- 16 दिसंबर 2014
क्या बल्ब जलाने और घरों को रोशन करने के लिए बिजली ग्रिड की जगह आलू का इस्तेमाल संभव है?
शोधकर्ता राबिनोविच और उनके सहयोगी पिछले कुछ सालों से लोगों को यही करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.ये सस्ती धातु की प्लेट्स, तारों और एलईडी बल्ब को जोड़कर किया जाता है और उनका दावा है कि ये तकनीक दुनियाभर के छोटे कस्बों और गांवों को रोशन कर देगी.
पढ़ें विशेष रिपोर्ट
येरुशलम की हिब्रू यूनिवर्सिटी के राबिनोविच का दावा है, "एक आलू चालीस दिनों तक एलईडी बल्ब को जला सकता है."राबिनोविच इसके लिए कोई नया सिद्धांत नहीं दे रहे हैं. ये सिद्धांत हाईस्कूल की किताबों में पढ़ाया जाता है और बैटरी इसी पर काम करती है.
इसकी खोज वर्ष 1780 में लुइगी गेल्वनी ने की थी जब उन्होंने मेंढ़क की मांसपेशियों को झटके से खींचने के लिए दो धातुओं को मेंढ़क के पैरों में बांधा था.
लेकिन आप इसी प्रभाव को पाने के लिए इन दो इलेक्ट्रोड्स के बीच कई पदार्थ रख सकते हैं.
एलेक्जेंडर वोल्टा ने नमक के पानी में भीगे हुए कागज का इस्तेमाल किया था. अन्य शोधों में धातु की दो प्लेट्स और मिट्टी के एक ढेर या पानी की बाल्टी से 'अर्थ बैटरियां' बनाई गईं थीं.
आलू पर शोध
- आलू को आठ मिनट उबालने से आलू के अंदर
कार्बनिक ऊतक टूटने लगे, प्रतिरोध कम हुआ और इलेक्ट्रॉन्स ज़्यादा मूवमेंट
करने लगे- इससे अधिक ऊर्जा बनी.
- आलू को चार-पाँच टुकड़ों में काटकर इन्हें तांबे और ज़िंक की प्लेट के बीच रखा गया. इससे ऊर्जा 10 गुना बढ़ गई यानी बिजली बनाने की लागत में कमी आई.
- राबिनोविच कहते हैं, "इसकी वोल्टेज़ कम है, लेकिन ऐसी बैटरी बनाई जा सकती है जो मोबाइल या लैपटॉप को चार्ज कर सके."
- एक आलू उबालने से पैदा हुई बिजली की लागत 9 डॉलर प्रति किलोवाट घंटा आई, जो डी-सेल बैटरी से लगभग 50 गुना सस्ती थी.
- विकासशील देशों में जहां केरोसिन (मिट्टी के तेल) का इस्तेमाल अधिक होता है, वहां भी यह छह गुना सस्ती थी.
भारतीय नेता आलू बैटरी से बेख़बर?
वर्ष 2010 में दुनिया में 32.4 करोड़ टन आलू का उत्पादन हुआ. यह दुनिया के 130 देशों में उगाया जाता है और स्टार्च का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है.राबिनोविच कहते हैं, "हमने सोचा था कि संगठन इसमें दिलचस्पी दिखाएंगे. हमने सोचा था कि भारत के राजनेता हमें हाथों-हाथ लेंगे."
फिर ऐसा क्या हुआ कि तीन साल पहले हुए इस शोध की तरफ दुनियाभर की सरकारों, कंपनियों या संगठनों का ध्यान नहीं गया.
राबिनोविच कहते हैं, "सीधा सा जवाब है, वे शायद इसके बारे में जानते ही नहीं हैं."
अंग्रेज़ी में मूल लेख यहां पढ़ें, जो कि बीबीसी फ्यूचर पर उपलब्ध है.
मामला जटिल?
लेकिन वजह शायद इतनी सीधी नहीं है, मामला कुछ जटिल है.कीनिया जैसे देश में लोगों के लिए मक्का के बाद आलू सबसे प्रमुख भोजन है. वहाँ छोटे किसानों ने इस साल एक करोड़ टन आलू उगाए.
विशेषज्ञों के अनुसार इनमें से 10-20 प्रतिशत स्टोर न किए जाने या अन्य वजहों से नष्ट हुए और वो तो ज़रूर ऊर्जा पैदा करने के काम में लगाए जा सकते थे.
केले के छिलके
शायद यही वजह है कि श्रीलंका की केलानिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने केले के तने से यह प्रयोग करने की ठानी है.ऊर्जा तो ज़िंक के घिसने से पैदा होती है. इसका मतलब कुछ देर बाद ज़िंक दोबारा लगाना होगा.
लेकिन ज़िंक सस्ता है और ज़िक इलेक्ट्रोड लगभग पांच महीने तक चलता है और इसकी कीमत एक लीटर केरोसीन के बराबर आती है.
कम से कम श्रीलंका में तो एक लीटर केरोसीन एक परिवार दो रात में ही इस्तेमाल कर लेता है.
अगर ज़िंक उपलब्ध नहीं है तो मैग्नीशियम और लोहे को भी विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
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