गुरुवार, 11 सितंबर 2014

कामसूत्र



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मुक्तेश्वर मंदिर की कामदर्शी मूर्ति
कामसूत्र महर्षि वात्स्यायन द्वारा लिखा गया भारत का एक प्राचीन कामशास्त्र (en:Sexology) ग्रंथ है। कामसूत्र को उसके विभिन्न आसनों के लिए ही जाना जाता है। महर्षि वात्स्यायन का कामसूत्र विश्व की प्रथम यौन संहिता है[तथ्य वांछित] जिसमें यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है। अर्थ के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य के अर्थशास्त्र का है, काम के क्षेत्र में वही स्थान कामसूत्र का है।
अधिकृत प्रमाण के अभाव में महर्षि का काल निर्धारण नहीं हो पाया है। परन्तु अनेक विद्वानों तथा शोधकर्ताओं के अनुसार महर्षि ने अपने विश्वविख्यात ग्रन्थ कामसूत्र की रचना ईसा की तृतीय शताब्दी के मध्य में की होगी[तथ्य वांछित]। तदनुसार विगत सत्रह शताब्दियों से कामसूत्र का वर्चस्व समस्त संसार में छाया रहा है और आज भी कायम है[तथ्य वांछित]। संसार की हर भाषा में इस ग्रन्थ का अनुवाद हो चुका है[तथ्य वांछित]। इसके अनेक भाष्य एवं संस्करण भी प्रकाशित हो चुके हैं। वैसे इस ग्रन्थ के जयमंगला भाष्य को ही प्रामाणिक माना गया है[तथ्य वांछित]। कोई दो सौ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध भाषाविद सर रिचर्ड एफ़ बर्टन (Sir Richard F. Burton) ने जब ब्रिटेन में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद करवाया तो चारों ओर तहलका मच गया[तथ्य वांछित] और इसकी एक-एक प्रति 100 से 150 पौंड तक में बिकी[तथ्य वांछित]। अरब के विख्यात कामशास्त्र ‘सुगन्धित बाग’ (Perfumed Garden) पर भी इस ग्रन्थ की अमिट छाप है[तथ्य वांछित]
महर्षि के कामसूत्र ने न केवल दाम्पत्य जीवन का शृंगार किया है वरन कला, शिल्पकला एवं साहित्य को भी संपदित किया है। राजस्थान की दुर्लभ यौन चित्रकारी तथा खजुराहो, कोणार्क आदि की जीवन्त शिल्पकला भी कामसूत्र से अनुप्राणित है। रीतिकालीन कवियों ने कामसूत्र की मनोहारी झांकियां प्रस्तुत की हैं तो गीत गोविन्द के गायक जयदेव ने अपनी लघु पुस्तिका ‘रतिमंजरी’ में कामसूत्र का सार संक्षेप प्रस्तुत कर अपने काव्य कौशल का अद्भुत परिचय दिया है[तथ्य वांछित]

संरचना

मल्लनाग बात्स्यायन रचित कामसूत्र ग्रन्थ ७ भागों में विभक्त है जिनमें कुल ३६ अध्याय तथा १२५० श्लोक हैं।
इसके साथ भागों के नाम हैं-
१. साधारणम् (भूमिका)
२. संप्रयोगिकम् (यौन मिलन)
३. कन्यासम्प्रयुक्तकम् (पत्नीलाभ)
४. भार्याधिकारिकम् (पत्नी से सम्पर्क)
५. पारदारिकम् (अन्यान्य पत्नी संक्रान्त)
६. वैशिकम् (रक्षिता)
७. औपनिषदिकम् (वशीकरण)
  • (१) साधारणम्
  • १.१ शास्त्रसंग्रहः
  • १.२ त्रिवर्गप्रतिपत्तिः
  • १.३ विद्यासमुद्देशः
  • १.४ नागरकवृत्तम्
  • १.५ नायकसहायदूतीकर्मविमर्शः
  • (२) सांप्रयोगिकं नाम द्वितीयम् अधिकरणम्
  • २.१ प्रमाणकालभावेभ्यो रतअवस्थापनम्
  • २.२ आलिङ्गनविचारा
  • २.३ चुम्बनविकल्पास्
  • २.४ नखरदनजातयः
  • २.५ दशनच्छेद्यविहयो
  • २.६ संवेशनप्रकाराश्चित्ररतानि
  • २.७ प्रहणनप्रयोगास् तद्युक्ताश् च सीत्कृतक्रमाः
  • २.८ पुरुषोपसृप्तानि पुरुषायितं
  • २.९ औपरिष्टकं नवमो
  • २.१० रतअरम्भअवसानिकं रतविशेषाः प्रणयकलहश् च
  • (३) कन्यासंप्रयुक्तकं
  • ३.१ वरणसंविधानम् संबन्धनिश्चयः च
  • ३.२ कन्याविस्रम्भणम्
  • ३.३ बालायाम् उपक्रमाः इङ्गिताकारसूचनम् च
  • ३.४ एकपुरुषाभियोगाः
  • ३.५ विवाहयोग
  • (४) भार्याधिकारिकं
  • ४.१ एकचारिणीवृत्तं प्रवासचर्या च
  • ४.२ ज्येष्ठादिवृत्त
  • (५) पारदारिकं
  • ५.१ स्त्रीपुरुषशीलवस्थापनं व्यावर्तनकारणाणि स्त्रीषु सिद्धाः पुरुषा अयत्नसाध्या योषितः
  • ५.२ परिचयकारणान्य् अभियोगा छेच्केद्
  • ५.३ भावपरीक्षा
  • ५.४ दूतीकर्माणि
  • ५.५ ईश्वरकामितं
  • ५.६ आन्तःपुरिकं दाररक्षितकं
  • (६) वैशिकं
  • ६.१ सहायगम्यागम्यचिन्ता गमनकारणं गम्योपावर्तनं
  • ६.२ कान्तानुवृत्तं
  • ६.३ अर्थागमोपाया विरक्तलिङ्गानि विरक्तप्रतिपत्तिर् निष्कासनक्रमास्
  • ६.४ विशीर्णप्रतिसंधानं
  • ६.५ लाभविशेषाः
  • ६.६ अर्थानर्थनुबन्धसंशयविचारा वेश्याविशेषाश् च
  • (७) औपनिषदिकं
  • ७.१ सुभगंकरणं वशीकरणं वृष्याश् च योगाः
  • ७.२ नष्टरागप्रत्यानयनं वृद्धिविधयश् चित्राश् च योगा

काम-विषयक अन्य प्राचीन ग्रन्थ

  • ज्योतिरीश्वर कृत पंचसायक :- मिथिला नरेश हरिसिंहदेव के सभापण्डित कविशेखर ज्योतिरीश्वर ने प्राचीन कामशास्त्रीय ग्रंथों के आधार ग्रहण कर इस ग्रंथ का प्रणयन किया। ३९६ श्लोकों एवं ७ सायकरूप अध्यायों में निबद्ध यह ग्रन्थ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है।
  • पद्मश्रीज्ञान कृत नागरसर्वस्व:- कलामर्मज्ञ ब्राह्मण विद्वान वासुदेव से संप्रेरित होकर बौद्धभिक्षु पद्मश्रीज्ञान इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ ३१३ श्लोकों एवं ३८ परिच्छेदों में निबद्ध है। यह ग्रन्थ दामोदर गुप्त के "कुट्टनीमत" का निर्देश करता है और "नाटकलक्षणरत्नकोश" एवं "शार्ङ्गधरपद्धति" में स्वयंनिर्दिष्ट है। इसलिए इसका समय दशम शती का अंत में स्वीकृत है।
  • जयदेव कृत रतिमंजरी :- ६० श्लोकों में निबद्ध अपने लघुकाय रूप में निर्मित यह ग्रंथ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। यह ग्रन्थ डा० संकर्षण त्रिपाठी द्वारा हिन्दी भाष्य सहित चौखंबा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित है।
  • कोक्कोक कृत रतिरहस्य :- यह ग्रन्थ कामसूत्र के पश्चात दूसरा ख्यातिलब्ध ग्रन्थ है। परम्परा कोक्कोक को कश्मीरी स्वीकारती है। कामसूत्र के सांप्रयोगिक, कन्यासंप्ररुक्तक, भार्याधिकारिक, पारदारिक एवं औपनिषदिक अधिकरणों के आधार पर पारिभद्र के पौत्र तथा तेजोक के पुत्र कोक्कोक द्वारा रचित इस ग्रन्थ ५५५ श्लोकों एवं १५ परिच्छेदों में निबद्ध है। इनके समय के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि कोक्कोक सप्तम से दशम शतक के मध्य हुए थे। यह कृति जनमानस में इतनी प्रसिद्ध हुई सर्वसाधारण कामशास्त्र के पर्याय के रूप में "कोकशास्त्र" नाम प्रख्यात हो गया।
  • कल्याणमल्ल कृत अनंगरंग:- मुस्लिम शासक लोदीवंशावतंश अहमदखान के पुत्र लाडखान के कुतूहलार्थ भूपमुनि के रूप में प्रसिद्ध कलाविदग्ध कल्याणमल्ल ने इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ ४२० श्लोकों एवं १० स्थलरूप अध्यायों में निबद्ध है।

इन्हें भी देखें

वाह्य सूत्र

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