भारत पर जलवायु परिवर्तन की मार दिखने लगी है. बारिश के स्वभाव में आए
बदलाव की वजह से हिमालयी राज्यों में कई नदियां रास्ता बदल चुकी हैं.
वैज्ञानिक भी मान रहे हैं कि मौसम अजीब ढंग से व्यवहार करने लगा है.
बीते कुछ दशकों में अरुणाचल प्रदेश और असम के कई गांव बह चुके हैं.
विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से बिक्रम, रंगा, बोगी समेत
कई नदियों ने अपना रास्ता बदल दिया है. पूर्वोत्तर भारत में काफी बारिश
होती है. विशेषज्ञों के मुताबिक बीते कुछ दशकों में बारिश का स्वभाव बदला
है. अब बारिश बहुत ज्यादा और लंबे समय तक हो रही है. इसकी वजह से नदियां
लबालब हो रही हैं.
नदियों के रास्ता बदलने से असम के लखीमपुर और धेमाजी जिले के कई गांव साफ हो चुके हैं. यही हाल अरुणाचल प्रदेश के पापुम पारे जिले का भी है. भूगर्भीय आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि कुछ नदियों ने अपना रास्ता 300 मीटर दूर तक बदला है तो कहीं कहीं नदियां 1.8 किलोमीटर दूर जा चुकी हैं.
अरुणाचल प्रदेश की राजीव गांधी यूनिवर्सिटी के भूवैज्ञानिक एसके पटनायक कहते हैं, "इसका नतीजा यह है कि कुछ गांवों के कुछ हिस्से पानी में डूब गए हैं और अन्य जगहों पर तो गांव के गांव गायब हो गए हैं."
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरन्मेंट (सीएसई) के मुताबिक नदियों के रास्ता बदलने की वजह से हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है. साथ ही जमीन की उर्वरता और जैव विविधता को भी भारी नुकसान हुआ है.
तबाह करता मौसम
ईटानगर के जीबी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरन्मेंट एंड डेवलपमेंट के वैज्ञानिक डॉक्टर प्रसन्ना के सामल इसके लिए बारिश की अवधि और तीव्रता को जिम्मेदार ठहराते हैं. बीते एक दशक में भारत के हिमालयी इलाकों में बादल फटने की घटनाएं बढ़ी हैं. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी अब हर साल बरसात के दौरान जगह जगह बादल फट रहे हैं. उत्तराखंड में भी कुछ नदियां रास्ता बदल रही हैं. तेज बहाव की वजह से नदियां बालू, मिट्टी और पत्थरों को अलग ढंग से बहा रही हैं. नए रास्ते इस कारण भी बन रहे हैं. नदियों के रास्ता बदलने से सड़कें, इमारतें और खेत भी बह रहे हैं. बरसात में भूस्खलन की घटनाएं आम हो चली हैं.
पटनायक कहते हैं, "जलवायु की सामान्य स्थिति में बरसात पूरे साल अच्छे ढंग से बंटी रहती है. लेकिन अब जलवायु परिवर्तन की वजह से उसका स्वभाव बदला है."
भारत की मुश्किल
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की रिपोर्ट कहती है, "मौजूद घटनाओं का अध्ययन करने से यह बात मानी जा सकती है कि भारत के हिमालयी राज्यों में बादल फटने की और बहुत ज्यादा बारिश की वजह से अचानक आने वाली बाढ़ के मामले बढ़े हैं."
भारत की आधी आबादी खेती के लिए बारिश पर निर्भर है, लेकिन बीते एक दशक में मानसून का मिजाज काफी बदल गया है. जर्मनी के क्लाइमेट चेंज इंस्टीट्यूट पोस्टडाम के याकोब श्वे भारतीय मानसून पर शोध कर रहे हैं. वह कहते हैं, "जिस तरह के बड़े बदलाव हम भारतीय मानसून के स्वभाव में देख रहे हैं, वे शायद इंसानी गतिविधियों की वजह से हो रहे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी दिखती हैं. बीते कुछ दशकों से मौसम का व्यवहार बहुत बदल रहा है."
गर्मियों में भारतीय उपमहाद्वीप की हवा बहुत गर्म हो जाती हैं, इससे कम दबाव का क्षेत्र बनता है. समुद्र में नमी भरी ठंडी हवाएं इस कम दबाव के क्षेत्र की तरफ बढ़ती हैं, इससे बारिश होती है. लेकिन याकोब श्वे को लगता है कि मानसून पर प्रदूषण और जंगलों में आग लगने की वजह से पैदा हुए धुएं की मार पड़ रही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक गर्मियों में अब भारत के ऊपर भूरे रंग की एक धुएं की परत छाने लगी है. इसकी वजह से सूर्य की किरणें परावर्तित हो जाती हैं. याकोब श्वे कहते है कि मानसून का आना और सूर्य की किरणों का परावर्तित होना अलग अलग घटनाएं हैं, लेकिन जब ये दोनों साथ टकराती हैं तो मानसून का व्यवहार बदल जाता है. वैज्ञानिकों को लगता है कि अगर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो भारत को आने वाले दशकों में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. वैज्ञानिक समुदाय तो इस बात भी चर्चा कर रहा है कि क्या मानसून भारत से हमेशा के लिए रूठ तो नहीं जाएगा.
ओएसजे/एमजे (पीटीआई)
नदियों के रास्ता बदलने से असम के लखीमपुर और धेमाजी जिले के कई गांव साफ हो चुके हैं. यही हाल अरुणाचल प्रदेश के पापुम पारे जिले का भी है. भूगर्भीय आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि कुछ नदियों ने अपना रास्ता 300 मीटर दूर तक बदला है तो कहीं कहीं नदियां 1.8 किलोमीटर दूर जा चुकी हैं.
अरुणाचल प्रदेश की राजीव गांधी यूनिवर्सिटी के भूवैज्ञानिक एसके पटनायक कहते हैं, "इसका नतीजा यह है कि कुछ गांवों के कुछ हिस्से पानी में डूब गए हैं और अन्य जगहों पर तो गांव के गांव गायब हो गए हैं."
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरन्मेंट (सीएसई) के मुताबिक नदियों के रास्ता बदलने की वजह से हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है. साथ ही जमीन की उर्वरता और जैव विविधता को भी भारी नुकसान हुआ है.
तबाह करता मौसम
ईटानगर के जीबी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरन्मेंट एंड डेवलपमेंट के वैज्ञानिक डॉक्टर प्रसन्ना के सामल इसके लिए बारिश की अवधि और तीव्रता को जिम्मेदार ठहराते हैं. बीते एक दशक में भारत के हिमालयी इलाकों में बादल फटने की घटनाएं बढ़ी हैं. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी अब हर साल बरसात के दौरान जगह जगह बादल फट रहे हैं. उत्तराखंड में भी कुछ नदियां रास्ता बदल रही हैं. तेज बहाव की वजह से नदियां बालू, मिट्टी और पत्थरों को अलग ढंग से बहा रही हैं. नए रास्ते इस कारण भी बन रहे हैं. नदियों के रास्ता बदलने से सड़कें, इमारतें और खेत भी बह रहे हैं. बरसात में भूस्खलन की घटनाएं आम हो चली हैं.
पटनायक कहते हैं, "जलवायु की सामान्य स्थिति में बरसात पूरे साल अच्छे ढंग से बंटी रहती है. लेकिन अब जलवायु परिवर्तन की वजह से उसका स्वभाव बदला है."
भारत की मुश्किल
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की रिपोर्ट कहती है, "मौजूद घटनाओं का अध्ययन करने से यह बात मानी जा सकती है कि भारत के हिमालयी राज्यों में बादल फटने की और बहुत ज्यादा बारिश की वजह से अचानक आने वाली बाढ़ के मामले बढ़े हैं."
भारत की आधी आबादी खेती के लिए बारिश पर निर्भर है, लेकिन बीते एक दशक में मानसून का मिजाज काफी बदल गया है. जर्मनी के क्लाइमेट चेंज इंस्टीट्यूट पोस्टडाम के याकोब श्वे भारतीय मानसून पर शोध कर रहे हैं. वह कहते हैं, "जिस तरह के बड़े बदलाव हम भारतीय मानसून के स्वभाव में देख रहे हैं, वे शायद इंसानी गतिविधियों की वजह से हो रहे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी दिखती हैं. बीते कुछ दशकों से मौसम का व्यवहार बहुत बदल रहा है."
गर्मियों में भारतीय उपमहाद्वीप की हवा बहुत गर्म हो जाती हैं, इससे कम दबाव का क्षेत्र बनता है. समुद्र में नमी भरी ठंडी हवाएं इस कम दबाव के क्षेत्र की तरफ बढ़ती हैं, इससे बारिश होती है. लेकिन याकोब श्वे को लगता है कि मानसून पर प्रदूषण और जंगलों में आग लगने की वजह से पैदा हुए धुएं की मार पड़ रही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक गर्मियों में अब भारत के ऊपर भूरे रंग की एक धुएं की परत छाने लगी है. इसकी वजह से सूर्य की किरणें परावर्तित हो जाती हैं. याकोब श्वे कहते है कि मानसून का आना और सूर्य की किरणों का परावर्तित होना अलग अलग घटनाएं हैं, लेकिन जब ये दोनों साथ टकराती हैं तो मानसून का व्यवहार बदल जाता है. वैज्ञानिकों को लगता है कि अगर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो भारत को आने वाले दशकों में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. वैज्ञानिक समुदाय तो इस बात भी चर्चा कर रहा है कि क्या मानसून भारत से हमेशा के लिए रूठ तो नहीं जाएगा.
ओएसजे/एमजे (पीटीआई)
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निवेश के लिए खतरा बनता जलवायु परिवर्तन
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- तारीख 01.04.2013
- कीवर्ड जलवायु परिवर्तन, भारत, हिमालय, नदियों का रास्ता बदलना
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