मंगलवार, 19 सितंबर 2023

प्राचीन सभ्यताओं का इतिहास / डॉक्टर शत्रुघ्न दांगी

 


मानव पहले असभ्य था। वह जंगलों में रहता था और फिर पहाड़ों की कंदराओं, गुफाओं में रहकर पशुओं का शिकार कर कंद,मूल खाते हुए जीवन व्यतीत करता था। धीरे-धीरे उसकी आवश्यकताएं बढ़ी। वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नदी घाटियों में जाकर रहना आरंभ किया और कृषि को मूल आधार बनाया। साथ ही नदी की महिमा को समझा और उसे “माता” मानकर अपनी सभ्यता को विकसित किया।


यही कारण है कि प्रायः सभी प्राचीन सभ्यताएं नदी की घाटी में ही पनपी। नील नदी घाटी में मिश्र की सभ्यता, सिंधु नदी घाटी में मोहनजोदड़ो-हड़प्पा की सभ्यता,दजला-फरात घाटी में असीरिया, बाबूलोनिया, मेसोपोटामिया आदि की सभ्यता, ह्वांगहो,यांगटिसिक्यांग नदी घाटी में चीन की सभ्यता इसके उदाहरण है।


मिश्र की नील नदी पहाड़ों को रास्ते में नहीं काटने के कारण महाप्रपात बंद कर नीचे उतरती है और धीरे-धीरे काली मिट्टी की बेसिन बनाती है, जो अत्यधिक उपजाऊ है। इसके दोनों ओर लीबिया का विशाल रेगिस्तान है। इसी पट्टी में मिस्र की सभ्यता का विकास हुआ। यह मिस्र का दक्षिणी भाग है।


उत्तरी भाग जहां यह नदी भूमध्य सागर में गिरती है, उस मुहाने पर वह जहां प्रतिवर्ष मिट्टी छोड़ती है, वहां एक चौड़ी पट्टी में बस्ती बस गई ,जहां सभ्यता का विकास हुआ। दोनों को मिलाकर कुल 1100 किलोमीटर क्षेत्र में करीब यह सभ्यता विकसित हुई। इसी कारण इसे “नील नदी का वरदान” भी कहते हैं।


दजला नदी के ऊपरी किनारे के प्रदेश जो आज ईरान का एक भाग है, पहले वह “असीरिया” कहा जाता था। यहां एक उपजाऊ भाग था, जो पहाड़ों पर बीच में स्थित है। उत्तर की ओर के व्यापार का यही मार्ग था। इसलिए अधिकारों को लेकर यहां हमेशा युद्ध होते रहे।


बाबुलोनिया से 300 मील उत्तर दजला नदी के दोनों किनारों पर स्थित चिर पुरातन ‘आसुर’ नाम का एक नगर था,जो बाबुलोनियों के ही अधीन था। पड़ोसी पहाड़ी बर्बर जातियों के आक्रमण ने यहां के होने वाले सभी राजाओं को नृशंस बना दिया। फिर भी हिंदू संस्कृति के प्रति ये हमेशा उदार रहे। सामाजिक क्षेत्र में पर्दा प्रथा का सर्वप्रथम प्रचलन करने का श्रेय असिरियनों की ही है।अशुर बेनिपाल जैसे महान् विजेता ने सभ्यता की रक्षा के लिए पुराने मंदिरों और महलों की मरम्मत करवायी। उसने ‘निनवेह’ नामक नगर को दुल्हन की तरह सजाया।


लिपिकारों की लंबी जामात इकट्ठा कर महत्वपूर्ण सुमेरियन एवं बाबुलोनियन साहित्य की नकल करवायी।उसने ‘निनवेह’ में उसे रखने के लिए एक विशाल “पुस्तकालय” की स्थापना करवाई, जो उत्खनन से वहां 30,000 साहित्यिक कृतियां सुरक्षित मिली हैं। इसी प्रकार अन्य सभ्यताओं में मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता है,जो लगभग 6000 वर्ष पुरानी मानव सभ्यता का दक्षिण- पश्चिम एशिया का केंद्र बना रहा। यह सभ्यता दजला-फरात घाटी की सभ्यता थी। इसी घाटी की सभ्यता में सुमेरिया (प्राग्- ऐतिहासिक) चौल्डिया और बाबुलोनियां की सभ्यताएं आती हैं। बाबुलोनिया मेसोपोटामिया की सबसे प्रसिद्ध शहर था। यहां की सभ्यता अति विकसित थी।


एशिया माइनर जो आज “टर्की” कहलाता है वह यूनानी भाषा में ‘अनातोलिया’ कहा जाता था। यहां की शक्तिशाली “हित्ती” जाति ने एक विकसित सभ्यता का जन्म दिया। फिलिस्तीन यहूदियों का मूल देश था। वहां दक्षिण- पश्चिम भाग में अर्द्ध चंद्राकार उर्वर भूमि है, इसे “जुडिया” कहते थे। यहां अनेक सभ्यताओं का उदय हुआ, उनमें फिनिशियन, एजियन आदि मुख्य हैं। यहूदियों के पहले यहां फिनिशियानों का राज्य था। उन दिनों यह अत्यंत उपजाऊ प्रदेश था। इस कारण यह “दूध और मधु” का देश ‘बाईबिल’ में कहा गया है।


यूनान की सभ्यता- ग्रीस की गरिमा को बढ़ाती है। यह विश्व की गौरव पूर्ण प्राचीन सभ्यता थी। यह आज भी अपनी भौगोलिक सीमाओं में वैसा ही है, जैसे पहले थी। यह लघु प्रायद्वीप एजियन सागर, भूमध्य सागर और एड्रियाटिक सागर से घिरा है। जिसके कारण यह लघु एशिया, अफ्रीका तथा इटली-सिसली से अलग है। इसके भीतर के पहाड़ी और खाड़ियों ने इसे कई भागों में बांटा है, उनमें से बहुत भाग छोटे-छोटे राज्यों में स्थित हैं।


भाषा के आधार पर ‘यूनानी’ आर्य जाति के माने जाते हैं। कुछ लोगों ने इन्हें आर्य और अनार्य का मिश्रण बताया है। इनकी सभ्यता के बारे में तीन मुख्य मान्यताएं हैं। पहला मिस्र की सभ्यता से इनका उदय हुआ, दूसरा एजियन की सभ्यता से प्रभावित रहे तथा तीसरा फिनिशियनों की सभ्यता से इनका संबंध रहा। इसी कारण यूनानी सभ्यता के बारे में कहा जाता है कि इस सभ्यता का श्रोत एक नहीं बल्कि अनेक का सम्मिश्रण था। यूनान पर इजियनों का सदा विशेष प्रभाव बना रहा। बाद में यूनान दो भागों में बंट गया।


एक पूर्वी यूनान- जिसका केंद्र “एथेंस” तथा ‘एशिया माइनर’ के नगर रहे, वहीं पश्चिमी यूनान- का केंद्र ‘स्पार्टा’ बना। उनके विकास के दो प्रमुख काल माने जाते हैं- पहला पूर्व ऐतिहासिक काल तथा दूसरा ऐतिहासिक काल। पूर्व ऐतिहासिक काल को ‘होमर काल’ भी कहते हैं। दूसरा काल इनका गौरवपूर्ण माना गया है, जिसे ‘परीक्लीज-युगीन सभ्यता’ कहा जाता है। “एथेंस” के शासनकाल में यहां के सभी नगर राज्यों ने एक में मिलकर एक अत्यंत विकसित सभ्यता को जन्म दिया। इसलिए यह यूनान का सर्वाधिक गौरवपूर्ण युग माना गया है। इसे अंग्रेजी में “क्लासिकल एज” एवं हिन्दी में “गौरवपूर्ण युग” कहते हैं।


‘रोमिलस’ नामक एक व्यक्ति ने 753 ईसापूर्व में इटली नगर की स्थापना की। इसे’टाइबर’ नामक नदी के पूर्वी तट पर एक पहाड़ी के ऊपर लैटिन जाति के लोगों द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से की गई थी। इसका विस्तार उससे सटे सात पहाड़ियों पर भी हो गया। इसी से इसे “सात पहाड़ियों का नगर” भी कहते हैं। उसने संपूर्ण इटली पर अधिकार कर लिया। फिर उसने विभिन्न देशों को भी अपने साम्राज्य में मिला लिया। इसतरह रोम का साम्राज्य विशाल हो गया। रोम के मूल निवासी आर्य जाति के लैटिन और सबाईन थे। पीछे एक अनार्य सुसंस्कृत विदेशी इटली के एट्रट्रिया प्रदेश में प्रवेश किया। तब इन्हीं के समय से रोम का इतिहास प्रारंभ माना जाता है।


पुरातात्विक उत्खनन से इस जाति की उन्नत कलाएं उभर कर सामने आयी हैं। रोम में गणतंत्र के पतन के बाद “जुलियस सीजर” रोम का बेताज बादशाह बना। वह रोमन गणतंत्र का आजीवन डिक्टेटर चुना गया। उसने 10 वर्षों के लिए कौन्सिल बनाई और रोम के शासन के सारे अधिकार उसी में केंद्रित कर दिए। उसने फ्रांस के गाल, जर्मनी और ब्रिटेन को जीतकर अपने राज्य को बढ़ाया। स्पेन को भी युद्ध में जीता। विजय उत्सव मनाने पर सीनेट ने इसका विरोध किया।


“आगस्टस” सीजर का भतीजा मनोनीत उत्तराधिकारी बना। उसने अति कुशलता पूर्वक कार्य किया। आगस्टस की मृत्यु के बाद ‘टिबेरियस’ गद्दी पर बैठा। किन्तु वह “ईसा-मसीह” की हत्या से कलंकित था। उसके बाद टिटस जो 27 वर्षों तक राज किया जेरूसलम को ध्वस्त किया। ‘आगस्टस’ के बाद “ईसाई-धर्म” रोम में प्रवेश किया। पर वह रोम के राजाओं के देवी स्वरूप को नहीं माना। यह अहिंसावादी धर्म था, जिससे ईसाई मतालंबी सेना में भर्ती होने से अपने को अलग रखा।


आगस्टस की सबसे बड़ी रुचि स्थापत्य कला में थी। उसने पुराने मंदिरों का जिर्णोद्धार किया। नये मंदिर बनवाए। उसके बनवाएं मार्स, अपोलो और जुपिटर के मंदिर विशेष उल्लेखनीय है। उसने अपने काल में दो विशाल थिएटर बनवाए एक “मैक्रिस्मस”- जिसमें 2,25000 और दूसरे कोलोसियम- जिसमें 65000 दर्शकों के बैठने का स्थान था। इसके काल में सार्वजनिक कला का अधिक विकास हुआ। चिकित्सालय, पुस्तकालय, नहरें, नाट्यशाला आदि बनवाई। आगस्टस के बाद गिरजाघर बने- उनमें “सेंट सोफिया” और “सेंट पॉल” गिरजाघर विशेष प्रसिद्ध है।

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Dr शत्रुधन दांगी 

राज्यपाल   बिहार पुरातत्व निदेशालय 

निदेशक से प्रशंसित एवं प्रशस्ति प्राप्त 

इतिहासकार तथा पुरातत्व वेत्ता

लाव, टिकारी, गया, बिहार।

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