दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।
गुरुवार, 29 सितंबर 2022
हिंदी काहे & क्यों ??
कभी अरबी दिवस, फारसी दिवस, उर्दू दिवस, इंग्लिश दिवस मनाया जाता है ,
चूंकि हिन्दी भारत की मूल भाषा नहीं है , यह कबसे प्रयोग में आई इसका पता नहीं है,
लिपियों में संस्कृत, देवनागरी , कृतिदेव, पाली, ब्राह्मी ,प्राकृत आदि थीं जिन्हें भुला दिया गया और वो लगभग लुप्त हो गई या जिन्हें हमने ही लुप्त करवा दिया हिन्दी के फेर में ,
इसके बाद आती हैं भाषाएं और बोलियां जो मूल भाषाओं से ही निकली हैं , वो हिन्दी से आज भी अधिक समृद्ध हैं लेकिन उन्हें क्षेत्रीयता में बांट कर उनका मानमर्दन कर दिया गया है ,
मराठी , गुरुमुखी, बंगला,उड़िया,तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, भोजपुरी, बुन्देली, अवधी, मगधी , बृज भाषा आदि समृद्ध भाषाएं थीं और हैं , इन्हीं भाषाओं में लिखी बोली और पढ़ी जाती हैं , ये मातृभाषा और मातृ लिपियाँ हैं , ये लगभग शुद्ध भाषा हैं जिन्हें आक्रांता भी नहीं तोड़ पाए बल्कि उसी में लिखने लगे , रसखान इसके उदाहरण हैं ,
भारत में हिन्दी दिवस मनाना ऐसे ही है जैसे हम आयातित भाषा का दिवस मना रहे हैं , जैसे आयातित सम्बन्धों का, मदर्स डे, फादर्स डे, फ्रेंडशिप डे, एनवायरमेंट डे, अर्थ डे आदि , वैसे ही हिन्दी डे भी है जो मनाया जाताY है ,
जबकि भारत में ये सब नाते पूज्यनीय हैं , जहां केवल एक दिन मनाकर संतोष कर लेते हैं वहीं भारत में तीन सौ पैंसठों दिन यह दिवस रहता है , अब व्यक्ति , समूहों और क्षेत्रीय संगठनों ने क्षेत्रवाद के चलते इसकी देखादेखी अपने अपने दिवस मनाने लगे हैं ,
मुझे नहीं लगता कि अब कोई शुद्ध हिन्दी बोल और लिख पता होगा , क्योंकि हिन्दी दिवस के अवसर पर उर्दू में गजले , शेरो शायरी, तकरीर की जाती है , अंग्रेजी में डिबेट होते हैं ,
मुझे नहीं लगता है कि अब लोग आख्यान और व्याख्यान में अन्तर बता जायेंगे , संबंध सही है या सम्बन्ध विचार कर पाएंगे,
हंस और हँस में अन्तर बता पाएंगे, हिंदी सही है या हिन्दी,
आशीर्वाद सही है या आर्शीवाद , अब तो पंचाक्षर भी अपना अस्तित्व खो बैठे हैं , तो किस भाषा का दिवस मना कर हम इतरा रहे हैं और गौरवान्वित हो रहे हैं ,
ना शुद्ध भाषा बोल पा रहे है ना लिख पा रहे हैं तो काहे का दिवस !
सादर प्रणाम,
क्या करे ??
आप रोड पर जा रहे हैं, आपकी तू-तू मैं-मैं किसी जेहादी से हो गई।
गलती उसकी थी, पर जिहादी अपनी गलती कहाँ मानेगा।
तो बात बढ गई, आपने भी आव देखा ना ताव, तुरंत 100 नंबर पर फोन किया और पुलिस को सूचित कर दिया।
इसी बीच जेहादी दौड़ के गया और मांस काटने वाला छुरा लेकर आ गया, और घपा घप कर दिया आपके उपर छूरे से वार।
अब जब तक पुलिस आई आप भगवान को प्यारे हो चुके थे, और परिवार वालों को शव देकर, पुलिस को जो भी कार्यवाही करनी थी, उस जेहादी के खिलाफ वो कर भी दी।
उसको जेल हो गई और आपको भगवान के #श्रीचरणों में जगह मिल गई। और आपका परिवार बर्बाद हो गया, बच्चे #अनाथ हो गये ।।
जेहादी दो महीने बाद जमानत लेकर जेल से बाहर आ गया, अब बरसों तक मुकदमा चलेगा और बाद में वह जेहादी सबूत या गवाह के अभाव में या शक की बुनियाद पर बाइज्जत बरी हो जाएगा।
यह तो हुआ एक पहलू।
चलिये इस बात का दूसरा पहलू देखते हैं-
जब जेहादी हथियार लाने दौड़ा था, आपने अपनी गाड़ी में से तलवार या पिस्तौल निकाल के हाथ में ले लिया और जेहादी के छुरा लाने पर आपने IPC की धारा और सुप्रीम कोर्ट् द्वारा आत्म रक्षा के अधिकार के तहत आत्म रक्षा के लिए उस जेहादी पर गोलियां चलाईं, पांच फ़ायर ठोक दिये उस पर।
जेहादी, हूरो के मजे लेने के लिए जहन्नुम चला गया, और आप जेल।
जेल से दो महीने में जमानत लेकर आप घर आ गए, अब बरसों मुकदमा चलेगा और आत्म रक्षा के अधिकार के अनुसार आप बाइज्जत बरी कर दिए जाएंगे। और आप अपने परिवार के साथ हंसी खुशी से रहने लगे।
कौन सी कहानी अच्छी लगी आपको??? पहली या दूसरी??
दूसरी कहानी के लिये प्रयत्न आपको करना पड़ेगा! पहली के लिये तो सरकार व संविधान ने सारी व्यवस्थाएं कर ही रखी हैं।
इसलिए तो चिल्ला रहा हूँ !
दशहरा करीब है.....
वीरेंद्र सेंगर
दशहरा करीब है। जगह-जगह रावण वध होंगे। असत्य पर सत्य की विजय हो जाएगी। फिर एक साल की छुट्टी। राम-रावण अपने-अपने धंधा-पानी में लग जाएंगे। फिलहाल राम लीलाओं की धूम है। इन दिनों जहां मेरा प्रवास है। वो कस्बाई गावं है। राम लीला चल रही है। महज 300mitr दूर। हर रोज तीन-चार सौ लोग रात में जुट जाते हैं।
मुझे तो लाउड स्पीकर से ही लीला का रंग रस मिल जाता है। आज अचानक एक राम भक्त आयोजक से मुलाकात हो गई। उन्होेंने लीला स्थल पर आने का नेह निमंत्रण दिया। मैंने झुककर सलामी दी। मुझे जानकारी दी गई कि आज से पूरा पंडाल भर जाएगा। कोई हजार लोग जुटेंगे। आसपास के गांवों से।
जानकारी दी गई कि जब इंट्री रावण जी की होती है, तब भीड़ जुटती है। बेचारे राम जी या हनुमान जी जैसे सदाचारी पात्रों से लोग उतना नहीं जुटते। इस बार हम लीला में नामी रावण ला रहे हैं। इनका क्रेज पूरे जिले में है। जब वो बुलंद आवाज में दहाड़ते हैं, तो धूम मच जाती है। राम जी पर कोई नोटः नहीं बरसiता ।लेकिन रावण जी पर खूब बड़ा वाला नोटः बरसता है। रावण जी हैं बहुत-बहुत उदार। जो ईनाम बरसता है, उसमें केवल 50 प्रतिशत लेते हैं। बाकी लीला समिति के पास जाता है। मैने जिज्ञासा की, यही की राम जी का कितना हिस्सा रहता है?उत्तर मिला। सर!राम जी तो खुद हमरे भरोसे रहते हैं। आखिरी दिन चरण वंदना में 10-20 वाले कुछ नोटः आ जाते हैं। वो भी माताएं चढावा में रख जाती हैं। राम जी और हनुमान जी को कमेटी फीस देती है। हमारे राम जी बहुत-बहुत सरल हैं। वे हर शाम घर से पैदल ही आ जाते हैं। बस, घंटे भर का रास्ता है।
जिज्ञासा ने फिर उछाल मारा। तो आयोजक जी, बोले रावण महराज नामी हैं। बाहर तो वो लीला के एक लाख तक चार्ज करें। यहां की लीला ने उन्हें नाम दिया है, सो वो मुहँ खोलकर कुछ मांगते नहीं। हाथ में 50 हजार भी रख दिए तो ,चुप चाप रख लेते हैं। आते -जाते अपनी कार से हैं, लेकिन टैक्सी की दर से वसूल लेते हैँ। वैसे जरा भी लालची नहीं है। भगवान राम जी कृपा से वे बहुत अमीर भी हो गये हैं और राम जी ? जवाब मिला। हमारे जो रेगुलर राम जी थे, उनकी सरकारी नौकरी हो गई है। वे संविदा पटवारी हो गए हैं। कमाई ,राम जी की कृपा से बढिय़ा है। इतने उदार हैँ कि उन्होेंने 1100 का चंदा भी दिया है। और हनुमान जी?सर!वे तो लीला के ही हनुमान हैं। कुर्सी लगवाने से लेकर हर काम मे हिस्सा लेते हैं। इस बार राम जी कृपा से चौथी बार में हाई स्कूल पास कर गए। ये गणित, बेचारे पवन पुत्र को अटका देती थी। इस बार राम जी की कृपा हो गई। वे गुड सेकंड से पास कर गए। इसी से , लीला में इस बार नयी ऊर्जा आ गई है। वे पूछ तानकर लंबी छलांग लगाते हैं। उनका जोश देखने लायक है। लीला की चर्चा से मैं भी भक्ति भाव में डूब गया। और घर की तरफ मुड़ चला।बोलो जय सिया राम!