गुरुवार, 11 नवंबर 2021

सौरभ गाँगुली

 सौरव गांगुली! जिन्होंने अपनी कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम को विपक्षी टीम से आँख में आँख मिलाकर खेलना सिखाया, न कि दबकर। गांगुली का जन्म कोलकाता के एक रईस परिवार में हुआ था। उस दौर में कोलकाता में फुटबॉल बहुत प्रसिद्ध हुआ करता था और शुरु-शुरू में सौरव गांगुली भी फुटबॉल के प्रति आकर्षित थे। पर अपने बड़े भाई स्नेहाशिष गांगुली के कहने पर, उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरु किया। स्नेहाशिष ने, छोटे भाई सौरव की प्रतिभा को देखते हुए घर में ही क्रिकेट खेलने के लिए पिच बना दी।

1990-91 का साल था, जब सौरभ गांगुली ने रणजी ट्राफी में बेहतरीन प्रदर्शन किया। उनकी इस लगन ने सभी को उनके बारे में सोचने को मजबूर कर दिया और उन्हें 1992 में वेस्टइंडीज दौरे के लिए भारतीय क्रिकेट टीम में चुन लिया गया। लेकिन यह दौरा उनके लिए काफी बुरा साबित हुआ। उन्होंने केवल एक मैच खेला, जिसमें उन्होंने तीन रन बनाए। इतना ही नहीं, इस दौरे पर ही उनपर घमंडी होने की ‘छाप’ पड़ गई और उनके रवैये पर उंगली तक उठी।

चार साल बाद, समय पलटा और गांगुली को 1996 में, इंग्लैंड दौरे के लिए फिर से टीम में चुना गया। तीन वनडे में से, उन्हें सिर्फ एक मैच में ही मौका मिला, जिसमें उन्होंने 46 रन बनाए। लेकिन अब भी सौरभ अपने खेल से संतुष्ट नहीं थे। दुनिया को उनके अंदर की आग अब तक नहीं दिखी थी। आखिरकार लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान पर सौरभ गांगुली ने अपने टेस्ट करियर का आगाज एक असली महाराजा की तरह किया। इस मैच में सौरभ ने 131 रनों की पारी खेली और अगले टेस्ट में भी उन्होंने सेंचुरी ठोककर दिखा दिया कि उनमें शान से खेलने की काबिलियत है। इसके साथ ही, वह अपने दोनों शुरुआती टेस्ट मैचों में सेंचुरी ठोकने वाले दुनिया के तीसरे बल्लेबाज बने।

सौरभ गांगुली के जीवन में एक क्षण ऐसा भी आया, जब पूरे भारत की उम्मीदें उनपर थीं और उन्हें खुद को साबित करना था। वह साल था 2000, जब उस समय के कप्तान पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगा और सौरव गांगुली को टीम की कप्तानी दी गयी ।

उस समय गांगुली के लिए इन सब से टीम को उबारना इतना आसन नहीं था । पूरे देश का भारतीय क्रिकेट टीम पर से भरोसा खो चुका था और टीम भी लगातार बुरे प्रदर्शन से 8वें पायदान पर आ चुकी थी। तब गांगुली की ही कप्तानी का असर था कि भारत दूसरे पायदान पर आ पाया। दादा की ही कप्तानी में भारत दूसरी बार 2003  फाइनल में पंहुचा। जहाँ एक समय पर लग रहा था कि इंडियन क्रिकेट का कोई अस्तित्व नहीं, वह टीम वर्ल्ड कप के फाइनल तक पहुँच गयी। यह असल में गांगुली की ही मेहनत का नतीजा था।


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