जीएसटी के बाद क्या सस्ता और क्या महंगा
- 19 जुलाई 2016
देश में गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी का लागू होना टैक्स सुधार की दिशा में आज़ादी के बाद सबसे बड़ा कदम होगा.
पिछले
कुछ दिनों में कांग्रेस और भाजपा कम से कम इस मुद्दे पर बात कर रही हैं
जिससे उम्मीद की जा रही है कि संसद के इस सत्र में ये बिल राज्य सभा से भी
पास हो जाएगा.सरकार नागरिकों से दो तरह के कर लेती है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष. इनकम टैक्स यानी आयकर प्रत्यक्ष कर है और किसी सामान पर लगा हुआ कर या टैक्स अप्रत्यक्ष कर माना जाता है.
लेकिन जब भी किसी खाने की वस्तु को ब्रांड के रूप में बनाया जाएगा तो उस पर टैक्स ज़रूर लगेगा. तो गेहूं पर टैक्स नहीं लगेगा लेकिन अगर आटे का इस्तेमाल बिस्कुट के लिए किया जाएगा तो उस पर पहले की तरह ही जीएसटी लगेगा.
छोटी गाड़ियों पर फिलहाल एक्साइज ड्यूटी 8 फीसदी लगती है जबकि एसयूवी जैसी बड़ी गाड़ियों पर ये दर 30 फीसदी है. साफ़ है अगर सभी राज्यों ने मिलकर जीएसटी की दर को 18 फीसदी तय किया तो छोटी गाड़ियां महंगी हो जाएंगी और बड़ी गाड़ियां सस्ती. राज्यों के बीच टैक्स दरों में फर्क ख़त्म होने के कारण अलग राज्य में गाडी रजिस्टर करके कम टैक्स देने की प्रथा भी अब ख़त्म हो जायेगी.
तंबाकू को जीएसटी के दायरे में लाया गया है, केंद्र सरकार इस पर उत्पाद शुल्क लगा सकती है.
इसके अलावा राज्यों को ये छूट दी गयी है कि वो ज़्यादा से ज़्यादा दो साल तक अपनी तरफ से ऐसे सामान पर ज़्यादा से ज़्यादा एक फीसदी टैक्स लगा सकते हैं जो उनके राज्य की अधिकार क्षेत्र में आ रहा है लेकिन बन रहा है किसी और राज्य में. इन कुछ राज्यों में सामान की खरीदारी पर सीमित समय के लिए आपको टैक्स भरना पड़ सकता है.
लेकिन इन सब के जाने से राज्यों को एक नया हथियार मिलेगा. मौजूदा क़ानून के अनुसार सर्विस पर टैक्स लगाने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है. जीएसटी आने के बाद ये अधिकार राज्यों को भी मिल जाएगा.
तो अब कुछ वैसे नए सर्विस पर टैक्स देने के लिए तैयार हो जाइये जिसके पैसे सिर्फ राज्य सरकारों को जाएंगे. यह अधिकार राज्यों को मिल रहा है. इसलिए वो सेंट्रल सेल्स टैक्स और ऑक्ट्राई से होने वाली मोटी कमाई की अनदेखी करने को तैयार हैं.
अब अलग अलग राज्यों की मांग अलग है. गुजरात में पापड़ पसंद किया जाता है तो हरियाणा में दही और पंजाब में घी. लेकिन ये सभी को नहीं चाहिए. हां, जिन्हें वो मिल गया है उनके लिए अचार के बिना काम भी नहीं चलेगा. उससे अगर और कुछ ज़्यादा मिल सकता है तो और बढ़िया!
जीएसटी के असर को लेकर संशय के कई कारण भी हैं.
- जीएसटी का सबसे बड़ा फायदा जो दिख रहा है वो है कई करों के बजाय एक कर लगेगा. लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है. आर्टिकल 246 ए संसद और सभी राज्यों के विधानसभाओं को ये अधिकार देता है कि वो सामान और सेवाओं पर कर लगा सकते हैं. ऐसे में कर को लेकर एक संससदीय कानून और 28 राज्य कानून हैं जो जीएसटी वसूल करेंगे. ऐसे में सबमें तालमेल नहीं बैठा तो नतीजे बुरे हो सकते हैं.
- नौ साल बाद भी जीएसटी को आसान करने के संविधान संशोधन का काम पूरा नहीं हुआ है. ये बस शुरुआत है. केन्द्रीय जीएसटी, राज्य जीएसटी और अंतरराजकीय जीएसटी का खाका या ड्राफ्ट बनाना एक बेहद जटिल काम है, जो अभी पूरा होना बाकी है. शेयरधारकों की सलाह के बिना इसका खाका तैयार करने से भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है.
- जीएसटी की दर क्या होगी इसे लेकर अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है. राज्य सरकारें जहां इसकी दर 26 फीसदी करना चाहती हैं वहीं केन्द्र 16 से18 फीसदी दर के पक्ष में है. अगर 16 फीसदी की दर से भी कर वसूला जाता है तो ग्राहक के लिए एक भारी बोझ हो सकता है. नतीजतन फुटकर स्तर पर बड़े पैमाने पर कर चोरी हो सकती है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें