कभी अरबी दिवस, फारसी दिवस, उर्दू दिवस, इंग्लिश दिवस मनाया जाता है ,
चूंकि हिन्दी भारत की मूल भाषा नहीं है , यह कबसे प्रयोग में आई इसका पता नहीं है,
लिपियों में संस्कृत, देवनागरी , कृतिदेव, पाली, ब्राह्मी ,प्राकृत आदि थीं जिन्हें भुला दिया गया और वो लगभग लुप्त हो गई या जिन्हें हमने ही लुप्त करवा दिया हिन्दी के फेर में ,
इसके बाद आती हैं भाषाएं और बोलियां जो मूल भाषाओं से ही निकली हैं , वो हिन्दी से आज भी अधिक समृद्ध हैं लेकिन उन्हें क्षेत्रीयता में बांट कर उनका मानमर्दन कर दिया गया है ,
मराठी , गुरुमुखी, बंगला,उड़िया,तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, भोजपुरी, बुन्देली, अवधी, मगधी , बृज भाषा आदि समृद्ध भाषाएं थीं और हैं , इन्हीं भाषाओं में लिखी बोली और पढ़ी जाती हैं , ये मातृभाषा और मातृ लिपियाँ हैं , ये लगभग शुद्ध भाषा हैं जिन्हें आक्रांता भी नहीं तोड़ पाए बल्कि उसी में लिखने लगे , रसखान इसके उदाहरण हैं ,
भारत में हिन्दी दिवस मनाना ऐसे ही है जैसे हम आयातित भाषा का दिवस मना रहे हैं , जैसे आयातित सम्बन्धों का, मदर्स डे, फादर्स डे, फ्रेंडशिप डे, एनवायरमेंट डे, अर्थ डे आदि , वैसे ही हिन्दी डे भी है जो मनाया जाताY है ,
जबकि भारत में ये सब नाते पूज्यनीय हैं , जहां केवल एक दिन मनाकर संतोष कर लेते हैं वहीं भारत में तीन सौ पैंसठों दिन यह दिवस रहता है , अब व्यक्ति , समूहों और क्षेत्रीय संगठनों ने क्षेत्रवाद के चलते इसकी देखादेखी अपने अपने दिवस मनाने लगे हैं ,
मुझे नहीं लगता कि अब कोई शुद्ध हिन्दी बोल और लिख पता होगा , क्योंकि हिन्दी दिवस के अवसर पर उर्दू में गजले , शेरो शायरी, तकरीर की जाती है , अंग्रेजी में डिबेट होते हैं ,
मुझे नहीं लगता है कि अब लोग आख्यान और व्याख्यान में अन्तर बता जायेंगे , संबंध सही है या सम्बन्ध विचार कर पाएंगे,
हंस और हँस में अन्तर बता पाएंगे, हिंदी सही है या हिन्दी,
आशीर्वाद सही है या आर्शीवाद , अब तो पंचाक्षर भी अपना अस्तित्व खो बैठे हैं , तो किस भाषा का दिवस मना कर हम इतरा रहे हैं और गौरवान्वित हो रहे हैं ,
ना शुद्ध भाषा बोल पा रहे है ना लिख पा रहे हैं तो काहे का दिवस !
सादर प्रणाम,
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