रविवार, 26 सितंबर 2021

रवि अरोड़ा की नजर से

 उसका भी खाना खराब / रवि अरोड़ा



उर्दू के मशहूर शायर अब्दुल हमीद अदम मेरे पसंदीदा शायर हैं । उनका मुरीद मैं तीन वजह से हूं । पहली वजह है कि वे उस कस्बे तलवंडी में पैदा हुए जहां के बाबा नानक थे । दूसरी वजह यह है कि वे मेरे आदर्श प्रगतिशील आंदोलन से तपे शायर थे और तीसरी वजह है उनका यह कालजई शेर -  दिल खुश हुआ मस्जिद ए वीरां को देख कर , मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है । अब इस मुए कोरोना ने मुझ जैसे लाखों करोड़ों का खाना खराब तो  किया ही है । किसी ने अपनों को खोया तो किसी ने सेहत गंवाई । किसी का काम धंधा चौपट हुआ तो किसी का रोज़गार गया । अपनी सामाजिक,धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं के चलते हमें हर बात के लिए ईश्वर को जिम्मेदार मानते का युगों से अभ्यास रहा है सो अब इस दौरे खाना खराबी में अपने इष्ट को बरी भी लोग बाग कैसे कर पा रहे हो होंगे । जाहिर है कि ऐसे में जब ईश्वर की भी खाना खराबी की कोई खबर मिले तो वहां ध्यान जाना स्वाभाविक ही है ।


 वैसे सकता हो कि यह मेरी दिमागी खलिश हो मगर इसे सिरे से खारिज तो शायद आप भी न कर सकें । खलिश यह है कि देश दुनिया में धर्म की दुकानें अब खतरे में हैं । हालांकि खतरे में तो धर्म भी है मगर अपनी बात के केंद्र मे इसे रख कर मैं आपको नाराज नहीं करना चाहता । पिछले डेढ़ साल से जब से कोरोना की आमद हुई है , अधिकांश धार्मिक स्थलों पर ताले लटक रहे हैं । दुर्गा पूजा, गणेश प्रतिमा विसर्जन, रामलीलाएं, कुंभ मेले, कांवड़ , अमरनाथ , चारधाम और जगन्नाथ रथयात्राओं पर तो ग्रहण लग ही गया है मजार और उर्स भी वीरान हो चले हैं।  हैरानी की बात यह है कि जिन धार्मिक स्थलों पर जाने की कोई पाबंदी नहीं है , वहां भी उतने लोग नही जा रहे जितने पहले जाते थे । नतीजा बड़े बड़े धार्मिक स्थल घाटे में हैं और उन्हें अपना खर्च निकालना भारी पड़ रहा है । और तो और देश का सबसे अमीर पद्मनाभ स्वामी मंदिर भी नुकसान में है । कल ही खबर आई है कि तिरुवंतपुरम स्थित इस मंदिर में रोजाना का चढ़ावा खर्च के लगभग आधा है । हो सकता है केरल में कोरोना के भारी प्रकोप के चलते यह मंदिर खाली पड़ा हो मगर उत्तराखंड में तो कोरोना नहीं है , वहां की चार धाम यात्रा क्यों पहले ही दिन वीरान रही ? अन्य धार्मिक स्थल भी अभी तक क्यों सूने हैं ? 


हमारे मुल्क में सभ्यता की शुरुआत से ही धर्म एक बड़ा बिजनेस मॉड्यूल रहा है । अगर इसे हम अपना सबसे पहला व्यवसाय कहें तो शायद अतिशोक्ति नही होगी । खेती, टेक्सटाइल और आई टी सेक्टर के बाद सबसे बड़ा रोजगार का साधन भी धर्म, उसके केंद्र और उन पर आश्रित व्यवसाय ही हैं । कहना न होगा कि कोरोना ने सब की हवा खराब कर दी है । खास बात यह कि महामारी ने कोई भेदभाव नहीं किया । आस्तिकों को भी उतना लपेटा जितना नास्तिकों को । अब आक्सीजन अथवा इलाज के बिना अपनों को मरते देख कर किसी आस्तिक का भक्ति भाव और मजबूत हुआ होगा, ऐसा नहीं हो सकता । बेशक लोग बाग हरि इच्छा को स्वीकार किए बैठे हों मगर उसके समक्ष नतमस्तक तो वे कदापि नहीं हुए होंगे । अपनो के लिए मांगी गई मन्नतें भी जब स्वीकार नहीं हुईं तो वह भी अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई होंगी । जाहिर है ऐसे में धार्मिक स्थलों में भीड़ कम होने की वजह लोगों की डगमगाई आस्था भी थोड़ी बहुत जरूर होगी ।


मैं कतई उम्मीद नहीं कर रहा कि आप मेरी बात से सहमत हों । आपकी तरह मुझे भी पूरी उम्मीद है कि धार्मिक स्थानों पर कोरोना के खत्म होने के बाद पुनः भीड़ भाड़ होने लगेगी और तमाम धार्मिक स्थल फिर से गुलज़ार होंगे मगर फिर भी आज के हालात को देखते हुए तो आप भी अदम साहब को दाद देने से अपने कैसे रोक पाएंगे जिन्होंने दशकों पहले ही मस्जिद की वीरांनगी में खुदा की खाना खराबी पहचान ली थी ।

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