आमतौर पर लोग यह स्वीकार ही नहीं करते कि उन्हें कोई मानसिक समस्या है। यही वजह है कि समय पर उपचार न होने के कारण तनाव, अवसाद, अनिद्रा, याददाश्त खोना या अधिक खाना जैसी समस्याएं बढ़ती जाती हैं। ड्यूक यूनिवर्सिटी के एक शोध में ध्यान व आसन दोनों ही रूपों में योग का मानसिक समस्याओं पर सकारात्मक असर देखा गया है। शोध में मानसिक सेहत के लिए सप्ताह में 3 बार, 30 मिनट तक योग करने की सलाह दी गई है। उपयोगी आसनों के बारे में बता रहे हैं योगाचार्य कौशल कुमार
चित्त की वृत्तियों को अनुशासित करना ही योग है। मन में असीम शक्ति है,
पर सबसे अधिक दुरुपयोग हम इसी शक्ति का करते हैं। इससे 95% मानसिक शक्ति
व्यर्थ चली जाती है। मन जितना शक्तिशाली होता है, उतना ही चंचल और अस्थिर
भी होता है और इस चंचलता को नियंत्रित करने की योग से बेहतर शायद ही कोई
दूसरी विधा हो। योग मन को नियंत्रित कर उसे दिशांतरित करने की तकनीक देता
है।
मोटे तौर पर बीमारियां दो प्रकार की होती हैं, शारीरिक (व्याधि) तथा मानसिक (आधि)। योग के अनुसार, जिसका मन रोगी व कमजोर है, उसका शरीर भी अवश्य रोगी व कमजोर होगा। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जहां रोग को शरीरगत मानता है, वहीं योग में मन पर अधिक जोर दिया जाता है। मानसिक समस्याआें में अवसाद, तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध, मोह, लोभ, पार्किन्सन, एल्जाइमर्स, सिजोफ्रेनिया, भय व असुरक्षा आदि आते हैं। कैवल्य धाम, लोनावला के एक शोध के मुताबिक डायबिटीज, उच्च रक्तचाप जैसे शारीरिक रोगों समेत कई ऐसे मानसिक रोग हैं, जिन्हें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में स्थायी बीमारियां माना जाता है, जबकि नियमित योगाभ्यास से न सिर्फ उन पर सकारात्मक असर होता है, बल्कि मानसिक रोगों को तो शत प्रतिशत ठीक किया जा सकता है।
मानसिक समस्याओं का शरीर पर प्रभाव
यदि मन के तनाव का विज्ञान समझें तो पाएंगे कि तनाव चाहे भावनात्मक हो या मानसिक, यह हमारी पीयूष ग्रंथि को प्रभावित करता है। यह ग्रंथि शरीर की मास्टर ग्रंथि है। इस कारण यह ग्रंथि असंतुलित हार्मोन निकालने लगती है, जिसके असंतुलित हार्मोन स्राव के कारण थाइरॉएड ग्रंथि भी असंतुलित हो जाती है। इससे पूरे शरीर का मेटाबॉलिज्म प्रभावित होने लगता है और उसे हाइपो या हाइपर थाइरॉएडिज्म का शिकार होना पड़ता है। इसी तरह अधिक तनाव से हृदय गति तथा पल्स गति बढ़ जाती है, क्योंकि उस समय शरीर की कोशिकाओं को अधिक रक्त की आवश्यकता होती है। हृदय को अधिक कार्य करना पड़ता है, जिससे थकते-थकते एक दिन शरीर रोगी हो जाता है। इसका परिणाम हाइपरटेंशन और हृदय रोग होता है। अधिक मानसिक तनाव से हमारी सेक्स ग्रंथियां भी असंतुलित हार्मोन निकालने लगती हैं, जिससे नपुंसकता या अति सक्रियता जैसी समस्याएं जन्म लेने लगती हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए उपयोगी आसन
मन को ठीक करने के लिए यौगिक क्रियाएं जैसे पद्मासन, वज्रासन, शीर्षासन, सर्वांगासन, हलासन, भुजंगासन, जानुशिरासन, त्रिकोणासन तथा उष्ट्रासन आदि उपयोगी हैं। इसके अलावा नाड़ी शोधन, उज्जायी प्राणायाम एवं ध्यान का नियमित अभ्यास तन व मन दोनों के लिए उपयोगी है। योग का नियमित अभ्यास स्मरणशक्ति को बढ़ाता है। याददाश्त क्षमता दुरुस्त रखता है। साथ ही रक्त संचालन व पाचन क्षमता में वृद्धि, नसों व मांसपेशियों में पर्याप्त खिंचाव उत्पन्न करने के अलावा योग से मस्तिष्क को शुद्ध रक्त मिलता है। इसके लिए खासतौर पर सूर्य नमस्कार, शीर्षासन, पश्मिोत्तानासन, उष्ट्रासन व अर्धमत्स्येन्द्र आसन आदि करने चाहिए।
हलासन
जमीन पर पीठ के बल लेट जाइये। दो गहरे सांस लें व छोड़ें। इसके बाद दोनों पैरों को जमीन से ऊपर उठाते हुए धीरे-धीरे सिर के पीछे जमीन पर ले जाएं। कमर को जमीन से ऊपर उठाने के लिए हाथ का सहारा ले सकते हैं। हाथों को पीठ के पीछे जमीन पर सामान्य अवस्था में रखें। इस स्थिति में आरामदायक अवधि तक रुक कर पूर्व स्थिति में आ जाएं। सामान्य गति से श्वास लें व छोड़ें।
सीमाएं: उच्च रक्तचाप, हृदय रोग तथा स्लिप डिस्क एवं स्पॉन्डिलाइटिस के रोगी अभ्यास न करें।
उज्जायी प्राणायाम
पद्मासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गले व सिर को सीधा करके बैठिए। दोनों हाथों को घुटनों पर सहजता से रखें। जिह्वा को अग्रभाग से मोड़ कर ऊपरी तालू से सटाएं। गले की श्वास नली को थोड़ा संकुचित कर नासिका द्वारा एक गहरी, लंबी व धीमी श्वास अंदर लें। श्वास लेते समय गले से सीऽ सीऽ सी की आवाज निकलती है, जबकि नाक से सांस छोड़ते समय ह ऽ ह ऽ हऽ ह की आवाज निकलती है। यह उज्जायी प्राणायाम की एक आवृत्ति है। शुरू में 15 से 20 आवृत्तियों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे आवृतियों को बढ़ा कर 120 तक करें।
ध्यान: पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाइये। हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखें। अब दस गहरी श्वास लें और छोड़ें। 10-15 मिनट तक इसका नियमित अभ्यास करें। अभ्यास के दौरान मन को बार-बार विचारों से हटा कर सांसों पर केंद्रित करें। कुछ समय बाद मन एकाग्र होने लगता है व तनाव-अवसाद से मुक्ति मिलने लगती है।
योगनिद्रा
यह मानसिक तनाव और भावनात्मक असंतुलन को दूर करने में मददगार है। योग निद्रा व शिथलीकरण के प्रतिदिन 10 मिनट के अभ्यास से रोजमर्रा के तनाव चेतन तथा अवचेतन मन से हट जाते हैं।
सर्वांगासन
पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं। दोनों पैरों को जमीन से ऊपर उठा कर हल्के झटके से नितम्ब को भी जमीन से ऊपर उठाएं। कमर पर हाथों का सहारा देते हुए गर्दन के नीचे का सारा भाग जमीन से ऊपर उठा कर एक सीधी रेखा में करें। अंतिम स्थिति में पूरा शरीर गर्दन से 90 डिग्री पर ऊपर उठता है। सर्वांगासन की इस स्थिति में आरामदायक समय तक रुकें। इसके बाद वापस पूर्व स्थिति में आएं। स्मरण शक्ति को कमजोर होने से रोकने, उसे बढ़ाने व मस्तिष्क तक शुद्ध रक्त व ऑक्सीजन का संचार करने में इसकी भूमिका अहम है।
क्या कहता है शोध
ड्यूक यूनिवर्सिटी के ड्यूक स्कूल ऑफ मेडिसिन में साइकायट्री विभाग के एक शोध के अनुसार योग मुद्राएं रक्त संचार में सुधार करती हैं। इससे शरीर में एंड्रोफिन्स हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है, जो फोकस और सजगता को बढ़ाता है। शोध के नतीजे इस प्रकार रहे...
डिप्रेशन: डिप्रेशन के शिकार 69 वयस्क लोगों में तीन माह के योग अभ्यास के बाद 20 % व छह माह के बाद 40% सुधार देखने को मिला है। एल्कोहल का सेवन छोड़ चुके लोगों पर परिणाम अधिक सकारात्मक रहे।
ओवरईटिंग: 12 सप्ताह के योगाभ्यास के बाद 90 मोटापे की शिकार महिलाओं में अधिक खाने की आदत में 50 % तक का सुधार देखा गया। शोध के अनुसार योगाभ्यास कर रही महिलाएं अन्य की तुलना में डाइट शेड्यूल का अधिक सतर्कता से पालन करती हैं।
याददाश्त: 8 सप्ताह तक योगाभ्यास कर रहे 30 वयस्कों में अल्पकालिक याददाश्त, फोकस क्षमता व मल्टीटास्किंग में काफी सुधार देखने को मिला।
इनसोमनिया (अनिद्रा): सप्ताह में 3 बार छह माह तक योग करने पर अनिद्रा के शिकार 139 वरिष्ठ नागरिकों में 28 से 30 % तक का सुधार देखने को मिला। उनमें अन्य की तुलना में अवसाद भी कम देखने को मिला।
सिजोफ्रेनिया: सिजोफ्रेनिया के शिकार 18 लोगों पर दो माह के अभ्यास के बाद उग्रता में कमी, उपचार के प्रति सकारात्मक रवैया आदि पक्षों में 30 प्रतिशत का सुधार देखने को मिला।
मोटे तौर पर बीमारियां दो प्रकार की होती हैं, शारीरिक (व्याधि) तथा मानसिक (आधि)। योग के अनुसार, जिसका मन रोगी व कमजोर है, उसका शरीर भी अवश्य रोगी व कमजोर होगा। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जहां रोग को शरीरगत मानता है, वहीं योग में मन पर अधिक जोर दिया जाता है। मानसिक समस्याआें में अवसाद, तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध, मोह, लोभ, पार्किन्सन, एल्जाइमर्स, सिजोफ्रेनिया, भय व असुरक्षा आदि आते हैं। कैवल्य धाम, लोनावला के एक शोध के मुताबिक डायबिटीज, उच्च रक्तचाप जैसे शारीरिक रोगों समेत कई ऐसे मानसिक रोग हैं, जिन्हें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में स्थायी बीमारियां माना जाता है, जबकि नियमित योगाभ्यास से न सिर्फ उन पर सकारात्मक असर होता है, बल्कि मानसिक रोगों को तो शत प्रतिशत ठीक किया जा सकता है।
मानसिक समस्याओं का शरीर पर प्रभाव
यदि मन के तनाव का विज्ञान समझें तो पाएंगे कि तनाव चाहे भावनात्मक हो या मानसिक, यह हमारी पीयूष ग्रंथि को प्रभावित करता है। यह ग्रंथि शरीर की मास्टर ग्रंथि है। इस कारण यह ग्रंथि असंतुलित हार्मोन निकालने लगती है, जिसके असंतुलित हार्मोन स्राव के कारण थाइरॉएड ग्रंथि भी असंतुलित हो जाती है। इससे पूरे शरीर का मेटाबॉलिज्म प्रभावित होने लगता है और उसे हाइपो या हाइपर थाइरॉएडिज्म का शिकार होना पड़ता है। इसी तरह अधिक तनाव से हृदय गति तथा पल्स गति बढ़ जाती है, क्योंकि उस समय शरीर की कोशिकाओं को अधिक रक्त की आवश्यकता होती है। हृदय को अधिक कार्य करना पड़ता है, जिससे थकते-थकते एक दिन शरीर रोगी हो जाता है। इसका परिणाम हाइपरटेंशन और हृदय रोग होता है। अधिक मानसिक तनाव से हमारी सेक्स ग्रंथियां भी असंतुलित हार्मोन निकालने लगती हैं, जिससे नपुंसकता या अति सक्रियता जैसी समस्याएं जन्म लेने लगती हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए उपयोगी आसन
मन को ठीक करने के लिए यौगिक क्रियाएं जैसे पद्मासन, वज्रासन, शीर्षासन, सर्वांगासन, हलासन, भुजंगासन, जानुशिरासन, त्रिकोणासन तथा उष्ट्रासन आदि उपयोगी हैं। इसके अलावा नाड़ी शोधन, उज्जायी प्राणायाम एवं ध्यान का नियमित अभ्यास तन व मन दोनों के लिए उपयोगी है। योग का नियमित अभ्यास स्मरणशक्ति को बढ़ाता है। याददाश्त क्षमता दुरुस्त रखता है। साथ ही रक्त संचालन व पाचन क्षमता में वृद्धि, नसों व मांसपेशियों में पर्याप्त खिंचाव उत्पन्न करने के अलावा योग से मस्तिष्क को शुद्ध रक्त मिलता है। इसके लिए खासतौर पर सूर्य नमस्कार, शीर्षासन, पश्मिोत्तानासन, उष्ट्रासन व अर्धमत्स्येन्द्र आसन आदि करने चाहिए।
हलासन
जमीन पर पीठ के बल लेट जाइये। दो गहरे सांस लें व छोड़ें। इसके बाद दोनों पैरों को जमीन से ऊपर उठाते हुए धीरे-धीरे सिर के पीछे जमीन पर ले जाएं। कमर को जमीन से ऊपर उठाने के लिए हाथ का सहारा ले सकते हैं। हाथों को पीठ के पीछे जमीन पर सामान्य अवस्था में रखें। इस स्थिति में आरामदायक अवधि तक रुक कर पूर्व स्थिति में आ जाएं। सामान्य गति से श्वास लें व छोड़ें।
सीमाएं: उच्च रक्तचाप, हृदय रोग तथा स्लिप डिस्क एवं स्पॉन्डिलाइटिस के रोगी अभ्यास न करें।
उज्जायी प्राणायाम
पद्मासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गले व सिर को सीधा करके बैठिए। दोनों हाथों को घुटनों पर सहजता से रखें। जिह्वा को अग्रभाग से मोड़ कर ऊपरी तालू से सटाएं। गले की श्वास नली को थोड़ा संकुचित कर नासिका द्वारा एक गहरी, लंबी व धीमी श्वास अंदर लें। श्वास लेते समय गले से सीऽ सीऽ सी की आवाज निकलती है, जबकि नाक से सांस छोड़ते समय ह ऽ ह ऽ हऽ ह की आवाज निकलती है। यह उज्जायी प्राणायाम की एक आवृत्ति है। शुरू में 15 से 20 आवृत्तियों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे आवृतियों को बढ़ा कर 120 तक करें।
ध्यान: पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाइये। हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखें। अब दस गहरी श्वास लें और छोड़ें। 10-15 मिनट तक इसका नियमित अभ्यास करें। अभ्यास के दौरान मन को बार-बार विचारों से हटा कर सांसों पर केंद्रित करें। कुछ समय बाद मन एकाग्र होने लगता है व तनाव-अवसाद से मुक्ति मिलने लगती है।
योगनिद्रा
यह मानसिक तनाव और भावनात्मक असंतुलन को दूर करने में मददगार है। योग निद्रा व शिथलीकरण के प्रतिदिन 10 मिनट के अभ्यास से रोजमर्रा के तनाव चेतन तथा अवचेतन मन से हट जाते हैं।
सर्वांगासन
पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं। दोनों पैरों को जमीन से ऊपर उठा कर हल्के झटके से नितम्ब को भी जमीन से ऊपर उठाएं। कमर पर हाथों का सहारा देते हुए गर्दन के नीचे का सारा भाग जमीन से ऊपर उठा कर एक सीधी रेखा में करें। अंतिम स्थिति में पूरा शरीर गर्दन से 90 डिग्री पर ऊपर उठता है। सर्वांगासन की इस स्थिति में आरामदायक समय तक रुकें। इसके बाद वापस पूर्व स्थिति में आएं। स्मरण शक्ति को कमजोर होने से रोकने, उसे बढ़ाने व मस्तिष्क तक शुद्ध रक्त व ऑक्सीजन का संचार करने में इसकी भूमिका अहम है।
क्या कहता है शोध
ड्यूक यूनिवर्सिटी के ड्यूक स्कूल ऑफ मेडिसिन में साइकायट्री विभाग के एक शोध के अनुसार योग मुद्राएं रक्त संचार में सुधार करती हैं। इससे शरीर में एंड्रोफिन्स हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है, जो फोकस और सजगता को बढ़ाता है। शोध के नतीजे इस प्रकार रहे...
डिप्रेशन: डिप्रेशन के शिकार 69 वयस्क लोगों में तीन माह के योग अभ्यास के बाद 20 % व छह माह के बाद 40% सुधार देखने को मिला है। एल्कोहल का सेवन छोड़ चुके लोगों पर परिणाम अधिक सकारात्मक रहे।
ओवरईटिंग: 12 सप्ताह के योगाभ्यास के बाद 90 मोटापे की शिकार महिलाओं में अधिक खाने की आदत में 50 % तक का सुधार देखा गया। शोध के अनुसार योगाभ्यास कर रही महिलाएं अन्य की तुलना में डाइट शेड्यूल का अधिक सतर्कता से पालन करती हैं।
याददाश्त: 8 सप्ताह तक योगाभ्यास कर रहे 30 वयस्कों में अल्पकालिक याददाश्त, फोकस क्षमता व मल्टीटास्किंग में काफी सुधार देखने को मिला।
इनसोमनिया (अनिद्रा): सप्ताह में 3 बार छह माह तक योग करने पर अनिद्रा के शिकार 139 वरिष्ठ नागरिकों में 28 से 30 % तक का सुधार देखने को मिला। उनमें अन्य की तुलना में अवसाद भी कम देखने को मिला।
सिजोफ्रेनिया: सिजोफ्रेनिया के शिकार 18 लोगों पर दो माह के अभ्यास के बाद उग्रता में कमी, उपचार के प्रति सकारात्मक रवैया आदि पक्षों में 30 प्रतिशत का सुधार देखने को मिला।
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