- 27 मिनट पहले
प्रस्तुति-- राहुल मानव, समिधा, राकेश
नेशनल
क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक भारत की जेलों में
उनकी क्षमता से काफ़ी ज़्यादा क़ैदियों को रखा गया है और इनमें से अधिकतर
विचाराधीन क़ैदी ही हैं.
इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने भी एक अहम
फैसले में ज़िला एवं सत्र न्यायाधीशों से कहा है कि वो जेलों का निरीक्षण
करें और ऐसे क़ैदियों को निजी मुचलके पर रिहा करें जिनका मामला लंबे समय से
विचाराधीन है और उन्होंने संभावित सज़ा का आधा समय जेल में बिता दिया है.देश की विभिन्न जेलों में रह रहे विचाराधीन कैदियों के हाल और हालात पर बीबीसी हिन्दी पेश कर रही है विशेष शृंखला. पढ़ें इस शृंखला की पहली कहानी.
पढ़ें विशेष रिपोर्ट
शहर के अमीनाबाद के बाज़ार में बिना सुरक्षाकर्मियों के वो घूमने निकले ही थे कि बस पुलिस के लोगों को उनपर 'आतंकवादी' होने का शक हुआ और वो उनका पीछा करने लगे.
कुछ ही देर में उन्होंने अपने आप को थाने में पाया जहाँ उनसे गहन पूछताछ की जाने लगी. चूंकि पुलिस को उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिल पाए थे इसलिए उनसे दो स्थानीय लोगों की ज़मानत मांगी गई.
बरनाला ने पुलिस को बताया कि लखनऊ में वो सिर्फ मुलायम सिंह यादव को पहचानते थे जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. कई घंटों तक चली चली पूछताछ के बाद आखिरकार पुलिसवालों ने उन्हें छोड़ दिया. बरनाला ने यह आपबीती अपनी किताब 'स्टोरी आफ ऍन एस्केप' में लिखी है.
मुख्यमंत्री की पहचान
ताज़ा सरकारी आंकड़ों के अनुसार जेलों में बंद 74 प्रतिशत कैदी या तो अनपढ़ हैं या फिर दसवीं कक्षा तक ही पढ़े हुए हैं.
यही कारण है अपने लिए वकील रखने या फिर अपने लिए ज़मानत का इंतजाम करने में उन्हें मुश्किलें आती हैं. जेलों की बढ़ती आबादी का ये एक बड़ा कारण है.
कैदियों की संख्या
इन कैदियों में से 3,113 ऐसे हैं जिन्हें स्थानीय सुरक्षा क़ानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया है.
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार देश में सबसे ज़्यादा कैदी उत्तर प्रदेश की जेलों में हैं जहाँ इनकी संख्या 83, 518 है. उसके बाद मध्य प्रदेश का नंबर है जहाँ 34708 कैदियों को रखा गया है.
बिहार में 31529, पंजाब में 27449 और महाराष्ट्र की जेलों में 27400 कैदी बंद हैं.
चौंकाने वाली बात यह लगभग 60 प्रतिशत सज़ायाफ़्ता कैदियों को हत्या के इल्ज़ाम में सज़ा हुई है.
सबसे अधिक कैदी
मानवाधिकार के लिए काम करने वाले संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की शोधकर्ता नुसरत ख़ान का कहना है, "कैदियों की संख्या के मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है. पिछले दस सालों में जेल की आबादी बढ़ी ही है. इस वक़्त क्षमता से 118. 4 प्रतिशत अधिक कैदी भरे हुए हैं."
जेलों की क्षमता
हालांकि सीआरपीसी की धारा 436 ए के तहत ऐसा प्रावधान है कि संभावित सज़ा का आधा समय अगर किसी कैदी ने विचाराधीन ही रहकर गुज़ार दिया हो तो उसे निजी मुचलके पर ज़मानत दी जा सकती है. मगर इस प्रावधान के बावजूद लम्बी खिंचती हुई क़ानूनी प्रक्रिया की वजह से विचाराधीन कैदी सालों तक जेलों में बंद रहते हैं और उन्हें राहत नहीं मिल पाती.
विचाराधीन कैदियों के लिए राहत
सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि वैसे कैदियों की सूची बनाई जाए जिन्होंने दोषी पाये जाने पर होने वाली संभावित सज़ा का आधा समय जेल में ही बिता दिया हो और जिनका मामला अभी तक लंबित है.
ऐसे विचाराधीन कैदियों को निजी मुचलके पर छोड़ने की बात सुप्रीम कोर्ट ने कही है.
इस साल 26 नवम्बर को भारत के संविधान की 65 वीं वर्षगाँठ मनाई गई. जाने-माने सामजिक कार्यकर्ता पलाश बिस्वास कहते हैं कि संविधान का पालन अगर सही मायनो में किया जाए तो इस तरह की परिस्थिति की नौबत नहीं आएगी.
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