सोमवार, 18 सितंबर 2023

हरतालिका तीज" / कृष्ण मेहता

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दिनांक 18.09.2023 दिन सोमवार तदनन्तर संवत २०८० भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की है।


          भाद्रपद की शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को हस्त नक्षत्र में कुमारी तथा सौभाग्यवती स्त्रियाँ पति सुख को प्राप्त करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। इस व्रत को तीज, हरितालिका तीज, अखंड सौभाग्यवती व्रत इत्यादि के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को करने से स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्यवती का वरदान तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।


                                     महत्व


          यह व्रत वास्तव में “सत्यम शिवम् सुंदरम” के प्रति आस्था और प्रेम का त्यौहार है, कहा जाता है की इसी दिन शिव और माँ पार्वती का पुनर्मिलन इसी दिन हुआ था। हरियाली तीज शिव-पार्वती के मिलन का दिन है। सुहागिनों द्वारा शिव-पार्वती जैसे सुखी पारिवारिक जीवन जीने की कामना का पर्व है।

          वास्तव में हरतालिका तीज सुहागिनों का त्यौहार है लेकिन भारत के कुछ स्थानों में कुँवारी लड़कियाँ भी मनोनुकूल पति प्राप्त करने के लिए यह व्रत रखती हैं।


         

 हरतालिका का अर्थ


          भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। यह एक ऐसा समय है, जब प्रकृति अपने पूरे यौवन पर होती है, सभी ओर हरियाली ही हरियाली होती है, इस हरियाली की सुन्दरता, मधुरता मोहकता को देखकर भला कौन नहीं मंत्रमुग्ध हो जाएगा। इस मौसम में नव नव शाखा नवकिसलय नवपल्लव एक दूसरे से स्पर्श कर अपने प्यार का इजहार करते है और मानव जीवन को भी मधुर मिलन का एहसास कराते है।

          कहा जाता है कि माता पार्वती महादेव को अपना पति बनाना चाहती थी इसके लिए पार्वती ने कठिन तपस्या भी की इसी तपस्या के दौरान पार्वती की सहेलियाँ पार्वती का हरण अर्थात अगवा कर ली थी इसी कारण इस व्रत को हरतालिका तीज कहा जाता है। हरत शब्द हरण शब्द से बना है हरण का अर्थ होता है अपहरण करना तथा आलिका का अर्थ होता है सखी इसी कारण इस तीज व्रत को हरतालिका तीज कहा जाता है।


               

 पूजन सामग्री


          हरतालिका व्रत पूजा में निम्नलिखित सामग्री को एकदिन पूर्व ही इकट्ठा कर लेना चाहिए ताकि पूजा के समय किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो।

          सामग्री: पंचामृत (घी, दही, शक्कर, दूध, शहद) दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर,चन्दन, अबीर, जनेऊ, वस्त्र, श्री फल, कलश, बैल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, अकाँव का फूल, तुलसी, मंजरी।

          काली मिट्टी अथवा बालू रेत, केले का पत्ता, फल एवं फूल। माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामान जैसे - चूड़ी, बिछिया, बिंदी, कुमकुम, काजल, माहौर, मेहँदी, सिंदूर, कंघी, वस्त्र आदि लेनी चाहिए।


                              




नियम विधि


          यह व्रत तीन दिन का होता है प्रथम दिन व्रती नहाकर खाना खाती है जिसे नहा खा का दिन भी कहा जाता है तथा दूसरे दिन व्रती दिन भर उपवास रहकर संध्या समय में स्नान करके तथा शुद्ध वस्त्र धारण कर पार्वती तथा शिव की मिट्टी या रेत के प्रतिमा बनाकर गौरी-शंकर की पूजा करती है। तीसरे दिन व्रती अपना उपवास तोड़ती है तथा चढ़ाये गए पूजन सामग्री ब्राह्मण को देती है तथा पूजन में प्रयुक्त रेत मिट्टी आदि को जलप्रवाह करती है।

          हरतालिका पूजा में शिव, पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा रेत, बालू या काली मिट्टी की अपने हाथों से बनानी चाहिए। रंगोली तथा फूल से सजाना चाहिए। चौकी पर एक सातिया बनाकर उस पर थाल रखे तथा उस थाल में केले के पत्ते को रखना चाहिए उसके बाद तीनो प्रतिमा को केले के पत्ते पर स्थापित करना चाहिए। उसके बाद कलश के उपर श्रीफल अथवा दीपक जलाना चाहिए। कलश के मुँह पर लाल धागा बाँधना चाहिए। घड़े पर सातिया बनाकर उसपर अक्षत चढ़ाये तत्पश्चात जल चढ़ाना चाहिए। फिर कुमकुम, हल्दी, चावल, पुष्प से कलश का पूजन करना चाहिए।

          कलश पूजा के उपरान्त गणपति पूजा, उसके बाद शिव जी तथा बाद में माता गौरी की पूजा करनी चाहिए। पूजा के दौरान सुहाग की पिटारी में सुहाग की साड़ी रखकर पार्वती को चढ़ानी चाहिए तथा शिवजी को धोती और अंगोछा चढ़ाना चाहिए। पूरे विधि-विधान से पूजा करने के बाद हरतालिका व्रत की कथा पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।

          कथा पढ़ने अथवा सुनने के बाद सर्वप्रथम गणेश जी कि आरती, फिर शिव जी की आरती तथा अंत में माता गौरी की आरती करनी चाहिए। आरती के बाद भगवान् की परिक्रमा। इस दिन रात भर जागकर गौरी शंकर की पूजा कीर्तन स्तुति इत्यादि करनी चाहिए।

          दूसरे दिन प्रातः काल स्नान कर पूजा के बाद माता गौरी को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेना चाहिए। उसके बाद चढ़ाये हुए प्रसाद या हलवा या क्षेत्र विशेष के विधान के अनुसार अपना उपवास तोड़ना चाहिए। उसके बाद सुहाग की सामग्री को किसी ब्राह्मणी तथा धोती और अंगोछा ब्राह्मण को दे देना चाहिए।


      

व्रत की ध्यान योग्य बातें


01. जो स्त्री या कन्या इस व्रत को एक बार करता है उसे प्रत्येक वर्ष पूरे विधि-विधान के साथ करना चाहिए।

02. पूजा का खंडन किसी भी सूरत में नहीं करना चाहिए।

03. इस दिन नव वस्त्र ही पहनना चाहिए।

04. हरतालिका तीज पूजन मंदिर तथा घर दोनों स्थान में किया जा सकता है।

05. इस दिन अन्न, जल या फल नही खाना चाहिए।


                             



माहात्म्य कथा


          पार्वतीजी को पूर्व जन्म का स्मरण कराने के लिए महादेव शिव ने इस प्रकार कहा:-

          "हे गौरी ! पर्वतराज हिमालय पर भागीरथी के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर कठिन तप किया था। इस दौरान तुमने अन्न का त्याग कर रखा था तथा केवल हवा तथा सूखे पत्ते चबाकर तपस्या की थी।

          माघ की शीतलता में तुमने लगातार जल में प्रवेश कर तप किया था। वैशाख की तप्त गर्मी में पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मुसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न, जल ग्रहण किये व्यतीत किया। तुम्हारी इस तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दु:खी और नाराज रहते थे। एक दिन तुम्हारी तपस्या और पिता की नाराजगी को देखकर नारद जी तुम्हारे आये।

          तुम्हारे पिता नारद जी आने का कारण पूछा तब नारद जी बोले, “हे गिरिराज ! मुझे भगवान विष्णु भेजा है। आपकी कन्या की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान उससे विवाह करना चाहते है। बताये आपकी इच्छा है।"

          नारदजी की बात से पर्वतराज बहुत ही प्रसन्न होकर बोले, “श्रीमान ! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते है तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात् परब्रह्म है। यह तो सभी पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-संपत्ति से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने।"

          नारदजी तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर विष्णुजी के पास गए और उन्हें विवाह तय होने का शुभ समाचार सुनाया। किन्तु जब तुम्हें इस शादी के सम्बन्ध में पता चला तो तुम बहुत दु:खी हुई। तुम्हें दु:खी देखकर तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तब तुम बोली, “मैंने सच्चे मन से भगवान शिव का वरण किया है, परन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है। मैं धर्मसंकट में हूँ। अब मेरे पास प्राण त्यागने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं बचा है।”

          तुम्हारी सखी ने कहा, "प्राण त्यागने का यहाँ कोई कारण नहीं लगता। दुःख के समय धैर्य से काम लेना चाहिए। वास्तव में भारतीय नारी जीवन की सार्थकता इसी में है कि एक बार स्त्री जिसे पुरुष मन से पति रूप में वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त सच्चे मन तथा तन से निर्वहन करे। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के सामने तो भगवान भी असहाय हैं। मैं तुम्हें घने वन में ले चलती हूँ जो साधना स्थल भी है और जहाँ तुम्हारे पिता तुम्हें ढूंढ़ भी नहीं पायेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि भगवान् अवश्य ही तुम्हारी इच्छा की पूर्ति करेंगे।"

          अपनी सखी के साथ तुम जंगल में चली गई। इधर तुम्हारे पिता तुम्हे घर में नहीं देखकर बड़े चिंतित और दु:खी हुए। वे सोचने लगे कि मैंने तो विष्णु जी से अपनी पुत्री का विवाह तय कर दिया हैं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गये और कन्या घर पर नहीं मिली तो बहुत ही अपमान होगा।

          ऐसा विचार कर पिता ने तुम्हारी खोज शुरू करवा दी। तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर के गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगी।

          भाद्रपद में शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि तथा हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया। रात भर मेरी स्तुति में गीत गाकर जागरण किया तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मैं शीघ्र ही प्रसन्न होकर तुम्हारे पास आ गया और तुमसे वर माँगने को कहा।

          तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा, "मैं सच्चे मन से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ आये है तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिये। तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया प्रात: होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री नदी में प्रवाहित करके अपनी सखी सहित व्रत का वरण किया।

          उसी समय गिरिराज अपने बंधु-बाँधवो के साथ तुम्हे ढूँढते हुए वहाँ पहुँचे। तुम्हारी मन तथा तन की दशा देखकर अत्यंत दु:खी हुए और तुम्हारी इस कठोर तपस्या का कारण पूछा। तब तुम बोली, "पिताजी मैंने अपने जीवन का अधिकांश वक्त कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का एकमात्र उद्देश्य महादेवजी को पति रूप में प्राप्त करना था। आज मैं अपनी तपस्या फल पा चुकी हूँ। आप मेरा विवाह विष्णुजी से करने का निश्चय किया इसलिए मैं अपने अराध्य महादेव शिवजी की तलाश में घर से चली गई। अब मैं इसी शर्त पर घर लौटूँगी की आप मेरा विवाह महादेव जी के साथ ही करेंगे।"

          पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले आए। किंचित समय उपरांत उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ तुम्हारा विवाह मेरे साथ किया।"

          महादेव शिव ने पुनः कहा, "हे पार्वती ! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी पूजा-अर्चना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरुप हम दोनों का विवाह संभव हो पाया। अतः इस व्रत का महत्त्व यही है कि जो स्त्री तथा कन्या पूरी निष्ठा के साथ व्रत करती है उसको मै मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ।

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ॐ नमः शिवाय

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