मुनि राजा बहुत ही प्रतिभावान थे. इनका अधिकतर समय पठन-पाठन में गुज़रता था. हिंदी, संस्कृत, उर्दू और फारसी के अच्छे ज्ञाता थे.
कहा जाता है की महाराजा मित्रजित सिंह उनको बहुत मानते थे. उनकी हर जरूरते को हर समय, ध्यान देते हुए पूरा करते थे. महाराजा मित्रजित सिंह उनके पुत्र खान बहादुर खान को बहुत मानते थे उसे अपने तरह लेखक, कवि और शायर बनाना चाहते थे.
कहा जाता है है की महाराजा मित्रजित सिंह अपनी दूसरी पत्नि अल्ला ज़िल्लाई के साथ छज्जुबाग, पटना में विशाल परिसर वाला बंगला में अधिकतर समय निवास करते थे.
छज्जुबाग का इलाका टिकारी राज का था. यह कई एकड़ में फैला हुआ था. उसमें से एक बड़ा भू भाग, सन १८५७ में उनके बड़े पुत्र महाराजा हितनारायण सिंह ने, अपने स्कॉटिश पत्नी के साथ पटना प्रवास के समय, एक अंगरेज जॉन एलेग्जेंडर बोयलार्ड के हाथ से बेच दी थी.
उस अंगरेज जॉन एलेग्जेंडर बोयलार्ड की पत्नी मर चुकी थी. उसने उस भू- भाग को अपनी पत्नि के यादगार में ख़रीदा और एक बगीचा के रूप में विकसित करके, उसे छज्जुबाग के नाम से नामकरण कर दिया.
आजादी के समय उस अँगरेज़ को यहाँ से जाने के बाद उसके सम्पति पर बिहार सरकार का कब्ज़ा हैं. आज के समय उस ज़मीन पर बिहार सरकार के बंगला और फ्लैट बने हुए हैं.
अल्ला ज़िल्लाई से एक पुत्र हुए थे.
राजा खान बहादुर खान उर्फ़ मुनि राजा - महाराजा मित्रजित सिंह और अल्ला ज़िल्लाई के लड़के थे. इन्हें टिकारी राज परिवार का विद्वान सदस्य कहा गया है.
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बिहार में शिल्प कला का इतिहास गौरवशाली रहा है. सम्राट अशोक के समय से ही भवन निर्माण में पत्थरों का प्रयोग प्रारंभ हो गया था. अशोक ने पत्थरों का लगभग 40 स्तंभों का भी निर्माण कराया था. उस समय शिल्प कला की तकनीक कितनी उन्नत थी. इसका पता इससे चलता है कि आज भी अशोक स्तम्भ की पॉलिश शीशे जैसे काफी चमकती है.
पटना और दीदारगंज से मिली यक्षी की मूर्तियां विशेष रूप से शिल्प कला के दृष्टिकोण से अद्वितीय हैं. मूर्तियों के निर्माण के लिए चिकने काले रंग की कसौटी वाले पत्थरों एवं धातुओं का चयन किया गया था.
कसौटी एक सघन घनत्व वाले काले पत्थर बिहार में गया क्षेत्र के पत्थरकट्टी पहाड़ वाले इलाके में ही मिलते हैं. पत्थरकट्टी एक पहाड़ की तलहटी में बसा एक गांव है, जो गांव कटारी में आता है. कटारी तीन छोटे-छोटे गांवों का घिरा है जिसमें पहला गांव कटारी, दूसरा पत्थरकट्टी और तीसरा झरहा, जिसे कटारी-पत्थरकट्टी के नाम से जाना जाता है. पत्थरकट्टी दो शब्दों का युग्म है, पत्थर और कट्टी यानी पत्थरों को काटना.
ऐसा माना जाता है कि सन 1857 के विद्रोह के दौरान पत्थरकट्टी के स्थानीय लोगों ने नियामतपुर गांव के मुसलमानों के साथ मिलकर अपने पराक्रम से अंग्रेजों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था. उस विद्रोह में वीर गति प्राप्त वीरों को स्थानीय समाज ने कट्टर कहकर सम्मानित किया था और तब से उस गांव का नाम कटारी-पत्थरकट्टी हो गया.
गया की तरफ से मानपुर-सर्बह्दा सड़क पर करीब तैंतीस किलोमीटर बढ़ने पर पत्थरकट्टी गांव आता है. इसी सड़क पर ठीक अगला गांव खुखरी है. पटना के रास्ते जहानाबाद और वहां से वाया इस्लामपुर और सर्बहद्दा भी पहुंचा जा सकता है. राजगीर और गया रेलवे स्टेशन भी पत्थरकट्टी के नजदीक है. जहां से एक-डेढ़ घंटे में वहां पहुंचा जा सकता है.
गया के साथ पत्थरकट्टी का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध है. वर्तमान में यहाँ से तराशे गए मूर्तियां और घरेलू उपयोग के उत्पादों को राजगीर, गया और बोधगया के बाजार में बिका करते हैं.
पत्थरकट्टी गांव का इतिहास गया के विश्व विख्यात विष्णुपद मंदिर से भी जुड़ा हुआ है, इंदौर की महारानी देवी अहिल्या बाई होल्कर ने सन 1787 में इस अष्टकोणीय मंदिर का पुनः निर्माण करवाया था. यह मंदिर फल्गू नदी के किनारे पर स्थित है, जिसके दर्शनों के लिए पूरे देश से श्रद्धालु गण आते रहते हैं.
महारानी अहिल्या बाई होल्कर के विशेष निमंत्रण पर जयपुर से करीब 1300 शिल्पी गौड़ ब्राह्मण गया आये थे.
मंदिर के जीर्णोद्धार का काम पत्थरकट्टी के ही काले पत्थरों को तराशकर किया गया था. कहा जाता है कि शिल्पियों को इसके लिए काले पत्थरों की जरूरत थी और इसके लिए उन्होंने उस समय यहाँ से असम तक छानबीन की थी. अंतत: मंदिर के जीर्नोदार के लिए उन्होंने पत्थरकट्टी पहाड़ के काले पत्थरों को ही सबसे उपयुक्त पाया. विष्णुपद मंदिर का सम्पूर्ण स्वरुप का निर्माण पत्थरकट्टी गांव में हुआ था. तराशे गए समस्त पत्थरों को गया ले जाने की व्यवस्था टिकारी राजा द्वारा की गई थी.
विष्णु पद मंदिर के जिर्नोदार कार्य संपन्न होने के पश्चात् अनेक शिल्पी जयपुर वापस लौट गये और उसमें से कुछ शिल्पकार पत्थरकट्टी गांव में ही बस गये.
महारानी अहिल्याबाई होल्कर के बाद स्थानीय टिकारी राज के महाराजा और अन्य स्थानीय जमींदार का संरक्षण गौड़ ब्राह्मण शिल्पी कलाकारों मिला. जिसके कारण उनका कारोबार तीन-चार पीढ़ियों तक खूब फला-फूला.
आजादी के बाद राजतंत्र का अंत हो गया था और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में आर्थिक संकट गहरा गया था, तब उनके द्वारा निर्मित मूर्तियों का मांग काफी कम हो गई थी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो गई थी. इन परिस्थितियों में लाचारी वस् इनलोगों का पलायन वापस अपने मातृभूमि जयपुर के तरफ शुरू हो गया.
शिल्पियों को काफी भूमि दान टिकारी राजा के द्वारा दिया गया था, जो भूमि पत्थरकट्टी से बथानी गांव तक थी.
पत्थरकट्टी में टिकारी राज की छत्री और कचहरी थी. टिकारी राज के पहले देवमूर्ति बनाने पर मुगलों द्वारा रोक लगा दी गई थी. पुनः टिकारी राजा के आदेश से देवस्थल और देवमूर्ति का निर्माण होना आरंभ हुआ.
उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में गौड़ ब्राह्मण शिल्पियों के सिर्फ चार परिवार पत्थरकट्टी में थे, जिनके सदस्यों की कुल संख्या 90 के आसपास है.
जहां तक गांव की बसावट का प्रश्न है, इस गांव में शुरुआती तौर पर सिर्फ गौड़ ब्राह्मण परिवार थे.
पत्थरकट्टी गांव में गौड़ ब्राह्मण शिल्पियों के बसने के बाद अन्य जाति के लोगों ने भी धीरे-धीरे यहाँ बसना शुरू किया. जिसमें भूमिहार ब्राह्मण नवादा के बज्र इलाके से आये. केनार गांव से कोयरी आये थे. गौड़ ब्राह्मणों के साथ इन दो जातियों के लोग सबसे पहले बसे. कोयरी जाति के लोगों के पत्थरकट्टी में बसने के बाद केनार गांव से ही ब्राह्मण समाज के लोग भी वहां पहुंचे. जो स्थानीय मुस्लिम जमींदार से प्रताड़ित थे. राजपूत, कायस्थ, दुसाध, सोनार आदि जातियां गौड़ ब्राह्मण के बसने के बाद यहाँ बसी थी.
यहाँ के स्थानीय कारीगर काले कठोर पत्थर पर नक्काशी करते हैं, जो की अपने आप में हस्त कला का एक अनोखा नमूना है.
पत्थरकट्टी गांव पत्थरों से मूर्ति एवं वस्तुएं को तराशने के लिए काफी प्रसिद्ध है. यहाँ के कुशल कारीगर ग्रेनाइट, सफ़ेद बलुआ पत्थर, संगमरमर को विभिन्न स्वरुप देने में कुशल हैं. इन पत्थरों से घरेलु सामान भी बनाये जाते हैं. अगर आप पत्थर से बनी वस्तुएं रखने के शौक़ीन हैं, तो एक बार पत्थरकट्टी गांव जरूर जाएं.
वर्तमान में पत्थरकट्टी के गौड़ ब्राह्मण परिवार को काफी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. उनके द्वारा निर्मित मूर्तियों का मांग स्थानीय बाज़ार राजगीर, गया और बोध गया में कम हो गई है. मूर्ति निर्माण की लागत काफी बढ़ गई है. इस कारण बचे हुए गौड़ ब्राह्मण शिल्पी, अब वापस अपने मातृभूमि जयपुर की ओर पलायन करने का मन बना रहे है.
वर्तमान में पत्थर कट्टी में कुशल शिल्पकार सुरेश गौड़ और रवि गौड़ अपने पूर्वज़ के बनाये हुए मूर्ति कला व्यवसाय को जीवित रखे हुए हैं और किसी तरह पत्थर कट्टी में अपने जीवन का निर्वाह कर रहे हैं.
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रजनीश वाजपेयी
वाजपेयी भवन
टिकारी गया
( कथाकार / स्तंभकार)
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग -825301
मोबाइल नंबर :- 9234799550.
हमास के हवाई हमले में बाल-बाल बची अमेरिकी पत्रकार की जान