गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

पाकिस्तान की सुपरकॉप महिला पुलिसकर्मी





प्रस्तुति/ श्रुति जारूहार

पुलिस थाने में अक्सर महिलाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. किसी पुरुष के आगे अपनी कहानी बयान करना महिलाओं के लिए आसान नहीं होता. पाकिस्तान में एक पुलिसकर्मी महिलाओं के दिल का दर्द बांट रही है.
रावलपिंडी में महिला पुलिसकर्मियों का पुलिस थाना अहम होता जा रहा है, वह भी पुरुष प्रधान समाज में. थाना प्रमुख बुशरा बतूल कहती हैं कि यह जरूरतमंदों का आखिरी ठिकाना बन गया है. 36 साल की बुशरा बतूल अपना गला साफ करती हैं और सिर का दुपट्टा ठीक करते हुए पुलिस थाने में आती हैं. बतूल एक आदमी से बातचीत कर रही थी, जिसकी शिकायत थी कि उसकी नौकरानी ने उसका आईफोन चोरी कर लिया है. बतूल ने उसे समझाया कि कोई भी कार्रवाई करने से पहले उसे जांच करनी होगी.
महिला पुलिसकर्मियों वाले पुलिस थाने शुरू करने के पीछे कारण ही यह था कि वहां महिलाओं के मामले या महिलाओं के खिलाफ दर्ज किए जाने वाले मामले आएं. पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने 1994 में इन्हें शुरू किया था. बतूल का कहना है कि महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए महिला पुलिसकर्मियों का होना बहुत जरूरी है. उन्होंने बताया, "हमारी पुलिस अधिकारी छापा मारने जाती हैं. उन महिलाओं के साथ रहती हैं जिन्हें सुरक्षा की जरूरत हैं, उन्हें ढूंढती हैं. अगर किसी महिला पर अपराध का आरोप है, तो उसकी गिरफ्तारी हम करते हैं. हमारे समाज में पुरुष यह नहीं कर सकते."
पति का सम्मान
बतूल ने बताया कि उनके पुलिस थाने में घरेलू हिंसा के आरोपों की भी जांच की जाती है, जिसके सबूत जुटाना किसी महिला के लिए आसान नहीं, "अगर कोई महिला पुलिस थाने घरेलू हिंसा की शिकायत लेकर आती है तो उसके सास ससुर उस पर नाराज हो सकते हैं. अक्सर वो अपने बेटे को कहते हैं कि तुम्हारी बीवी को तुम्हारे सम्मान की कोई चिंता नहीं है. भले ही महिला को मानसिक रूप से सताया जा रहा हो, शारीरिक मार पीट की जा रही हो, कई परिवारों के लिए यह मामला पति के सम्मान के सामने कुछ नहीं है."
बतूल ने वे कड़वी सच्चाइयां देखी हैं जो सामाजिक असमानता की सीधी गवाही देती हैं. उनकी पुलिस अधिकारी उन महिलाओं को अदालत लाती ले जाती हैं, जिनका तलाक का मुकदमा चल रहा है और जिन्हें सुरक्षित रखा गया है.
पाकिस्तान में शादी में महिलाओं की जरा नहीं सुनी जाती. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के मुताबिक वहां 2012 में 900 लड़कियां अपनी मर्जी के खिलाफ माता पिता के कहने की वजह से किसी से मिल रही थीं या शादी कर रही थीं. कोई रिश्ता तोड़ना मुश्किल साबित हो सकता है. बतूल बताती हैं, "महिला तभी पुलिस थाने आती है जब उसके पास कोई विकल्प नहीं बचता. यह बेबसी में किया गया होता है."
महिलाओं के लिए खास थाना
आजादी की इच्छा
पुलिस अधिकारी कहती हैं कि यह बात एक महिला ही समझ सकती है. घर में सबसे बड़ी होने के कारण उन्हें तब बाहर निकलना पड़ा, जब उनके पिता को दिल की बीमारी हो गई थी. उस समय बतूल एमबीए कर रही थीं लेकिन पढ़ाई को छोड़ कर उन्होंने पुलिस की नौकरी ले ली, "मैंने अपना घर छोड़ा और यह काम अपना लिया. यह उस समय की जरूरत थी और आजाद जिंदगी जीने की ख्वाहिश भी." इस पुलिस थाने में काम करने वाली सभी पुलिसकर्मी ऐसे ही किसी कारण से आई हैं. या तो उन पर आरोप लगाए गए थे या फिर वे किसी और के खिलाफ केस दर्ज करवाने आई थीं. बतूल बताती हैं, "यहां आने वाले सभी लोग बुरे नहीं हैं. अधिकतर हर मामले के पीछे कोई कहानी होती है. और वे ऐसी हालत में पहुंच जाते हैं कि वे कानून से लड़ पड़ते हैं."
ऐसा ही एक मामला हिना नाहीद का है. उन्हें रात में एक चकलाघर में पड़े छापे के दौरान पकड़ा गया. उन्होंने बताया कि वह पिछले पांच साल से यौनकर्मी हैं, "मैंने अपने हालात सुधारने के लिए बहुत काम किए. मैं नौकरानी रही, फिर से शादी की लेकिन कुछ फर्क नहीं पड़ा अब मैं यहां (जेल में) पहुंच गई हूं."
अपने बेटे का पेट पालने के लिए वह इस ओर बढ़ी, "जब मैं घरों में काम करती थी तो भी आदमी मुझे परेशान करते थे. फिर मुझे लगा कि अगर वो ही मेरी इज्जत से खेल रहे हैं तो मैं ही सेक्सकर्मी बन जाती हूं. शुरुआत में यह बहुत मुश्किल था. मैं बहुत रोती थी और अवसाद में चली गई थी. लेकिन अब मैंने इसे ही अपनी किस्मत मान लिया है." नाहीद के पति दूसरी शादी करना चाहते थे जो उन्हें मंजूर नहीं था इसलिए नाहिद ने तलाक ले लिया.
सुरक्षित जगह
बुशरा बतूल रोज ऐसी कहानियां सुनती हैं. वह उन्हें गंभीरत से लेती हैं और मुकदमे के दौरान सभी औरतों को सुरक्षित जगह दिलवाती हैं, "मैं उसे समझ सकती हूं कि उसने जो किया वो मजबूरी थी. दूसरी महिला पुलिसकर्मी भी ये समझेगी. लेकिन अगर कोई आदमी उसे पकड़ता तो शायद वह उसका अपमान करता."
पुरुष प्रधान समाज में और पुरुष प्रधान नौकरी में बतूल को काफी चुनौतियां भी हैं. उनकी खुद की भी शादी टूट गई क्योंकि उन्होंने नौकरी छोड़ने से इनकार कर दिया था. वह कहती हैं, "इस स्टेशन ने मुझे जीवन की ऊंच नीच से उबरना सिखाया है. मैं अब इसे नहीं छोड़ सकती."
रिपोर्टः बीनिश अहमद/ एएम
संपादनः ईशा भाटिया
*रिपोर्ट में सुरक्षा कारणों से महिलाओं के नाम बदल दिए गए हैं.

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