प्रस्तुति-- अखौरी प्रमोद, रुपेश कुमार
बात 1957 की है. दूसरी लोकसभा में भारतीय जन संघ के सिर्फ़ चार सांसद थे. इन सासंदों का परिचय तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन से कराया गया. तब राष्ट्रपति ने हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि वो किसी भारतीय जन संघ नाम की पार्टी को नहीं जानते. अटल बिहारी वाजपेयी उन चार सांसदों में से एक थे. वो इस घटना को याद करते हुए कहते हैं कि आज भारतीय जनता पार्टी के सबसे ज़्यादा सांसद हैं और शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने बीजेपी का नाम न सुना हो. शायद यह बात सच हो. लेकिन यह भी सच है कि भारतीय जन संघ से भारतीय जनता पार्टी और सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफ़र में अटल बिहारी वाजपेयी ने कई पड़ाव तय किए हैं. नेहरु-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओँ में शामिल होगा जिन्होंने सिर्फ़ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते पर सरकार बनाई. पत्रकारिता एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए वाजपेयी के लिए शुरुआती सफ़र ज़रा भी आसान न था. 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया ( अब लक्ष्मीबाई ) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई. उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरु किया. उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया. जन संघ और बीजेपी 1968 से 1973 तक वो भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे. विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया. 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया. इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वो इसे अपने जीवन का अब तक का सबसे सुखद क्षण बताते हैं. 1980 में वो बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे. 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे. सांसद से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं. दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक. बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति रही. ख़ासतौर से 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे. 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे. 16 मई 1996 को वो पहली बार प्रधानमंत्री बने. लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे. 1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने. लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए. 1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया. गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली. |
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