रविवार, 2 नवंबर 2014

शोक के सागर में डुबोने वाली कोसी







कपिल शर्मा / नई दिल्ली August 27, 2008



बिहार को शोक के सागर में डुबोने वाली कोसी के कहर का ककहरा

कोसी नदी भारत और नेपाल के बीच बहने वाली गंगा की सबसे बडी सहायक नदियों में से एक है। भारत में उत्तरी बिहार से प्रवेश करते हुए यह 9200 किलोमीटर का मार्ग तय करती है। और अंत में गंगा से मिलकर बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है।

कामता, बागमती और बूढ़ी गंडक भारत में इसकी प्रमुख उपनदियां है। बिहार में प्रतिवर्ष इस नदी द्वारा बाढ़ लाए जाने के कारण इसे 'बिहार के शोक ' के नाम से भी जाना जाता है।

क्यों आती है बाढ़?पर्यावरणविदों का कहना है कि नेपाल स्थित कोसी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र (हिमालय)में प्राकृतिक और मानवीय कारणों के चलते मृदा अपरदन (जमीन की ऊपरी परत अपनी जगह से हट जाना) और भूस्खलन होने से मैदानी इलाकों को प्रतिवर्ष बाढ़ की समस्या से रुबरु होना पड़ता है।

ऊपरी पहाड़ी इलाके से निकलने के  कारण वर्षा ऋतु के समय कोसी का बहाव अपने सामान्य बहाव से 18 गुना ज्यादा हो जाता है। ऐसे में कोसी तीव्र बहाव के साथ जमीन की ऊपरी परत को गाद के तौर पर साथ लेती आती है।

कोसी का बहाव मैदानी इलाकों में कम होने पर यह गाद नदी की सतह पर जमा होना शुरु हो जाती है। ऐसे में वर्षा होने पर नदी का जलस्तर बढ़ने लगता है। और नदी अपना प्रवाह क्षेत्र या मार्ग बदलने लगती है। जिसकी वजह से बाढ़ आ जाती है। पिछले 100 सालों में यह नदी अपने मार्ग को 200 किलोमीटर तक बदल चुकी है।

कोसी समझौता

यह समझौता भारतीय सरकार और नेपाल की राजसरकार के मध्य 25 अप्रैल 1954 को हुआ था। इस समझौते के तहत दोनों देशो की सरकारों ने मिलकर नेपाल में कोसी नदी के किनारे स्थित हनुमान नगर पर बांध बनाने की योजना बनाई थी।

इस योजना का लक्ष्य प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ को रोकना, जगह-जगह पर छोटे बांधों को निर्मित करना , बिजली उत्पादन करना , कृषि का विकास करना और भूमि का अपरदन रोकना था। यह समझौता उस समय भारत की तरफ से जवाहर लाल नेहरु और नेपाल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला के बड़े भाई मत्रिका प्रसाद कोइराला की अध्यक्षता में संपन्न हुआ था।

लेकिन इस समझौते के बाद भी भारत और नेपाल ने साझा कार्यक्रमों के तहत बाढ़ रोकने के लिए कई बांधो का निर्माण किया। कोसी बैरेज के अलावा पूर्वी नेपाल में भी भारत और नेपाल सरकार 5500 मेगावाट बिजली, कृषि के विकास और बाढ़ रोकने के लिए सप्तकोशी बहुउद्देशीय परियोजना को शुरु कर रही है। 

लेकिन नेपाल के कई राजनेता समय-समय पर नेपाल में आने वाली बाढ़ के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराते रहें है। उनका मत रहा है कि भारत ने भारत-नेपाल बार्डर के बीच  लगभग 11 बांधो का निर्माण किया है। इनमें से आठ का निर्माण नेपाल से सलाह लिये बिना किया गया है। इसके लिए भारत ने अंतराष्ट्रीय मानकों का भी पालन नहीं किया है। जबकि दूसरी ओर भारत हमेशा इस बात का विरोध करता रहा है।

बांध का विरोध क्यों?पर्यावरणविदों का मानना है कि उत्तरी बिहार और दक्षिणी नेपाल भूंकप आंशकित क्षेत्र है। अगर यहां बाढ़ को रोकने के लिए बांध का निर्माण किया जाता है तो भूकंप आने पर बांध टूटने से तबाही मच सकती है। ऐसा होने पर संपूर्ण उत्तरी बिहार खासतौर मधुबनी, पूर्णिया, दरभंगा और सहरसा जलमग्न हो जांएगे।

पर्यावरणविदों ने समय-समय पर बाढ़ रोकने के लिए आपदा प्रंबधन विश्लेषकों, भू-वैज्ञानियों, प्रभावित क्षेत्र के निवासियों और राज्य के नेताओं को मिलाकर एक सशक्त नीति का निर्माण करने की मांग भी की है।

राजनैतिक कारणकुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस समय नेपाल में माओवादियों की सरकार है। जो भारत के नक्सलवादियों का समर्थन करते है। अगर नक्सलवादियों द्वारा भारत सरकार के अधिकार वाली इन परियोजनाओं को निशाना बनाया जाता है। तो भी बिहार को बाढ़ की भीषण विभिषका झेलने के लिए तैयार रहना पडेग़ा।

जबकि कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों ही देशों के नेताओं ने बाढ़ की समस्या से निबटने के लिए किसी तीसरे विकल्प को ढूंढने की जेहमत ही नहीं उठाई है। बिहार में बाढ़ रोकने के लिए नदी मुक्ति आंदोलन के कार्यकर्ता मानते है कि बाढ़ रोकने का सबसे अच्छा उपाय नदी के प्रवाह के साथ किसी भी तरह का छेड़छाड़ नहीं करना है। कोसी पर बांध बनाने से बाढ़ के प्रकोप को रोका नहीं जा सकता है।

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