बिहार: 150 साल बाद दिखा ख़ास उल्लू

  • 5 घंटे पहले



बिहार में दिखा बड़े कान वाला उल्लू

इस साल सर्दियों में दो नए मेहमान 150 साल बाद बिहार आए हैं. ये दो मेहमान हैं, बड़े कान वाला उल्लू और रंगीन तीतर.
हर साल इस मौसम में दुनिया भर के क़रीब 60-65 प्रजातियों के पक्षी कई एशियाई देशों, चीन और हिमालय की ऊपरी चोटियों से होते हुए यहाँ आते हैं.
बड़े कान वाले उल्लू (लॉन्ग ईयर्ड आउल) को बिहार के जहानाबाद में बराबर (वनावर) की पहाड़ी में देखा गया है. आमतौर पर इसे ठंड के दौरान पाकिस्तान समेत भारत के उत्तर-पूर्वी इलाक़ों में देखा जाता है.
वहीं रंगीन तीतर (पेंटेड स्पर-फ़ॉउल) नालंदा ज़िले के राजगीर के जंगल में घोड़ा-कटोरा झील के रास्ते एवं रोप-वे के आसपास देखा गया है.

150 साल बाद




रंगीन तीतर को इससे पहले 1865 में देखा गया था.
इंडियन बर्ड कंज़रवेशन नेटवर्क (आईबीसीएन) के सदस्य एवं बिहार राज्य टूरिज़्म डेवेलपमेंट कॉर्पोरेशन के महाप्रबंधक नवीन कुमार बताते हैं कि बड़े कान वाले उल्लू को बिहार में पहले कभी नहीं देखा गया था.
फ़ॉना ऑफ़ बिहार-झारखण्ड के अनुसार इसके पहले रंगीन तीतर को पटना से सटे सोनपुर में और बड़े कान वाले उल्लू को मानभूम, झारखंड में 1865 में एक ब्रितानी नागरिक ने देखा था.
जबकि, अन्य राज्यों में दिखने वाले शर्मीले रंगीन तीतर को लगभग 150 साल बाद राजगीर के जंगलों में देखा गया है.
नवीन कुमार कहते हैं कि भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार रंगीन तीतर को लगभग 150 साल पहले सोनपुर और लंबे कान वाले उल्लू को झारखंड में स्पॉट किया गया था.

ग्लोबल वार्मिंग का असर




भारतीय प्राणी सर्वेक्षण और गंगा समभूमि प्रादेशिक केंद्र, पटना के वरिष्ठ प्राणी वैज्ञानिक डा. गोपाल शर्मा कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण बिहार में देश-दुनिया से आने वाले जलीय पक्षियों में प्रवास के जगह में बदलाव की प्रवृत्ति दिख रही है.
डा. शर्मा कहते हैं कि 1865 में रंगीन तीतर सोनपुर में देखा गया था. मतलब स्पष्ट है कि तब उस इलाक़े में अधिक हरियाली और जंगल प्राकृतिक रूप में रहा होगा.
आज गंगा के मैदानी इलाक़े में नदी के पानी की सीमा तक की जमीन पर खेती हो रही है. पटना के पास नदियों पर कई तरह के कार्य हो रहे हैं.

बदलता ठिकाना




दियारा इलाक़े में पेड़ों के कटने और इन जगहों मानवीय गतिविधियों के बढ़ने के कारण गंगा के समतल इलाक़े में जलीय पक्षी अब अपना ठिकाना कहीं और तलाश रहे हैं.
अब इनका नया बसेरा दरभंगा का कुशेश्वर स्थान, कटिहार का गोगाबिल पक्षी विहार, बेगूसराय का कावर झील बन रहा है.
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