भाग्य और मेहनत
प्रेम प्रकाश जुनेजा 🙏
प्रस्तुति - आत्म स्वरूप
जब तक आदमी मृत्यु पर विजय नहीं पा लेता तब तक धर्म और ईश्वर का अस्तित्व और महत्व बना रहेगा ।
हम ईश्वर के दर्शन दूसरों को भले ही न करवा पायें लेकिन ईश्वर के चमत्कार हमें ईश्वर का अनुभव करवाते हैं ।
जीवन में भाग्य पहले है मेहनत आदि सब बातें बाद में हैं ।
किस बच्चे को किस घर में जन्म मिलता है यह उसके भाग्य की बात है । गरीब परिवार में जन्म लेने वाले बच्चे जीवन भर भूख अपमान और कष्ट झेलते हैं साथ ही देश कोई पांच सात गरीब बच्चे और दे जाते हैं । फिर ये पांच सात गरीब बच्चे इस श्रृंखला को आगे बढ़ाते चले जाते हैं । इस तरह बढ़ते बढ़ते देश में आज गरीबों की संख्या 80 करोड़ हो गयी है । बच्चा पैदा करने में पुरुष को तो कोई अतिरिक्त मेहनत भी नहीं करनी पड़ती जबकि गरीब कुपोषित औरत नौ महीने तक बच्चे को पेट में पालकर कुपोषित बच्चे को जन्म देती है ।
कार्ल मार्क्स को इन समस्याओं का हल निकालने पर विचार करना चाहिए था । इसकी बजाय उसने फालतू में दुनिया भर की खूनखराबे और कत्लेआम करवाने वाली किताबें लिख गया ।
दलित परिवार में जन्म लेने वाले बच्चे जीवन भर सामान्य जीवन नहीं जी पाते चाहे वे आगे चलकर कलक्टर बन जायें या मंत्री । महामहिम पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उनकी पत्नी को दलित होने के कारण उड़ीसा के भगवान जगन्नाथ मंदिर में पंडों की धक्का मुक्की और अपमान सहना पड़ा । दूसरी पहले राष्ट्रपति महामहिम राजेंद्र प्रसाद और डाक्टर राधाकृष्णन के अलावा कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता और मेहनत के बल पर राष्ट्रपति नहीं बने जी हाँ डाक्टर अब्दुल कलाम भी । डाक्टर अब्दुल कलाम अटल बिहारी वाजपेयी के कारण राष्ट्रपति बन गये । उस समय अगर प्रधानमंत्री की गद्दी पर नरेंद्र मोदी होते तब अब्दुल कलाम या कोई मुस्लिम राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति नहीं बन पाता । कांग्रेस के शासन में अनेक मुस्लिम राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति बने लेकिन अपनी मेहनत और योग्यता के बल पर एक भी नहीं बन सकता था । इसी तरह पहले श्री के आर नारायणन और अब श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जैसे दलित पिछड़े आदिवासी भाग्य के बल पर राष्ट्रपति बने हैं नकि मेहनत और योग्यता के बल पर । जो श्रीमती द्रोपदी मुर्मू राज्यपाल पाल रहने के बावजूद अपने पैतृक गांव में बिजली तक न पंहुचा सकीं वह अचानक से इतने बड़े देश की राष्ट्रपति बन जाती हैं ।
यही ईश्वर और भाग्य का प्रत्यक्षीकBरण है ।
Prem Juneja
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें