गुरुवार, 4 दिसंबर 2014

इस तरह के करप्शन पर नक्सली कब देंगे ध्यान



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जो खाना भिखमंगा भी नहीं खा सकता वहीं खाना बच्चे खा रहे है
न्याय की दुहाई देने वाले नक्सली खामोश

किशोर प्रियदर्शी, धीरज पांडेय 

नक्सल इलाको के विद्यालय में बच्चो को मिल रहा घटिया खाना। नक्सल लाइव -२
जरा इस दाल ,भात और सब्जी को देखिये , क्या ऐसा खाना आप खा सकते है , अगर नहीं तो फिर बच्चो को मिलने वाले पोषण के साथ खिलवाड़ क्यों ?
धीरज पाण्डेय / रविकांत
बच्चो को बेहतर शिक्षा मिल सके , बच्चे प्रतिदिन विद्यालय पहुंचे सके , इसी उद्देश्य से सभी सरकारी स्कूलों में मध्यान भोजन योजना की शुरुआत की गई , ताकि बच्चो के बीच बेहतर शिक्षा के अलावे बढ़िया पोषाहार मिल सके। और पढाई के समय उनके अभिभावक भी निश्चिन्त रहे की उनके बच्चे जो विद्यालय जाते है उनको पढाई के अलावे बढ़िया भोजन मिल रहा है। , लेकिन सरकार की यह नीति इन इलाको में दम तोड़ दी है और बच्चो के बीच शिक्षक घटिया खाना परोस रहे है। मध्यान भोजन योजना अब शिक्षको की काली कमाई का जरिया बन गया है। मध्यान भोजन के नाम पर शिक्षक के अलावे अधिकारियों की भी चांदी कट रही है। जैसे ही नक्सल लाइव की टीम देव प्रखंड के बरहेता गाँव पहुंची तो पाया की बच्चो को मिलने वाले भोजन में चावल ,दाल ,सब्जी परोसा गया है , थाली में चावल तो दिखा , लेकिन दाल और सब्जी देखकर आश्चर्यचकित रह गया। बच्चो को मिलने वाले भोजन में दाल जो पानी की तरह और सब्जी जैसे तैसे बना हुआ , मानो विद्यालय में बच्चो को नहीं भिखमंगो को खाना परोसा गया है। शायद भिखमंगे भी अब इस तरह का खाना खाने से परहेज ही करते हो। इस विद्यालय में कक्षा १ से ५ तक के बच्चो को पढ़ाया जाता है। और विद्यालय के बच्चो की संख्या १३५ है। शिक्षिका -१ है। शिक्षिका अनु कुमारी सिन्हा बताती है की विद्यालय में पिछले दो माह से चावल नहीं मिला है , जिसके कारण ऐसा खाना बन रहा है। अब सवाल यह है की अगर चावल नहीं मिला है तो फिर भोजन बन कहा से रहा है। इस पर उनका जवाब शून्य था। यह कहानी सिर्फ बरहेता विद्यालय की नहीं कई विद्यालयों की है। क्योकि नक्सल प्रभावित इलाका होने के कारण अधिकारी जाने से डरते है , और इसका पूरा आनंद यहाँ पदस्थापित शिक्षक उठाते है , और अपनी मनमर्जी से विद्यालय चलाते है। लेकिन बड़ा सवाल यह है की क्या इस तरह के भोजन से विद्यालय के बच्चे स्वास्थ्य रह सकेंगे। क्या इस तरह के भोजन विद्यालय में बनना जरुरी है। क्या ऐसे भोजन बच्चो के बीच परोस कर शिक्षक बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है। इनका जवाब ढूंढना भी बेहद जरुरी है।
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