
मैकलुस्कीगंज- की पूरी कहानी

घनघोर जंगलों और आदिवासी गांवों के बीच सन् 1933 में कोलोनाइजेशन सोसायटी ऑफ इंडिया ने मैकलुस्कीगंज को बसाया था। 1930 के दशक में रातू महाराज से ली गई लीज की 10 हजार एकड़ जमीन पर अर्नेस्ट टिमोथी मैकलुस्की नामक एक एंग्लो इंडियन व्यवसायी ने इसकी नींव रखी थी। चामा, रामदागादो, केदल, दुली, कोनका, मायापुर, महुलिया, हेसाल और लपरा जैसे गांवों वाला यह इलाका 365 बंगलों के साथ पहचान पाता है जिसमें कभी एंग्लो-इंडियन लोग आबाद थे। पश्चिमी संस्कृति के रंग-ढंग और गोरे लोगों की उपस्थिति इसे लंदन का सा रूप देती तो इसे लोग मिनी लंदन कहने लगे।
सपनों का शहर

मैकलुस्कीगंज के संस्थापक के परिवार की एक पुरानी तस्वीर

सांप्रदायिक सहिष्णुता का नमूना भी दिखता है मिनी लंदन में।

मिनी लंदन में एंग्लो इंडियन समुदाय द्वारा बनवाया गया एक चर्च। वहां कई चर्च हैं।

मैकलुस्कीगंज में एक एंग्लो-इंडियन परिवार का पुराना बंगला, जिसे जीर्णोद्धार के बाद एक इंटर कॉलेज में बदल दिया गया है।

इंसानों की तरह मैकलुस्कीगंज को भी कभी बुरे दिन देखने पड़े थे। यहां के लोग उस दौर को भी याद करते हैं जब एक के बाद एक एंग्लो-इंडियन परिवार ये जगह छोड़ते चले गए। कुछ 20-25 परिवार रह गए, बाकी ने शहर खाली कर दिया। इसके बाद तो खाली बंगलों के कारण भूतों का शहर बन गया था मैकलुस्कीगंज।
लेकिन, और अब यह दौर है जब गिने-चुने परिवार मैकलुस्कीगंज को आबाद करने में जुटे हैं। यहां कई हाई प्रोफाइल स्कूल खुल गए हैं, जिनमें पड़ने के लिए दूर-दूर से छात्र आ रहे हैं। पक्की सड़कें बनी हैं, जरूरत के सामान की कई दुकानें भी खुल गई हैं। एक के बाद कई स्कूल खुल गए हैं। साथ ही बस्ती की अधिकतर गलियों या बंगलों में छात्रावास होने के साइनबोर्ड भी मिलेंगे। ये सब एक नए मैकलुस्कीगंज की ओर मिनी लंदन को ले जा रहे हैं।
- मेघालय का एक गाँव जिसे कहते है भगवान का अपना बगीचा, है एशिया का सबसे स्वच्छ गाँव
- भारत के टॉप 10 हिल स्टेशन
- भारत के 10 प्रसिद्ध फोर्ट
- धरती पर मौजूद 20 खुबसूरत, अलौकिक रास्ते
- सपनो सा एक गाँव, जहां नहीं है सड़के, केवल है नहरे











कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें