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इतिहास के स्वर्णिम पन्नों का अध्याय है, देव का सूर्यमंदिर
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कोरोना का कालखंड इस साल भी देव में छठ महापर्व पर भारी पड़ गया है। इसके मद्देनजर जिला प्रशासन ने यहां छठ पर्व के आयोजन पर बंदिशें लगा दी है। लेकिन यहां आस्थाओं का समंदर कम नहीं होने वाला है। देव में भले ही छठ पर्व मनाने लोग नहीं आ सकेंगे, पर देव के नाम पर लोग अन्य जगहों पर छठव्रत कर इस त्यौहार का पारंपरिक रस्म जरूर पूरा करेंगे। इसे रोकना किसी के बूते में नहीं है। देव जो कोरोना कालखंड से पूर्व विराट मेले का आकार ग्रहण करता था, वह स्मृतियों में जीवंत है।
छठ मुख्य रूप से सूर्य की उपासना का पर्व माना जाता है और अर्घ्य देकर इस त्योहार की परंपरा निभाई जाती है। भारत में कुछ प्रमुख सूर्य मंदिर जहां छठ पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इन सभी मंदिरों के पीछे कई प्रकार की पौराणिक कथाएं हैं। ऐसा ही एक मंदिर है औरंगाबाद जिले के देव में। इस मंदिर का अपना एक अलग इतिहास है और माना जाता है कि यहां सूर्यदेव की माता ने स्वयं छठ का व्रत किया था।
छठ के वक्त देव के त्रेतायुगीन सूर्य मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस मंदिर में छठ की पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है। मानते हैं कि यहां भगवान सूर्य 3 रूपों में विराजमान हैं। यह पूरे देश का एकलौता सूर्य मंदिर है जिसका मुख पूर्व में न होकर पश्चिम में है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान सूर्य की मुख्य प्रतिमा विराजमान है। जो कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में है। वहीं गर्भगृह के बाहर मुख्य द्वार पर भगवान सूर्य की प्रतिमा है तो दाईं ओर भगवान शंकर की प्रतिमा है।
मान्यता है कि असुरों और देवताओं के संग्राम में जब असुर हार गए थे तब देव माता अदिति ने सूर्यदेव से मदद की गुहार की और कड़ी तपस्या पर बैठ गईं। तब माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के यहीं देवारण्य में आकर तपस्या की। तब उनका आराधना से प्रसन्न होकर छठी माई ने उन्हें सर्वगुण संपन्न पुत्र के प्राप्त होने का वरदान दिया। इसके बाद सूर्यदेव ने माता अदिति के गर्भ से जन्म लेने का वरदान दिया। माता अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण सूर्यदेव का नाम आदित्य पड़ गया और आदित्य ने ही असुरों का संहार किया। उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया।
देश भर के अन्य सूर्य मंदिरों में सूर्य भगवान की ऐसी प्रतिमा नहीं देखने को मिलती। यहां हर साल छठ पर्व के दौरान भव्य उत्सव का आयोजन होता है। माना जाता है कि इस मंदिर में आकर छठ की पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। व्रती की हर मनोकामना पूरी होती है।
मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण भी प्राचीन काल के इंजीनियर माने जाने वाले भगवान विश्वकर्मा ने खुद इस मंदिर का निर्माण किया है। यहां के अभिलेखों में बताया गया है कि इसका निर्माण त्रेतायुग में हुआ था।
देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल (सुबह) सूर्य, मध्याचल (दोपहर) सूर्य, और अस्ताचल (अस्त) सूर्य के रूप में विद्यमान है। पूरे देश में यही एकमात्र सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। करीब एक सौ फीट ऊंचा यह सूर्य मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है।
बिना सीमेंट या चूना-गारा का प्रयोग किए आयताकार, वर्गाकार, आर्वाकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि कई रूपों और आकारों में काटे गए पत्थरों को जोड़कर बनाया गया यह मंदिर अत्यंत आकर्षक एवं विस्मयकारी है।
देव सूर्य मंदिर देश की धरोहर एवं अनूठी विरासत है। हर साल छठ पर्व पर यहां लाखों श्रद्धालु छठ करने झारखंड, मध्य प्रदेश, उतरप्रदेश समेत कई राज्यों से आते हैं। कहा जाता है कि जो भक्त मन से इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
जनश्रुतियों के मुताबिक, एक राजा ऐल एक बार देव इलाके के जंगल में शिकार खेलने गए थे। शिकार खेलने के समय उन्हें प्यास लगी। उन्होंने अपने आदेशपाल को लोटा भर पानी लाने को कहा। आदेशपाल पानी की तलाश करते हुए एक पानी भरे गड्ढे के पास पहुंचा।वहां से उसने एक लोटा पानी लेकर राजा को दिया। राजा के हाथ में जहां-जहां पानी का स्पर्श हुआ, वहां का कुष्ठ ठीक हो गया।
राजा बाद में उस गड्ढे में स्नान किया और उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया। उसके बाद उसी रात जब राजा रात में सोए हुए, तो सपना आया कि जिस गड्ढे में उन्होंने स्नान किया था, उस गड्ढे में तीन मूर्तियां हैं।खुदाई कर उन मूर्तियों को निकाला गया। राजा ने फिर उन मूर्तियों को एक मंदिर बनाकर स्थापित किया।
कहते हैं, एक बार औरंगजेब मंदिरों को तोड़ता हुआ औरंगाबाद के देव पहुंचा। वह मंदिर पर आक्रमण करने ही वाला था कि वहां के पुजारियों ने उससे काफी अनुरोध किया कि वह मंदिर को न तोड़े। पहले तो औरंगजेब किसी भी कीमत पर राजी नहीं हुआ, लेकिन बार-बार लोगों के अनुरोध को सुनकर उसने कहा कि यदि सच में तुम्हारे भगवान हैं और इनमें कोई शक्ति है तो मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में हो जाए। यदि ऐसा हो गया तो मैं मदिर नहीं तोड़ूंगा।
सुरेश चौरसिया द्वारा लिखित " त्रेतायुगीन सूर्यमंदिर देव "
नामक पुस्तक के अनुसार, औरंगजेब पुजारियों को मंदिर के प्रवेश द्वार की दिशा बदलने की बात कहकर अगली सुबह तक का वक्त देकर वहां से चला गया। लेकिन इसके बाद पुजारीजन काफी परेशान हुए और वह रातभर सूर्य देव से प्रार्थना करते रहे कि वह उनके वचन की लाज रख लें। इसके बाद जब पुजारीजन अगली सुबह पूजा के लिए मंदिर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि मंदिर का प्रवेश द्वार तो दूसरी दिशा में हो गया है। तब से आज तक देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में ही है।
देव सूर्यमंदिर से जुड़े अन्य प्राचीन गाथाएं भी हैं। इसे क्रमशः आपके बीच प्रस्तुत करेंगे। धन्यवाद !
* सुरेश चौरसिया ( पत्रकार )
9810791027, 9310183241
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