यहां पर खिलाड़ियों को भले ही दो पदक मिले पर रियो में खिलाड़ियों की जीत हुई है। हारी है तो भारत हार गयी है। यहां के लालची स्वार्थी अवसरवादी स्वार्थी मौकापरस्त और किखावे के हिटलरी अंदाज वाले बेखरम खिलाड़ियों की हार हुई है। जो इन खिलाड़ियों के बूते ही अुनी बीबी से लेकर माशूकाओं रखैलों तकको विदेश यात्रा करा आते है। मगर इतनी बेशर्मी कि मैराथन दौड़ में भारत के स्टॉल पर कोई एक पानी देने वाला स्टाफ नहीं। कहां चले गए थे ये हरामखोर नमकहराम अधिकारी ? एक तरफ खिलाडियों की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं हो रही है मसलन पानी एनर्जी ड्रिंक के लिए खिलाड़ी तरस रहे हैं इनका दम निकल रहा है तो मौज मस्ती मार्केटिंग करने गए अधिकारियों को स्टेडियम तक में नहीं होना कितनी बड़ी बेशर्मी है। यह युवा खेल मंत्री और दिल्ली के नेता विजय गोयक की बहुत बड़ी हार है। चुम्मा चुम्मा चारदिन पहले ही मोदी किचेन में शामिलहुए गोयल का इतना खराब ढीला ढाला और शर्मनाक रियो का उदाहरण विजय को हमेशा विजय सफलताउम्दा प्रदर्शन तथा नियोजित
Anami Sharan Babal कार्य
निष्पादन के लिए तरसाती रही है। यही वजह भी है कि वे विजय होकर भी इसके
लिए ही तरसते रहे है। इस बार तो कमाल ही हो गया कि फिजियोथेरेपीिस्ट डॉक्टर
को भेजने की बजाय किसी रेडियोलेजिस्ट को ओलंपिक टीम का चिकित्सक बनाकर
भेजा गया। जिस आलतू फालतू डॉक्टर को सूई देने की तमीज ना हो वो हमारे 150
खिलाड़ियों के दर्द का क्या इलाज करेगा। यह मोदी सरकार के लचीलेपन का सबसे
शर्मनाक प्रर्दशन रहा है कि दुनियां के सबस ेबड़े खेल उत्सव में इस तरह की
लापरवाही और ओलंपिक टीम के साथ स्पोर्ट
स्पोर्टिंग स्टाफ को भेजने मे ंइस तरह की उदासीनता भाई भतीजावाद ? एकदम काबिले बर्दाश्त से बाहर है. अब प्रधानमंत्री जी आप ही कुछ करो? खेलो कोसाथ इन नौकरशाहं को विभत्, खेल पर लगाम लगाए और इस बार केवल जुबानी चेतावनी देकर छोड़ने की भाई भतीजावादी कल्चर के हिस्सा बनकर केवल दिखावा ना करे। नहीं तो इन गरीब खिलाडियों की बजाय दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के महान नेताओं को ही भेजा करे। क्योंकि झूठ बोलने गलत को सही साबित करने देश तक को बेच देने लंबी लंबी हांक लगाने वाले बड़ेबड़े गोला फेंकने गरीबों केदमन शोषण करने जूतियाने में इनका भला क्या मुकाबला? जब ये खद्दर नेता ही अपनी कार्यकुशलता से जन्मजात गुण से दर्जनों पदक पा सकते हैं तो फिर इन खिलाडियों पर खर्च करने या कराने का क्या औचित्य ? बार बार हर बार मेरे भाईयों बहनों कहने वाले मेरे परम आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी जी कुछ इस तरह करे ताकि अगली दफा किसी भी खेल में जाने से पहले ये अधिकारी हमारे खिलाड़ियों की देखरेक करने वाले मानकर चले , तभी खिलाडियों और खेल का हित होगा। नहीं तो ये धपेली नौकरशाह कब हार मानने वाले है। मौका पड़ने पर जूता खाकर भी सीना तान कर चलने वालो ंके सामने हमारे खिलाड़ी अपना सीना तानकर चले तभी देश का खेल का हित होगा। नहीं तो इन बेचारों को चाय ब्रेड रोटी के लिए भी इन अधिकारियों से गिड़गिड़ाना पड़ता है।मोदी जी जमींनदार बन बैठे धपेलों से किलाड़ियों की मुक्ति की जरूरत है। रियो के बाद भी यदि आपकीखामोशी चुप्पी नहीं टूटी तो फिर ज्यादा बोलने और मेक इन इंडिया क नारा बुलंद करने का क्या मतलब? कम बोलकर कमसे कम जनता का दिमाग समय ना खराब करने वाले अपन मौनी बाबा से ऐज भला किसको शिकायत है?
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