प्रस्तुति-- गणेश प्रसाद
उम्मीद के मुताबिक ब्राजील में हुए राष्ट्रपति चुनावों में मौजूदा
राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ पहले दौर का चुनाव जीती हैं. दूसरे चरण में उनका
मुकाबला सोशल डेमोक्रैट एसियो नेवेस से होगा जो अप्रत्याशित रूप से दूसरे
स्थान पर रहे.
राष्ट्रपति रूसेफ ने खुद रविवार को मतदान करते हुए साफ किया था कि पहले चरण
में जीत को वे संभव नहीं मानती हैं. उनके लिए नतीजा वैसा ही रहा जैसा जनमत
सर्वेक्षणों में कहा जा रहा था लेकिन कुछ अंतरों के साथ. तीन हफ्ते बाद
दूसरे चरण में उनका मुकाबला पुराने प्रतिद्वंद्वी मरीना सिल्वा से न होकर
12 साल छोटे सोशल डेमोक्रैट एसियो नेवेस से होगा जिन्होंने चुनाव प्रचार के
दौरान खुद को असली लेबर पार्टी विरोधी एंटी पेस्टिटा के रूप में पेश किया
था.
भले ही डिल्मा रूसेफ ने 41 प्रतिशत वोट जीतकर चुनाव जीतने का दावा किया हो लेकिन पहले चरण के असली विजेता नेवेस हैं जिन्होंने सर्वेक्षणों को धता बताते हुए 33 प्रतिशत से ज्यादा वोट जीते. इस नतीजे के बाद अब 26 अक्टूबर को होने वाला दूसरा दौर दिलचस्प हो गया है. सोशलिस्ट पार्टी पीएसबी के उम्मीदवार एडुआर्डो कांपोस की अप्रत्याशित मौत के बाद उम्मीदवार बनी मरीना सिल्वा के लिए नतीजे बहुत निराशाजनक रहे. उन्हें सिर्फ 21 प्रतिशत मत मिले.
पहले मुकाबला राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ और उनके साथ पर्यावरण मंत्री रही मरीना सिल्वा के बीच लग रहा था. दोनों ने अपना राजनीतिक करियर ब्राजील की लेबर पार्टी में शुरू किया था. 56 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता सिल्वा हर चुनावी सभा में लेबर पार्टी के लिए अपने 25 साल के योगदान की चर्चा करती. डिल्मा रूसेफ 1998 में पीटी में शामिल हुईं. उससे पहले वे सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी पीडीटी की सदस्य थीं और अन्य जगहों के अलावा उन्होंने पोर्टो अलेग्रे के नगर प्रशासन में भी काम किया. 1964 से 1985 तक ब्राजील में चले सैनिक तानाशाही के दौरान उन्होंने सैनिक शासकों के खिलाफ हथियारबंद प्रतिरोध में हिस्सा लिया था. उस दौर में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और यातना दी गई थी.
जेल से राष्ट्रपति भवन तक
सैनिक तानाशाही के दौरान 1980 में गठित लेबर पार्टी राजनीतिक प्रतिरोध का गढ़ बन गई. उसने देश को फिर से लोकतांत्रिक बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई. लुइस इनासियो लूला दा सिल्वा के रूप में पहली बार 2003 में एक मजदूर राष्ट्रपति भवन में पहुंचा. आठ साल बाद डिल्मा रूसेफ के रूप में पहली महिला ब्राजील की राष्ट्रपति बनीं.
समाजशास्त्री वलेरियानो कोस्टा कहते हैं, "ब्राजील में लेबर पार्टी का वर्चस्व है. डिल्मा रूसेफ और मरीना सिल्वा के अलावा दो और उम्मीदवार इस पार्टी के दायरे से आते हैं. ग्रीन पार्टी के खोर्खे मार्टिंस और समाजवाद और आजादी पार्टी के लुचियानो जेनरो." लेकिन लेबर पार्टी की छतरी तले बहुत सी राजनीतिक धाराओं के लोग जमा हैं. कोस्टा कहते हैं, "खेतिहर मजदूरों और पर्यावरण संरक्षण के आंदोलन से मरीना सिल्वा आती हैं. वहीं शहरी ट्रेड यूनियन और औद्योगिक मजदूरों का प्रतिनिधित्व करने वाले वामपंथी विचारों वाले लोगों के बीच से रूसेफ और पूर्व राष्ट्रपति लूला आते हैं."
ब्राजील में अगले तीन हफ्ते मतदाताओं का दिल जीतने के लिए दोनों उम्मीदवारों की रणनीतियों और चुनाव हारे उम्मीदवारों के समर्थकों को रिझाने के दिन होंगे. नेवेस की चुनौती सिल्वा के वोटरों को आकर्षित करने की होगी. उन्होंने पिछले दिनों हुए चुनाव प्रचार में दूसरे स्थान के लिए अपनी प्रतिद्वंद्वी पर ज्यादा हमले नहीं किए. उन्हें पता था कि ऐसा मौका आ सकता है जब उन्हें उनके समर्थन की और उनके वोटरों के समर्थन की जरूरत हो सकती है. यदि दोनों नेता हाथ मिला लेते हैं तो 26 अक्टूबर को राष्ट्रपति रूसेफ के लिए मुश्किल हो सकती है.
भले ही डिल्मा रूसेफ ने 41 प्रतिशत वोट जीतकर चुनाव जीतने का दावा किया हो लेकिन पहले चरण के असली विजेता नेवेस हैं जिन्होंने सर्वेक्षणों को धता बताते हुए 33 प्रतिशत से ज्यादा वोट जीते. इस नतीजे के बाद अब 26 अक्टूबर को होने वाला दूसरा दौर दिलचस्प हो गया है. सोशलिस्ट पार्टी पीएसबी के उम्मीदवार एडुआर्डो कांपोस की अप्रत्याशित मौत के बाद उम्मीदवार बनी मरीना सिल्वा के लिए नतीजे बहुत निराशाजनक रहे. उन्हें सिर्फ 21 प्रतिशत मत मिले.
पहले मुकाबला राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ और उनके साथ पर्यावरण मंत्री रही मरीना सिल्वा के बीच लग रहा था. दोनों ने अपना राजनीतिक करियर ब्राजील की लेबर पार्टी में शुरू किया था. 56 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता सिल्वा हर चुनावी सभा में लेबर पार्टी के लिए अपने 25 साल के योगदान की चर्चा करती. डिल्मा रूसेफ 1998 में पीटी में शामिल हुईं. उससे पहले वे सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी पीडीटी की सदस्य थीं और अन्य जगहों के अलावा उन्होंने पोर्टो अलेग्रे के नगर प्रशासन में भी काम किया. 1964 से 1985 तक ब्राजील में चले सैनिक तानाशाही के दौरान उन्होंने सैनिक शासकों के खिलाफ हथियारबंद प्रतिरोध में हिस्सा लिया था. उस दौर में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और यातना दी गई थी.
जेल से राष्ट्रपति भवन तक
सैनिक तानाशाही के दौरान 1980 में गठित लेबर पार्टी राजनीतिक प्रतिरोध का गढ़ बन गई. उसने देश को फिर से लोकतांत्रिक बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई. लुइस इनासियो लूला दा सिल्वा के रूप में पहली बार 2003 में एक मजदूर राष्ट्रपति भवन में पहुंचा. आठ साल बाद डिल्मा रूसेफ के रूप में पहली महिला ब्राजील की राष्ट्रपति बनीं.
समाजशास्त्री वलेरियानो कोस्टा कहते हैं, "ब्राजील में लेबर पार्टी का वर्चस्व है. डिल्मा रूसेफ और मरीना सिल्वा के अलावा दो और उम्मीदवार इस पार्टी के दायरे से आते हैं. ग्रीन पार्टी के खोर्खे मार्टिंस और समाजवाद और आजादी पार्टी के लुचियानो जेनरो." लेकिन लेबर पार्टी की छतरी तले बहुत सी राजनीतिक धाराओं के लोग जमा हैं. कोस्टा कहते हैं, "खेतिहर मजदूरों और पर्यावरण संरक्षण के आंदोलन से मरीना सिल्वा आती हैं. वहीं शहरी ट्रेड यूनियन और औद्योगिक मजदूरों का प्रतिनिधित्व करने वाले वामपंथी विचारों वाले लोगों के बीच से रूसेफ और पूर्व राष्ट्रपति लूला आते हैं."
ब्राजील में अगले तीन हफ्ते मतदाताओं का दिल जीतने के लिए दोनों उम्मीदवारों की रणनीतियों और चुनाव हारे उम्मीदवारों के समर्थकों को रिझाने के दिन होंगे. नेवेस की चुनौती सिल्वा के वोटरों को आकर्षित करने की होगी. उन्होंने पिछले दिनों हुए चुनाव प्रचार में दूसरे स्थान के लिए अपनी प्रतिद्वंद्वी पर ज्यादा हमले नहीं किए. उन्हें पता था कि ऐसा मौका आ सकता है जब उन्हें उनके समर्थन की और उनके वोटरों के समर्थन की जरूरत हो सकती है. यदि दोनों नेता हाथ मिला लेते हैं तो 26 अक्टूबर को राष्ट्रपति रूसेफ के लिए मुश्किल हो सकती है.
खुला मुकाबला
यह साफ नहीं है कि क्या सिल्वा अपने मतदाताओं से नेवेस को वोट देने की अपील करेंगी. ब्राजील में यह राजनीतिक धड़ों के बीच बातचीत और सौदेबाजी से तय होता है. 2010 के चुनावों में भी मरीना सिल्वा दूसरे स्थान पर रहने से चूक गई थीं. उस समय वे ग्रीन पार्टी की उम्मीदवार थीं और उस समय भी उन्होंने अपने मतदाताओं से किसी उम्मीदवार के समर्थन में दूसरे चरण के मतदान के लिए कोई स्पष्ट अपील नहीं की थी.
पहले चरण के बाद विश्व की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में राष्ट्रपति चुनावों का नतीजा खुला है. अगले हफ्ते दोनों उम्मीदवारों के लिए चुनौती भरे होंगे, हालांकि ब्राजील के लोगों के लिए लंबे समय साफ विकल्प हैं. नेवेस नई शुरुआत का वादा कर रहे हैं और रूसेफ की सरकारी हस्तक्षेप की नीति की आलोचना कर रहे हैं. उनके अनुसार सरकारी फैसले निवेशकों को डरा रहे हैं. रविवार को मतदान के नतीजे आने के बाद नेवेस ने कहा, "हम आधे रास्ते में हैं, सोमवार से हम फिर से चुनाव प्रचार में होंगे. ये किसी एक पार्टी की परियोजना नहीं है, ये ताकतों को इकट्ठा करने की घड़ी है."
डिल्मा रूसेफ के समर्थकों ने एक, दो, तीन, डिल्मा एक बार फिर कहकर उनका स्वागत किया. राष्ट्रपति ने अपने समर्थकों से कहा, "यह जीत है और संदेश साफ है. आगे जाने और आगे लड़ने का संदेश." वे निरंतरता की वकालत कर रही हैं और पिछले सालों में अपनी सरकार की कामयाबियों की दुहाई दे रही हैं. इसमें गरीबी के खिलाफ संघर्ष में सफलता शामिल है. परंपरागत रूप से उनकी पार्टी पीटी और उन्हें देश के कम विकसित उत्तरी हिस्से में ज्यादा समर्थन मिलता है. वहां लाखों लोगों को रूसेफ की सरकार के पारिवारिक सामाजिक कल्याण कदमों की मदद मिल रही है.
एमजे/एमजी (डीपीए)
यह साफ नहीं है कि क्या सिल्वा अपने मतदाताओं से नेवेस को वोट देने की अपील करेंगी. ब्राजील में यह राजनीतिक धड़ों के बीच बातचीत और सौदेबाजी से तय होता है. 2010 के चुनावों में भी मरीना सिल्वा दूसरे स्थान पर रहने से चूक गई थीं. उस समय वे ग्रीन पार्टी की उम्मीदवार थीं और उस समय भी उन्होंने अपने मतदाताओं से किसी उम्मीदवार के समर्थन में दूसरे चरण के मतदान के लिए कोई स्पष्ट अपील नहीं की थी.
पहले चरण के बाद विश्व की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में राष्ट्रपति चुनावों का नतीजा खुला है. अगले हफ्ते दोनों उम्मीदवारों के लिए चुनौती भरे होंगे, हालांकि ब्राजील के लोगों के लिए लंबे समय साफ विकल्प हैं. नेवेस नई शुरुआत का वादा कर रहे हैं और रूसेफ की सरकारी हस्तक्षेप की नीति की आलोचना कर रहे हैं. उनके अनुसार सरकारी फैसले निवेशकों को डरा रहे हैं. रविवार को मतदान के नतीजे आने के बाद नेवेस ने कहा, "हम आधे रास्ते में हैं, सोमवार से हम फिर से चुनाव प्रचार में होंगे. ये किसी एक पार्टी की परियोजना नहीं है, ये ताकतों को इकट्ठा करने की घड़ी है."
डिल्मा रूसेफ के समर्थकों ने एक, दो, तीन, डिल्मा एक बार फिर कहकर उनका स्वागत किया. राष्ट्रपति ने अपने समर्थकों से कहा, "यह जीत है और संदेश साफ है. आगे जाने और आगे लड़ने का संदेश." वे निरंतरता की वकालत कर रही हैं और पिछले सालों में अपनी सरकार की कामयाबियों की दुहाई दे रही हैं. इसमें गरीबी के खिलाफ संघर्ष में सफलता शामिल है. परंपरागत रूप से उनकी पार्टी पीटी और उन्हें देश के कम विकसित उत्तरी हिस्से में ज्यादा समर्थन मिलता है. वहां लाखों लोगों को रूसेफ की सरकार के पारिवारिक सामाजिक कल्याण कदमों की मदद मिल रही है.
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- तारीख 06.10.2014
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