मैं लिखना तो नहीं चाहता था ,तीर्थ स्थलों पर ,मगर मन ,और बुद्धि बिना सोचे राह नहीं पाती ,इन स्थानों का हाल और चाल देख कर ,ऊपर से इनके नाम पर सरकार ,,जो अब केवल व्यापारी बन चुकी है ,उसको कोई सरोकार नहीं है धर्म से क्यों कि हर जगह केवल मुनाफा कैसे कमाया जाये, इसका जुगाड़ सरकार कर रही है और बढ़ावा दे रही है एक ऐसी सोच को जो केवल राम भरोसे बैठे और आदमी अपनी बुद्धि के दरवाजे बंद रख , इन आकाओं के गुण गायें ,मूल भूत सुविधाओं की बात ना करें ।
आज सरकार की एक ही नीति है ,कि किस तरह से वर्ग विशेष को बहकाया जाए और वोट बैंक बनाया जाए । जनता की जो मूल समस्या है उससे भटका कर इधर ध्यान को मोड़ दिया जाए ,क्यों कि धर्म एक ऐसा मुद्दा कहूँ या आम जनता के लिए ,एक तरह से नशा है ,जिसके बिना वह रह नहीं सकती ।
भले ही मान्यताएं आजकल छली जा रहीं हों ,जिसमें आम आदमी को मूर्ख बनाया जा रहा हो ।
धर्म स्थल देश की चारों दिशाओं में जहाँ जहाँ है ,उनका अवलोकन कर देखें तो ,--हर जगह ठेकेदारी प्रथा है --
ठेकेदार ,,अपने गैंग के साथ काम करता है जिसमें साम, दाम दादागिरी का बोलबाला होता है और तथाकथित धर्म के मतवालों को लूटते हैं --यात्रा वाहन से लेकर रहने की व्यवस्था,खाने पीने की वस्तू,भी महँगी मिलती है ।
और तो और सबसे छोटी वस्तू ""रोली"" भी नकली मिलती है ।
अन्य वस्तओं की बात ही क्या ??
पुराणों धर्म ग्रन्थों --किसी भी धर्म में ---एक ही बात पर जोर देते हैं --आपका मन , इन्द्रियाँ को अपने नियंत्रण में रख आप आराधना करें ---वो भी एकांत में और अपने इष्ट से ध्यान लगा अपने मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करें ना कि उसका दिखावा करें ।
धर्म स्थलों पर पिकनिक का माहौल इन व्यापारियों नें बना दिया है ,जहाँ सभी तरह के अनैतिक कार्य किये और कराये जाते हैं क्यों कि व्यापार में सब जायज है ।। मुनाफा होना चाहिए बस ।।
अंत में कुछ शेर ---
" तेज बहुत नाखून धर्म के ।
कातिल से नाखून धर्म के ।।
देखा हमने सब ग्रंथों को ।
पन्नों पर हैं खून धर्म के ।।
बहकाया गुरबत को अब तक ।
ऐसे हैं कानून धर्म के ।।
बेच खा गये मुझको तुझको ।
ये दलाल बातून धर्म के ।।
"रवीन्द्र शर्मा'
"
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