बुधवार, 9 जनवरी 2013

नाइट शिफ्ट करने में डरती हैं लड़कियां



 बुधवार, 9 जनवरी, 2013 को 17:23 IST तक के समाचार

रात में सड़कों पर नहीं निकलना चाहती हैं दिल्ली की महिलाएं
दिल्ली में 23 साल की पारा मेडिकल छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार मामले के बाद दूसरी महिलाओं और छात्राओं में भी डर बढ़ा है. वे पहले के मुकाबले अब ख़ुद को कहीं ज़्यादा असुरक्षित मान रही हैं.
एसोचैम के ताजा सर्वे के मुताबिक रात की पाली में काम करने वाली महिलाओं में ये डर कहीं ज़्यादा है और इस डर के चलते वे अपनी नौकरियां तक छोड़ रही हैं.
सर्वे के मुताबिक दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अंदर बीपीओ, आईटी, सिविल एविएशन, नर्सिंग और हॉस्पीटलिटी के क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं में 92 फ़ीसदी महिलाएं नाइट शिफ्ट में काम नहीं करना चाहतीं.
नर्सिंग एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें महिलाओं को दिन-रात की परवाह किए बिना काम करना होता है. लेकिन दिल्ली और राजधानी क्षेत्र की करीब 83 फ़ीसदी नर्सें रात की पाली में ख़ुद को असुरक्षित महसूस करती हैं.

अंधेरा होने से बढ़ने लगता है डर

"अंधेरा होने पर सड़क पर अकेले निकलने पर डर लगता है और कई बार मैं तो बेहद नर्वस हो जाती हूं."
मोनिका सिंह, आईटी फर्म में काम करने वाली युवा
इन महिलाओं में 62 फीसदी महिलाओं ने ये माना है कि बेहतर पैकेज की चाहत में वे रात की पालियों में काम कर रही हैं लेकिन उन्हें अपने साथ छेड़छाड़ या फिर यौन उत्पीड़न होने का डर सताता रहता है.
एसोचैम के सर्वे में दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की करीब 2500 महिलाओं की राय शामिल की गई है. इनमें आईटी और बीपीओ कंपनियों में काम करने वाली लड़कियां शामिल हैं.

रात में क्यों लगता है डर


  • अंधेरा- 63%
  • अकेले होने का डार- 39%
  • दूसरे नहीं देख पाते- 35%
  • कोई मदद नहीं मिलती- 60%
  • सुरक्षा का अभाव- 12%
  • पेड़ और झाड़ियों की डर- 08%
सर्वे के मुताबिक कामकाजी महिलाएं अब अपनी दफ्तरों में काम खत्म होने के बाद थोड़े समय में भी रुकना नहीं चाहती हैं. शिफ्ट पूरा होने के बाद वे जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहती हैं.
र्वे में शामिल 89 फीसदी महिलाओं के मुताबिक वे शाम में शिफ्ट पूरा होने से पहले घरों के लिए निकलना चाहती हैं.
नोएडा की एक आईटी फर्म में काम करने वाली मोनिका सिंह कहती हैं, “जाड़े के दिनों में शाम 6 बजे ही सड़कों पर अंधेरा छा जाता है. लिहाजा मैं तो शाम सात बजे की शिफ्ट से एक घंटे पहले निकलने की कोशिश करती हूं. अंधेरा होने पर सड़क पर अकेले निकलने पर डर लगता है और कई बार मैं तो बेहद नर्वस हो जाती हूं.”
इतना ही नहीं असुरक्षा की भावना के चलते महिलां की उत्पादकता पर भी असर पड़ा है. सर्वे के मुताबिक कामकाजी महिलाओं की उत्पादकता में 40 फीसदी तक की कमी हुई है.
दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में करीब 2500 आईटी और बीपीओ कंपनियां काम कर रही हैं जिसमें लाखों महिलाएं काम करती हैं.

हर तीन में दो महिलाएं बनती हैं शिकार

"चाहे वह भीड़भाड़ वाली जगह हो या फिर सुनसान इलाका दिल्ली की महिलाओं को तो हर समय यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है."
डीएस रावत, महासचिव, एसोचैम
इस पूरे इलाके में महिलाओं के प्रति यौन उत्पीड़न के मामले भी लगातार बढ़े हैं. एसोचैम के मुताबिक बीते दो साल के दौरान हर तीन में से दो महिलाओं को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है.

किस तरह की हिंसा का डर?

  • शारीरिक छेड़छाड़- 89%
  • लूट- 79%
  • बलात्कार-92%
  • यौन उत्पीड़न-65%
इस सर्वे में शामिल महिलाओं ने ये भी माना है कि दिल्ली और एनसीआर की सड़कें सबसे ज़्यादा असुरक्षित हैं. सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का उपयोग करने वाली महिलाओं को दिन में कम से कम एक बार यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.
एसोचैम के महासचिव डीएस रावत कहते हैं, “चाहे वह भीड़भाड़ वाली जगह हो या फिर सुनसान इलाका दिल्ली की महिलाओं को तो हर समय यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.”
एसोचैम ने ये सर्वे दिल्ली के अलावा, मुंबई, कोलकाता, बेंगलौर, हैदराबाद, अहमदाबाद, पुणे और देहरादून की महिलाओं के बीच भी किया है.
बेंगलौर में 85 फीसदी महिलाएं रात की पाली में ख़ुद को असुरक्षित मान रही हैं तो कोलकाता की करीब 82 फीसदी महिलाएं रात की पाली में काम नहीं करना चाहतीं.

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