प्रस्तुति- अमन कुमार
भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के इस्लामाबाद दौरे में दिखी तल्ख़ी पाकिस्तानी उर्दू मीडिया में हर तरफ़ छाई हुई है.
‘जंग’
लिखता है कि इस्लामाबाद में सार्क देशों के गृह मंत्रियों की बैठक
दहशतगर्दी, समुद्री अपराध, साइबर क्राइम, अवैध ड्रग कारोबार और महिला और
बच्चों की तस्करी जैसे अहम मुद्दों पर बुलाई गई थी.अख़बार के मुताबिक़ एजेंडे से उलट भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और उनके इशारे पर अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के प्रतिनिधियों ने कॉन्फ़्रेंस को पाकिस्तान पर इल्ज़ाम लगाने के मौक़े में तब्दील कर दिया.
अख़बार लिखता है कि पाकिस्तानी गृह मंत्री निसार अली ख़ान ने सब आरोपों का ऐसे जवाब दिया कि बोलती बंद कर दी और कश्मीरी जनता के अपने भविष्य के बारे में ख़ुद फ़ैसला करने के अधिकार का मज़बूती से बचाव किया.
‘औसाफ़’ लिखता है कि हक़ीक़त तो ये है कि राजनाथ सिंह से चौधरी निसार अली ख़ान का सच बर्दाश्त नहीं हुआ और सार्क कॉन्फ़्रेंस का आख़िरी सेशन और लंच छोड़ कर चले गए.
अख़बार के मुताबिक़ भारतीय गृह मंत्री तो एयरपोर्ट पर पाकिस्तानी मीडिया से बात करने का हौसला भी नहीं दिखा पाए.
अख़बार कहता है कि पाकिस्तानी गृह मंत्री ने जिस तरह भारतीय गृह मंत्री को जबाव दिया, वो पूरे देश की आवाज़ है और उन्होंने कश्मीरियों और पाकिस्तानियों का दिल जीत लिया.राजनाथ सिंह के सार्क गृह मंत्रियों की बैठक को बीच में ही छोड़ चले आने पर रोज़नामा ‘एक्सप्रेस’ ने संपादकीय लिखा है- भारतीय गृह मंत्री की अशोभनीय हरकत.
अख़बार की राय है कि ये सब सोची समझी रणनीति का हिस्सा था और इसका मक़सद कश्मीर के हालात से सबका ध्यान हटाना था.
अख़बार कहता है कि क़यास तो ये भी हैं कि राजनाथ सिंह को ऐसा करने के लिए पहले से हिदायत मिल चुकी थी, इसलिए तो उन्होंने साफ़ कर दिया था कि किसी पाकिस्तानी नेता से मिलने और अलग से बात करने का उनका कोई इरादा नहीं है.
‘दुनिया’ लिखता है कि ये कैसे मुमकिन है कि भारतीय सेना पैलेट गनों से निहत्थे कश्मीरियों पर हमला करती रहे, उन्हें मारती रहे, घायल करती रहे और उनकी आंखों की रोशनी छीनती रहे और इसका विरोध भी न हो.
अख़बार लिखता है कि अगर भारत को सच से इतनी ही चिड़ है तो फिर वो ऐसे काम ही न करे जिससे उसकी तरफ़ उंगली उठे.अख़बार लिखता है उम्मीद तो ये थी कि इस्लामाबाद में गृह मंत्रियों की इस बैठक से दोनों देशों के बीच तनाव कम करने में मदद मिलेगी लेकिन एक सुनहरे मौक़े को हठधर्मी से गंवा दिया गया.
'नवा-ए-वक़्त' ने अमरीका की तरफ़ से पाकिस्तान की दो जाने वाली 30 करोड़ डॉलर की सैन्य मदद रोके जाने पर संपादकीय लिखा है.
अख़बार के मुताबिक़ अमरीका ने यह कह कर मदद रोकी है कि पाकिस्तान ने हक़्क़ानी नेटवर्क और अफ़ग़ान तालिबान के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की है, लेकिन ये भारत के कहने पर पाकिस्तान को नाराज़ करने का एक और बहाना है.
अख़बार कहता है कि पाकिस्तान की मदद रोकने से दोनों देशों में तनाव बढ़ेगा और इसका अमरीका और पाकिस्तान को बराबर नुक़सान होगा.
रोज़नामा 'ख़बरें' लिखता है कि अमरीकी मदद रुकने से दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ ऑपरेशन प्रभावित होने का अंदेशा है.अख़बार लिखता है कि रक्षा विश्लेषक अमरीका के इस फ़ैसले को पाकिस्तानी सेना के लिए झटका मान रहे हैं लेकिन पाकिस्तान अमरीका से डरने और उसके दबाव में आने के बजाय अपने हितों को आगे रखे, यही वक़्त की पुकार है.
रुख़ भारत का करें तो यहां भी राजनाथ सिंह का पाक दौरा चर्चा में है, लेकिन यहां पाकिस्तान की नीयत पर सवाल उठाए गए हैं.
'सियासी तक़दीर' कहता है कि राजनाथ सिंह के पाकिस्तान पहुंचते ही विरोध प्रदर्शनों के नाम पर उनके ज़रिए जिस तरह बदतमीज़ी की गई, उसकी जितनी निंदा की जाए, उतना कम है.
अख़बार ने भारत प्रशासित कश्मीर में ताज़ा अशांति को आज़ादी का संघर्ष बताने के लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की आलोचना की है.
अख़बार लिखता है कि पनामा लीक्स में नवाज़ शरीफ़ के परिवार का नाम आने पर विपक्ष ने उनके ख़िलाफ़ मुहिम शुरू की है, उसे देखते हुए वो सिर्फ़ कश्मीर का मुद्दा उछालकर ही लोगों का ध्यान भटकाना चाहते हैं.
'राष्ट्रीय सहारा' ने ‘नवाज़ का फिर कश्मीर राग’
शीर्षक से लिखा है कि उन्होंने कई देशों में पाकिस्तानी राजनयिकों से कहा
है कि वो दुनिया को ये संदेश दें कि कश्मीर मसला भारत का अंदरूनी मामला
नहीं है.अख़बार लिखता है कि पाकिस्तान कश्मीरियों को हिंदुस्तान से
अलग करने की कोशिश कर रहा है लेकिन कश्मीरी जनता इस बात से अच्छी तरह
वाक़िफ़ है कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में लोग कितने बदहाल हैं.
अख़बार कहता है कि भारत को भी अपनी कश्मीर नीति पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है ताकि भोले भाले कश्मीरियों को कोई ताक़त बरग़ला न सके.
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अख़बार कहता है कि भारत को भी अपनी कश्मीर नीति पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है ताकि भोले भाले कश्मीरियों को कोई ताक़त बरग़ला न सके.
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