बंगाली मार्केट में 1972 से.../ विवेक शुक्ल
बंगाली मार्केट जाने का मतलब होता है अपनी जड़ों में लौटना। अपने बचपन और जवानी से फिर से रु ब रु होना। घर, स्कूल और फिर लंबे समय तक दफ्तर बंगाली मार्केट के करीब रहा। एक दौर था जब हर रोज या हर दूसरे दिन बंगाली मार्केट में दोस्तों के साथ मिलना-जुलना रहता था। जाहिर है, वह सिलसिला तो अब नहीं रहा। पर हफ्ते में एक-दो चक्कर बंगाली मार्केट के ना लगे तो चैन नहीं पड़ता। कल फिर बंगाली मार्केट में जाना हुआ। यहां पर दिवाली के उत्साह को महसूस किया जा सकता था। एक बेहद खुशनुमा माहौल था। हवा में कुछ ठंडक महसूस हो रही थी। उस दौरान अगर पचास साल पुराने सुख-दुख के बाल सखा गौस मोहम्मद,अनादि बरूआ और गिरीश के साथ बात से बात से निकलने लगे तो आप समझ सकते हैं कि फिर बात दूर तक जाती है। गौस ने ही गिरीश से एक अरसा पहले मिलवाया था। गौस और गिरीश लंगोटिया यार रहे हैं। दोनों के पिता भी अच्छे परिचित थे।
गिरीश के पिता लाला भीमसेन बंगाली मार्केट की जान थे। अब उनके जैसे सज्जन लोग ढूंढने से भी नहीं मिलते। अरबों रुपया कमाने क बाद भी कभी ऊंची बात नहीं करते थे। गिऱीश को भी वही संस्कार मिले हैं। हिन्दुस्तान की कौन सी गैर-मामूली शख्सियत है जिसने लाला भीमसेन की दुकान से मुंह मीठा नहीं किया। यहां अटल बिहरी वाजपेयी से लेकर नंदन नीलकेणी आते रहे हैं।
बंगाली स्वीट हाउस में हम तीनों दोस्त ना जाने क्या-क्या खा चुके थे तब गिरीश काम-धाम छोड़कर आ गए। हमारे से दोस्ताना लहजे में शिकायत करने लगे- “विवेक, तुमने यार लिख दिया था कि नरेश गोयल (जेट एयरवेज) हमारे यहां आता था। इसी बंगाली मार्केट में रहता था। सच्चाई यह है कि नरेश तो हमारे यहां मैनेजर था। अब भी दिल्ली आता है तो एक फोन जरूरत कर ता है।” उसके बाद तो उन्होंने किस्सों की झड़ी लगा दी। वे किस्से सुना रहे थे और हम बीच-बीच में देख रहे थे कि दिल्ली मिठाई के डिब्बे लगातार पैक करवा रही थी। अच्छा लगा कि मिठाई को लेकर दिल्ली की निष्ठा बरकरार है। डॉक्टरों की मिठाई से दूर रहने की सलाह को वह मानने को तैयार नहीं है।
बंगाली मार्केट का पहले वाला चरित्र बना-बचा हुआ है। यहां पर नान-वेज डिशेज नहीं बिक सकते । बंगाली मार्केट की तासीर ही इस तरह की है.
एक बात अपने प्यारे दोस्तों पर भी. ये दोनों सुबह शाम खेलों की दुनिया में रहते हैं. Anadi Barua 1986 में भारतीय फुटबाल टीम से बैंकॉक एशियन गेम्स में खेले. भारतीय महिला टीम के कोच रहे. Ghaus Mohd दिल्ली की फुटबाल टीम से संतोष ट्रॉफी में खेले. अब फुटबॉल की commentary भी करते हैं. दोनों ने जिन्दगी को खेल ही समझा है.
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