मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

सरकार ने कोर्ट में मांनी अपनी गलती


 

 

बाही के बावजूद सबसे ऊंचा बांध

  • 9 घंटे पहले


भारत के पर्यावरण और वन मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल एक हलफ़नामे में पहली बार माना कि जून 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ की बड़ी वजह वहां बनाई गई बांध परियोजनाएं भी रही हैं.
यह बाढ़ हाल में दुनिया की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में एक थी. इसमें सरकारी आंकड़ों के अनुसार 5,000 से ज़्यादा लोग मारे गए जबकि कई स्वतंत्र संस्थाओं के मुताबिक़ ये आंकड़ा तक़रीबन दोगुना था.
एक तरफ़ सरकार हिमालय में बांध परियोजनाओं के इस नकारात्मक असर को स्वीकार रही है, दूसरी तरफ़ एशिया के सबसे ऊंचे और दुनिया के दूसरे सबसे ऊंचे बांध को खड़ा करने की तैयारी में है.

पढ़ें रिपोर्ट विस्तार से


सरयू और महाकाली का संगम, जहां बांध बनना है.
सार्क सम्मलेन पर अपने नेपाल दौरे के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बीते 100 दिनों में, नेपाल के साथ 25-30 सालों से अटके कई महत्वपूर्ण मसले आगे बढ़ाने की बात कही.इनमें पंचेश्वर बांध (पंचेश्वर बहुउद्देशीय विकास परियोजना) भी शामिल है.
जल संसाधन राज्यमंत्री सांवर लाल जाट ने भी पंचेश्वर बांध पर उठाए गए क़दमों की जानकारी दी.

महाकाली नदी के किनारे उपजाऊ खेत
उन्होंने बताया कि ‘पंचेश्वर विकास प्राधिकरण’ का गठन कर अभी इसके शुरुआती कामों के लिए दोनों सरकारों ने 10-10 करोड़ रुपए की राशि जुटाई है.लेकिन बांधों के विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर कहते हैं, ''पिछले कई सालों से भारत नेपाल में विघुत परियोजनाएं बनाने की कोशिशें कर रहा है लेकिन एक छोटी सी भी परियोजना अबतक नहीं बन पाई है. मुझे नहीं लगता कि इतनी बड़ी परियोजना बन पाएगी. दोनों तरफ़ प्रभावित इलाक़ों से बड़ा विरोध चल रहा है.''

सबसे ऊंचा

यह बांध ताजिकिस्तान में बन रहे 325 मीटर ऊंचे रोगुन बांध के बाद दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा बांध होगा जिसकी ऊंचाई 315 मीटर होगी.
इसकी क्षमता 6720 मेगावाट होगी और ये आकार और क्षमता में टिहरी बांध से तक़रीबन तीन गुना बड़ा होगा.

मक़सद

नेपाल के ऊर्जा मंत्रालय की ओर से बनाई गई यहवेबसाइट कहती हैकि परियोजना मुख्यतः बिजली उत्पादन के अलावा सिंचाई, पेयजल और बिहार और उत्तर प्रदेश में बाढ़ पर नियंत्रण के उद्देश्यों के लिए बनाई गई है.
इससे बनने वाली बिजली दोनों देशों की ऊर्जा ज़रूरतों के लिहाज़ से अहम मानी जा रही है.

क्या डूबेगा?


नेपाल में पुनर्वास का नक्शा
ईआईएस के इस शोध पत्र के अनुसार इस बांध से महाकाली और सहायक नदियों के किनारे दोनों ओर तक़रीबन 134 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र डूब जाएगा.इसमें चौड़ी पत्ती के घने जंगल डूबेंगे और नदियों की उपजाऊ तलहटी में बसे खेती पर निर्भर 115 गांवों के 11361 परिवारों के 80 हज़ार लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा.

विरोध


मंदाकिनी के किनारे बह चुका चंद्रपुरी गांव
हिमालय के पहाड़ों में बांध का लगातार विरोध 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद से तेज़ हुआ है. इस परियोजना के विरोध में सबसे बड़े मसले पर्यावरण और विस्थापन के हैं.हिमालयी समाज और इतिहास के जानकार डॉ शेखर पाठक कहते हैं, "हिमालयी पहाड़ों के उपजाऊ खेत सिर्फ़ नदियों के किनारों पर हैं और ये सब इलाक़े बांध बनने से डूब जाते हैं. ऐसे में पुनर्वास का मसला सिर्फ़ लोगों का नहीं, उनकी आजीविका के पुनर्वास का भी है और इस लिहाज़ से टिहरी के अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं."
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