दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।
गुरुवार, 28 सितंबर 2023
मंगलवार, 26 सितंबर 2023
पेशा नियमावली बनाने से आदिवासी समाज का भला नहीं होगा
*प्रकाशनार्थ*
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रांची 26 सितम्बर 2023
*सिर्फ पेेशा नियमावली 2022 बनाने से राज के आदिवासी मूलवासी समाज का भला नही होने वाला है उसके लिए हेमंत सोरेन सरकार को अपनी प्रतिबद्धता एवं संकल्प व्यक्त कर कैबिनेट से पास करा कर अधिसूचना जारी करना होगा तभी पेशा अधिनियम को लागू कर ग्राम सभा को मजबूत कर सपनों को पूरा किया जा सकता है* *
विजय शंकर नायक*
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उपरोक्त बाते आज झारखंड बचाओ मोर्चा के केंद्रीय संयोजक सह पूर्व विधायक प्रत्याशी आदिवासी मूूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष विजय शंकर नायक ने पेेशा नियमावली 2022 बनने पर अपनी प्रतिक्रिया में कही ।इन्होने आगे यह भी कहा कि माननीय विधायक लोबिन हेंब्रम के संघर्ष और झारखंड बचाओ मोर्चा के द्वारा किये गये आन्दोलन का ही नतीजा है कि पंचायती राज विभाग के अधिकारी एंव पदाधिकारियों ने दिन रात एक कर इस नियमावली को तैयार किया जिसके लिए झारखंड बचाओ मोर्चा उन्हे साधुवाद देता है और उनके द्वारा किए गये मेहनत के लिए उन्हे बधाई देता है ।
श्री नायक ने आगे कहा कि अब इसे लागु करवाने की दिशा मे ठोस और सकरात्मक पहल की जानी चाहिए जिसके प्रथम चरण मे पेेशा नियमावली 2022 को बिना देर किए ही इसे झारखंड के मुख्य सचिव को भेजकर इसमे उनकी सहमति प्राप्त कर विभागीय मन्त्री से अनुमोदन सहमती लेकर मुख्य मन्त्री को भेजा जाना चाहिए और उनसे भी अनुमोदन प्राप्त कर इसे कैबिनेट में लाकर कैबिनेट से पास करा कर अधिसूचना जारी कराया जाए तब ही ग्राम सभा को मजबूत करने का सपना पुरा होगा और *अबुवा दिशुम अबुआ राज* के सपनो को धरातल में उतारा जा सकेगा ।
श्री नायक ने यह भी कहा की पुलिस के द्वारा किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने पर ग्राम सभा को 48 घन्टा में गिरफ्तारी कई सूचना ग्राम सभा को देने को अनिवार्य किया गया है को 48 घन्टा से कम कर 24 घन्टा किया जाए और जो ग्राम सभा को गलत अवैध तरिके से लिए गए आदिवासी जमीन को वापस कराने या लेने का अधिकार दिया गया है उसमे अनुसूचित जाति को भी इसमे जोड़ा जाना चाहिए और ग्राम सभा के अधिनियम रहने वाले दलित समाज के लोगो से गलत एंव अवैध तरिके से लिए या हडपे गये भूमि को भी वापस करने के कानून को शामिल किया जाए तथा सी.एन.टी/एस.पी.टी एक्ट मे आने वाले सभी मूलवासी समाज को भी इस कानून मे लिया जाना चाहिए, ग्राम सभा के एक तिहाई कोरम को पुरा करने के लिए अनु.जाति के सदस्यो को भी अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए ताकि पेशा कानून मे समस्त झारखंडी समाज का भला हो सके ।
भवदीय
(विजय शंकर नायक)
केन्द्रीय संयोजक
झारखंड बचाओ मोर्चा
केंद्रीय उपाध्यक्ष
आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच
शनिवार, 23 सितंबर 2023
गया जी की संगीत परंपरा का इतिहास -
Part-1
अति प्राचीन ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरी गया जी की धरा में संगीत रचा बसा है। यहां के संगीत परंपरा की ख्याति दूर देशों तक फैली है। शास्त्रीय और लोक संगीत का सृजन तथा साधना यहां का श्रेयकर माना गया है। संगीत जगत में "ध्रुपद" गायकी विधा का जो आज रूप विश्व पैमाने पर उपलब्ध है, वह गयाजी की ही देन है। यह विधा यहीं मूल रूप से पुष्पित और पल्वित हुई है।
गयाजी के श्री धनारंग जी ने सर्वप्रथम ध्रुपद गायकी को नया आयाम दिया था। यह कहा जाये कि इस विधा के ये ही जन्मदाता हैं, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। इन्होंने ही सर्व प्रथम इस 'कंठ संगीत' विधा को अपनी सृजनात्मक क्षमता से परवाना चढ़ाया। इतना ही नहीं श्री सारंग जी ने ध्रुपद, धमाल, तिरवट, टप्पा, तराना और मौलिक बंदिशों को भी नया रुप दिया। ये एक अद्वितीय कलाकार के रूप में उभरे।
इसी समय पूरब देश कोलकाता से "कथक घराना" बनारस के प्रतिभावान कलाकार पंडित राम प्रसाद मिश्र उर्फ रामू जी का गयाजी में आगमन हुआ। उन्होंने इसे और भी उच्च स्तरीय राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्ठापित करने का उल्लेखनीय कार्य किया। वे ध्रुपद, धमार, टप्पा तथा ठुमरी के प्रख्यात गायक के रूप में प्रतिष्ठित रहे।
श्री धनारंग जी के शिष्यों में श्री बच्चू जी ने इस ध्रुपद गायन को छितपाल जी तथा राजाराम मल्लिक जी को साथ रखकर सांस्कृतिक नगरी दरभंगा तक पहुंचाये।
वहीं पंडित जयराम तिवारी जी के "ख्याल" गायिकी के अनूठे प्रयोग ने शास्त्रीय गायन जगत में राज्य स्तरीय पहचान दिलाई।
गया के रहने वाले पंडित सियाराम तिवारी जी ने इस संस्कृति को अपने प्राणों से प्यारा मानकर अंतिम अवस्था तक इसे जीवित रखा।
गया जी से सुदूर ग्रामीण अंचल परैया का सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक ईश्वरपुर (इसरपुर) गांव शास्त्रीय गायन तथा वादन में पूरे देश में जाना जाता है और आज भी प्रसिद्ध है।
"सुरों की नगरी" से जाना जाने वाला प्रसिद्ध गयाजी का यह इसरपुर गांव बिहार सहित देश का नाम रौशन किया है।
ईश्वरपुर के स्वर्गीय बलदेव उपाध्याय तथा स्वर्गीय वासुदेव उपाध्याय बन्धुओं का पखावज वादन का उन दिनों कोई जोड़ नहीं था। सितार वादन में भी यह गांव शीर्ष पर रहा है।
वहीं पास का पवई गांव भी संगीत क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रखी है।
कहा गया है कि संगीत जीवन की लयात्मक शक्ति होती है। मानव जीवन में संगीत का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह सभ्यता के विकास के साथ-साथ हर युग में मानव विकास के साथ नए आयामों में पुष्पित एवं पल्लवित होता रहा है।
इस क्रम में अपने जीवन काल में ही सांस्कृतिक विरासत को सुरभित करने में 'सरोज वादक' में श्री नवीन चंद्र सरकार, 'हारमोनियम वादक' में ग्वालियर महाराज के यहां से गयाजी आने वाले में श्री मुनेश्वर दयाल और 'इसराज वादन' में श्री शांति भट्टाचार्य की एक खास पहचान रही है।
गयाजी की मिट्टी में जन्मे पले मोहम्मद रहीम बक्स- शहनाई वादक, आकाशवाणी पटना, मोहम्मद पीर बख्श- बांसुरी वादक, आकाशवाणी पटना तथा मोहम्मद फही मुल्लाह- मुरली वादक आकाशवाणी पटना, ये तीनों भाइयों ने आकाशवाणी पटना के कार्यक्रमों में स्थायी प्रसारण देकर बिहार को गौरान्वित किया है।
बांसुरी वादन में श्री मैथिली शरण जी, पखावज वादन में श्री बलदेव महाराज तथा श्री रामजी पाठक तथा वायलिन वादन में श्री पतरष घोष का अमूल्य योगदान रहा है।
श्री गोवर्धन मिश्र ने गयाजी को शास्त्रीय संगीत परंपरा में राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाकर गयाजी का मान बढा़या है। उन्होंने अपने पिता श्री नरसिंह पाठक से अल्प आयु में ही इसकी शिक्षा ग्रहण की थी।
श्री कामेश्वर पाठक को गायकी के चारों विधाओं पट ध्रुपद, धमाल, खयाल एवं ठुमरी में उन्हें महारत प्राप्त थी। वे आकाशवाणी पटना के स्थापित कलाकार रहे।
मो. मौजेदीन खां के कंठ की ठुमरी ने गयाजी के पूर्वी अंग की ठुमरी को जन्म देकर एक अलग पहचान बनायी, जो अब श्री जयराम तिवारी जी निधन के बाद वह समाप्त हो गया।
स्वर्गीय गणपत राव भैया जब यूरोप से पहली बार एक नए वाद्ययंत्र "हारमोनियम" को साथ लेकर भारत आए तो उसे देखने दूर दूर से लोग आने लगे। उसे देखकर लोगों को आश्चर्य का ठीकाना न रहा। तब भैया जी ने उसे भारत के कोने-कोने में प्रतिस्थापित किया और उसे प्रदर्शित तथा प्रसारित भी किया। वे सदा बाहर ही रहने लगे।
इस प्रकार पूरे मध्य भारत में यह हारमोनियम वाद्य यंत्र जो हर गली एवं कोने-कोने में संगीत का मुख्य अंग बना इसका पूर्ण श्रेय श्री गणपत राव भैया जी को ही है। गयाजी का मान उन्होंने बढा़या।
रामचंद्र कटरियार के पुत्र माधो लाल कटरियार ने तब गणपतराव भैया को गयाजी बुलाकर उनसे हार्मोनियम वादन की कला सीखी।
बाद में हनुमान दास के पुत्र सोहन सिंह उर्फ सोनी जी पूरब अंग की ठुमरी के प्रसिद्ध गायक रहे और माधो लाल कटरियार के यहाँ रहे।
सोनी सिंह इसराज छोड़ कर हारमोनियम वाद्ययंत्र पर ठुमरी को गाया और "गया की ठुमरी" के नाम से इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई। इनके नाम पर "सोनी संगीतालय" गयाजी में आज भी अवस्थित है।
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डॉक्टर शत्रुघ्न दांगी
राज्यपाल तथा बिहार पुरातत्व निदेशालय
निदेशक से प्रशंसित एवं प्रशस्ति प्राप्त
इतिहासकार तथा पुरातत्व वेत्ता
लाव, टिकारी, गया।
बुधवार, 20 सितंबर 2023
श्री 1008 बुढवा महादेव मंदिर टिकारी, गया
यह मंदिर टिकारी किला के पूरब में टिकारी नगर में है.
प्राचीन काल में गया जिला के उतर पश्चिम क्षेत्र में घनघोर जंगल था, उस जंगल के बीचों बीच स्थानीय निवासीयों के द्वारा एक स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की गयी थी. उसे आज भगवान् श्री 1008 बुढवा महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है.
मंदिर के चारों तरफ बहुत बड़ा भूभाग में बगीचा था, उसमें सुंदर फूल, फलदार पेड़-पौधे लगाया गया था.
टिकारी राज के प्रथम राजा वीर सिंह के द्वारा सन 1718 में टिकारी राज के किला के निर्माण के समय, इस शहर का नामकरण टिकारी किया गया था.
मंदिर के गर्भगृह में सफेद रंग के पत्थर का बना करघा युक्त शिवलिंग स्थापित है, मंदिर गर्भगृह के आस पास में शंकर की सवारी नंदी के अलावा भगवान विष्णु, पार्वती, गणेश, हनुमान की मूर्ति भी स्थापित है.
मंदिर परिसर में उस समय एक विशाल कुआँ बनवाया गया था, जो आज भी एक प्राचीन कुआ के रूप में विद्यमान है.
कालांतर में इस प्राचीन मंदिर को कुछ विधर्मियों ने छीन भिन्न कर नष्ट कर दिया था.
मध्य काल में स्थानीय भक्त जनों और टिकारी राज ने समय समय पर, इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया है.
मंदिर का जीर्णोद्वार करते हुए इसे खूबसूरत बना दिया गया है. आज यह पवित्र स्थल लाखों लोगों की आस्था और विश्वास का केंद्र बिन्दु है.
आज इस मंदिर के प्रांगण की ज़मीन, जो प्राचीन काल के बने मंदिर की बड़े भूभाग का अंश मात्र हैं.
टिकारी राज के समय बुढ़वा महादेव की ख्याति चारों ओर फैली हुई थी.
सावन के महिना में इनके दर्शन करने के लिय बहुत दूर दूर से भक्त जन आया करते है.
इस प्राचीन मंदिर की आलौकिक नजारा अपने आप में ही अद्भुत हैं.
बुढवा महादेव मंदिर में भगवान भोले शंकर का शिवलिंग काफी प्राचीन माना जाता है. इसके दर्शन मात्र से ही भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं. ऐसी मान्यता है.
बुढ़वा महादेव के दर्शन से भक्तजनों को असीम सुख और शांति की प्राप्ति होती है.
श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक पूजा-अर्चना करने वाला श्रद्धालुगण इनके यहां से खाली हाथ नहीं लौटता हैं.
टिकारी राज नौ आना के महारानी राजरूप कुंवर की एक मात्र संतान पुत्री राधेश्वरी कुंवर उर्फ किशोरी मईयां थी. किशोरी मईयां काफी दिनों तक निसंतान थी. उन्होंने पुत्र रत्न की प्राप्ति हेतु इसी बुढ़वा महादेव की पूजा-अर्चना व आराधना की थी. आराधना करने के कुछ दिनों के बाद, श्री बुढ़वा महादेव के आशीर्वाद स्वरूप उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. जो बाद में टिकारी राज नौ आना का अंतिम राजा महाराज कुमार कैप्टन गोपाल शरण सिंह हुए.
श्री 1008 बुढवा महादेव मंदिर की मुख्य विशेषता -
इस प्रसिद्ध महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग के पूजन से जहा सारे मनोरथ पूरे होते हैं. वहीं इनके नित्य दर्शन असीम शांति व आराधना करने से बड़े-बड़े संकट टल जाते हैं और पाप नष्ट हो जाते है.
वर्तमान समय में श्री 1008 बुढ़वा महादेव मंदिर कम बारिश के मौसम में अधिक वर्षा कराने के लिए भी जाना जाता हैं. कम वर्षा की अवधी में इस शिवलिंग को दिन भर दूध से भर कर आच्छादित कर दिया जाता हैं तब जाकर इनके कृपा से इस क्षेत्र में घनघोर वर्षा होती है, ऐसी मान्यता हैं और देखा भी गया है
सावन माह में शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए शिवभक्तों एवं कावरियों की भीड़ लगी रहती है. हजारों की तादाद में शिव भक्त भगवान भोलेनाथ का दर्शन पाने और पवित्र शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए प्रतिदिन इस मंदिर में पहुंचते हैं.
यह शिवालय जागृत है. इनकी आराधना मात्र से श्रधालुयों का मनोकामना पूर्ण होती है. इनकी पूजा करने से नि:संतान लोगों को संतान की प्राप्ति होती है.
सालों भर यहां आने वाले श्रद्धालुओं की तादाद काफी अधिक होती है. मन्नत पूर्ण होने के बाद कई भक्तगण पैदल आकर भगवान भोले शंकर के दर्शन करते हैं.
वर्ष के सावन महिना के समय, प्रत्येक सोमवार को शिवभक्त श्रद्धालुगण, टिकारी के पंचदेवता स्थित मोरहर नदी घाट से नदी के जल भर कर टिकारी तक हर-हर महादेव के नारों से गूंज लगाते हुए यहां आ कर श्री 1008 श्री बुढ़वा महादेव जलाभिषेक करते हैं.
इस समय मंदिर परिसर में शिव भक्तों में श्रद्धा और उत्साह बना रहता हैं और पूरा मंदिर परिसर ओम् नमः शिवाय, हर हर महादेव और बोल बम के जयकार से गूंजता रहता हैं. इस मंदिर में शिवभक्तों की अपार भीड़ सुबह से ही जुटने लगती, जो देर रात तक लगी रहती हैं.
महा शिवरात्रि पर्व
सालभर में 12 शिवरात्रि व्रत किए जाते हैं लेकिन इनमें फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी महाशिवरात्रि पर्व बहुत विशेष है. महा शिवरात्रि पर्व के दिन मंदिर परिसर में शिव पार्वती विवाह बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है, उस दिन हज़ारों की संख्या में भक्त गण शिव-पार्वती के विवाह में सम्मिलित होने के लिए मंदिर परिसर में आते है, मेला लगता है, भंडारा होता है और सम्पूर्ण मंदिर परिसर भक्तिमय हो जाता है.
मंदिर का प्रबंधन –
करीब 40 वर्षों तक श्री बुढ़वा महादेव मंदिर प्रबंधन समिति में टिकारी शहर के श्री शीतला प्रसाद बाजपेयी, श्री दुर्गा प्रसाद बाजपेयी, श्री राजाराम प्रसाद, श्री शिवनंदन बेलदार, श्री रामनाथ ठठेरा और श्री हीरालाल विश्वकर्मा थे.
श्री बुढ़वा महादेव मंदिर के पुजारी के रूप में हीरालाल विश्वकर्मा बहुत दिनों तक थे.
मंदिर के न्यास कमेटी -
आज के समय श्री 1008 बुढ़वा महादेव मंदिर की देखरेख और संचालन का कार्य मंदिर के न्यास कमेटी द्वारा होता है.
श्री बुढ़वा महादेव मंदिर का रख रखाव और विकास कार्य सही ढंग से नहीं हो पाया है.
धार्मिक और पर्यटन स्थल -
मंदिर को प्रसिद्ध, धार्मिक और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का पर्याप्त साक्ष्य है पर इस दिशा में प्रशासन तथा जनप्रतिनिधियों का ध्यान नगण्य है.
मंदिर के प्रागण में विवाह भवन -
इस मंदिर के प्रागण में दक्षिण के तरफ सुंदर विवाह भवन बनाया गया है, जहाँ मांगलिक मुहर्त में वैवाहिक कार्यक्रम होते रहते है. जहाँ तिलक से लेकर हल्दी, लग्न, मंडप व विवाह सभी रस्म कार्य एक ही दिन में सम्पन्न होने के कारण, इसकी मंदिर की लोकप्रियता आज भी बरकरार है.
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रजनीश वाजपेयी
वाजपेयी भवन
टिकारी, गया
9334449998
मंगलवार, 19 सितंबर 2023
प्राचीन सभ्यताओं का इतिहास / डॉक्टर शत्रुघ्न दांगी
मानव पहले असभ्य था। वह जंगलों में रहता था और फिर पहाड़ों की कंदराओं, गुफाओं में रहकर पशुओं का शिकार कर कंद,मूल खाते हुए जीवन व्यतीत करता था। धीरे-धीरे उसकी आवश्यकताएं बढ़ी। वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नदी घाटियों में जाकर रहना आरंभ किया और कृषि को मूल आधार बनाया। साथ ही नदी की महिमा को समझा और उसे “माता” मानकर अपनी सभ्यता को विकसित किया।
यही कारण है कि प्रायः सभी प्राचीन सभ्यताएं नदी की घाटी में ही पनपी। नील नदी घाटी में मिश्र की सभ्यता, सिंधु नदी घाटी में मोहनजोदड़ो-हड़प्पा की सभ्यता,दजला-फरात घाटी में असीरिया, बाबूलोनिया, मेसोपोटामिया आदि की सभ्यता, ह्वांगहो,यांगटिसिक्यांग नदी घाटी में चीन की सभ्यता इसके उदाहरण है।
मिश्र की नील नदी पहाड़ों को रास्ते में नहीं काटने के कारण महाप्रपात बंद कर नीचे उतरती है और धीरे-धीरे काली मिट्टी की बेसिन बनाती है, जो अत्यधिक उपजाऊ है। इसके दोनों ओर लीबिया का विशाल रेगिस्तान है। इसी पट्टी में मिस्र की सभ्यता का विकास हुआ। यह मिस्र का दक्षिणी भाग है।
उत्तरी भाग जहां यह नदी भूमध्य सागर में गिरती है, उस मुहाने पर वह जहां प्रतिवर्ष मिट्टी छोड़ती है, वहां एक चौड़ी पट्टी में बस्ती बस गई ,जहां सभ्यता का विकास हुआ। दोनों को मिलाकर कुल 1100 किलोमीटर क्षेत्र में करीब यह सभ्यता विकसित हुई। इसी कारण इसे “नील नदी का वरदान” भी कहते हैं।
दजला नदी के ऊपरी किनारे के प्रदेश जो आज ईरान का एक भाग है, पहले वह “असीरिया” कहा जाता था। यहां एक उपजाऊ भाग था, जो पहाड़ों पर बीच में स्थित है। उत्तर की ओर के व्यापार का यही मार्ग था। इसलिए अधिकारों को लेकर यहां हमेशा युद्ध होते रहे।
बाबुलोनिया से 300 मील उत्तर दजला नदी के दोनों किनारों पर स्थित चिर पुरातन ‘आसुर’ नाम का एक नगर था,जो बाबुलोनियों के ही अधीन था। पड़ोसी पहाड़ी बर्बर जातियों के आक्रमण ने यहां के होने वाले सभी राजाओं को नृशंस बना दिया। फिर भी हिंदू संस्कृति के प्रति ये हमेशा उदार रहे। सामाजिक क्षेत्र में पर्दा प्रथा का सर्वप्रथम प्रचलन करने का श्रेय असिरियनों की ही है।अशुर बेनिपाल जैसे महान् विजेता ने सभ्यता की रक्षा के लिए पुराने मंदिरों और महलों की मरम्मत करवायी। उसने ‘निनवेह’ नामक नगर को दुल्हन की तरह सजाया।
लिपिकारों की लंबी जामात इकट्ठा कर महत्वपूर्ण सुमेरियन एवं बाबुलोनियन साहित्य की नकल करवायी।उसने ‘निनवेह’ में उसे रखने के लिए एक विशाल “पुस्तकालय” की स्थापना करवाई, जो उत्खनन से वहां 30,000 साहित्यिक कृतियां सुरक्षित मिली हैं। इसी प्रकार अन्य सभ्यताओं में मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता है,जो लगभग 6000 वर्ष पुरानी मानव सभ्यता का दक्षिण- पश्चिम एशिया का केंद्र बना रहा। यह सभ्यता दजला-फरात घाटी की सभ्यता थी। इसी घाटी की सभ्यता में सुमेरिया (प्राग्- ऐतिहासिक) चौल्डिया और बाबुलोनियां की सभ्यताएं आती हैं। बाबुलोनिया मेसोपोटामिया की सबसे प्रसिद्ध शहर था। यहां की सभ्यता अति विकसित थी।
एशिया माइनर जो आज “टर्की” कहलाता है वह यूनानी भाषा में ‘अनातोलिया’ कहा जाता था। यहां की शक्तिशाली “हित्ती” जाति ने एक विकसित सभ्यता का जन्म दिया। फिलिस्तीन यहूदियों का मूल देश था। वहां दक्षिण- पश्चिम भाग में अर्द्ध चंद्राकार उर्वर भूमि है, इसे “जुडिया” कहते थे। यहां अनेक सभ्यताओं का उदय हुआ, उनमें फिनिशियन, एजियन आदि मुख्य हैं। यहूदियों के पहले यहां फिनिशियानों का राज्य था। उन दिनों यह अत्यंत उपजाऊ प्रदेश था। इस कारण यह “दूध और मधु” का देश ‘बाईबिल’ में कहा गया है।
यूनान की सभ्यता- ग्रीस की गरिमा को बढ़ाती है। यह विश्व की गौरव पूर्ण प्राचीन सभ्यता थी। यह आज भी अपनी भौगोलिक सीमाओं में वैसा ही है, जैसे पहले थी। यह लघु प्रायद्वीप एजियन सागर, भूमध्य सागर और एड्रियाटिक सागर से घिरा है। जिसके कारण यह लघु एशिया, अफ्रीका तथा इटली-सिसली से अलग है। इसके भीतर के पहाड़ी और खाड़ियों ने इसे कई भागों में बांटा है, उनमें से बहुत भाग छोटे-छोटे राज्यों में स्थित हैं।
भाषा के आधार पर ‘यूनानी’ आर्य जाति के माने जाते हैं। कुछ लोगों ने इन्हें आर्य और अनार्य का मिश्रण बताया है। इनकी सभ्यता के बारे में तीन मुख्य मान्यताएं हैं। पहला मिस्र की सभ्यता से इनका उदय हुआ, दूसरा एजियन की सभ्यता से प्रभावित रहे तथा तीसरा फिनिशियनों की सभ्यता से इनका संबंध रहा। इसी कारण यूनानी सभ्यता के बारे में कहा जाता है कि इस सभ्यता का श्रोत एक नहीं बल्कि अनेक का सम्मिश्रण था। यूनान पर इजियनों का सदा विशेष प्रभाव बना रहा। बाद में यूनान दो भागों में बंट गया।
एक पूर्वी यूनान- जिसका केंद्र “एथेंस” तथा ‘एशिया माइनर’ के नगर रहे, वहीं पश्चिमी यूनान- का केंद्र ‘स्पार्टा’ बना। उनके विकास के दो प्रमुख काल माने जाते हैं- पहला पूर्व ऐतिहासिक काल तथा दूसरा ऐतिहासिक काल। पूर्व ऐतिहासिक काल को ‘होमर काल’ भी कहते हैं। दूसरा काल इनका गौरवपूर्ण माना गया है, जिसे ‘परीक्लीज-युगीन सभ्यता’ कहा जाता है। “एथेंस” के शासनकाल में यहां के सभी नगर राज्यों ने एक में मिलकर एक अत्यंत विकसित सभ्यता को जन्म दिया। इसलिए यह यूनान का सर्वाधिक गौरवपूर्ण युग माना गया है। इसे अंग्रेजी में “क्लासिकल एज” एवं हिन्दी में “गौरवपूर्ण युग” कहते हैं।
‘रोमिलस’ नामक एक व्यक्ति ने 753 ईसापूर्व में इटली नगर की स्थापना की। इसे’टाइबर’ नामक नदी के पूर्वी तट पर एक पहाड़ी के ऊपर लैटिन जाति के लोगों द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से की गई थी। इसका विस्तार उससे सटे सात पहाड़ियों पर भी हो गया। इसी से इसे “सात पहाड़ियों का नगर” भी कहते हैं। उसने संपूर्ण इटली पर अधिकार कर लिया। फिर उसने विभिन्न देशों को भी अपने साम्राज्य में मिला लिया। इसतरह रोम का साम्राज्य विशाल हो गया। रोम के मूल निवासी आर्य जाति के लैटिन और सबाईन थे। पीछे एक अनार्य सुसंस्कृत विदेशी इटली के एट्रट्रिया प्रदेश में प्रवेश किया। तब इन्हीं के समय से रोम का इतिहास प्रारंभ माना जाता है।
पुरातात्विक उत्खनन से इस जाति की उन्नत कलाएं उभर कर सामने आयी हैं। रोम में गणतंत्र के पतन के बाद “जुलियस सीजर” रोम का बेताज बादशाह बना। वह रोमन गणतंत्र का आजीवन डिक्टेटर चुना गया। उसने 10 वर्षों के लिए कौन्सिल बनाई और रोम के शासन के सारे अधिकार उसी में केंद्रित कर दिए। उसने फ्रांस के गाल, जर्मनी और ब्रिटेन को जीतकर अपने राज्य को बढ़ाया। स्पेन को भी युद्ध में जीता। विजय उत्सव मनाने पर सीनेट ने इसका विरोध किया।
“आगस्टस” सीजर का भतीजा मनोनीत उत्तराधिकारी बना। उसने अति कुशलता पूर्वक कार्य किया। आगस्टस की मृत्यु के बाद ‘टिबेरियस’ गद्दी पर बैठा। किन्तु वह “ईसा-मसीह” की हत्या से कलंकित था। उसके बाद टिटस जो 27 वर्षों तक राज किया जेरूसलम को ध्वस्त किया। ‘आगस्टस’ के बाद “ईसाई-धर्म” रोम में प्रवेश किया। पर वह रोम के राजाओं के देवी स्वरूप को नहीं माना। यह अहिंसावादी धर्म था, जिससे ईसाई मतालंबी सेना में भर्ती होने से अपने को अलग रखा।
आगस्टस की सबसे बड़ी रुचि स्थापत्य कला में थी। उसने पुराने मंदिरों का जिर्णोद्धार किया। नये मंदिर बनवाए। उसके बनवाएं मार्स, अपोलो और जुपिटर के मंदिर विशेष उल्लेखनीय है। उसने अपने काल में दो विशाल थिएटर बनवाए एक “मैक्रिस्मस”- जिसमें 2,25000 और दूसरे कोलोसियम- जिसमें 65000 दर्शकों के बैठने का स्थान था। इसके काल में सार्वजनिक कला का अधिक विकास हुआ। चिकित्सालय, पुस्तकालय, नहरें, नाट्यशाला आदि बनवाई। आगस्टस के बाद गिरजाघर बने- उनमें “सेंट सोफिया” और “सेंट पॉल” गिरजाघर विशेष प्रसिद्ध है।
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Dr शत्रुधन दांगी
राज्यपाल बिहार पुरातत्व निदेशालय
निदेशक से प्रशंसित एवं प्रशस्ति प्राप्त
इतिहासकार तथा पुरातत्व वेत्ता
लाव, टिकारी, गया, बिहार।
824236
महाराजा मित्रजित सिंह की बेगम अल्ला ज़िल्लाई
महाराजा मित्रजित सिंह के मुस्लिम पत्नी अल्ला ज़िल्लाई उर्फ़ बरसाती बेगम, एक बेहद सुंदर ईरानी पर्शियन महिला थी,
पर्शियन महिला के बारें --
वैसे तो दुनिया की सारी महिलाएं बेहद खुबसूरत होती है लेकिन कुछ देश की महिलाओं को कुछ अलग तरह का खूबसूरत कहा जाता है. इसी तरह ईरान की महिलाओं को दुनियां की खुबसूरत महिलाओं में एक कहा जाता है. उनकी खुबसूरती को ईरान की भौगोलिक और आनुवंशिक स्थिति को बताया जाता है. ईरान की ज्यादातर महिलाएं आरामदायक ज़िन्दगी जीती हैं. वह चाहे नेत्री, अभिनेत्री या फिर कोई साधारण महिला हो, उनकी जीवनशैली दुनिया के बाकी महिलाओं से थोड़ी अलग होती है. वह अपना शारीरिक बनावट सही रखने के लिए हर कोशिश करती रहती हैं.
हालांकि कहा यह भी जाता है कि पर्शियन महिला की खूबसूरती उनके जन्म से जुड़ी होती है. उनकी चर्म बचपन से ही बहुत तीखा और चमकदार होती है. उनकी चमकदार चर्म पर उनकी आंखें बहुत ही खूबसूरत दिखती हैं. इन महिलाओं का सुंदरता का अपना ही एक मुकाम है. पर्शियन महिलाएं अपने बालों की भी प्राकृतिक तरीके से देखभाल करती है. ईरान की महिला, जब घर से बाहर जाती है तो खुद को पूरी तरह से हिजाब से ढक लेती है. ईरान में महिला को पहनने में हिजाब प्रचलन है. हिजाब से उनका पूरा शरीर ढका होता है, लेकिन चेहरा दिखना चाहिए. ईरानी महिलाएं काला रंग का ही परिधान ज्यादा पहनती हैं. वे चटख रंग भी खूब ओढ़ती-पहनती हैं. औरतें सामाजिक रीती का पालन करती हैं, लेकिन इन हदों में रहकर अपने हुस्न का जश्न मनाया करती है.
अल्ला ज़िल्लाई उर्फ़ बरसाती बेगम के बारें में --
आम ईरानी महिलाओं के तरह, अल्ला ज़िल्लाई भी दिखने में बेहद ख़ूबसूरत, लम्बी कद काठी, गोरी पर्शियन महिला थी. उनकी सुन्दरता ने सभी मानकों को तोड़ दिया था.
अल्ला ज़िल्लाई के पूर्वज ईरान देश की रहने वाले थे. ईरान में उनकी परिवार की आर्थिक दशा ठीक नहीं रहने के कारण, पूरा परिवार ईरान देश को छोड़कर कश्मीर में आ कर बस गया था.
कुछ दिन बाद उनमें से कुछ लोग लखनऊ चले आये और अवध के दरबार में नौकरी करने लगे. इनकी मां अवध के नवाब के राज दरबार में मुख्य राज नर्तकी थी.
सन १७६४ में टिकारी राज का प्रांतीय मुख्यालय कुछ दिन के लिए अवध, लखनऊ, उत्तर प्रदेश था.
सन १७६५ में बक्सर युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मुग़ल शासन पर जीत के बाद टिकारी राज का प्रांतीय मुख्खालय बंगाल प्रान्त से हट कर अवध प्रान्त में हो गया था. उस समय टिकारी राज का प्रांतीय मुख्खालय अवध, लखनऊ होता था.
टिकारी राज के राजा को समय समय पर कार्यवश या औपचारिकतावश समय समय पर प्रांतीय मुख्खालय लखनऊ में जा कर अवध के नवाब से मिलना होता था.
महाराजा मित्रजित सिंह -----
महाराजा मित्रजित सिंह का कद ७ फीट लम्बा, अच्छे कद काठी, गोरा व्यक्तित्व के थे. वे देखने में बेहद खूबसूरत थे, एक अच्छे लेखक और कवि भी थी.
वे पर्शियन भाषा के बहुत अच्छे जानकार थे, उन्होंने साहित्य पर विशेष ध्यान देते हुये उसके विकाश के लिए काफी कार्य किया. उन्होंने अपने राज के लेखक और कवि को प्रोत्साहित किया और उन्हें समय पर पुरुस्कृत किया.
मित्रजित सिंह को संगीत क्षेत्र में काफी रूचि थी. उन्होंने ने इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए गायक, कवि, गीतकार को प्रोत्साहिक किया और समय समय उन लोगों को इनाम भी दिया. उनलोगों के लिए संगीत सभाएं आयोजित करवाते थे.
इन्होने कृषि पर एक पुस्तक भी लिखी थी "कृषि शास्त्रंम" जो उस ज़माने में काफी लोकप्रिय हुई थी. उन्होंने अपने राज्य में कृषि के विकाश के लिए कई परियोजना शुरू की थी जो उस ज़माने में काफी सफल और लोकप्रिय हुआ था.
महाराजा मित्रजित सिंह के समय, टिकारी राज का आमदनी १ करोड़ सालाना थी. अंग्रेज के ईस्ट इंडिया कंपनी उनके सम्पन्नता पर बहुत ईष्या करती थी. उसने इनके राज को काट-काट कर छोटा करना शुरू कर दिया था. बहुत से छोटे छोटे स्टेट बना कर, उस स्टेट को टिकारी राज से उसको अलग कर दिया था.
महाराजा मित्रजित सिंह ने पटना के बांकीपुर के ज्यादातर मकान और दुकान को खरीद लिया था. पटना के छाज्जुबाग में काफी ज़मीन थी.
मित्रजित सिंह ने औरंगाबाद के कुछ गाँव को टिकारी राज से काट कर अल्लाह ज़िल्लाई से उत्पन्न अपने प्रिय पुत्र खान बहादुर खान को देकर एक अलग स्टेट बनाया दिया था. बाद में राजा खान बहादुर खान के मरने के बाद, यह औरंगाबाद स्टेट अँगरेज़ ने ले लिया था.
अल्ला ज़िल्लाई से भेट ---
कहा जाता है की एक बार महाराजा मित्रजित सिंह अवध के नवाब के दरबार में उनसे मिलने के लिय गए हुए थे. उसी समय अल्ला ज़िल्लाई भी अपनी माँ के साथ राज दरबार में आई हुयी थी. अल्ला ज़िल्लाई पर नज़र पड़ते ही महाराजा मित्रजित सिंह मंत्रमुग्ध हो गए और उसे अपनी दूसरी पत्नी बनाने के लिय, मन बना लिए थे.
उनकी खुबसूरती पर महाराजा मित्रजित फ़िदा हो गए, वह उसकी माँ के पास विवाह करने के प्रस्ताव भेजे, जिसे उसकी माँ ने ससहर्ष तैयार हो गयी थी.
कहा जाता है की उनको भी महाराजा मित्रजित सिंह पसंद आ गए थे. इसलिए दोनों के तरफ से रिश्ता को स्वीकार करने में किसी तरह का परेशानी और देर नहीं हुई.
महाराजा मित्रजित सिंह ने उनसे विवाह कर उसे अपने दूसरी पत्नी बना कर टिकारी राज लेते आये. उस समय राजा की दूसरी पत्नि को उप रानी भी कहते थे.
महाराजा मित्रजित सिंह ने उनके रहने के लिए मुख्य महल के दक्षिण - पश्चिम के कोना से कुछ दूर पर एक छोटा महल बनवाया था. यह वर्तमान में खंडहर के रूप में मौजूद है और अब इसे मुनि राजा के किला भी कहा जाता है. महाराजा के विद्वान पुत्र खान बहादुर खान को मुनि राजा भी कहा जाता था.
महाराजा मित्रजित सिंह ने पारंपरिक, व्यवहारिक एवं पारिवारिक परेशानियों से बचने के लिय उनके लिए अलग छोटा सा महल बनवाया था. इस महल के खाना पीना, रहन सहन, कर्मचारी, सुरक्षा पहरी, दैनिक कार्य में आने वाले जरुरत का चीजे, ये सब मुख्य महल से अलग था.
मित्रजित सिंह अपने पर्शियन पत्नी के प्रेम के ऐसे दीवाने थे की उनके साथ साथ रहते हुए पर्शियन भाषा के बहुत ही अच्छे जानकार हो गये थे. उन्होंने ने पर्शियन भाषा में पुस्तक भी लिखी थी.
उनके जीवन शैली, खान पान, बातचित, पहनावा और व्यवहार टिकारी राज के अन्य स्त्रियों से एकदम अलग था. कहीं से उनलोगों में सामंजस्य होने का सवाल ही नहीं था. उनकी धर्म उनलोगों के दूरियों को और बढ़ा दिया था. इसलिए मित्रजित सिंह ने उनके लिए छोटा महल का निर्माण करवाना उचित समझा था.
कहा जाता है की उनको संगीत में खास रूचि थी विशेष कर गायन शैली में. वह अच्छी गाती थी.
कहा जाता है की वे शिक्षित और अच्छी तहजीब वाली घरेलु महिला थी. वह हिंदी, उर्दू, पर्शियन भाषा के अच्छी जानकार थी.
कहा जाता है की उनमें दूसरों की इज्जत करना, प्यार से बात करना और सच का साथ देना आदि ऐसे बहुत से गुण थे जिसमें त्याग, ममता, बड़ों का आदर, आत्म सम्मान, सहन शक्ति गुण समाएं हुए थी.
वे टिकारी राज के पारिवारिक सदस्यों सबको को सामान इज्ज़त देती थी. राज के लोगों और कर्मचारियों को आदर और सम्मान देती थी. वह प्रायः ईरान के परिधान हिजाब में रहा करती थी.
कहा जाता है की वह एक धर्म परायण महिला थी, इनका अधिकांश समय धार्मिक कार्य में लगा होता था.
महाराजा मित्रजित सिंह के द्वारा उनको राज दरबार या किसी समारोह, सार्वजनिक कार्यक्रम में जाने से रोक था. उन्हें प्रमुख सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन में जगह जाने / भाग लेने के लिए महाराजा से पहले अनुमति लेनी पड़ती थी.
कहा यह भी जाता है की इनकी एक मात्र पुत्र राजा खान बहादुर खान भी अपनी माँ के तरह धार्मिक विचार के थे.
वे अपने पुत्र के पढाई पर बहुत ध्यान देती थी. उनको पढ़ने के लिए दूर दूर से खोज कर हर भाषा के जानकार और विद्वान लोग को राज में बसाया गया था. पुत्र को अच्छा तालीम दिलवाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ा.
अल्ला ज़िल्लाई के पुत्र राजा खान बहादुर उर्फ़ मुनि राजा बहुत ही प्रतिभावान थे. इनका अधिकतर समय पठन-पाठन में गुज़रता था. हिंदी, संस्कृत, उर्दू और फारसी के अच्छे ज्ञाता थे.
कहा जाता है की महाराजा मित्रजित सिंह उनको बहुत मानते थे. उनकी हर जरूरते को हर समय, ध्यान देते हुए पूरा करते थे. महाराजा मित्रजित सिंह उनके पुत्र खान बहादुर खान को बहुत मानते थे उसे अपने तरह लेखक, कवि और शायर बनाना चाहते थे.
कहा जाता है है की महाराजा मित्रजित सिंह अपनी दूसरी पत्नि अल्ला ज़िल्लाई के साथ छज्जुबाग, पटना में विशाल परिसर वाला बंगला में अधिकतर समय निवास करते थे.
छज्जुबाग का इलाका टिकारी राज का था. यह कई एकड़ में फैला हुआ था. उसमें से एक बड़ा भू भाग, सन १८५७ में उनके बड़े पुत्र महाराजा हितनारायण सिंह ने, अपने स्कॉटिश पत्नी के साथ पटना प्रवास के समय, एक अंगरेज जॉन एलेग्जेंडर बोयलार्ड के हाथ से बेच दी थी.
उस अंगरेज जॉन एलेग्जेंडर बोयलार्ड की पत्नी मर चुकी थी. उसने उस भू- भाग को अपनी पत्नि के यादगार में ख़रीदा और एक बगीचा के रूप में विकसित करके, उसे छज्जुबाग के नाम से नामकरण कर दिया.
आजादी के समय उस अँगरेज़ को यहाँ से जाने के बाद उसके सम्पति पर बिहार सरकार का कब्ज़ा हैं. आज के समय उस ज़मीन पर बिहार सरकार के बंगला और फ्लैट बने हुए हैं.
अल्ला ज़िल्लाई से एक पुत्र हुए थे.
राजा खान बहादुर खान उर्फ़ मुनि राजा - महाराजा मित्रजित सिंह और अल्ला ज़िल्लाई के लड़के थे. इन्हें टिकारी राज परिवार का विद्वान सदस्य कहा गया है.
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गौतम गंभीर की नजर में धोनी
गौतम गंभीर ने कहा है कि धोनी नंबर 3 पर खेलकर खूब रन बनाते, पर उन्होंने ट्रॉफी जीतने के चक्कर में अपने रनों की कुर्बानी दे दी। उन्हें लगातार नंबर तीन पर खेलना चाहिए था, लेकिन धोनी निचले क्रम में चले गए। गौतम गंभीर ने यह बयान पाकिस्तान और श्रीलंका के बीच एशिया कप के सुपर 4 मुकाबले के दौरान दिया। गंभीर ने इस दौरान बताया कि वह धोनी से पहली बार देवधर ट्रॉफी के ईस्ट जोन बनाम वेस्ट जोन के मैच के दौरान मिले थे। गौतम ने कहा कि उस मुकाबले में धोनी फर्स्ट डाउन बल्लेबाजी करने आए थे और उन्होंने 40 रन बनाए थे। वह पारी देखकर गौती को लगा था कि माही में काबिलियत है। हालांकि गौतम गंभीर ने कहा कि उन्हें महेंद्र सिंह धोनी के असली टैलेंट का आईडिया नैरोबी में हुआ था।
नैरोबी में साल 2004 में गौतम और माही एक साथ इंडिया ए के लिए खेलने गए थे। धोनी ने 23 साल की उम्र में नैरोबी की ट्राई सीरीज में नंबर 3 पर बल्लेबाजी करते हुए 2 शतक ठोके थे। साल भर के भीतर ही ODI डेब्यू करते हुए पाकिस्तान और श्रीलंका के खिलाफ ताबड़तोड़ शतक जड़कर लंबी जुल्फों वाले माही सबके फेवरेट बन गए। माही ने 5 अप्रैल 2005 को पाकिस्तान के खिलाफ फर्स्ट डाउन खेलते हुए 123 गेंद पर 15 चौकों और 4 छक्कों की मदद से 148 रन ठोके थे। श्रीलंका के खिलाफ जयपुर वनडे में 31 अक्टूबर 2005 को फर्स्ट डाउन बल्लेबाजी करते हुए धोनी ने 145 गेंद पर 15 चौकों और 10 छक्कों के साथ 183* रन बनाए थे। इस वक्त लगा था कि धोनी से बेहतर बल्लेबाज भारत को फर्स्ट डाउन खेलने के लिए दूसरा कोई नहीं मिल सकता। हालांकि बाद में माही बतौर टॉप ऑर्डर बल्लेबाज नहीं बल्कि बतौर फिनिशर खेलने लगे।
गौतम गंभीर ने कहा कि अगर महेंद्र सिंह धोनी भारत के लिए नंबर 3 पर लंबे अरसे तक खेलते, तो उनके नाम के आगे काफी रन जुड़े होते। लेकिन धोनी ने सिर्फ ट्रॉफी जीतने के लिए वो रन कुर्बान कर दिए। दरअसल धोनी ने बतौर कप्तान 14 दिसंबर 2007 को अपना पहला मैच खेला था। 16 साल बाद इसी अवसर पर गौतम गंभीर से माही की कप्तानी और बल्लेबाजी को लेकर सवाल किया गया था। धोनी ने 350 वनडे मुकाबले की 297 पारियों में 50.57 की एवरेज और 87.56 की स्ट्राइक रेट से 10773 रन बनाए। धोनी ने नंबर तीन पर भारत के लिए 30 वनडे पारियां खेलीं, जहां उन्होंने 82.75 की औसत और 99.70 की स्ट्राइक रेट से 993 रन बनाए। इस दौरान माही ने 6 अर्धशतक और 2 शतक लगाए। धोनी का सर्वाधिक स्कोर 183* रहा और वह 4 बार नाबाद लौटे।
धोनी ने ज्यादातर भारत के लिए वनडे में नंबर 6 पर बल्लेबाजी की। इस पोजीशन पर माही ने 129 पारियों में 4164 रन बनाए। धोनी का औसत 47.32 और स्ट्राइक रेट 83.82 रहा। नंबर 6 पर खेलते हुए धोनी के बल्ले से 30 अर्धशतक और 1 शतक आया। इस पोजीशन पर धोनी 41 बार नॉट आउट लौटे। इसके अलावा नंबर 5 पर खेलते हुए धोनी ने 83 ODI पारियों में 50.30 की औसत और 83.16 की स्ट्राइक रेट से 3169 रन बनाए। यहां माही ने 18 अर्धशतक और 4 शतक आए। नंबर 5 पर खेलते हुए धोनी 20 बार नाबाद वापस आए। हालांकि धोनी ODI में नंबर 3 के अलावा किसी भी पोजीशन पर 80 से ज्यादा की एवरेज हासिल नहीं कर सके। यह सवाल लंबे अरसे से क्रिकेट प्रेमियों को परेशान करता रहा है कि अगर महेंद्र सिंह धोनी ने पूरे ODI करियर में भारत के लिए सिर्फ नंबर 3 पर बल्लेबाजी की होती, तो वह कितने रन बनाते? Lekhanbaji को बताएं कि आपके हिसाब से धोनी ने नंबर 3 पर लंबे वक्त तक ना खेलकर सही किया या गलत? 🌻
सोमवार, 18 सितंबर 2023
हरतालिका तीज" / कृष्ण मेहता
. "
दिनांक 18.09.2023 दिन सोमवार तदनन्तर संवत २०८० भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की है।
भाद्रपद की शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को हस्त नक्षत्र में कुमारी तथा सौभाग्यवती स्त्रियाँ पति सुख को प्राप्त करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। इस व्रत को तीज, हरितालिका तीज, अखंड सौभाग्यवती व्रत इत्यादि के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को करने से स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्यवती का वरदान तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महत्व
यह व्रत वास्तव में “सत्यम शिवम् सुंदरम” के प्रति आस्था और प्रेम का त्यौहार है, कहा जाता है की इसी दिन शिव और माँ पार्वती का पुनर्मिलन इसी दिन हुआ था। हरियाली तीज शिव-पार्वती के मिलन का दिन है। सुहागिनों द्वारा शिव-पार्वती जैसे सुखी पारिवारिक जीवन जीने की कामना का पर्व है।
वास्तव में हरतालिका तीज सुहागिनों का त्यौहार है लेकिन भारत के कुछ स्थानों में कुँवारी लड़कियाँ भी मनोनुकूल पति प्राप्त करने के लिए यह व्रत रखती हैं।
हरतालिका का अर्थ
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। यह एक ऐसा समय है, जब प्रकृति अपने पूरे यौवन पर होती है, सभी ओर हरियाली ही हरियाली होती है, इस हरियाली की सुन्दरता, मधुरता मोहकता को देखकर भला कौन नहीं मंत्रमुग्ध हो जाएगा। इस मौसम में नव नव शाखा नवकिसलय नवपल्लव एक दूसरे से स्पर्श कर अपने प्यार का इजहार करते है और मानव जीवन को भी मधुर मिलन का एहसास कराते है।
कहा जाता है कि माता पार्वती महादेव को अपना पति बनाना चाहती थी इसके लिए पार्वती ने कठिन तपस्या भी की इसी तपस्या के दौरान पार्वती की सहेलियाँ पार्वती का हरण अर्थात अगवा कर ली थी इसी कारण इस व्रत को हरतालिका तीज कहा जाता है। हरत शब्द हरण शब्द से बना है हरण का अर्थ होता है अपहरण करना तथा आलिका का अर्थ होता है सखी इसी कारण इस तीज व्रत को हरतालिका तीज कहा जाता है।
पूजन सामग्री
हरतालिका व्रत पूजा में निम्नलिखित सामग्री को एकदिन पूर्व ही इकट्ठा कर लेना चाहिए ताकि पूजा के समय किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो।
सामग्री: पंचामृत (घी, दही, शक्कर, दूध, शहद) दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर,चन्दन, अबीर, जनेऊ, वस्त्र, श्री फल, कलश, बैल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, अकाँव का फूल, तुलसी, मंजरी।
काली मिट्टी अथवा बालू रेत, केले का पत्ता, फल एवं फूल। माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामान जैसे - चूड़ी, बिछिया, बिंदी, कुमकुम, काजल, माहौर, मेहँदी, सिंदूर, कंघी, वस्त्र आदि लेनी चाहिए।
नियम विधि
यह व्रत तीन दिन का होता है प्रथम दिन व्रती नहाकर खाना खाती है जिसे नहा खा का दिन भी कहा जाता है तथा दूसरे दिन व्रती दिन भर उपवास रहकर संध्या समय में स्नान करके तथा शुद्ध वस्त्र धारण कर पार्वती तथा शिव की मिट्टी या रेत के प्रतिमा बनाकर गौरी-शंकर की पूजा करती है। तीसरे दिन व्रती अपना उपवास तोड़ती है तथा चढ़ाये गए पूजन सामग्री ब्राह्मण को देती है तथा पूजन में प्रयुक्त रेत मिट्टी आदि को जलप्रवाह करती है।
हरतालिका पूजा में शिव, पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा रेत, बालू या काली मिट्टी की अपने हाथों से बनानी चाहिए। रंगोली तथा फूल से सजाना चाहिए। चौकी पर एक सातिया बनाकर उस पर थाल रखे तथा उस थाल में केले के पत्ते को रखना चाहिए उसके बाद तीनो प्रतिमा को केले के पत्ते पर स्थापित करना चाहिए। उसके बाद कलश के उपर श्रीफल अथवा दीपक जलाना चाहिए। कलश के मुँह पर लाल धागा बाँधना चाहिए। घड़े पर सातिया बनाकर उसपर अक्षत चढ़ाये तत्पश्चात जल चढ़ाना चाहिए। फिर कुमकुम, हल्दी, चावल, पुष्प से कलश का पूजन करना चाहिए।
कलश पूजा के उपरान्त गणपति पूजा, उसके बाद शिव जी तथा बाद में माता गौरी की पूजा करनी चाहिए। पूजा के दौरान सुहाग की पिटारी में सुहाग की साड़ी रखकर पार्वती को चढ़ानी चाहिए तथा शिवजी को धोती और अंगोछा चढ़ाना चाहिए। पूरे विधि-विधान से पूजा करने के बाद हरतालिका व्रत की कथा पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।
कथा पढ़ने अथवा सुनने के बाद सर्वप्रथम गणेश जी कि आरती, फिर शिव जी की आरती तथा अंत में माता गौरी की आरती करनी चाहिए। आरती के बाद भगवान् की परिक्रमा। इस दिन रात भर जागकर गौरी शंकर की पूजा कीर्तन स्तुति इत्यादि करनी चाहिए।
दूसरे दिन प्रातः काल स्नान कर पूजा के बाद माता गौरी को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेना चाहिए। उसके बाद चढ़ाये हुए प्रसाद या हलवा या क्षेत्र विशेष के विधान के अनुसार अपना उपवास तोड़ना चाहिए। उसके बाद सुहाग की सामग्री को किसी ब्राह्मणी तथा धोती और अंगोछा ब्राह्मण को दे देना चाहिए।
व्रत की ध्यान योग्य बातें
01. जो स्त्री या कन्या इस व्रत को एक बार करता है उसे प्रत्येक वर्ष पूरे विधि-विधान के साथ करना चाहिए।
02. पूजा का खंडन किसी भी सूरत में नहीं करना चाहिए।
03. इस दिन नव वस्त्र ही पहनना चाहिए।
04. हरतालिका तीज पूजन मंदिर तथा घर दोनों स्थान में किया जा सकता है।
05. इस दिन अन्न, जल या फल नही खाना चाहिए।
माहात्म्य कथा
पार्वतीजी को पूर्व जन्म का स्मरण कराने के लिए महादेव शिव ने इस प्रकार कहा:-
"हे गौरी ! पर्वतराज हिमालय पर भागीरथी के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर कठिन तप किया था। इस दौरान तुमने अन्न का त्याग कर रखा था तथा केवल हवा तथा सूखे पत्ते चबाकर तपस्या की थी।
माघ की शीतलता में तुमने लगातार जल में प्रवेश कर तप किया था। वैशाख की तप्त गर्मी में पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मुसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न, जल ग्रहण किये व्यतीत किया। तुम्हारी इस तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दु:खी और नाराज रहते थे। एक दिन तुम्हारी तपस्या और पिता की नाराजगी को देखकर नारद जी तुम्हारे आये।
तुम्हारे पिता नारद जी आने का कारण पूछा तब नारद जी बोले, “हे गिरिराज ! मुझे भगवान विष्णु भेजा है। आपकी कन्या की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान उससे विवाह करना चाहते है। बताये आपकी इच्छा है।"
नारदजी की बात से पर्वतराज बहुत ही प्रसन्न होकर बोले, “श्रीमान ! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते है तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात् परब्रह्म है। यह तो सभी पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-संपत्ति से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने।"
नारदजी तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर विष्णुजी के पास गए और उन्हें विवाह तय होने का शुभ समाचार सुनाया। किन्तु जब तुम्हें इस शादी के सम्बन्ध में पता चला तो तुम बहुत दु:खी हुई। तुम्हें दु:खी देखकर तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तब तुम बोली, “मैंने सच्चे मन से भगवान शिव का वरण किया है, परन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है। मैं धर्मसंकट में हूँ। अब मेरे पास प्राण त्यागने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं बचा है।”
तुम्हारी सखी ने कहा, "प्राण त्यागने का यहाँ कोई कारण नहीं लगता। दुःख के समय धैर्य से काम लेना चाहिए। वास्तव में भारतीय नारी जीवन की सार्थकता इसी में है कि एक बार स्त्री जिसे पुरुष मन से पति रूप में वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त सच्चे मन तथा तन से निर्वहन करे। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के सामने तो भगवान भी असहाय हैं। मैं तुम्हें घने वन में ले चलती हूँ जो साधना स्थल भी है और जहाँ तुम्हारे पिता तुम्हें ढूंढ़ भी नहीं पायेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि भगवान् अवश्य ही तुम्हारी इच्छा की पूर्ति करेंगे।"
अपनी सखी के साथ तुम जंगल में चली गई। इधर तुम्हारे पिता तुम्हे घर में नहीं देखकर बड़े चिंतित और दु:खी हुए। वे सोचने लगे कि मैंने तो विष्णु जी से अपनी पुत्री का विवाह तय कर दिया हैं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गये और कन्या घर पर नहीं मिली तो बहुत ही अपमान होगा।
ऐसा विचार कर पिता ने तुम्हारी खोज शुरू करवा दी। तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर के गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगी।
भाद्रपद में शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि तथा हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया। रात भर मेरी स्तुति में गीत गाकर जागरण किया तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मैं शीघ्र ही प्रसन्न होकर तुम्हारे पास आ गया और तुमसे वर माँगने को कहा।
तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा, "मैं सच्चे मन से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ आये है तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिये। तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया प्रात: होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री नदी में प्रवाहित करके अपनी सखी सहित व्रत का वरण किया।
उसी समय गिरिराज अपने बंधु-बाँधवो के साथ तुम्हे ढूँढते हुए वहाँ पहुँचे। तुम्हारी मन तथा तन की दशा देखकर अत्यंत दु:खी हुए और तुम्हारी इस कठोर तपस्या का कारण पूछा। तब तुम बोली, "पिताजी मैंने अपने जीवन का अधिकांश वक्त कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का एकमात्र उद्देश्य महादेवजी को पति रूप में प्राप्त करना था। आज मैं अपनी तपस्या फल पा चुकी हूँ। आप मेरा विवाह विष्णुजी से करने का निश्चय किया इसलिए मैं अपने अराध्य महादेव शिवजी की तलाश में घर से चली गई। अब मैं इसी शर्त पर घर लौटूँगी की आप मेरा विवाह महादेव जी के साथ ही करेंगे।"
पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले आए। किंचित समय उपरांत उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ तुम्हारा विवाह मेरे साथ किया।"
महादेव शिव ने पुनः कहा, "हे पार्वती ! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी पूजा-अर्चना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरुप हम दोनों का विवाह संभव हो पाया। अतः इस व्रत का महत्त्व यही है कि जो स्त्री तथा कन्या पूरी निष्ठा के साथ व्रत करती है उसको मै मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ।
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ॐ नमः शिवाय
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श्रीमद्भगवद्गीता
"अत एव तू उठ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीत कर धन-धान्य से संपन्न राज्य को भोग। ये सब शूरवीर पहले से ही मेरे द्वारा मारे हुए हैं। हे सव्यसाचिन्! तू तो केवल निमित्त मात्र बन जा।।
द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह तथा जयद्रथ और कर्ण तथा और भी बहुत से मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीर योद्धाओं को तू मार।भय मत कर।नि:संदेह तू युद्ध में वैरियों को जीतेगा। इसलिए युद्ध कर।।
।। श्रीमद्भगवद्गीता ११।३३-३४।।
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भोक्ता,निमित्त कैसे हो सकता है?
वस्तुत:यह तो घटना है।होना है इसलिए अर्जुन को तो निमित्त भाव ही रखना है,न कि भोक्ताभाव।
सब कुछ पहले से परमात्मा का किया हुआ है।
एक अर्थ में सब कुछ गुणों द्वारा किया हुआ है।हर आदमी पूर्व संस्कारों से परिचालित है।
'भ्रामयन्सर्वभूतानि यंत्रारुढानि मायया।'
इसका अर्थ भूतकाल चला रहा है सबको।जैसे संस्कार वैसे कर्म,जैसे कर्म वैसे संस्कार।इस तरह भूतकाल की पुनरावृत्ति होती रहती है। तथाकथित भविष्य उसीका हिस्सा है। कोई कल क्या करेगा तो आज उसका स्वभाव देख लेना काफी है।वह कल भी यही करेगा।
महर्षि कहते हैं -सब कुछ पूर्व निश्चित है इसलिए अपने आप में रहो।'
स्व की तरह रहने का वे उपाय बताते हैं -अनुसंधान करो मैं कौन हूं?भीतर गहरे में उतरो और स्व की तरह रहो।यह ईश्वर है अस्तित्व की तरह।'
मैं कौन हूं पूछने वाला मस्तिष्क से उतरकर हृदय में आ जाता है।जो चित्त उच्चाटित होकर मन-बुद्धि में तनावपूर्ण हो रहा था वह हृदय में उतरकर परम आश्वस्त, विश्रामपूर्ण हो जाता है।
ऐसी स्थिति में कर्ता भोक्ताभाव की व्यग्रता हो नहीं सकती,केवल 'उपस्थिति' होती है और यह 'उपस्थिति' अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जहां सब लोग उद्विग्न,आतुर,भागे भागे हों वहां अपनी गहराई में जीनेवाला व्यक्ति अपनी उपस्थिति की छाप छोडेगा ही।चीजें सुधरने लगेंगी। अव्यवस्था, व्यवस्था में बदलने लगेगी।
कोई यह नहीं कह सकता कि उसका कर्म न करना व्यर्थ है, निरर्थक है। वहां और भी बडा कर्म हो रहा है, सर्वोच्च कर्म हो रहा है। कर्ता भोक्ता भाव तो क्षुद्र बना देता है।
सब कुछ पूर्व निश्चित है इसलिए अपने आपमें रहने की बात को पूरा समझना चाहिए।
जो अपने आपमें रहकर जिन सुपरिणामों का हेतु बन जाता है उन्हें पूर्वनिश्चित कहा जाता है मगर यह होता गणित की तरह साफ सुथरा। जो है सो है ,वह घड़ी घड़ी बदलता नहीं।
कोई कह सकता है कि हम अपने आपमें रहें,स्व में रहें,स्वस्थ रहें फिर भी परिस्थितियां नहीं बदली तो?
वह समझता नहीं कि वह क्या कह रहा है?
स्वस्थ आदमी परवाह नहीं करता परिस्थितियों की,वह अपनी परवाह करता है।
अखंडानंदजी जैसे समर्थ महापुरुष ने रमण महर्षि से पूछा-
'ध्यान किसका करें?'
महर्षि ने प्रतिप्रश्न किया-
'पूछ कौन रहा है?'
अखंडानंदजी ने कहा-
'जिज्ञासु।'
महर्षि ने कहा-'जिज्ञासु का ध्यान करो।'
इसका मतलब आपकी चाहे जो भी स्थिति हो।अगर आप क्रोधी हैं तो क्रोधी का ध्यान करें,न कि क्रोध दिलानेवाले व्यक्ति -घटना-परिस्थिति का।
अगर आप भयभीत हैं तो भयभीत का ध्यान करें, भयजनक से ध्यान बिल्कुल हटा लें।
ऐसा क्यों?
क्योंकि ग्रंथि ही समस्या है, उसीमें समाधान है।
मानस में कहा है-
'जड चेतनहि ग्रंथि परी गई।'
हम सब कौन हैं?
हम सब ग्रंथि रुप हैं और हमें सीधे अपने ग्रंथिरुप का ध्यान करना चाहिए।केवल अपने आपका,और किसीका भी नहीं।
और चीजें स्मरण में आती हैं तो कृष्ण अभ्यास तथा वैराग्य का उपाय बताते ही हैं।
कोई पूछ सकता है -अपने ग्रंथिरुप का ध्यान करने से क्या होगा?'
तो यह पूछने से नहीं, करने से पता चलेगा।
अहंकारी अपना ध्यान करे,क्रोधी अपना ध्यान करे, भयभीत,निराश,चिंतित व्यक्ति दृढ रहकर अपना ही ध्यान करे तो उसका ग्रंथिरुप अपने आप छिन्न-भिन्न होने लगेगा।
इस तरह खुद समस्या में समाधान है या समस्या खुद समाधान है-अपने आपसे बचते नहीं फिरते तो।
आदमी अपने आपसे ही तो बचता फिर रहा है झूठे कारणों पर दृष्टि जमाये रखकर।
काई के नीचे ही नदी का जल छिपा हुआ है। देखने वाले को काई ही दीख रही है इसलिए प्यास नहीं बुझ पा रही है।
देखने में रहस्य है।समझे तो सरल है समाधान।और इसकी विशेषता है जो व्यक्ति चाहे जितनी जटिल स्थिति में हो,चाहे जैसी प्रकृति विकृति को अनुभव करता हो वह सीधे स्वयं से शुरू कर सकता है।यह बहुत उपकारी और राहत देने वाला है।
कोई फ़िक्र नहीं।
अहंनिर्भरता, आत्मनिर्भरता का आंतरिक मार्ग प्रशस्त कर देती है।
नकारात्मक ही नहीं, सकारात्मक भी।साहसी साहसी खुद का ध्यान करे,गर्वीला खुद गर्वीले खुद का ध्यान करे।किसी और से तुलना तो करनी है नहीं,जो भी जैसा भी अनुभव होता हो स्वयं का ध्यान करे।
ज्यादातर लोग परेशान, तनावग्रस्त रहते हैं तो उन्हें चाहिए वे परेशान का ध्यान करें, तनावग्रस्त का ध्यान करें।
वह ग्रंथि है।उस पर डटे रहना है बिना दूर दूर भागे।
दूर दूर भागने से ही उसमें स्थित होना संभव नहीं हो पाता।
लेकिन परेशान व्यक्ति अगर उपस्थित रहकर परेशान खुद का ध्यान करे, उसमें टिके तो यह देखकर आश्चर्य होगा कि अपना परेशान रुप छिन्न-भिन्न होने लगा है।जिस अहंकार ने आत्मा को ढंक रखा था वह अहंकार तिरोहित होने लगा है।मैं की जगह स्व झलकने लगा है,स्व प्रकट होने लगा है जिससे स्थितप्रज्ञता ने अपना काम शुरू कर दिया है।
इसी पृथ्वी पर ऐसे अनेक स्व में स्थित महापुरुष हुए हैं।गीता का संदेश यही है-"स्वस्थ:।"
उसमें भोक्ताभाव तो है नहीं फिर वह स्वार्थ से प्रेरित कैसे हो सकता है,वह स्वार्थ पूर्ण कृत्य कैसे कर सकता है?
वह सिर्फ है।
प्रकृति अपना काम करती है।गुण एक दूसरे को प्रभावित करते रहते हैं जिससे परिस्थितियां निर्मित होती हैं, घटनाएं घटती हैं।
ऐसे में जो स्थितप्रज्ञ है वह निमित्त की तरह कार्य कर सकता है या तटस्थ साक्षी की तरह रह सकता है जिसका जैसा स्वभाव।
यहां ज्ञानी भी स्वभाव से चलता है मगर उसे उससे कोई आपत्ति नहीं होती।गुण गुणों में बरतते हैं और वह अलिप्त है।
गुरुवार, 7 सितंबर 2023
क्या बदला?
*मार्केट का चलन बदल गया है या फिर बिजनेस का तरीका...*
*कुछ समझ नहीं आ रहा है कि हो क्या रहा है ..*
*Restaurants* एकदम फुल हैं,
*Food Courts* खचाखच भरे हुए हैं,
*Bar* में पैर रखने की जगह नही है,
*Ola और Uber* की गाड़ियां खूब दिख रही हैं,
*Movie* हॉउसफुल जा रही हैं 100 200, 500 करोड़ कमा रही है,
*Sweet Shops* पर मानो लूट मची हो,
*Road* पर चलने की जगह नही है,
*Automobile* में रोज़ नई गाड़ियां लांच हो रही है,
*( हुंडई, Creta पिछले 1 साल में 4,50,000 बेची हैं )*
*AC और LED टीवी* रिकॉर्डतोड़ बिक रहे हैं,
*Gold और Silver, पेट्रोल* के दाम बढ़ने के बावजूद,, उनकी खपत में कहीं कमी नहीं आ रही|
*Train* में लंबी वेटिंग जा रही है,
*Zomato और Swiggy* वाले हर जगह हैं,
*newsPaper* विज्ञापनों से भरे पड़े हैं,
*TV में न्यूज़ से ज्यादा विज्ञापन* चल रहे हैं,
*Online शॉपिंग* धड़ाधड़ चल रही है,
एक से बढ़कर एक *Mobile* मार्केट में आ रहे हैं,
*Doctors* के पास खूब मरीज़ हैं,
*CA's* के पास लाइन लगी हुई है,
*Lawyers* के पास खूब केस आ रहे हैं,
*Flights* के टिकट भी आसानी से नहीं मिल रहे,
*Hotels और Resorts* बुक चल रहे हैं,
*Infra प्रोजेक्ट्स* तेजी से चल रहे हैं,
*Credit कार्ड* वाला रोज़ फ़ोन करता है,
*Data यूसेज* बढ़ता जा रहा है,
*Gym* भी भरे हुए हैं,
*Beauty Saloon's* का तो पूछो ही नहीं,
*Malls* में खूब चहल-पहल है,
*7th Pay* में केंद्रीय कर्मचारियों की बल्ले बल्ले है,
*Kitty Party* खूब चल रही हैं,
*jsg* जैसे ग्रुपो की संख्या बढ़ गयी है,
*EMI* पर खूब सामान खरीदा जा रहा है,
*Digital Transactions* रिकॉर्ड तोड़ बढ़ रहे हैं,
*Equity , MF*, में Investment आ रहा है,
रिकॉर्ड *GST* जमा किया है,
*Oil Import* दिनोदिन बढ़ रहा है,
रिकॉर्ड लोगों ने *Income Tax* जमा किया है,
लोग लाखों करोड़ों रुपए की चैरिटी कर रहे हैं|
*मंदी फील तो हो रही है पर किस टाइप की मंदी है, ये समझ नही आ रहा।*
😃😅😇😂😜
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