दिल्ली के उत्तरवर्ती शहर
तीन चीजें एक शहर का निर्माण करती हैं - दरिया, बादल, बादशाह.
इसे इस प्रकार कह सकते हैं एक नदी, वर्षा-बादल लाने वाली और एक सम्राट (जो अपनी इच्छाएं लागू कर सकता है)।
इसे इस प्रकार कह सकते हैं एक नदी, वर्षा-बादल लाने वाली और एक सम्राट (जो अपनी इच्छाएं लागू कर सकता है)।
पुरानी
कहावत
दिल्ली शहर में हमें भारत में हुआ अच्छा व बुरा दोनों रूप दिखते हैं, जहां अनेक सम्राटों की कब्रें हैं और एक गणराज्य की नर्सरी है। इसका कहानी कितनी आश्चर्यजनक है! यहां हर कदम पर हमारे इतिहास की सैंकड़ों वर्षों पुरानी परंपराएं है, और हमारी आंखों के सामने से गुज़रने वाला असंख्य पीढ़ियों का कारवां है"
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु
दिल्ली विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के अभिभाषण से
दिसंबर, 1958
दिल्ली विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के अभिभाषण से
दिसंबर, 1958
यदा-कदा उजड़ने के बावजूद दिल्ली का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसमें एक उल्लेखनीय निरंतरता है और किसी अन्य शहर की तुलना में अधिक समय तक भारत की राजधानी बने रहने की अनोखी विशिष्टता है। एक प्राचीन किवदंती है कि "जिसने दिल्ली पर शासन किया, उसने भारत पर शासन किया"। इस शहर ने भूतकाल और भविष्य के उतार-चढ़ाव देखे हैं। यद्पि इसके स्थान बारंबार बदलते रहे हैं, इसका चरित्र और नाम, निरंतर बना रहा है, जिसने अनेक सभ्यताओं का उत्थान और पतन देखा है। महाभारत के इंद्रप्रस्थ से वर्तमान नई दिल्ली शहर तक यह एक विशाल महानगर में तब्दील हो चुका है। राजा दिल्लू की दिल्ली से नई दिल्ली तक के सफर में इस शहर ने हमेशा शक्ति का संचालन किया है।
दिल्ली की स्थापना का प्राचीनतम संदर्भ महाभारत में मिलता है। हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र ने पांडवों को दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में अपना साम्राज्य स्थापित करने के निर्देश दिए। दिल्ली का यह हिस्सा खांडवप्रस्थ के नाम से जाना गया। पांडव राजकुमार, युधिष्ठिर ने खांडववन नामक जंगल क्षेत्र को साफ करके दिल्ली में इन्द्रप्रस्थ नामक शहर की स्थापना की। वास्तव में यह इतना आकर्षक शहर था कि कौरव पांडवों के शत्रु बन गए। उसी काल से दिल्ली ने अनेक साम्राज्यों एवं सम्राटों का उत्थान एवं पतन देखा। इसकी लोकेशन से प्राचीन काल से ही अनेक राजा इसका ओर आकर्षित हुए क्योंकि इस शहर का सामरिक और वाणिज्यिक महत्व था।
यह बहस करना आसान न होगा कि दिल्ली के शहर कमोबेश सात से अधिक थे। किन्तु स्वीकार्य संख्या सात है (नई दिल्ली को छोड़कर) और इन शहरों के अवशेष आज भी मौजूद हैं। इतिहासकार 1100 ई. और 1947 ई. के बीच "दिल्ली के सात शहरों" का ज़िक्र करते हैं, वास्तव में इनकी संख्या आठ है:
- कुतुब मीनार के निकट प्राचीनतम शहर
- सीरी
- तुगलकाबाद
- जहांपनाह
- फिरोज़ाबाद
- पुराने किले के निकट शहर
- शाहजहानाबाद
- नई दिल्ली
इनमें से प्रत्येक शहर संबंधित वंश के महल - किले के इर्द-गिर्द फैलता था और प्रत्येक वंश अपनी प्रतिष्ठा को लेकर अपना नया मुख्यालय स्थापित करना चाहता था। यहां तक कि समान वंश के राजाओं का यही उद्देश्य होते थे और इनकी पूर्ति के लिए उनके पास साधन भी होते थे। प्रत्येक एक के बाद एक आते वंश ने वास्तुकला के विशिष्ट उदाहरण पेश किए और शहर वास्तुकलाओं में कुछ परिवर्तन किए। अक्सर कुछ महत्वपूर्ण भवन खड़े होते, कुछ स्मारक - चाहे एक मस्जिद हो अथवा एक मकबरा, कोई किला अथवा विजय स्तंभ।
भारत की राजधानी के रूप में दिल्ली की कहानी 12वीं शताब्दी के अंत में उत्तर भारत में मुस्लिमों की विजय के साथ आरंभ हुई थी। तभी से, कुछ विरामों के साथ, यह शहर प्रत्येक केंद्रीय राजनैतिक प्राधिकार रखने वालों का आसन रही है।
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