शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ





बीनू श्रीवास्तव

महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी में स्थित एक विश्वविद्यालय है। पहले इसे केवल काशी विद्यापीठ के नाम से ही जाना जाता था किन्तु बाद में इसे भारत के महान नेता महात्मा गाँधी को पुनः समर्पित किया गया और उनका नाम इसके साथ जोड़ दिया गया (११ जुलाई १९९५)। इस विश्वविद्यालय में स्नातक, परास्नातक एवं अनुसंधान स्तर की शिक्षा उपलब्ध है।

उद्देश्य

असहयोग आन्दोलन के दौरान स्थापित अन्य विद्यापीठों के समान काशी विद्यापीठ के भी मुख्य उद्देश्य थे -
  • (क) छात्रों में राष्ट्रीय भावना जागृत करना,
  • (ख) छात्रों को स्वावलम्बी बनाना,
  • (ग) हिन्दी भाषा का विकास करना
  • (घ) सहयोग एवं सेवा की भावना विकसित करना आदि।

स्थापना

काशी विद्यापीठ की स्थापना असहयोग आन्दोलन के समय १० फ़रवरी सन् १९२१ (वसन्त पंचमी के पावन अवसर पर) को बाबू शिव प्रसाद गुप्त द्वारा भदैनी, वाराणसी में हुई थी। गांधीजी ने इसकी आधारशिला रखी थी। देशरत्न शिव प्रसाद जी राष्ट्रवादी शिक्षाविद थे। उन्होने भूमि दी और दस लाख रूपये देकर 'श्री हर प्रसाद शिक्षा निधि' की स्थापना की। शीघ्र ही काशी विद्यापीठ हिन्दी माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा का केन्द्र बन गया।
जुलाई १९६३ में इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मानद विश्वविद्यालय घोषित किया गया। १५ जनवरी सन् १९७५ से इसे चार्टर्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया गया।
महात्मा गाँधी के स्वावलम्बन तथा स्वराज के आह्वान से प्रेरित होकर ब्रिटिश शासनकाल में भारतीयों द्वारा स्थापित यह पहला आधुनिक विश्वविद्यालय था। इसका उद्घाटन अपने समकालीन गुजरात विद्यापीठजामिया इस्लामिया की भांति यह विद्यापीठ भी पूरी तरह ब्रिटिश अधिकारियों के नियंत्रण और सहायता से परे था। भारतीय शिक्षाविद और राष्ट्रप्रेमी लोग ही इसका सारा प्रबन्धन और देखरेख करते थे। गाँधीजी और अन्य भारतीय राष्ट्रवादी उस समय अंग्रेजों द्वारा चलाये जा रहे शिक्षा संस्थानों के वहिष्कार के लिये भारत की जनता को प्रेरित कराते थे और चाहते थे कि लोग भारतीयों द्वारा चलाये जा रहे संस्थानों को प्राथमिकता दें।
प्रमुख राष्ट्रवादी व विद्वान आचार्य नरेन्द्र देव, डा॰ राजेन्द्र प्रसाद, जीवत राम कृपलानी, बाबू श्री प्रकाश, बाबू सम्पूर्णानन्द आदि महान लोग इसमें शिक्षण कार्य किये। भारत के पूर्व प्रधान मंत्री स्व॰ लाल बहादुर शास्त्री ने भी इस विद्यापीठ से शिक्षा ग्रहण की थी।

विशेषताएँ

विद्यापीठ में अध्ययन-अध्यापन का माध्यम हिन्दी है। यदि कोई छात्र अंग्रेजी माध्यम से परीक्षा देना चाहे तो उसे इसके लिए कुलपति से विशेष अनुमति प्राप्त करनी होती है। यहाँ की शिक्षा की एक अन्य प्रमुख विशेषता यह है कि यही छात्रों के अन्दर नेतृत्व एवं प्रशासकीय शक्ति का विकास सम्यक् रूप से करने का प्रयास किया जाता है। इसीलिए आज विद्यापीठ के छात्र लोकसभा, विधान सभा, औद्योगिक प्रतिष्ठान आदि में विद्यमान है।

पाठ्यक्रम

प्रारम्भ में यहाँ शास्त्री में हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, दर्शन, इतिहास, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि विषय पढ़ाए जाते थे। शास्त्री का पाठ्यक्रम एम.ए. के स्तर का था। इस समय शास्त्री में उल्लेखित विषयों के अतिरिक्त राजनीतिशास्त्र, मनोविज्ञान और समाज सेवा विषय भी वैकल्पिक रूप में निर्धारित हैं। शास्त्री के अतिरिक्त इस समय वहां एम.ए., एम.एस.सी., पी-एच.डी, डी.लिट्. कोर्स चल रहे हैं। शास्त्री के लिए जितने विषय निर्धारित हैं उन सभी मैं एम.ए. करने की भी सुविधा है। शास्त्री कक्षा में सामान्य भाषा के रूप में संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, रूसी, उर्दू और पाली भाषाओं का अध्यापन होता है। इसी सत्र से तमिल भाषा का भी अध्यापन प्रारम्भ हुआ है। समाज से वा विभाग के अन्तर्गत बाल विद्यालय भी चल रहा है।

विभाग

  • सामाजिक कार्य विभाग
  • वाणिज्य एवं प्रबन्धन विभाग
  • शिक्षा विभाग
  • विधि विभाग
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग
  • छात्र कल्याण विभाग
  • मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान
  • मानविकी विभाग
  • सामाजिक विज्ञान विभाग
  • अन्तर्विषयी अध्ययन विभाग

छात्रावास

  • डॉ सम्पूर्णानन्द अनुसंधान छात्रावास
  • आचार्य नरेन्द्रदेव छात्रावास
  • लाल बहादुर शास्त्री छात्रावास
  • जे के महिला छात्रावास

अन्य प्रांगण

  • डॉ विभूति नारायण सिंह ग्रामीण चिकित्सा संस्थान, गंगापुर (वाराणसी)
  • एन टी पी सी शक्तिनगर, सोनभद्र

प्रसिद्ध पूर्व छात्र

चन्द्रशेखर आजाद, लालबहादुर शास्त्री, कमलापति त्रिपाठी, राजा राम शास्त्री, बी वी केस्कर, ए आर शास्त्री, मन्मथनाथ गुप्त, प्राणवेश चटर्जी, त्रिभुवन नारायण सिंह, हरिनाथ शास्त्री, भोला पासवान शास्त्री, रामकृष्ण हेगडे

पुस्तकालय

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

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