अपराधियों को भारत का शासक बताने वाले अक्षम्य अपराधी हैं
-प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज
वस्तुतः जिसे प्लासी का युद्ध कहते हैं, वह कोई
युद्ध था ही नहीं ।
वह यह था कि सिराजुदौला के दीवान मोहनलाल से उसके ही अधीनस्थ मीर जाफर अली की खटक गई और उधर क्लाईव ने मीर जाफर को घूस देकर इस बात के लिये राजी किया कि जब हम सिराजुदौला से लड़ने आयेंगे तो तुम पूरी पलटन के साथ हमारी ओर आ जानाा। सिराजुदौला से लड़ाई के लिये भी अपनी मक्कारी और छल की आदत के अनुरूप क्लाईव ने एक झूठ रचा था कि सिराजुदौला के हुक्म से अनेक अंग्रेज स्त्री पुरूषों को मार कर एक कुयें में फेक दिया गया है। जबकि यह घटना कभी हुई ही नहीं थी। यह अवश्य है कि सिराजुदौला ने जगतसेठ की पुत्रवधू के प्रति बुरी दृष्टि डाली थी जिसका बदला जगतसेठ ने इस प्रकार क्लाईव को उकसा कर और कुछ रकम देकर लिया। उसी रकम का एक हिस्सा क्लाईव ने मीर जाफर को दे दिया। क्लाईव ने स्वयं लिखा है कि वह छल, तिकड़म, जालसाजी, फरेब और झूठ फैलाने में माहिर है और यही उसकी विशेषता है। जिसके कारण उसे कंपनी की नौकरी मिली थी कि भारत में जाकर कंपनी का कारोबार फैलाने के लिये आवश्यक छल-कपट करना।
घूस खाये हुये मीर जाफर ने अपनी सेना के साथ अचानक पाला बदल लिया और बिना किसी युद्ध के क्लाईव और मीर जाफर वियजी हुये। बाद में मीर जाफर को भी डचों से मिलीभगत का झूठा आरोप लगाकर क्लाईव ने रास्ते से हटा दिया।
मीर जाफर का साथ देने के कारण क्लाईव को और उसकी कंपनी को मुर्शिदाबाद इलाके के तीन जिलों की लगान वसूली का गुमाश्तागिरी का काम दिया गया। क्लाईव चूंकि फरेबी और मक्कार था तथा आदतन झूठा था इसलिये वसूली गई लगान को वह अपने साथ लंदन ले जाता था और नवाब से कह देता था कि क्या करें आपकी प्रजा ने लगान दिया ही नहीं है। गुमाश्तागिरी के मामले में की गई इस नमकहरामी और चोरी को ही कुछ लोग कई गुना बढ़ाकर कंपनी द्वारा भारत की लूट बताते हैं। चोरी से ले जायी जाने वाली यह रकम और गहने, जेवर उन कंगलों और फटेहाल अंग्रेजों के लिये जो मजबूरी में अपने देश से बाहर इस तरह की नौकरी करने गये थे, बहुत अधिक थी परंतु भारत के लिये तो वह नगण्य ही थी। यह बात आज सभी अंग्रेज लेखकों को पता है। क्लाईव को भी अंत में अपनी इन्हीं टुच्ची हरकतों के कारण ब्लेड से हाथ की नस काट कर आत्महत्या करनी पड़ी थी।
उसके बाद आये वारेन हेस्टिंग्स ने भी कुछ इसी तरह की लूट और छल फरेब किया था जिसके कारण उस पर इंग्लैंड की संसद में लंबा मुकदमा चला था जिसमें उस पर गंभीर अभियोग लगाये थे। (इसके लिये देखिये, प्रयाग से प्रकाशित ‘वारेन हेस्टिंग्स का मुकदमा’)
इनमें 121 अभियोग अत्यन्त गंभीर थे। जिनमें से कुछ हैं -
1 कुछ हिन्दू राजाओं और मुस्लिम नवाबों से लगान वसूली का जो अधिकार बंगाल, बिहार और उड़ीसा में कंपनी को मिला था उस अधिकार का हेस्टिंग्स और उसके साथियों ने जमकर दुरूपयोग किया और डकैतों से रक्षा के लिये जो रक्षक दल रखे थे, उनको कुछ दिनों बाद अपनी अलग सेना के रूप में विकसित किया गया जिसकी अनुमति उन्होंने कभी भी इंग्लैंड से प्राप्त नहीं की थी और भारत के राजाओं तथा नवाबों ने यह अनुमति अपनी परंपरा का ध्यान रखते हुये इसलिये दे दी कि वहां कभी भी व्यापारी लोग मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते और सब के पास रक्षक दल होते हैं। परंतु वे कभी भी इनका दुरूपयोग राज्य प्राप्ति के लिये नहीं करते।
2 कंपनी ने कभी भी इंग्लैंड के शासन से भारत में जाकर राजनीति करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं किया परंतु यह भारत में जाकर राजनीति कर रहा है और इसलिये वारेन हेस्टिंग्स राजद्रोह का अपराधी है।
3 वारेन हेस्टिंग्स ने लगातार अवैध तरीकों से ही धन कमाया और भारत के राजाओं तथा नवाबों को यह झांसा दिया कि वह ब्रिटिश शासन की अनुमति से और उसके अंग के रूप में ही काम कर रहा है। ब्रिटिश शासन से मैत्री के इच्छुक राजाओं और नवाबों ने इसीलिये कंपनी की मनमानी भी बर्दाश्त की। उनकी इस भावना का कंपनी के कर्मचारी वारेन हेस्टिंग्स और उसके सहयोगियों ने दुरूपयोग कर अपराध किया। इसने वहां अमानवीय व्यवहार किये और अत्याचार किये तथा अपनी कंपनी के साथ भी भारी धोखाधड़ी की और वहां होने वाली आमदनी को कंपनी से छिपाकर स्वयं ही हड़प लिया।
4 वारेन हेस्टिंग्स और उसके द्वारा रखे गये कंपनी के कर्मचारी कोई वकील बन बैठा और कोई जज जबकि वे लोग कानून का ए बी सी भी नहीं जानते थे और इस तरह भारत में कानून के प्रति सम्मान की जो सुदीर्घ परंपरा रही है उसके कारण लोगों ने इनकी जालसाजी को ब्रिटिश शासन के ही दोष माना जो राजद्रोह है और इंग्लैंड के कानून का अपमान करने की जानबूझ कर की गई साजिशन कार्रवाई है।
5 हेस्टिंग्स ने भेदियों का बहुत बड़ा जाल वहां फैलाया और बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा के नीचतम लोगों को अपने साथ लिया तथा बहुत भयानक रूप से पूरे इलाके में व्याभिचार फैलाया तथा कंपनी को व्याभिचारियों, अपराधियों, ठगों, जालसाजों और फरेबियों की एक संस्था ही बना दिया। जिसके कारण ईस्ट इंडिया कंपनी को लज्जा के दलदल में फसना पड़ा है।
6 ब्रिटिश शासन से कोई भी अनुमति लिये बिना कानून के विषय में अनपढ़ और अज्ञानी ये लोग भारत में ब्रिटिश शासन की ओर से न्याय करने का झूठा नाटक करने लगे और कानून की धज्जियां उड़ाते हुये मनमाने निर्णय किये जिसके कारण ब्रिटिश न्याय के प्रति भारत में दुर्भाव पैदा हुआ और अश्रद्धा बढ़ी जिसका मुख्य अपराधी वारेन हेस्टिंग्स है। भारत के प्रमुख राजाओं ने इस विषय में ब्रिटिश शासन से संपर्क भी किये हैं क्योंकि भगवान की कृपा से वे लोग ब्रिटेन के विषय में अच्छी भावना रखते हैं और उससे मैत्रीसंबंध बढ़ाने को उत्सुक हैं।
7 इन्होंने ब्रिटिश शासन की अनुमति के बिना भारत में जाकर शासक बनने का दुस्साहस किया और अपने दलालों को ही झूठा गवाह बनाकर अपने झूठे वकीलों से और झूठे जजों से मनमाना फैसला करवाया और उसे ही ब्रिटिश न्याय बताया जो भयंकर अपराध है और इंग्लैंड के कानून का अपमान है।
8 भारत के लोगों में उच्चतम नैतिक अनुशासन है और वहां एक सुसभ्य व्यवस्था है तथा वहां के लोगों में शक्ति और दृढ़ता है। हेस्टिंग्स ने भारतीय समाज में इन गुणों को नष्ट करने के लिये नीचतम हथकंडे अपनाये। यह इसका गंभीर नैतिक अपराध है।
9 हेस्टिंग्स ने बंगाल के एक नवाब मीरजाफर के दरबार में कंपनी की ओर से काम करते हुये वहां के सबसे नीच और धूर्त तथा भयंकर काम करने वाले कासिम अली खां से छल कपट और दुराचरण के हथकंडे सीखकर उस नवाब को ही मार डाला जिसने इसे शरण दी थी।
10 झूठी जांच और झूठी अदालतों का फरेब से भरा नाटक लगातार खेलते हुये वारेन हेस्टिंग्स ने अनेक निर्दोष धनी लोगों को झूठे मुकदमें में फंसाया और झूठी गवाहियों के आधार पर उन्हें मृत्युदंड सुनाते हुये उनका सारा धन लूट लिया। ऐसे भयंकर अत्याचार वारेन हेस्टिंग्स ने लगातार किये जिसके कारण कंपनी के प्रति लोगों में गुस्सा बढ़ा और ब्रिटिश शासन के बारे में भी खराब राय बनी। इसने अनेक हत्यायें करायी। कई बार तो बिस्तर में शांति से सोये हुये लोगों की हत्यायें कराईं और फिर अफवाह फैला दी कि आग लगने से या बिजली गिरने से वे मरे हैं।
11 इसने जानबूझकर हिन्दुओं का धर्मभ्रष्ट किया और ऐसे-ऐसे अत्याचार किये जिससे कि आतंक से लोग कांपने लगंे।
12 बंगाल का जगत सेठ बहुत बड़ा धनी व्यक्ति था और उसका व्यापारिक संबंध सारे संसार से था। बैंक ऑफ इंग्लैंड की भांति ही उसका कारोबार था। उसकी फर्म ही बंगाल में चांदी की खरीद करती थी और उसकी कृपा से ही कंपनी मुर्शिदाबाद में एक टकसाल खोल सकी थी। यह जगत सेठ अपनी सत्यनिष्ठा और धर्मनिष्ठा के लिये प्रसिद्ध था। वारेन हेस्टिंग्स के निर्देश पर कंपनी के कर्मचारियों ने जगतसेठ के समस्त परिवार की हत्या कर दी और उनकी पूरी धन-सम्पत्ति, गहने-जेवर तथा रत्न-आभूषण लूट लिये। इसके कुछ समय के भीतर उन सब भारतीयों की भी हत्या कर दी जिन्होंने इन भयंकर अपराधों में कंपनी के कर्मचारी के रूप में या कंपनी के मित्र के रूप में वारेन हेस्टिंग्स का साथ दिया था।
13 भारतीय व्यापारियों पर झूठे आरोप लगाकर वे उनकी गद्दियां छीन लेते और फिर उन गद्दियों की नीलामी करते जिसमें जालसाजी और फरेब किया जाता तथा अक्सर सबसे ऊंची बोली लगाने वाले हिन्दू धनियों को वह गद्दी न देकर किसी मुसलमान को दे देते जो बदले में उनके बहुत से गलत काम करता था। राजा नंदकुमार तक के साथ यही धोखा-धड़ी की गई और मोहम्मद रजा खां के पक्ष में नीलामी घोषित कर दी। इस प्रकार घूसखोरी और पक्षपात का अंतहीन क्रम वारेन हेस्टिंग्स ने चलाया।
14 यहां तक कि नवाबों और राजाओं के उत्तराधिकारी भी तय करने का दुस्साहस वारेन हेस्टिंग्स करने लगा। राजाओं पर झूठे मुकदमें चलाये गये और उनपर वारेन हेस्टिंग्स की हत्या का झूठा आरोप लगाकर झूठे गवाहों और नकली वकीलों के द्वारा मुकदमा चलवाकर झूठे जजों के द्वारा फांसी की सजा सुनाई जाती रही। ये जज ब्रिटिश शासन और ब्रिटिश कानून का क ख ग भी नहीं जानते थे।
15 इस तरह इन्होंने उत्तरी भारत का आधा हिस्सा बर्बाद कर दिया और भारत के हमारे बड़े बाजार को खतरा पैदा हो गया। साथ ही हेस्टिंग्स ने भारत में राजनैतिक गुटबाजियों के द्वारा गृहयुद्ध फैलाया। अपने पापों को ढंकने के लिये हेस्टिंग्स ने भारत के बारे में और भारतीय समाज के बारे में झूठी बातें फैलाईं तथा वहां ऐसी बुराईयों का होना इंग्लैंड में प्रचारित किया जो वहां कभी थी ही नहीं।
16 अब यह वारेन हेस्टिंग्स अपने पक्ष में यह तर्क दे रहा था कि मैं तो एक गरीब स्कूली लड़का था और इंग्लैंड से दूर उस अनजानी जगह में अपना स्थान बनाने के लिये जो कुछ वहां संभव लगा वह करता रहा और मैंने सारा व्याभिचार और अपराध वहां के ही कासिम अली खां जैसे लोगों से सीखा है। अतः मुझे क्षमा कर दिया जाये। यह इसका बहुत बड़ा फरेब और धूर्तता है। इसकी चालाकी क्षमा के योग्य नहीं है।
17 शुरू में इसने इंग्लैंड की इस छोटी सी कंपनी - ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में लूट और फरेब से प्राप्त की गई दौलत मुनाफा बताकर दी। जिसके कारण इंग्लैंड में बैठे हुये कंपनी के डायरेक्टर्स ने उसे सफल कारोबारी मानकर इसके लिये धन्यवाद प्रस्ताव भी जारी किया। अपने बचाव में यह उसका उदाहरण दे रहा है। जो इसके हथकंडों का ही एक और प्रमाण है।
18 इसने भारत के कुछ राजाओं को हत्या की धमकी देकर उनसे अपने पक्ष में प्रमाण पत्र प्राप्त किये हैं और कुछ नकली राजा भी इसने बनाये हैं। जिनके प्रमाण पत्र यह प्रस्तुत कर रहा है। भयादोहन और जालसाजी से प्राप्त इन प्रमाणपत्रों को प्रस्तुत कर यह अपना बचाव चाहता है। जो कि इसका एक और अपराध है।
19 इसने अत्याचार, अपराण, हिंसा, लूटपाट और जोर-जबरदस्ती से लोगों से धन वसूलने और संपत्ति हड़पने को ही व्यापार का नाम दे रखा है। इसके पास अपहरण करने वालों का एक जाल था जिनके द्वारा वह लोगों का अपहरण कराता था और बदले में फिरौती वसूल करता था। धन नहीं मिलने की स्थिति का यह हत्या कर देता था।
20 इसने धनी लोगों के नौकरों से संबंध बनाये और उनसे झूठी शिकायतें करवाई तथा जाली वकीलों से उनकी पैरवी करवाई और फिर जाली जजों से कड़ी सजायें सुनवाईं। इस प्रकार इसने श्रेष्ठतम भारतीय परिवारों को बर्बाद कर दिया। राजा नंदकुमार जैसे शक्तिशाली और सुयोग्य व्यक्ति को, जिससे इसने भरपूर मदद प्राप्त की थी, बाद में झूठे आरोप लगाकर उन पर झूठा मुकदमा चलाया। जब राजा नंदकुमार ने अपने पक्ष में अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत कर दिये तब भी वारेन हेस्टिंग्स ने अपने दोस्त न्यायाधीश के जरिये राजा नंदकुमार को दोषी घोषित कर फांसी पर चढ़ा दिया। यह इसके भयंकर अपराधों का एक भयावह उदाहरण है।
21 इसने कंपनी का कर्मचारी होते हुये भी राजाओं की तरह विलासिता करने का सिलसिला चलाया और वेश्याओं के साथ रंगरेलियां करते हुये उनसे गलत काम करवाता रहा और ऐसी कई वेश्याओं को, जैसे कि वेश्या मुन्नीबाई को, जागीरदार भी बना दिया।
22 कई नवाबों से इसने प्रतिवर्ष लाखों रूपये वसूल किये और उसका चौथा हिस्सा ही यह कंपनी को देता रहा तथा शेष रकम स्वयं डकारता रहा।
23 इसने ऐसे लोगों का जाल बिछाया जो लोगों के पारिवारिक रहस्यों को जानकर उन्हें ब्लेकमेल करते थे और फिर बरबाद कर देते थे। इस तरह इसने बहुत बड़ी अवैध कमाई की।
24 इसने व्यापारिक कंपनी को कंपनी सरकार का झूठा नाम दिया जिसके लिये वह कभी भी अधिकृत नहीं था। इसने अपने इलाके में वेश्यालयों का जाल बिछा दिया और वहां से सुंदर युवतियां निरंतर कंपनी के लोगों को सुलभ कराईं जाती थीं। फिर उनसे शराब और स्वादिष्ट भोजन तथा सुगंधित तंबाकू के नशे में बेहोशी की हालत में दबाव देकर गंदे काम के लिये उनसे सहमति प्राप्त की जाती थी। लोगों की व्यभिचार की भावना को जगाकर उन्हीं से रूपये ऐंठकर उनकी मौज का इंतजाम करना इसका पेशा ही बन गया था। ऐसे लोगों का जाल बिछाकर इसने अंधाधुंध कमाई की और इस क्रम में बंगाल के परंपरागत जागीरदारों को जालसाजी से फंसाकर लूट लिया। उनसे कौड़ियों के मोल जमीनें खरीदीं और फिर हजारों के दाम उन्हें बेचा। इस तरह से इसने अंतहीन कमाई की।
25 बंगाल में मुसलमानों से युद्ध के दौरान मारे गये राजाओं की पत्नियां रानी बनीं क्येांकि बंगाल में धर्मशास्त्र की मिताक्षरा शाखा के अनुसार विधवा स्त्री ही संपूर्ण सम्पत्ति की मालिक होती है। इन उच्च वर्ग की स्त्रियों पर लगान की दरें बढ़ाने का दबाव देकर इसने मनमाना लगान वसूलना चाहा जिसे उन रानियों ने मना कर दिया तब इसने उनमें से कई को झूठे आरोपों में जेलों में बंद कर दिया और दबाव देकर कागजातों पर हस्ताक्षर कराये तथा उनकी जागीरों पर कब्जा कर लिया और फिर उन्हें नीलामी में ऐसे गंदे और गलत लोगों को बेच दिया जिन्होंने हेस्टिंग्स के इशारे पर अपनी जागीर के किसानों पर भयंकर अत्याचार किये और उनसे सब कुछ छीन लिया। इसके द्वारा किये गये अत्याचारों में कारीगरों और किसानों के हाथ काटकर उन्हें लूला बना देना, उंगलियां रस्सी से कसकर बांधकर बीच में लोहे की सलाखा जबरन घुसेड़कर असहय यंत्रणा देना और कोड़ों और जूतों से घंटो पिटाई करना जिससे आंख, नाक और मुंह से खून की धारा बहने लगे तथा कांटेदार हथियारों से लोगों को मारकर उनके शरीर को बुरी तरह फटने की स्थिति में डालकर मरने के लिये छोड़ देना शामिल है।
26 जागीरदार परिवारों की और अन्य धनी परिवारों की सुन्दर कुंवारी कन्याओं को जबरन उठाकर लाया जाता और उनसे दुराचार किया जाता और फिर उन्हें वस्त्रविहीन स्थिति में सड़क पर खदेड़ दिया जाता जिससे कि उनकी इज्जत खत्म हो जाये। उनके स्तनों पर लाठियों और कुन्दों से प्रहार किया जाता। एडमन बर्क ने ऐसे अवर्णनीय अत्याचारों की विस्तृत सूची इंग्लैंड की संसद में प्रस्तुत की है।
27 बंगाल में ब्राह्मण बहुत सम्पन्न थे और अपने संस्कारों तथा ज्ञान के लिये प्रतिष्ठित थे। उन्हें जानबूझकर अपमानित करने के लिये बैल की पीठ पर बैठाकर शहर में ढोल पीटते हुये घुमाया जाता था। दबाव बनाकर उनसे जाली कागजातों पर हस्ताक्षर कराये जाते थे और फिर उनका सबकुछ लूट लिया जाता था। कई ब्राह्मण इज्जत खोने के डर से जंगलों में भाग कर छिप जाते जहां कई बार उन्हें बाघ या चीते खा जाते और अगर वे कुछ दिनों बाद जीवित रहने पर घर आते तो उन्हें किसी न किसी बहाने कत्ल कर दिया जाता। ऐसे अत्याचारों से जा रही कमाई अधिक दिन टिकने वाली नहीं थी। अतः यह व्यक्ति वारेन हेस्टिंग्स भारत के निवासियों का अपराधी है। विधवाओं और अनाथों की लूट का अपराधी है। विश्वासघात का अपराधी है। क्रूरता और हत्याओं का अपराधी है तथा अपहरण, लूट, घूसखोरी और छलफरेब का अपराधी है एंव स्त्रियों की प्रतिष्ठा नष्ट करने का अपराधी है इसके साथ ही यह ब्रिटेन के राष्ट्रीय चरित्र को कलंकित करने का अपराधी है और मानवप्रकृति का भी अपराधी है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि कंपन के ये कर्मचारी नीचतम एवं घृणिततम अपराधी थे और इनके अपराध सदा के लिये अक्षम्य हैं।
।परंतु इन कर्मचारियों की फरेबी कंपनी को उनके जाने के बाद भी कंपनी सरकार लिखना और भारत के सत्यनिष्ठ तथा न्यायप्रिय लोगों को वंचना और विश्वासघात के कारण कष्ट और यंत्रणा पाने की दशा को उनकी गुलामी बताना स्वयं में अक्षम्य अपराध है।
ऐसे अपराधी भारतवर्ष में 15 अगस्त 1947 के बाद शिक्षित और प्रबुद्ध बनकर चारों ओर छा गये हैं।
✍🏻रामेश्वर मिश्रा पंकज