मौताना प्रथा राजस्थान में मेवाड़ क्षेत्र के जनजातीय समुदाय में प्रचलित है। यह प्रथा राजस्थान के प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमन्द और उदयपुर आदि में भी प्रचलित है।
मुख्य बिंदु
- मेवाड़ क्षेत्र के जनजातीय समुदाय में प्रचलित इस परम्परा के अनुसार किसी व्यक्ति की मौत या किसी अन्य तरह के नुकसान की स्थिति में पीड़ित पक्ष को दूसरे पक्ष से मुआवज़ा लेने का अधिकार है।
- यदि दूसरा पक्ष इससे इंकार करता है तो वह उसके घर में आग लगा सकता है या उसी तरह की वारदात को अंजाम दे सकता है।[1]
- मीणा और भील जनजाति बहुल इस क्षेत्र में 'मौताना' नहीं देने पर 'चनोतरा' की परम्परा भी है, जिसके अनुसार यदि आरोपी पक्ष पीड़ित पक्ष को मुआवज़ा नहीं देता है तो पीड़ित पक्ष को उससे बदला लेने का हक़ है। वह उसके घर को आग लगा सकता है, उन्हें पीट सकता है या क्षतिपूर्ति मिलने तक मृतक के शव को उसके घर के सामने रखकर प्रदर्शन कर सकता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राजस्थान में 'मौताना' से कानून-व्यवस्था की समस्या (हिन्दी) देशबंधु। अभिगमन तिथि: 14 मार्च, 2015।
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