बुधवार, 31 मार्च 2021

चीता के बाद दूसरा कौन?

 चीता सूखी धरती पर सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर है। लेकिन, दूसरे नंबर पर कौन है। चीते को अगर स्वर्ण पदक हासिल हुआ है तो रजत जीतने वाला कौन है। कौन है जो चीते की चपलता को भी कभी-कभी मात देने में सक्षम साबित हो सकता है। अमेरिका में एंटीलोप (हिरनों) की एक खास प्रजाति प्रोंगहार्न पाई जाती है। ये खास किस्म के हिरन अपनी दौड़ से सभी को मीलों पीछे छोड़ देते हैं। चीता 113 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक दौड़ सकता है। लेकिन, चीते की यह रफ्तार बस केवल कुछ सौ मीटर तक ही बनी रहती है। इसके बाद उसे रुक जाना पड़ता है। लेकिन, प्रोंगहार्न लंबी दूरी का तेज धावक है। वह 90 किलोमीटर प्रति घंटे तक की रफ्तार से दौड़ सकता है। यही नहीं वह लगभग छह किलोमीटर तक अपनी तेज दौड़ को बनाए रख सकता है। उसकी दौड़ के सामने टिकने वाला अमेरिका में कोई भी जानवर नहीं है।

अमेरिका के वन्य जीव विज्ञानी उसकी रफ्तार को लेकर आश्चर्य प्रगट किया करते थे। अपने शिकारी से आगे निकलना सभी खुरवाले जानवरों की कोशिश होती है। लेकिन, जब अमेरिका में इतनी तेजी से खदेड़ने वाला कोई जानवर ही मौजूद नहीं है तो फिर इतनी तेज भागने की आखिर प्रोंगहोर्न को जरूरत क्या पड़ी। ये पहेली अब सुलझा ली गई है। हाल ही में हुए शोधों से पता चला कि आज भले ही प्रोंगहोर्न को इतना तेज दौड़ने की जरूरत नहीं है। लेकिन, उसके पूर्वजों के पास जान बचाने के लिए इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था। लगभग दस हजार साल पहले अमेरिका में भी चीते जैसी एक बड़ी बिल्ली रहा करती थी। उसकी रफ्तार भी चीते की तरह ही तेज हुआ करती थी। उससे बचने के लिए प्रोंगहार्न को तेज दौड़ लगानी पड़ती थी। इसके चलते उनकी आज की पीढ़ी भी उसी तेज रफ्तार से दौड़ लगाती है। शिकारी कब का खतम हो गया। लेकिन, शिकार के अंदर उसका भय आज तक जिंदा है।

#jungalkatha #जंगलकथा #जंगलमन 


#रिपोस्ट

मैं एक पीढ़ी पहले का किसान हूं...

 मैं एक पीढ़ी पहले का किसान हूं... 


मैं आज भी थाली में खाना नहीं छोड़ता। इस बात को ऐसे भी कह सकते हैं कि मैं उतना ही लेता हूं, जितना खाया जा सके। खाने की बर्बादी मेरे लिए किसी अभिशाप से कम नहीं। मुझे याद है कि जब कभी हम थाली में खाना छोड़ने की फिराक में रहते थे तो हमें यही कहा जाता था कि अन्न बहुत मुश्किल से पैदा होता है। हमें किसानों की मेहनत की याद दिलाई जाती थी। 

गेंहू का एक-एक दाना पैदा करने के लिए किसी किसान ने अपना खून-पसीना एक किया होगा। चावल की एक-एक बाली किसी किसान की जी-तोड़ मेहनत का नतीजा है। बचपन में हमें यह बात इतनी बार कही गई कि हम खाने की बर्बादी के बारे में सोच भी नहीं सकते। 

मैं एक पीढ़ी पहले का किसान हूं। आज पचास साल पहले हमारी जमीनें सरकार ने अधिग्रहीत कर लीं। खेती से नाता टूट गया। लेकिन, आज भी हमें अपने उन खेतों और कुओं की याद है। हमारे खेतों में कॉलोनियां उगी हुई हैं। पर मेरी मां को याद है कि कहां पर हमारे कुएं थे। कहां पर हमारे खेत थे और कहां पर हमारे बाग थे। वे हमारी सामूहिक स्मृतियों में आज भी जिंदा हैं। मैंने अपने नाना और मामा को भी खेतों में काम करते देखा है। पर उनकी भी जमीनें सरकार अधिग्रहीत कर चुकी है। आज उनके खेतों में भी कॉलोनियां उगी हुई हैं। लेकिन, मेरी स्मृति में आज भी फालसे के वो खेत जिंदा हैं, जिन्हें मिट्टी-गारे की दीवार बनाकर घेर दिया जाता था। मैं जहां महुए के बड़े-बड़े पेड़ों को देखता हूं, रेतीले और ऊंचाई-नीचाई वाली जगहों को देखता हूं, आज वहां पर कतारों से फ्लैट खड़े हैं। आज हमारे पास जमीनें नहीं हैं। हम खेती नहीं करते। लेकिन, खेती-किसानी के संस्कार हमारे अंदर मौजूद हैं। 

गेंहू के एक-एक दाने में इंसान का सदियों का संचित श्रम और ज्ञान मौजूद है। ये सब-कुछ इंसानियत को इतनी आसानी से हासिल नहीं हुआ है। गेंहू-चावल हो या तमाम अन्य खाद्य पदार्थ, इंसान ने सदियों के नेचुरल सलेक्शन से इन्हें यह रूप दिया है। सबसे बड़े आकार की लौकी और कद्दू को उसने खाया नहीं बल्कि बीज के लिए बचाकर रख लिया। कई सदियों की इस इंसानी हिकमत का परिणाम है कि आज दुनिया में इतना पैदा होता है कि हर किसी का पेट भरा जा सके। 

यह अलग बात है कि बाजार हर किसी से पेट भरने का हक छीन लेता है। वह उसे सबसे कम देता है जो पैदा करने में, उत्पादन करने में सबसे ज्यादा योगदान करते हैं। वह मेहनत पर डाका मारता है। 

इस डकैती के खिलाफ हजारों-लाखों किसान आज राजधानी की सीमाओं पर डटे हुए हैं। वे अपने घरों से दूर हैं। खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं।

किसान बहुत ज्यादा बर्दाश्त करता है। बहुत सहनशील होता है। वो मौसम की मार झेलता है। बाजार की मार झेलता है। अपनी फसलों से निराश भी होता है। लेकिन, फिर-फिर अपनी फसलों की ओर लौटता है। किसान आंदोलन ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष की एक अनूठी मिसाल देश के सामने रखी है। 

पाश की युद्ध और शांति कविता की ये पंक्तियां इन दिनों बारहां याद आती हैं-----


वक्त बहुत देर

किसी बेकाबू घोड़े की तरह रहा है

जो हमें घसीटता हुआ जिंदगी से बहुत दूर ले गया है

और कुछ नहीं, बस युद्ध ही इस घोड़े की लगाम बन सकेगा

बस युद्ध ही इस घोड़े की लगाम बन सकेगा !!!

दिल्ली में यमुना

 यमुना नदी का लगभग 54 किलोमीटर का हिस्सा दिल्ली से गुजरता है। पल्ला से बदरपुर तक नदी की इतनी लंबाई है।


इसमें से वजीराबाद से लेकर असगरपुर गांव तक का हिस्सा कुल 22 किलोमीटर तक का है।


यह हिस्सा यमुना नदी की कुल लंबाई का सिर्फ दो प्रतिशत है। लेकिन इसी दो प्रतिशत में नदी का 76 प्रतिशत प्रदूषण बहाया जाता है। 


सोचिये, किसी नदी का सिर्फ दो प्रतिशत हिस्सा अगर 76 प्रतिशत प्रदूषण के लिये जिम्मेदार हो तो कहां पर सुधार की जरूरत है।


पर सुधार में करोड़ों खर्च हो चुके हैं और स्थिति पहले से ज्यादा खराब है...


स्रोतः दिल्ली इकोनॉमिक सर्वे--2020-21

आम आदमी का गीतकार आनंद बख्शी

 जब दूसरे गीतकार एक गीत के लिए आठ दिन लेते थे तो आनंद बख्शी यह काम आठ मिनट में कर देते थे



गीतों की सरलता ने आनंद बख्शी को न सिर्फ आम आदमी का सबसे पसंदीदा गीतकार बनाया बल्कि उन्हें चार दशक तक हिंदी सिनेमा की मुख्यधारा में भी बनाए रखा

1965 में आनंद बख्शी के करियर ने एक बड़ी करवट ली. इसी साल उनकी दो फिल्में आई थीं-हिमालय की गोद में और जब-जब फूल खिले. इन दोनों फिल्मों ने उनकी लोकप्रियता को अचानक ही आसमान पर पहुंचा दिया. मैं तो एक ख्वाब हूं से लेकर परदेसियों से न अखियां मिलाना जैसे गाने हर जुबां की पसंद बन गए. इसके बाद तो आराधना, कटी पतंग, शोले, अमर अकबर एंथनी, हरे रामा हरे कृष्णा, कर्मा, खलनायक, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, ताल, गदर-एक प्रेमकथा और यादें तक चार दशक से भी ज्यादा समय तक वे अपने गीतों की फुहारों से लोगों के दिलों को भिगोते रहे.


आनंद बख्शी गायक बनने का सपना लिए भी बंबई आए थे. 1972 में उनकी यह इच्छा पूरी हुई. फिल्म मोम की गुड़िया में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ उन्होंने अपना पहला गाना गाया–’मैं ढूंढ रहा था सपनों में’. निर्देशक मोहन कुमार को वह गाना इतना अच्छा लगा कि उन्होंने ऐलान कर दिया कि आनंद बख्शी, लता मंगेशकर के साथ एक युगल गीत भी गाएंगे. यह गाना था– ‘बागों में बहार आई, होठों पे पुकार आई’. यह खूब चला भी. इसके बाद तो उन्होंने शोले, महाचोर, चरस और बालिकावधू जैसी कई फिल्मों के गीतों को अपनी आवाज दी.

आनंद बख्शी की सबसे खास बात थी उनके गीतों के सरल बोल. जब-जब फूल खिले से लेकर कटी पतंग, शोले, हरे रामा हरे कृष्णा, सत्यम शिवम सुंदरम और 2001 में आई उनकी आखिरी फिल्में गदर-एक प्रेमकथा और यादें इसका उदाहरण हैं. यही वजह है कि उन्हें आम आदमी का गीतकार कहा जाता था. उनके गीतों में रहस्यवाद से ज्यादा जीवन की सरलता थी. बहुत आम सी परिस्थितियों से वे गीत खोज लाते थे. मसलन सिकंदर और पोरस का एक नाटक देखने के दौरान पोरस को सिकंदर के सामने बंधा देख उन्होंने लिखा–मार दिया जाए कि छोड़ दिया जाए, बोल तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए. यह गीत खासा मशहूर हुआ.

‘बड़ा नटखट है किशन कन्हैया’, ‘कुछ तो लोग कहेंगे’, ‘आदमी मुसाफिर है’, ‘दम मारो दम’ और ‘तुझे देखा तो ये जाना सनम’ तक आनंद बख्शी ने चार हजार से भी ज्यादा गीत रचे. उनकी रफ्तार इतनी तेज थी कि एक साक्षात्कार में मशहूर संगीतकार लक्ष्मीकांत ने कहा था कि जहां दूसरे गीतकार गीत लिखने के लिए सात-आठ दिन ले लेते हैं वहीं आनंद बख्शी आठ मिनट में गाना लिख देते हैं.


उदित नारायण, कुमार सानू, कविता कृष्णमूर्ति और एसपी बालसुब्रमण्यम जैसे अनेक गायकों का पहला गीत आनंद बख्शी ने ही लिखा. 40 बार वे फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामित किए गए और चार बार यह पुरस्कार उनकी झोली में आया. आखिरी फिल्मफेयर पुरस्कार उन्हें 1999 में सुभाष घई की फिल्म ताल के गीत इश्क बिना क्या जीना यारों के लिए मिला था.


आनंद बख्शी सिगरेट बहुत पीते थे. इसके चलते उन्हें फेफड़ों और दिल की तकलीफ हो गई. 30 मार्च, 2002 को 72 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. लेकिन आम आदमी की भावनाओं को जुबान देने वाले उनके गीत अमर हैं.


साभार सत्याग्रह ब्यूरो

21 जुलाई 2020


https://amp.satyagrah.scroll.in/article/13652/anand-bakshi-lyricist-profile

मुकेश राजकपूर की वो आखिरी मुलाक़ात

 FRIENDS.......SACH बताये /AB PAHLE KI TARAH HAMARA KOI POST SHERE KRNE KA MOOD HI NAHI HOTA

DIL KARTA HAI AB KOI SHERE HI NAA KARE

BUT KHUC AZIZ DOSTO KE JYADA JOR DENE PAR

HUM AAPKE SAAMNE AAJ EK AISA DARD BHARA

IMMOSNAL KAR DENE WALA KISSA RAJ JI AUR MUKESH JI KI DEATH SE PAHLE LAST KE DINO KA KISSA SHERE KARENGE

इस मंज़र को याद करके रखें कपूर जी की आंखें छल छला जाती थी।

दोस्तों चलिए बात करते हैं इस बेहद गंभीर और करूणा दायक किस्से को याद करते हुए

बात करते हैं उन दिनों कि जब ग्रेट मुकेश जी को 27 JULY 1976 को यूं एस ए और कनाडा में होने वाले म्यूज़िक कंसर्ट के लिए जब वहां के लिए जाना था।

              ््््््््््््््््

इसके लिए एक दिन पहले 26 JULY को मुकेश जी बम्बई के फेमस ताड़ देव के रिकार्डिंग स्टुडियो में सत्यम् शिवम् सुंदरम् के एक गीत की रिकार्डिंग में लगे हुए थे।

जी हां दोस्तों उस महान गीत के बोल थे।

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चंचल शीतल निर्मल कोमल

                संगीत की देवी सरस्वती

दोस्तों ये गीत जब रिकार्ड हो रहा था। तो उस स्टुडियो में रिकार्डिंग के बाद हमेशा ही मुकेश जी राज कपूर जी ग्रेट लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी और रिकोर्डिंस्ट डी ओ भंसाली साहब सब रिकार्ड किए गए गीत को एक साथ बैठकर सुना करते थे।

और उसपे चर्चा किया करतें थे।

और गीत सच में बहुत ही खूबसूरत रिकार्ड हुआ था।

उस वक्त दोस्तों गीत की रिकार्डिंग के बाद पीने और पिलाने के दौर शुरू हो जाया करतें थे।

जैसा कि हमारे बहुत से दोस्त जानतें हैं।

                ्््््््््््््््

मगर उस शाम कुछ ऐसा हुआ दोस्तों कि रिकार्डिंग में उस दिन काफी समय लग गया।

और रिकार्डिंग पूरी होते-होते सुबह के चार बज गए।

थके हारे सभी लोग अपने-अपने घर चलें गए।

और अगले दिन मुकेश जी चलें गए USA

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#ठीक_एक_महीने_बाद

27 AUGEST 1976 को प्रोग्राम से पहले मुकेश जी को आया एक #जबरदस्त_हार्ट_अटैक

और मुकेश जी अपने तमाम चाहने वाले और अपने सभी मित्र प्यारों को यूं अचानक छोड़कर चले गए इस दुनिया से।

😭😭😭

दोस्तों यहां हम आप सबको ये जरूर बता दें। कि ग्रेट मुकेश जी ग्रेट राज साहब ग्रेट शलेंन्द्र साहब और बहुत ही ग्रेट हस्ती कलम के जादूगर हसरत जयपुरी साहब जी।।

उनकी ये जोड़ी ऐसी थी।

जैसे की माला का एक भी मोती टूटा तो माला टूटकर बिखर जाऐ।

ऐसा हाल था चारों का।।।।।

बेहद प्यार इज्जत इतना प्रेम था आपस में कि एक बार तो सभी को आपस में मिले बिना रहा नहीं करतें थे।

हाल चाल खैर खबर जानना।।

मगर ये क्या

मुकेश जी का एक दम अचानक इस तरह से चला जाना

राजकपूर जी और उन सबके लिए बहुत बडा सदमा रहा था।

इस हादसे के ठीक 3 महिने बाद अपने काॅटेज में आराम कर रहे राज कपूर जी ने अपने नौकर जाॅन से पूछा

???????

क्या है ??? पीने को आज

तभी जाॅन अंदर से #किंग_आॅफ_किंगस् का जार लेकर आया

दोस्तों बहुत खास बात है गौर किजिएगा।

जाॅन साहब आऐ और राज साहब को ये जार देते हुए बोलें

ये जार साहब जी फेमस स्टुडियो में रिकार्डिंग के दिन मुकेश जी आपके साथ पीने के लिए लेकर आए थे।

उन्होंने ये कहा था कि ????

रिकार्डिंग खत्म होने के बाद ही इसे खोलना।


DOSTO.......

{SACH BLEAVE ME :-YE LINES LIKHTE-2 HAMARI BHI AANKHAI BHARNE KO HO RAHI THI JO LINE NICHE LIKHI HAI UNSE}

बस दोस्तों फिर क्या था।

इतना सुनते ही राज जी की आंखें भर आईं।


AUR UNHONE APNE PARAM MITAR MUKESH JI KO YAAD KAR ROTE-2 WO JHON KE GALE SE LIPAT GAYE

AUR KHUC DAIR TAK JARO KATAAR ROTE RAHEऔर उन्होंने अपने परम मित्र मुकेश जी को याद करने लगे।

और रोते-रोते उन्होंने जाॅन के गले से लिपट गए

और कुछ देर तक जारों कतार रोते रहे

AUR SOCHA SAAYAD MUKESH KE SATH PEENA AB NASEEB ME NAHI THA

AUR DOSTO MUKESH JI KI WO AAKHRI KHAWWAHISH ADHURI HI RAH GAYI


FRIENDS PAHLE KE ARTIST APNE KAAM KE HI NAHI NETURE KE BHI KHAFI SENTAL MENTLE HUYA KARTE THEY

AAP SABKO HAMARI AUR SE PRANAAM KABOOL FARMAYE

धर्मेंद्र के संग मीना

 पंजाब से बंबई फिल्मों में लाइफ बनाने आए धर्मेंद्र को जब मीना कुमारी के साथ पहली फिल्म मिली तो वे बहुत उत्साहित थे. वे फिल्म उद्योग के लोगों और अपने परिचितों से पूछा करते थे कि मीना कुमारी कैसे मिजाज वाली हैं और उनके साथ काम करते टाइम क्या-क्या ध्यान रखना चाहिए. उनके एक परिचित ने तो कहा कि वे जिस फिल्म में होती हैं उसमें बाकी सब एक्टर्स का परफॉर्मेंस उनकी परछाई तले ढंक जाता है. वे ऐसी एक्ट्रेस हैं कि सीन में एक शब्द बोले बगैर, चेहरे की एक छोटी सी अदा से दर्शकों पर जादू कर जाती हैं. उसी परिचित ने धर्मेंद्र से कहा कि तुम तो जाते ही उनके पैर पकड़ लेना. ख़ैर धर्मेंद्र बाद में गए और मीना कुमारी उनसे बहुत अच्छे से मिलीं. उनकी प्रशंसा की.


एक डायरेक्टर ने मीना कुमारी पर किताब लिखने वाले एक ऑथर से कहा था कि दिलीप कुमार जैसे जानदार एक्टर को भी मीना कुमारी के सामने स्थिर रहने में मुश्किल होती थी. मधुबाला ने कहा था कि मीना जैसी आवाज़ किसी दूजी एक्ट्रेस की नहीं है. राज कपूर उनके आगे अपने डायलॉग भूल जाते थे और मीना को लंबे-लंबे डायलॉग सुनने से याद हो जाते थे. कमर्शियल बॉलीवुड फिल्मों के जो दर्शक नहीं हैं और समानांतर सिनेमा के प्रशंसक हैं वे जानें कि सत्यजीत रे ने मीना कुमारी के बारे में कहा था, “निश्चित रूप से वे बहुत ऊंची योग्यता वाली अभिनेत्री हैं.”


अपने करीब 33 साल के करियर में उन्होंने 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. इनमें उनका सबसे उम्दा काम ‘साहब बीबी और ग़ुलाम’ (1962) में है. ‘पाकीज़ा’ (1972) भी, जो उनकी सबसे यादगार फिल्म है. इसके अलावा गुलज़ार के निर्देशन वाली ‘मेरे अपने’ (1971) तो मस्ट वॉच है. इस फिल्म जैसा रोल मीना कुमारी को कोई दूजा नहीं है. उनकी फिल्म ‘मझली दीदी’ (1967) भी थी जो भारत की ऑफिशियल एंट्री के तौर पर ऑस्कर अवॉर्ड्स में गई थी. उनकी ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ (1960), राजकपूर के साथ फ़िल्म ‘शारदा’ (1958), ‘मिस मैरी’ (1957) जैसी कई फिल्में भी हैं जो एंजॉय की जा सकती हैं.


हिंदी सिनेमा में सबसे चर्चित जीवन जीने वाली मीना कुमारी के प्रेम संबंधों को लोग मज़े लेने वाले अंदाज में देखने की कोशिश करते हैं लेकिन इसमें अच्छी बात ये है कि मीना कुमारी ने समाज की परवाह किए बगैर प्रेम किया. कई पुरुषों से किया. और कभी किसी बाहरी नैतिकता को अनुमति नहीं दी कि वो उनकी रुचियों और जीवनशैली का फैसला करे. बहुत बेहतरीन अदाकारा और व्यक्ति मीना कुमारी आज ही के दिन जन्मी थीं. कुछ किस्सों में उन्हें याद कर रहे हैं.


#1. जन्मीं तो पिता अनाथालय के आगे रखकर चले गए


मीना कुमारी; बेबी मीना एक बाल भूमिका में.

बंबई की एक चॉल में उनकी मां इक़बाल बानो और पिता मास्टर अली बख़्श रहते थे. थियेटर आर्टिस्ट थे. पिता थियेटर में हार्मोनियम भी बजाते थे. बहुत तंगहाली थी. फिर 1 अगस्त 1932 को उनके घर मीना जन्मीं. घर में दो बेटियां पहले से थीं इसलिए उनके पैदा होने पर कोई खुशी मनाने की संभावना नहीं थी. डिलीवरी करने वाले डॉक्टर को फीस देने तक के पैसे नहीं थे. बताया जाता है कि अली बख़्श इतने निराश थे कि बच्ची को दादर के पास एक मुस्लिम अनाथालय के बाहर छोड़ दिया. लेकिन कुछ दूर गए थे कि बच्ची की चीखों ने उन्हें तोड़ दिया. वे लौटे और गोद में उठा लिया. बच्ची के शरीर पर लाल चींटियां चिपकी हुई थीं. उन्होंने उसे साफ किया और घर ले आए.

बेबी मीना जो बाद में सुपरस्टार मीना कुमारी बनी. 

वैसे मीना उनका असली नाम नहीं था. उनका नाम था महजबीन बानो. उनका नाम बदला प्रोड्यूसर विजय भट्ट ने. दरअसल घर के हालात ठीक नहीं थे और फिल्मों में बच्चों को रोल मिला करते थे. तो उनकी मां इक़बाल बानो बेटियों के लिए रोल ढूंढ़ा करती थीं. एक बार वे 7 साल की मीना को भी एक फिल्म स्टूडियो लेकर गईं जहां तब के बड़े प्रोड्यूसर विजय भट्ट बैठे थे. उन्होंने कहा कि इस बच्ची के लायक काम हो तो दीजिए. महजबीन का चेहरा उन्हें पसंद आ गया. उन्होंने फिल्म ‘लेदरफेस’ (1939) में बाल भूमिका में उन्हें ले लिया. बाद में विजय ने कहा कि अभी फिल्में वो लगातार कर रही है तो ये नाम ठीक नहीं, कुछ और रखते हैं. तो बात करके उन्होंने नाम बेबी मीना कर दिया. फिर बड़ी होकर वे मीना कुमारी कहलाईं.


#3. अशोक कुमार ने मज़ाक किया था, सच हो गया


फिल्म आरती (1962) और बंदिश (1955) में अशोक कुमार के साथ मीना कुमारी.

दादर में मीना का परिवार रहता था. सामने ही रूपतारा स्टूडियो पड़ता था जहां फिल्मों की शूटिंग होती रहती थी. एक बार वहां बड़ी बहन खुर्शीद काम कर रही थीं और कंपाउंड में मीना खेल रही थीं. पिता अली बख़्श उन्हें वहीं शूटिंग कर रहे सुपरस्टार अशोक कुमार के पास लेकर गए. अशोक कुमार उन्हें पहचान गए क्योंकि अली बख़्श छोटे-मोटे रोल किया करते थे. उन्होंने कहा कि साहब ये मेरी छोटी बेटी है. अशोक कुमार ने खुशी जताई. उन्होंने बेबी मीना की तरफ देखकर कहा कि बेटा अभी तो तुम बच्चों के रोल करती हो, जल्दी से बड़ी हो जाओ फिर हम तुम्हारे साथ काम करेंगे, तुम हमारी हीरोइन बनना. अपने इस बगैर सोचे किए मज़ाक पर वे हंसे और साथ बैठे लोग भी लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि एक दिन वाकई में ऐसा ही हो जाएगा. ये हुआ बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘तमाशा’ (1952) में जिसमें मीना को कास्ट किया गया और उनके को-स्टार थे अशोक कुमार और देव आनंद. आगे चलकर ‘परिणीता’ (1953), ‘बंदिश’ (1955), ‘शतरंज’ (1956), ‘एक ही रास्ता’ (1956), ‘आरती’ (1962), ‘बहू बेग़म’ (1967), ‘जवाब’ (1970) और ‘पाक़ीज़ा’ (1972) में भी दोनों ने साथ काम किया.


#4. इतनी पैसे लेती थीं जितने लोगों ने लाइफ में नहीं देखे थे


करियर की सबसे यादगार फिल्म पाक़ीज़ा (1972) में मीना कुमारी.

अपने दौर की सबसे ज्यादा फीस लेने वाली कुछ एक्ट्रेस में मीना कुमारी आती हैं. 1940 के बाद के दौर में वे एक फिल्म के लिए 10,000 रुपए की मोटी फीस लेती थीं. बाद के वर्षों में वे बहुत बड़ी स्टार बन गईं और उनकी फीस समय के साथ और मोटी हो गई. उनकी ऊंची फीस के बावजूद अपनी फिल्में ऑफर करने और रोल सुनाने के लिए प्रोड्यूसर्स उनके घर के बाहर लाइन लगाते थे.


#5. गुलज़ार के पास छोड़ गईं अपनी लिखी पोएट्री


गुलज़ार की फिल्म ‘मेरे अपने’ (1971) में मीना कुमारी.

उनकी कोई औपचारिक स्कूली पढ़ाई नहीं हुई थी, बावजूद इसके मीना कुमारी कई भाषाएं जानती थीं और बहुत सारी किताबें पढ़ती थीं. उन्हें शायरी और कविताएं लिखने का बहुत चाव था. कैफी आज़मी से भी उन्होंने सीखा. पोएट्री के लिए मीना कुमारी का यही पैशन था कि वे गुलज़ार के करीब आ गई थीं. तब उनकी शादी कमाल अमरोही से हो चुकी थी. जब मीना गुज़र गईं तो अपने पीछे अपनी लिखी बहुत सी पोएट्री और दूसरा कंटेंट गुलज़ार के पास छोड़ गईं.


#6. कमाल अमरोही से प्रेम ऐसे शुरू हुआ


फिल्म पाक़ीज़ा के सेट पर पति और डायरेक्टर कमाल अमरोही के साथ मीना.

मीना कुमारी एक बार अंग्रेजी मैगजीन पढ़ रही थीं और उसमें उन्होंने कमाल अमरोही की फोटो देखी जो तब हिंदी सिनेमा के जाने-माने राइटर-डायरेक्टर हो चुके थे. उन्होंने ‘महल’ (1949) जैसी सुपरहिट फिल्म बनाई थी. मीना उनके व्यक्तित्व, पढ़ाई-लिखाई और सोच से बहुत प्रभावित हुई. जब मीना का एक्सीडेंट हुआ तो दोनों बहुत करीब आ गए थे. प्रेम शुरू हुआ. एक-दूसरे को वे ख़त लिखा करते थे. पूरी-पूरी रात फोन पर बातें किया करते थे. और इसके बाद परिवार वालों के खिलाफ जाते हुए मीना ने छुपकर कमाल से शादी कर ली. वे बिना बताए ही कमाल के घर पहुंच गई थीं और वहीं रहने लगीं.


#7. पति ने कायदों में बांधना चाहा तो स्टाइल से उनको छोड़ दिया


कमाल और मीना का रिश्ता करीब एक दशक चला. बाद में इसमें खटास आने लगी. कमाल भी उन्हें लेकर बहुत पज़ेसिव थे और बहुत रूढ़िवादी थे. उन्होंने कई बंदिशें लगा रखी थीं. शर्तें बना रखी थीं. जैसे उनके मेक-अप रूप में किसी मर्द का घुसना मना था. इसी तरह उन्होंने एक असिस्टेंट मीना कुमारी के साथ लगा रखा था ताकि वे हर पल नजर रख सके. लेकिन मीना ने हर नियम को तोड़ा. बताया जाता है कि उन्होंने एक बार स्टूडियो में गुलज़ार को बुलाया और सबके सामने अपना स्नेह प्रदर्शित किया. उसके बाद पति के घर से चली गईं और अपनी बहन के वहां रहने लगीं.


#8. जिस शराब को छूती भी नहीं थीं उसी ने बाद में जान ले ली 

शराब ने मीना कुमारी को मार दिया. लेकिन ऐसा नहीं है कि वे पहले पीती थीं. इस लत के दो कारण बताए जाते हैं. एक तो ये कहा जाता है कि उन्हें नींद लेने में दिक्कत होने लगी थी तो उनके डॉक्टर सईद ने नींद की गोली की जगह ब्रांडी का एक पेग लेने की सलाह दी. दूसरी अटकल ये है कि डायरेक्टर अबरार अल्वी की फिल्म ‘साहब बीवी और ग़ुलाम’ (1963) की शूटिंग की दौरान ये हुआ. उन्होंने फिल्म में जमींदार की बंगाली पत्नी छोटी बहू का रोल किया था जो अपने अय्याश पति का प्यार पाने और ध्यान आकर्षित करने की नाकाम कोशिशों में लगी है. वो उसे खुश करने के लिए शराब पीने लगती है और बाद में दूसरे पुरुष के पास प्यार ढूंढ़ती है. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान अपने रोल में डूबने के लिए मीना ब्रांडी के छोटे पेग पीने लगीं. लेकिन उन्हें इसकी लत लग गई. बाद में इसी ने उन्हें बीमार कर दिया और जान ले ली.


#9. पूरी जिंदगी पता नहीं लगने दिया कि अंगुलियां कटी हुई हैं

एक बार मीना अपनी बहन के साथ महाबलेश्वर से लौट रही थीं. रास्ते में उनकी कार का जोरदार एक्सीडेंट हुआ. मीना का एक हाथ बुरी तरह घायल हो गया. ये भी बात थी कि हाथ शायद काटना पड़े. लेकिन हाथ बच गया लेकिन उनकी दो अंगुलियां काटनी पड़ी. अपने पूरे करियर में उन्होंने किसी फिल्म में दर्शकों को पता नहीं लगने दिया कि उनकी दो अंगुलियां नहीं हैं. वे खुद को ऐसे कैरी करती थीं और इतनी खूबसूरती से मूव करती थीं कि वो हाथ सामने होते हुए भी सबकुछ परफेक्ट लगता था.


#10. धर्मेंद्र से इश्क किया और उन्हें एक्टिंग करनी सिखाई 


धर्मेंद्र के साथ मीना कुमारी.

उनका धर्मेंद्र से प्रेम बहुत चर्चित था. धर्मेंद्र पंजाब के एक गांव से आए सीधे-साधे युवक थे. शादीशुदा थे. वहीं मीना कुमारी सुपरस्टार थीं. फिल्म ‘पूर्णिमा’ (1965) में उन्हें मीना के साथ साइन किया गया. मीना को तब जिंदगी में स्थिर प्रेम की तलाश थी जिसकी गोदी में वो सिर रख सकें. धर्मेंद्र में उन्हें वही दिखा. बताया जाता है कि उन्होंने धर्मेंद्र को ग्रूम किया. उन्हें एक्टिंग सिखाई. जिन फिल्मों में दोनों ने साथ किया उनके लिए वो एक-एक सीन खुद बोलकर और एक्ट करके धर्मेंद्र को बताती और सिखाती थीं. बारीकियां बताती थीं. उनके व्यक्तित्व को मीना ने उभारा. वे उनकी मेंटॉर थीं. ये मीना जैसी सुपरस्टार के साथ की शुरुआती फिल्में थीं जिनकी वजह से ही धर्मेंद्र का करियर खड़ा हो गया. अगर वे नहीं होती तो वे इतने बड़े स्टार बन पाते सोचना मुश्किल है. और बाद के वर्षों में खुद धर्मेंद्र ने भी मीना कुमारी के इस योगदान से इनकार नहीं किया. वे उनसे प्यार करते थे. उनके और मीना के करीबी बताते हैं कि जब धर्मेंद्र मीना कुमारी के कमरे से बाहर निकलते थे तो रो रहे होते थे. वे उनकी मानसिक पीड़ा नहीं देख पाते थे और खुद को रोने से नहीं रोक पाते थे. खैर, दोनों का प्रेम कोई मजबूत शक्ल नहीं ले सका लेकिन दोस्ती हमेशा बनी रही. जब मीना कुमारी बहुत ज्यादा बीमार हो गईं तो आखिर तक जो चंद फिल्मी दोस्त उनसे मिलने आते थे उनमें धर्मेंद्र भी एक थे.

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सूरमा भोपाली जयदीप सा कोई नहीं

 आज 29 मार्च को मशहूर कोमेडियन मरहूम जगदीप के जन्मदिन पर सादर नमन के साथ उनकी फिल्मों में रफ़ी साहब के गाये सदाबहार नग़मों की सूची पेश है...

*रफ़ी-जगदीप के सदाबहार नग़मे*

*सँकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

१)-

चल उड़ जा रे पँछी के अब ये देश हुआ बेगाना- *फ़िल्म-भाभी* *एकल*

२)-

चली चली रे पतंग मेरी चली रे- *फ़िल्म-भाभी* *साथ लता*

३)-

वो दूर जो नदियां बहती है,वहाँ इक अलबेली रहती है- *फ़िल्म-बरखा* *साथ लता*

४)-

पास बैठो तबियत तबियत बहल जाएगी,मौत भी आ रही हो तो टल जाएगी- *फ़िल्म-पुनर्मिलन* *एकल*

५)-

जाते जाते इक नज़र भर देख लो देख लो- *फ़िल्म-कव्वाली-की रात* *साथ शमशाद बेग़म*

६)-

इन प्यार की राहों में,तेरा ही सहारा है- *फ़िल्म-पुनर्मिलन* *साथ आशा*

७)-

सुर बदले कैसे देखो,किस्मत ने ली अंगड़ाई,हाथ मे आया हाथ पियाँ का,काहे को मेहँदी रचाई- *फ़िल्म-बरखा* *एकल*

८)-

हम पँछी एक डाल के एक डाल के, संग संग घूमे हो संग संग डोले- *फ़िल्म-हम पँछी एक डाल के* *एकल*

९)-

प्यार किया नहीं जाता हो जाता है,मेरी जान- *फ़िल्म-बरखा* *एकल*

१०)-

छोड़ भी दे मंझधार में नाँव- *फ़िल्म-बरखा* *एकल*

११)-

हमे प्यार करने न देगा ज़माना,अगर हो सके,मुझे भूल जाना-

*फ़िल्म-प्यार की बाज़ी* *साथ गीतादत्त*

१२)-

प्यार किया है तो प्यार निभाना,छोड़ें ज़माना,तुम छोड़ न जाना- *फ़िल्म-प्यार की बाज़ी* *साथ सुमन कल्याणपुर*

१३)-

मेरे दिल मे आने वाले,मुझे प्यार सिखानेवाले- *फ़िल्म बाप बेटे*

१४)-

बोल बोल बोल माय लिटिल डोव, दिल मेरा पूछता है,whom do you लव- *फ़िल्म-बाप बेटे* *एकल*

१५)-

कहने वाले कुछ भी कह ले,जो दिल की बात है,कव्वाली की रात है,कव्वाली की रात- *कव्वाली की रात* *साथ आशा व मन्नाडे*

१६)-

वो चाँद सा चेहरा लिए,छत पर तेरा आना- *एकल*

१७)-

सोचने को लाख बातें सोचे ज़माना- *बाप बेटे* *एकल*

१८)-

मेरे दिल मे आनेवाले,मुझे प्यार सिखाने वाले- *बाप बेटे* *साथ आशा*

१९)-

दिल गया दिल का एतबार गया,जिंदगी भर का राज़दार गया- *साथ सुमन कल्याणपुर*

२०)-

रुपैय्या जहाँ है वहाँ है रूप,रूप जहाँ है वहाँ है रुपैय्या- *रूप रुपैय्या* *एकल*

*संतोष कुमार मस्के-के संकलन से*

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भाग-2

*रफ़ी-जगदीप के सदाबहार नग़मे*

*संकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

२१)-

नैनो में कजरा माशा अल्ला,बालों में ग़जरा,सुभान अल्लाह- *नूरमहल* *एकल*

२२)-

छुन छुन करती आई चिड़िया,दाल का दाना लाई चिड़िया- *अब दिल्ली दूर नहीं* *एकल*

२३)-

कल मेरी तरह मुझको सलाम आप करोगे- *मेरे ग़रीब नवाज़* *एकल*

२४)-

या ख़ुदा,सोई क़िस्मत जगा दें- *मेरे ग़रीब नवाज़* *एकल*

२५)-

यारों मैं बड़ा परेशान,ना जान ना पहचान,एक लड़की जवान,मेरे पीछे करें हैरान- *रूप रुपैय्या* *एकल*

२६)-

देखी ज़माने की हमने ये रीत,करती है दुनिया,दौलत से प्रीत- *रूप रुपैय्या* *साथ आशा*

२७)-

ख़्वाजा निराले मेरे अजमेर वाले,शान न्यारी तुम्हारी,अजमेर वाले- *मेरे गरीब नवाज़* *एकल*

२८)-

मोहब्बत के धागे में कलियाँ पीरों कर,बनाई है हमने- *मेरे ग़रीब नवाज़* *साथ बलबीर व जानी बाबू कव्वाल*

२९)-

सजना सावन आया है,दिल उड़के चला है,बादल में- *बैंड मास्टर* *साथ लता*

३०)-

तेरी नज़र में मैं रहूँ,मेरी नजऱ में तू रहे,बोलो बोलो हो- *बैंड मास्टर* *साथ गीतादत्त*

३१)-

मेरे घर के दर-ओ-दीवार से आवाज़ आती है- *मेरे ग़रीब नवाज़* *एकल*

३२)-

छुपाकर मेरी आँखों को,वो पूछे कौन है जी तुम,मैं कैसे नाम लूँ उनका,जो दिल मे रहते है हरदम- *भाभी* *साथ लता*

३३)-

है बहोत दिनों की बात,था एक मजनूँ और एक लैला- *भाभी* *साथ बलबीर*

३४)-

अजब तेरी माया,तेरा भेद न खुल पाया- *पुनर्मिलन* *एकल*

३५)-

कली मुराद की पलभर में- *मेरे ग़रीब नवाज़* *एकल*

३६)-

हैल्लो हैल्लो,ले लो सलाम मेरा,यारों का यार हूँ मैं,पूछियो ना नाम मेरा- *बैंड मास्टर* *एकल*

३७)-

हक़ माँगते है अपने पसीने का- *बाप बेटे* *एकल*

३८)-

हुस्न वाले हुस्न का अंजाम देख,डूबते सूरज को ढलते शाम देख- *कव्वाली की रात* *साथ आशा*

३९)-

जाने–नज़र,चिलमन में अगर,हल्का सा ईशारा हो जाये- *कव्वाली की रात* *साथ मुबारक़ बेग़म*

४०)-

प्यार की हसरतें ख़ाक में मिल गयी,दो कदम चलके- *साथ आशा*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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मीना संग मोहम्मद रफ़ी के गाने

 आज 31 मार्च को फिल्मी दुनिया की अब तक की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में से एक मरहूम मीना कुमारी साहिबा की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए उनकी फिल्मों में रफ़ी साहब के गाये सर्वश्रेष्ठ सदाबहार नग़मों की सूची पेश है....

*रफ़ी-मीनाकुमारी के सर्वश्रेष्ठ नग़मे*

*संकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

*फ़िल्म-बैजू बावरा*

१)-

मन तड़पत हरी दर्शन को आज- *एकल*

२)-

ओ दुनिया के रखवाले,सुन दर्द भरे मेरे नाले- *एकल*

३)-

तू गँगा की मौज़ मैं जमुना का धारा,हो रहेगा मिलन,ये तुम्हारा,हो रहेगा मिलन ये तुम्हारा हमारा- *साथ लता*

४)-

इंसान बनो,कर लो भलाई का कोई काम- *एकल*

५)-

झूले में पवन की आयी बहार प्यार छलके हो प्यार छलके- *साथ लता*

६)-

दूर कोई गाये धुन ये सुनाये,तेरे बिन छलिया रे,लागे ना ये जियरा रे- *साथ शमशाद व लता*

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*फ़िल्म-कोहिनूर*

७)-

मधुबन में राधिका नाचे रे,गिरधर की मुरलिया बाजे रे- *एकल*

८)-

दो सितारों का जमीं पर है मिलन, आज की रात,आज की रात- *साथ लता*

९)-

चलेंगे तीर जब दिल पर,तो अरमानों का क्या होगा- *साथ लता*

१०)-

ज़रा मन की किवड़िया खोल,के सैय्यां तेरे द्वारे खड़े,अरे सैय्यां तेरे बलमा तेरे द्वारे खड़े- *एकल*

११)-

कोई प्यार की देखें जादूगरी,गुलफ़ाम को मिल गयी सब्जपरी- *साथ लता*

१२)-

तन रँग लो जी मन रँग लो,हो खेलो खुशी से रँग होली आयी रे- *साथ लता*

१३)-

ढल चुकी शाम-ए-ग़म, अब मुस्कुराले सनम,ग़म की रात अब जाने को है- *एकल*

१४)-

ज़ख्मों से कलेजा चूर हुआ,ये क्या जिंदगी है- *एकल*

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*फ़िल्म-आरती*

१५)-

अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की,इंसान बन रही है किरण,माहताब की- *एकल*

१६)-

आपने याद दिलाया तो मुझे याद आया- *साथ लता*

१७)-

अरे बार बार तोहे क्या समझाए,पायल की झंकार,तेरे बिन साजन,लागत न जियरा हमार- *साथ लता*

१८)-

वो तीर दिल पे चला जो तेरे कमान में है- *साथ आशा*

१९)-

ना भँवरा ना कोई गुल,अकेला हूँ मैं तेरा बुलबुल- *साथ आशा*

२०)-

प्यार की बोलियाँ बोलती,मैं तो जाती हँसती डोलती,डंक बिछुआ ने मारा,उई माँ उई माँ उई माँ- *साथ आशा*

२१)-

आ जा,आजा रे बलमा,वादा करके तू कभी उठी है कभी झुकी है,ये नैना बड़े बेक़ाबू- *साथ सुमन कल्याणपुर*

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*फ़िल्म-साँझ और सवेरा*

२२)-

जिंदगी मुझको दिखा दें रास्ता,मुझको तेरी हसरतों का वास्ता- *एकल*

२३)-

तक़दीर कहाँ,ले जाएगी,मालूम नहीं,मालूम नहीं,आएगी मंज़िल, आएगी मंज़िल- *एकल*

२४)-

यही है वो साँझ और सवेरा,जिसके लिए तरसे हम सारा,जीवनभर,यही है वो साँझ और सवेरा- *साथ आशा*

२५)-

अजहूँ न आये बालमा,सावन बितों ही जाए,जाए रे,सावन बितों ही जाए- *साथ सुमन कल्याणपुर*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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भाग-2

*रफ़ी-मीनाकुमारी के सर्वश्रेष्ठ नग़मे*

*संकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

*फ़िल्म-दिल एक मंदिर*

२६)-

दिल एक मंदिर है,दिल एक मंदिर है,प्यार की जिसमे,होती है पूजा,वो प्रीतम का घर है- *साथ सुमन कल्याणपुर*

२७)-

याद न जाये,बीतें दिनों की,जाके न आये वो दिन,दिन क्यों न आये- *एकल*

२८)-

यहाँ कोई नहीं,तेरे मेरे सिवा,कहती है झूमती गाती है,तुम सबको छोड़के आ जाओ,आ जाओ- *एकल*

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*फ़िल्म-मिस मेरी*

२९)-

ओ रात के मुसाफ़िर,चँदा ज़रा बता दें,मेरा कसूर क्या है,तू इतना बता दें- *साथ लता*

३०)-

वृंदावन का कृषण कन्हैया,सबकी आँखों का तारा,मन ही मन क्यों जले राधिका,मोहन तो है सबका प्यारा- *साथ लता*

३१)-

पहले पैसा फिर भगवान,दाता देते जाना दान,अठन्नी या चवन्नी,आना दो आना- *एकल*

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*फ़िल्म-ग़ज़ल*

३२)-

रँग और नूर की बारात किसे पेश करूँ,ये मुरादों की,हसीं रात किसे पेश करूँ,किसे पेश करूँ- *एकल*

३३)-

दिल ख़ुश है आज उनसे,मुलाक़ात हो गयी- *एकल*

३४)-

इश्क़ की गर्मी-ए-जज़्बात,किसे पेश करूँ- *एकल*

३५)-

नग़मा-ओ-शेर की सौगात किसे पेश करूँ- *एकल*

३६)-

मुझे ये फूल न दें,तुझको दिलबरी की क़सम,ये कुछ नहीं ये कुछ नहीं,तेरे होठो की ताज़गी की कसम- *साथ सुमन कल्याणपुर*

३७)-

ताज तेरे लिए ताज हो,मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे,एक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर,हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक- *एकल*

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*फ़िल्म-मैं चुप रहूँगी*

३८)-

कोई बता दें दिल है जहाँ,क्यों होता है दर्द वहाँ,तीर चलाके,शूल चुभाके,ये मत पूछो दर्द कहाँ- *साथ लता*

३९)-

चाँद जाने कहाँ खो गया,तुमको चेहरे से पर्दा,हटाना न था- *साथ लता*

४०)-

ख़ुश रहो,अहले-चमन,हम तो वतन छोड़ चले- *एकल*

४१)-

मैं कौन हूँ,मैं कहाँ हूँ,मुझे ये होश नहीं- *एकल*

४२)-

पा पा पा मा पा गा,आये न बालम,का करूँ सजनी,याहू याहू- *साथ लता*

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*फ़िल्म-बहु बेग़म*

४३)-

हम इंतज़ार करेंगे,तेरा कयामत तक,खुदा करें कि क़यामत हो और तू आये- *साथ आशा*

४४)-

लोग कहते है,तुझसे किनारा कर ले- *एकल*

४५)-

अर्ज-ए-शौक़,आँखों मे है,तेरे आगे बात करने का मज़ा,आँखों मे है,वाकिफ़ हूँ खूब इश्क़ के,तर्ज़-ए- बयाँ से मैं- *साथ ताबिश*

४६)-

आ अब जाँ-ब-लब हूँ सिद्धते,हे दर्द-ए -निहाद मैं,हाँ ऐसे में ऐसे में,ढूँढ के लाऊं कहाँ से मैं- *साथ मन्नाडे*

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*फ़िल्म-भीगी रात*

४७)-

दिल जो न कह सका,वही राजे-दिल, कहने की बात,आई- *एकल*

४८)-

मोहब्बत से देखा,ख़फ़ा हो गए है,हसीं आज़कल के ख़ुदा हो गए है- *एकल*

४९)-

ऐसे तो न देखो,बहक कहीं न जाएं हम- *साथ सुमन कल्याणपुर*

५०)-

जाने वो कौन है क्या नाम है उन आँखो का- *एकल*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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भाग-3

*रफ़ी-मीनाकुमारी के सर्वश्रेष्ठ नग़मे*

*संकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

*फ़िल्म-काज़ल*

५१)-

छू लेने दो नाज़ुक होठों से,कुछ और नहीं है जाम है ये,क़ुदरत ने हमे जो बक्शा है,वो सबसे हसीं ईनाम है वो- *एकल*

५२)-

ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के,बिखर जाए तो अच्छा- *एकल*

५३)-

ज़रा सी और पिला दो भाँग,ओ जय बम भोला,ओ जय बम भोला- *साथ आशा*

५४)-

क़बीरा निर्भय राम जपे,महफ़िल में तेरी यूँ ही रहे- *साथ आशा*

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*फ़िल्म-चित्रलेखा*

५५)-

मन रे,तू काहे न धीर धरे,ओ निर्मोही, मोह न जाने,किसका मोह करें- *एकल*

५६)-

छा गए बादल नीलगगन में,धूल गया कजरा,शाम ढले- *साथ आशा*

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*फ़िल्म-अकेली मत जइयो*

५७)-

ये तो कहो,कौन हो तुम कौन हो तुम, मेरी बहार तुम ही तो नहीं- *साथ लता*

५८)-

रास्ते मे दो अनजाने,ऐसे मिले दीवाने- *साथ आशा*

५९)-

ये हवा ये मस्ताना मौसम,दिल को फिर क़रार आया- *साथ लता*

६०)-

ये सायकल का चक्कर,कभी आगे कभी पीछे- *साथ आशा*

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*फ़िल्म-बेनज़ीर*

६२)-

आज शीशे में बार बार उन्हें देखा- *एकल*

६३)-

दिल मे इक जाने तमन्ना ने जगह पाई है- *एकल*

६४)-

मैं शोला हूँ,हर एक शै को जलाना काम है मेरा- *साथ सुमन कल्याणपुर*

६५)-

ले गयी,एक हसीना दिल मेरा- *एकल*

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*फ़िल्म-चंदन का पलना*

६६)-

तुम्हे देखा है मैंने गुलिस्ताँ में,के जन्नत ढूँढ ली है इसी जहाँ में- *एकल*

६७)-

ज़ुल्फो को तुम न यूँ सँवारा करों,इश्क़ किसी दिन,बहक जाएगा- *साथ आशा*

६८)-

तीर तट दंग,आये तीर तट दंग- *साथ मन्नाडे*

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*फ़िल्म-सट्टा बाज़ार*

६९)-

ज़रा ठहरों अब्दुल गफ़्फ़ार,रुमाल मेरा लेके जाना- *साथ सुमन कल्याणपुर*

७०)-

आँकड़े का धंदा,एक दिन तेज,सौ दिन महँगा- *एकल*

७१)-

जा जा,ना छेड़,मान भी जा- *साथ सुमन कल्याणपुर*

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*फ़िल्म-मधु*

७२)-

तुमसे लगन लगी है ऐसी अगन जगी है जैसी- *साथ लता*

७३)-

ओ देके बढ़नामी ज़माने भर की- *साथ आशा*

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*फ़िल्म-फूल और पत्थर*

७४)-

मेरे दिल के अंदर,चलाती है ख़ंजर- *एकल*

७५)-

तुम कौन? मामूल,मैं कौन? तामील- *एकल*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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भाग-4

*फ़िल्म-हलाकू*

७६)-

आजा के इंतज़ार में,जाने को है बहार भी- *साथ लता*

७७)-

दिल का न करना एतबार कोई- *साथ लता*

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*फ़िल्म-अभिलाषा*

७८)-

वादियां मेरा दामन,रास्ते है मेरी बाहें, तुम जहाँ जाओगे,हमे वहाँ पाओगे- *एकल*

७९)-

एक ज़ानिब,शम्मे-महफ़िल,एक ज़ानिब,रूह-ए-जाना,गिरता है देखे कहाँ परवाना- *साथ लता व मन्नाडे*

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*फ़िल्म-अर्द्धांगिनी*

८०)-

दिल हम तो हारे,तुम कहो प्यारे,गालों का तिल,कब हारोगे- *साथ गीतादत्त*

८१)-

तूने जो इधर देखा,हाये मैंने भी उधर देखा- *साथ गीतादत्त*

८२)-

कल सजना मिलना यहाँ,है तमाम काम धाम रे,आज ना ना,आज ना ना,छोड़ो भी न पागलपन- *साथ गीतादत्त*

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*फ़िल्म-दुनिया झुकती है*

८३)-

फूलों से दोस्ती है,काँटों से यारी- *एकल*

८४)-

दुनिया मे जो है वो भी आदमी, मुफलिसो सी अदा है,वो भी आदमी,जरदारो बेतवा है,वो भी आदमी,नियामत जो खा रहा है,वो भी है आदमी- *एकल*

८५)-

प्यार में जोकर बन गए हम- *साथ आशा*

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*फ़िल्म-नूरजहाँ*

८६)-

आप जबसे क़रीब आये है,प्यार के रँग,दिल पे छाये है- *साथ आशा*

८७)-

वो मोहब्बत,वो वफ़ाएँ,किस तरह हम भूल जाए- *एकल*

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*फ़िल्म- जवाब*

८८)-

जिंदगी वो क्या,ना प्यार जिसमे हो,साथ अगर हो साथी दिलका मज़ा सफर में है- *साथ लता*

८९)-

चली कहाँ,हँसती गाती, चँचल नदिया, शोर मचाती- *साथ आशा*

९०)-

किस कारण जोगन जोग लिया,भरी जवानी में,ये कैसा रोग लिया- *एकल*

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*फ़िल्म-मैं भी लड़की हूँ*

९१)-

आये तो हुजूर बड़े सजके,जुल्फे सँवारे बन ठन के,नज़रें झुकाए अब चले कहा तनके- *एकल*

९२)-

यही तो दिन है बहार के,यही तो दिन है प्यार के इक़रार के- *साथ आशा*

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*फ़िल्म-दाना पानी*

९३)-

कोई अमीर है,कोई ग़रीब है,जो है दोनों के बीच,बड़ा बदनसीब है- *एकल*

९४)-

तेरे हाथो में जीवन की जीत हार है,बना ले जो मोहब्बत को,जीवन बना ले- *साथ गीतादत्त*

९५)-

तू हँसे तो ग़म शरमाया,दिल झुम झुम लहराया,दिल झुम झुम लहराया- *साथ शमशाद बेग़म*

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*फ़िल्म-अल्लाउद्दीन और जादुई चिराग़*

९६)-

यूँ ही उल्फ़त के मारों पे ये दुनिया जुल्म करती है- *साथ शमशाद*

९७)-

हो सके तो दिल के बदले,दिल इनायत कीजिए- *साथ आशा,शमशाद व चित्रगुप्त*

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*फ़िल्म-आदिल-ए-जहाँगीर*

९८)-

अल्लाह तेरी,अल्लाह करें रखवाली- *एकल*

९९)-

अपना ही घर लूटने दीवाना जा रहा है- *एकल*

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१००)-

चलो दिलदार चलो,चाँद के पार चलो,हम है तैय्यार चलो- *पाकीज़ा* *साथ लता*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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भाग-5

*रफ़ी-मीनाकुमारी के सदाबहार नग़मे*

*संकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

१०१)-

अज़ब है मालिक तेरा जहाँ,चिराग़ कहाँ रोशनी कहाँ- *चिराग़ कहाँ रोशनी कहाँ* *एकल*

१०२)-

जाने कहाँ गयी,दिल मेरा ले गयी ले गयी- *दिल अपना और प्रीत पराई* *एकल*

१०३)-

ऊँचे ऊँचे महलों वाले,बन बैठे भगवान- *जागीर* *एकल*

१०४)-

मुझे प्यार की,जिंदगी देने वाले,कभी ग़म न देना,खुशी देने वाले- *प्यार का साग़र* *एकल*

१०५)-

जमीन भी वो ही,आसमान भी वो ही, मगर अब वो दिल्ली वाली बात नहीं- *चाँदनी चौक* *एकल*

१०६)-

मेरा बंदर चला है ससुराल- *जिंदगी और ख़्वाब* *एकल*

१०७)-

जो वक्त पे काम आ जाये,अजी वही सहारा अच्छा है,अगर बूरा न मानो अर्ज करूँ,मोटर से खटारा अच्छा है- *फ़रिश्ता* *साथ आशा*

१०८)–

अज़ब है दास्ताँ तेरी ऐ जिंदगी,कभी हँसा दिया,रुला दिया कभी- *शरारत* *एकल*

१०९)-

बोलो जी हमारे गुब्बारे,प्यारे प्यारे,ये धरती ये फूल,गगन के तारें- *बंदिश* *एकल*

११०)-

तेरी तस्वीर भी तुझ जैसी हसीं है लेकिन ये मेरी ज़ख्मी जिंदगी का मड़ावा तो नहीं- *किनारे किनारे* *साथ उषा मंगेशकर*

१११)-

अज़ब खेल क़िस्मत का देखो,काँटो भरे जहाँ में,बिछड़ के डाल से दो कलियाँ,उजड़ी है आज तूफान में- *पूर्णिमा* *एकल*

११२)-

सबने कही,एक ना मानी,दुनिया अपनी लूटा बैठे,अपने हाथों घर के स्वर्ग को आज एक नर्क बना बैठे,जो होते अगर दो लाल तो वो होता न हाल बेहाल,गली गली में यूँ ना भटके अपने नौनिहाल- *सात फेरे* *एकल*

११३)-

गोरे जिस्म और गुलाबी गालों वाली लड़कियाँ,जान ले लेती है लंबे बाल वाली लड़कियाँ- *सात फेरे* *एकल*

११४)-

हे शंकर,प्रलयंकर- *हनुमान पाताल विजय* *एकल*

११५)-

राम श्री राम राजा राम- *हनुमान पाताल विजय* *एकल*

११६)-

मैं कह दूँ तुमको चोर तो बोलो क्या करोगे,अगर मैं मचा दूँ शोर तो बोलो क्या करोगे- *सनम 1951* *साथ सुरैय्या*

११७)-

डाल दी मैंने, जल थल में नैय्या- *दायरा 1950* *साथ मुबारक़ बेग़म*

११८)-

करतब है बलवान जगत में करतब है बलवान- *श्री गणेश महिमा 1950* *एकल*

११९)-

दुनिया एक कहानी रे भैय्या,दुनिया एक कहानी- *अफ़साना 1951* *एकल*

१२०)-

चौपाटी में तुझसे कल जो आँख मटक्का हो गया,पानी पूरी भेल के हो गया हक्का बक्का- *अफ़साना* *साथ शमशाद*

१२१)-

आज सुहानी रात रे अहा अहा,होगी सजन से बात रे,अहा अहा- *नया अंदाज़* *साथ किशोर व शमशाद बेग़म*

१२२)-

ये रात आशिक़ाना,छाया समाँ सुहाना- *नया अंदाज* *साथ आशा*

१२३)-

टूट गया हाये टूट गया,वो साज-ए-मोहब्बत,टूट गया,हम जिनको समझते थे अपना,मालूम नहीं क्यों रूठ गया- *मग़रूर 1950* *साथ शमशाद व राजकुमारी*

१२४)-

ये दुनिया ये दुनिया,शैतानों की बस्ती है,हैवानों की बस्ती है,यहाँ जिंदगी सस्ती है,ये दुनिया ये दुनिया- *यहूदी* *एकल*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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अनोखे गीतकार आनंद बख्शी

 आज 30 मार्च को फिल्मी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गीतकारों में से एक स्व.आनंद बक्षी जी की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए रफ़ी साहब के सदाबहार नग़मों के बाद किशोर कुमार के गाये सदाबहार नग़मों की सूची पेश है...

*आनंद बक्षी-किशोर के सर्वश्रेष्ठ सदाबहार नग़मे*

*संकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

*फ़िल्म-अमर प्रेम*

१)-

चिंगारी,कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए,सावन में आग लगे तो उसे कौन बुझाए- *एकल*

२)-

कुछ तो लोग कहेंगे,लोगो का काम है कहना,छोड़ो बेकार की बातों में,बीत न जाएं रैना- *एकल*

३)-

ये क्या हुआ,कब हुआ,क्यों हुआ,जब हुआ,तब हुआ,ओ छोड़ो यूँ न सोचो- *एकल*

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*फ़िल्म-आराधना*

४)-

कोरा कागज़ था ये मन मेरा,मेरा मेरा,बनकर हो गया तेरा,तेरा तेरा- *साथ लता*

५)-

रूप तेरा मस्ताना,प्यार मेरा दीवाना, भूल कोई हमसे न हो जाए- *एकल*

६)-

मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू, आयी रुत मस्तानी कब आएगी तू- *एकल*

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*फ़िल्म-कटी पतंग*

७)-

ये शाम मस्तानी,मजबूर किये जायें,तेरी डोर मुझे खिंचे,तेरी ओर लिए जाए- *एकल*

८)-

ये जो मुहब्बत है,ये उनका है काम- *एकल*

९)-

प्यार दीवाना होता है,मस्ताना होता है- *एकल*

१०)-

आज ना छोड़ेंगे बस हमजोली,खेलेंगे हम होली,खेंलेंगे हम होली- *साथ लता*

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*फ़िल्म-नमक हराम*

११)-

दीये जलते है,फूल ख़िलते है,बड़ी मुश्किल से दुनिया मे लोग मिलते है- *एकल*

१२)-

नदिया से दरिया,दरिया से साग़र, साग़र से गहरा जाम- *एकल*

१३)-

मैं शायर बदनाम,मैं चला हो मैं चला- *एकल*

१४)-

वो झूठा है,वोट न उसको देना- *साथ राजेश खन्ना*

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*फ़िल्म-अपना देश*

१५)-

रोना कभी नहीं रोना,चाहे टूट जाये कोई खिलौना- *एकल*

१६)-

कजरा लगाके,ग़जरा सजाके,बिजुरी गिराके,जइयो ना- *साथ लता*

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*फ़िल्म-मिस्टर एक्स इन बॉम्बे*

१७))-

मेरे महबूब क़यामत होगी,आज रुसवा,तेरी गलियों में मोहब्बत होगी- *एकल*

१८)-

खूबसुरत हसीना,जाने जाँ,जानेमन,तू नहीं तू नहीं,कोई और भी है- *साथ लता*

१९)-

चली रे चली रे गोरी पनिया भरण को,के अपने पी के मिलन को- *साथ लता*

२०)-

रुक जा,रोकता है ये दीवाना- *एकल*

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*फ़िल्म-हाथी मेरे साथी*

२१)-

चल चल चल मेरे साथी,ओ मेरे हाथी,ले चल ये खटारा खिंच के,अरे यार धक्का मार,बंद है मोटर कार- *एकल*

२२)-

सुन जा,आ ठंडी हवा- *साथ लता*

२३)-

दिलवर जानी,चली हवा मस्तानी- *साथ लता*

२४)-

मेहरबानो,दुनिया मे रहना है तो काम करो प्यारे- *एकल*

२५)-

मेरे मन के पीछे हलचल- *साथ लता*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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भाग-2

*किशोर कुमार-आनंद बक्षी के सदाबहार नग़मे*

*संकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

*फ़िल्म-आप की कसम*

२६)-

जिंदगी के सफर में गुजर जाते है जो मकाम,वो फिर नहीं आते- *एकल*

२७)-

करवटे बदलते रहे रात दिन हम, आपकी क़सम,आपकी क़सम- *साथ लता*

२८)-

जय जय शिव शंकर,काँटा लगे न कंकर,के प्याला तेरे नाम का पिया- *एकल*

२९)-

सुनो,कहो,कहा,सुना,कुछ हुआ क्या? अभी तो नहीं,अभी तो नहीं- *साथ लता*

३०)-

पास नहीं आना,दूर नहीं जाना,तुमको क़सम है कि आज रजा मंद है- *साथ लता*

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*फ़िल्म-शोले*

३१)-

ये दोस्ती,हम नहीं तोड़ेंगे- *साथ मन्नाडे*

३२)-

कोई हसीना जब रूठ जाती है तो,और भी नमकीन हो जाती है- *एकल*

३३)-

होली के दिन दिल मिल जाते है,रंगों में घुल मिल जाते है- *साथ लता*

३४)-

शुरू होता है फिर बातों का मौसम- *साथ भूपिंदर व मन्नाडे*

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*फ़िल्म-अज़नबी*

३५)-

भीगी भीगी रातों में,मीठी मीठी बातों में- *साथ लता*

३६)-

हम दोनों दो प्रेमी,दुनिया छोड़ चले- *साथ लता*

३७)-

सतरा बरस की छोकरिया पे,बुड्ढे का दिल आ गया- *साथ आशा*

३८)-

एक अज़नबी,हसीना से,यूँ मुलाक़ात हो गयी- *एकल*

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*फ़िल्म-बरसात की एक रात*

३९)-

अपने प्यार के,सपने सच हुए- *साथ लता*

४०)-

कालीराम की खुल गयी पोल- *एकल*

४१)-

मनचली ओ मनचली- *साथ लता*

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*फ़िल्म-जवानी दीवानी*

४२)-

जाने-जाँ,ढूँढता फिर रहा,हूँ तुम्हे रात दिन,मैं यहाँ से वहाँ,मैं यहाँ तुम कहाँ- *साथ आशा*

४३)-

नहीं नहीं,अभी नहीं,अभी न करो वो बात- *साथ आशा*

४४)-

अगर साज छेड़ा तराने बनेंगे,तराने बने तो फ़साने बनेंगे- *साथ आशा*

४५)-

सामने ये कौन आया दिल मे हुई हलचल- *एकल*

४६)-

ये जवानी,तारा रु रु,है दीवानी,ता रा रु रु- *एकल*

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*फ़िल्म-शान*

४७)-

जानू मेरी जाँ,मैं तेरे कुर्बान- *साथ रफ़ी व आशा*

४८)-

दुनिया मे जहाज चले- *साथ आशा व उषा मंगेशकर*

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*फ़िल्म-मेहबूबा*

४९)-

मेरे नयना,सावन भादो,फिर भी मेरा मन प्यासा- *साथ लता व एकल भी*

५०)-

पर्बत के पीछे,चम्बे दा गाँव,गाँव मे दो प्रेमी रहते है- *साथ लता*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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भाग-3

*किशोर कुमार-आनंद बक्षी के सदाबहार नग़मे*

*संकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

*फ़िल्म-अमर अकबर एंथोनी*

५१)-

देख के तुमको दिल डोला है,ओ हमको तुमसे हो गया है प्यार- *साथ लता,मुकेश व रफ़ी*

५२)-

माई नेम ईज एंथोनी गोंथालवीस- *साथ अमिताभ*

५३)-

अनहोनी को होनी कर दे,होनी को अनहोनी,एक जगह जब जमा हो तीनो,अमर अकबर एंथोनी- *साथ महेंद्र कपूर व शैलेंद्र सिंह*

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*फ़िल्म-अमीर ग़रीब*

५४)-

मैं,आया हूँ,लेके साज हाथो में- *एकल*

५५)-

बैठ जा,बैठ गयी,खड़ी हो जा,खड़ी हो गयी- *साथ लता*

५६)-

मेरे प्याले में तू मेरे प्याले में शराब डाल दें,फिर देख तमाशा- *साथ मन्नाडे*

५७)-

लेडीज एंड जेंटलमैन,सबके दिल है बेचैन- *एकल*

५८)-

कहीं ज़नाब को मेरा तो इंतज़ार नहीं- *साथ लता*

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*फ़िल्म-दोस्ताना*

५९)-

बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा, सलामत रहे,दोस्ताना हमारा- *साथ रफ़ी*

६०)-

दिल्लगी ने दी हवा,थोड़ासा धुँआ उठा- *साथ आशा*

६१)-

बहुत खूबसूरत जवाँ एक लड़की- *एकल*

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*फ़िल्म-राम बलराम*

६२)-

हमसे भूल हो गयी,हमका माफी दई दो- *साथ आशा*

६३)-

इक रास्ता दो राही,इक़ चोर,इक सिपाही- *साथ रफ़ी*

६४)-

यार की खबर मिल गयी गयी,प्यार की कली खिल गयी,गयी- *साथ आशा*

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*फ़िल्म-आन मिलो सजना*

६५)-

अच्छा तो हम चलते है,फिर कब मिलोगे,जब तुम कहोगे- *साथ लता*

६६)-

यहाँ वहाँ सारे जहाँ में तेरा राज है,जवानी और दीवानी को जिंदाबाद- *एकल*

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*फ़िल्म-पराया धन*

६७)-

आज उनसे पहली मुलाक़ात होगी,फिर होगा क्या,किसे पता किसे खबर- *एकल*

६८)-

दिल,हाये मेरा दिल तेरा दिल मिल गया- *एकल*

६९)-

आओ झूमे गाये,मिल के धूम मचाये- *साथ आशा*

७०)-

तू प्यार मैं दिल,तेरा मेरा जुदा होना मुश्किल है- *साथ लता*

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*फ़िल्म-बेमिसाल*

७१)-

किसी बात पर मैं किसी बात से ख़फ़ा हूँ- *एकल*

७२)-

एक रोज़ मैं तड़पाके,इस दिल को थाम लूँगा- *एकल*

७३)-

कितनी खूबसूरत ये तस्वीर है- *साथ लता व सुरेश वाडकर*

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७४)-

हम बेवफ़ा,हरगिज न थे,पर वफ़ा हम कर ना सके- *शालीमार* *एकल*

७५)-

तुम को भी तो,ऐसा ही कुछ होता होगा तो सजनी- *आप आये बहार आई* *साथ लता*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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भाग-4

*किशोर-आनंद बक्षी के सदाबहार नग़मे*

*फ़िल्म-कर्ज़*

७६)-

ओम,शांति ओम,शांति शांति ओम,मेरी उमर के नौजवानों- *एकल*

७७)-

एक हसीना थी,एक दीवाना था,क्या उमर,क्या ज़माना था- *साथ आशा*

७८)-

तू कितने बरस का,तू कितने बरस की,देखो मिल न जाये नैना,एक दो बरस ज़रा दूर रहना,कुछ हो गया तो फिर ना कहना- *साथ लता*

७९)-

पैसा ये पैसा,हाये ये पैसा,गर हो मुसीबत,ना हो मुसीबत- *एकल*

८०)-

कमाल है कमाल है- *साथ मन्नाडे व अनुराधा पौड़वाल*

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*फ़िल्म-ड्रीम गर्ल*

८१)-

किसी शायर की ग़ज़ल,ड्रीम गर्ल- *एकल*

८२)-

तू जानेमन है मेरी दिलरूबा है- *साथ हेमा*

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*फ़िल्म-प्रेमनगर*

८३)-

ये लाल रंग,कब मुझे छोड़ेगा- *एकल*

८४)-

बाय बाय मिस गुड़ नाईट,कल फिर मिलेंगे- *एकल*

८५)-

ठंडी हवाओं ने गोरी का घुँघट उठा दिया- *साथ आशा*

८६)-

एक मुअम्मा है समझाने का- *एकल*

८७)-

किसका महल है कैसा ये घर है- *साथ लता*

८८)-

जा,जा,जा,मुझे ना फिर याद आ- *एकल*

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*फ़िल्म-नया ज़माना*

८९)-

दुनिया ओ दुनिया,तेरा जवाब नहीं- *एकल*

९०)-

वाह रे ओ नौजवान आजकल के,रँग रूप अपना बदल के- *साथ लता*

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*फ़िल्म-अंधा कानून*

९१)-

रोते रोते,हँसना सीखो- *एकल*

९२)-

ये अंधा कानून है ये अंधा,कानून है- *एकल*

९३)-

मेरी बहना दीवानी है पर वो समझती है कि वो बड़ी सयानी है- *साथ आशा*

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*फ़िल्म-मनचली*

९४)-

ओ मनचली,कहाँ चली- *एकल*

९५)-

ग़म का फ़साना,बन गया अच्छा,सरकार ने आके- *साथ लीना चंदावरकर*

९६)-

मिले कहीं हो अज़नबी,हो गयी उनमे दोस्ती- *एकल*

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९७)-

पीना जरूरी है जीने के लिए- *चाचा भतीजा* *एकल*

९८)-

चल शुरू हो जा,चला मुक्का,लगा धक्का- *हमजोली* *साथ रफ़ी*

९९)-

आ मेरी जान ये है जून का महीना- *जवाब* *साथ आशा*

१००)-

दीवाना लेके आया है,दिल का तराना- *मेरे जीवनसाथी* *एकल*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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एक हसीना नाम था मीना ( कुमारी )

 #कभी_किसी_को_मुक़म्मल_जहां_नहीं_मिलता


उनकी पूरी ज़िंदगी, ज़िंदगी नहीं बल्कि दर्द की एक ऐसी दास्तां थी। जो उनकी मौत पे ही मुक़म्मल हुई। इनकी मौत पे इनके बेहद क़रीब रही 'नरगिस दत्त' जी ने कहा था 'मौत मुबारक़ हो मीना'


अपनी दमदार अदायगी और बेपनाह ख़ूबसूरती से लोगों को अपना दीवाना बना देने वाली वो अदाकारा मीना कुमारी जिन्हें हम सब ट्रेजडी क्वीन के रूप में जानते हैं। इनका जन्म १ अगस्त १९३३ को मुंबई में हुआ था। शोहरत की बुलंदियां छूने वाली ये अदाकारा मुफ़लिसी के ऐसे दौर से गुजरी, जब अस्पताल में इलाज़ के लिए पैसे भी न थे। उनकी मौत के बाद अस्पताल का बिल मीना जी के एक प्रसंशक डॉक्टर ने चुकाया था।


मीना शायद पहली अदाकारा होंगी, जिन्हें शोहरत , दौलत और अपने प्रशंसकों का भरपूर प्यार मिला। पर अपनी निजी जिंदगी में मरते दम तक सच्चे प्यार को तरसती रहीं। जिसपे भी यक़ीन किया उसी से उन्हें धोखा मिला या अपनी क़ामयाबी का ज़रिया बनाया। निजी ज़िंदगी में मिले धोखों ने उन्हें तोड़ कर रख दिया और उन्होंने अपने को शराब में डुबो दिया।


'मीना कुमारी' का असली नाम 'महजबीं बानो' था। उनके पिता अली बक्श पारसी रंगमंच के एक मँझे हुए कलाकार थे और उन्होंने फ़िल्म "शाही लुटेरे" में संगीत भी दिया था। उनकी माँ प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो), भी एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थी। मीना कुमारी की बड़ी बहन खुर्शीद और छोटी बहन मधु (बेबी माधुरी) भी फिल्म अभिनेत्री थीं। कहा जाता है कि दरिद्रता से ग्रस्त उनके पिता अली बक़्श उन्हें पैदा होते ही अनाथाश्रम में छोड़ आए थे। हालांकि अपने नवजात शिशु से दूर जाते-जाते पिता का दिल भर आया और तुरंत अनाथाश्रम की ओर चल पड़े।पास पहुंचे तो देखा कि नन्ही मीना के पूरे शरीर पर चीटियाँ काट रहीं थीं।अनाथाश्रम का दरवाज़ा बंद था, शायद अंदर सब सो गए थे।यह सब देख उस लाचार पिता की हिम्मत टूट गई,आँखों से आँसु बह निकले।झट से अपनी नन्हीं-सी जान को साफ़ किया और अपने दिल से लगा लिया।अली बक़्श अपनी चंद दिनों की बेटी को घर ले आए।समय के साथ-साथ शरीर के वो घाव तो ठीक हो गए किंतु मन में लगे बदकिस्मती के घावों ने अंतिम सांस तक मीना का साथ नहीं छोड़ा।


मीना कुमारी की नानी हेमसुन्दरी मुखर्जी पारसी रंगमंच से जुड़ी हुईं थी। बंगाल के प्रतिष्ठित टैगोर परिवार के पुत्र जदुनंदन टैगोर ने परिवार की इच्छा के विरूद्ध हेमसुन्दरी से विवाह कर लिया। १८६२ में दुर्भाग्य से जदुनंदन का देहांत होने के बाद हेमसुन्दरी को बंगाल छोड़कर मेरठ आना पड़ा। यहां अस्पताल में नर्स की नौकरी करते हुए उन्होंने एक उर्दू के पत्रकार प्यारेलाल शंकर मेरठी (जो की ईसाई थे) से शादी करके ईसाई धर्म अपना लिया। हेमसुन्दरी की दो पुत्री हुईं जिनमें से एक प्रभावती, मीना कुमारी की माँ थीं।


घर के आर्थिक हालात के कारण इन्हें बतौर बाल कलाकार ही शुरआत करनी पड़ी। 'महजबीं बानो' पहली बार १९३९ में फिल्म निर्देशक विजय भट्ट की फिल्म "लैदरफेस" में 'बेबी महज़बीं' के रूप में नज़र आईं। १९४० की फिल्म "एक ही भूल" में विजय भट्ट ने इनका नाम बेबी महजबीं से बदल कर 'बेबी मीना' कर दिया। १९४६ में आई फिल्म 'बच्चों का खेल' से बेबी मीना १३ वर्ष की आयु में 'मीना कुमारी' बनीं। मीना कुमारी की प्रारंभिक फिल्में ज्यादातर पौराणिक कथाओं पर आधारित थीं जिनमें हनुमान पाताल विजय, वीर घटोत्कच व श्री गणेश महिमा प्रमुख हैं।


वैसे तो फिल्मों में निभाये उनके सभी क़िरदार यादगार हैं। पर कुछ फ़िल्में जैसे 'पाकीज़ा' और 'साहिब, बीबी और गुलाम' की छोटी बहू ने उन्हें अमर कर दिया। वर्ष १९६२ में तो मीना को 'साहब बीबी और गुलाम', 'मैं चुप रहूंगी' और 'आरती' फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के तीन नामांकन एक साथ मिले।


फ़िल्म 'बैजू बावरा' के बाद मीना को कमाल अमरोही में अपना भविष्य दिखा और वे दोनों नज़दीक आ गए। बाद में निकाह भी कर लिया। लेकिन वे कमाल की दूसरी पत्नी ही रहीं। उनके निकाह के एकमात्र गवाह थे जीनत अमान के पिता अमान। दोनों की शादीशुदा ज़िंदगी दस सालों तक ही चली।


वर्ष १९६६ में आई फिल्म 'फूल और पत्थर' के नायक धर्मेन्द्र से मीना की नजदीकियां बढ़ने लगीं। जहां मीना स्थापित कलाकार थीं, वहीं धर्मेंद्र ख़ुद को स्थापित करने की कवायद कर रहे थे। ऐसे में मीना का मजबूत दामन झट से थाम लिया। दोनों के अफेयर की खबरें सुर्खियां बनने लगीं। इसका असर मीना और कमाल के रिश्ते पर भी पड़ा। कहते हैं जब दिल्ली में वे तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन से एक कार्यक्रम में मीना कुमारी मिलीं तो राष्ट्रपति ने पहला सवाल यही पूछा कि तुम्हारा बॉयफ्रेंड धर्मेन्द्र कैसा है? इसी तरह फिल्मकार महबूब खान ने महाराष्ट्र के गर्वनर से कमाल अमरोही का परिचय यह कहकर दिया कि ये प्रसिद्ध स्टार मीना कुमारी के पति हैं। कमाल अमरोही यह सुन आग बबूला हो गए थे।


धर्मेन्द्र और मीना के चर्चे भी उन तक पहुंच गए थे। उन्होंने पहला बदला धर्मेन्द्र से यह लिया कि उन्हें 'पाकीजा' से आउट कर दिया और उनके स्थान पर राजकुमार की एंट्री हो गई। कहा तो यहां तक जाता है कि अपनी फ़िल्म 'रजिया सुल्तान' में उन्होंने धर्मेन्द्र को रजिया के हब्शी गुलाम प्रेमी का रोल देकर एक तरह से जलील करने का ही काम किया था।


मीना की बढ़ती शोहरत , धर्मेंद्र से नजदीकियां और क़माल का शक़्क़ी स्वभाव की वजह से मीना और क़माल में अलगाव हो गया था।


'पाकीजा' को बनने में १७ साल लगे, वजह था कमाल और मीना का अलगाव। लेकिन मीना जानती थी कि फ़िल्म 'पाकीजा' कमाल अमरोही का कीमती सपना है। इसलिए उन्होंने इसकी शूटिंग बीमारी के दौरान भी की। इस दौरान वे पूरी तरह बदल गई थीं। वे गुरुदत्त की 'साहिब, बीवी और गुलाम' की 'छोटी बहू' परदे से उतरकर मीना की असली जिंदगी में समा गई थी। वे छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर पर्स में रखने लगीं।


मशहूर बॉलीवुड अभिनेता अशोक कुमार, मीना कुमारी के साथ कई फ़िल्में कर चुके थे। मीना का इस तरह खुदकुशी करने की बात उन्हें रास नहीं आ रही थी। वे होम्योपैथी के अच्छे जानकार थे। वह मीना के इलाज के लिए आगे आए, लेकिन जब मीना का यह जवाब सुना 'दवा खाकर भी मैं जीऊंगी नहीं, यह जानती हूं मैं। इसलिए कुछ शराब के कुछ घूंट गले के नीचे उतर जाने दो' तो वे भी सहम गए।


वर्ष १९५६ में मुहूर्त से शुरू हुई 'पाकीजा' आखिरकार ४ फरवरी १९७२ को रिलीज हुई। 'पाकीजा' सुपरहिट रही और हिंदी सिनेमा में कमाल अमरोही का नाम हमेशा के लिए दर्ज हो गया, लेकिन 'पाकीजा' के रिलीज के कुछ ही दिनों बाद ३१ मार्च १९७२ को मीना कुमारी चल बसीं।


उनकी फ़िल्में रहीं १९३९ लैदरफ़ेस , अधुरी कहानी १९४० पूजा, एक ही भूल १९४१ नई रोशनी, बहन , कसौटी १९४२ गरीब , विजय १९४३ प्रतिज्ञा १९४४ लाल हवेली १९४६ बच्चों का खेल , दुनिया एक सराय १९४८ पिया घर आजा, बिछड़े बालम १९४९ वीर घटोत्कच १९५० श्री गणेश महिमा, मगरूर , हमारा घर १९५१ सनम , मदहोश , लक्ष्मी नारायण , हनुमान पाताल विजय १९५२ अलादीन और जादुई चिराग , तमाशा, बैजू बावरा १९५३ परिणीता, फुटपाथ , दो बीघा ज़मीन , दाना पानी, दायरा, नौलखा हार १९५४ इल्ज़ाम , चाँदनी चौक , बादबाँ  १९५५ रुखसाना, बंदिश , आज़ाद १९५६ नया अंदाज़, मेम साहिब , हलाकू, एक ही रास्ता, बंधन १९५७ शारदा, मिस मैरी १९५८ यहूदी, सवेरा, सहारा, फरिश्ता १९५९ सट्टा बाज़ार , शरारत , मधु, जागीर , चिराग कहाँ रोशनी कहाँ, चाँद , चार दिल चार राहें, अर्द्धांगिनी १९६० दिल अपना और प्रीत पराई , बहाना, कोहिनूर १९६१ ज़िंदगी और ख्वाब , भाभी की चूड़ियाँ, प्यार का सागर १९६२ साहिब बीबी और ग़ुलाम , मैं चुप रहूंगी, आरती १९६३ किनारे किनारे, दिल एक मन्दिर , अकेली मत जाइयो

१९६४ सांझ और सवेरा, गज़ल , चित्रलेखा, बेनज़ीर , मैं भी लड़की हूँ 

१९६५ भीगी रात , पूर्णिमा, काजल 

१९६६ पिंजरे के पंछी, फूल और पत्थर 

१९६७ मझली दीदी, नूरजहाँ, चन्दन का पालना, बहू बेगम 

१९६८ बहारों की मंज़िल , अभिलाषा

१९७० जवाब, सात फेरे 

१९७१ मेरे अपने, दुश्मन

१९७२ गोमती के किनारे (आखरी फ़िल्म) पाकीज़ा ( रिलीज़)


मीना कुमारी न सिर्फ़ अच्छी अदाकारा थीं, बल्कि वे बेहतरीन शायरा और गायिका भी थीं। उन्होंने बतौर बाल कलाकार फ़िल्म बहन में गाना गाया। इसके बाद दुनिया एक सराय (१९४६), पिया घर आजा और बिछड़े बलम (१९४८), पिंजरे के पंछी (१९६६) में गाने गाए। वो पाकीज़ा में भी सह-गायिका थी। फ़िल्म के लिए १६ गाने बनाये गए थे। पर फ़िल्म में सिर्फ ६ गाने रखे गए। बाद में १९७७ में बाकी ९ गानों का एक अल्बम "पाकीज़ा-रंग बा रंग" के नाम से रिलीज किया गया।


गुलजार को अपने बहुत क़रीब मानती थीं। इसलिए गुज़र जाने पर मीना कुमारी की शायरी की किताब जो उन्हें सबसे प्यारी थी, उसे छपवाने का जिम्मा उन्होंने अपनी वसीयत में गुलज़ार के नाम छोड़ा था।


३१ मार्च १९७२ गुड फ्राइडे वाले दिन दोपहर ३ बजकर २५ मिनट पर महज़ ३८ वर्ष की आयु में मीना कुमारी ने अंतिम सांस ली। उन्हें बम्बई के मज़गांव स्थित रहमताबाद कब्रिस्तान में दफनाया गया। मीना कुमारी अपनी लिखी इन पंक्तियों को अपनी कब्र पर लिखवाना चाहती थीं ~


"वो अपनी ज़िन्दगी को

एक अधूरे साज़,

एक अधूरे गीत,

एक टूटे दिल,

परंतु बिना किसी अफसोस के साथ 

समाप्त कर गई"

चलो दिलदार चलो....... पाक़ीज़ा..

 संगीत प्रेमियों के कानों में ‘पाकीज़ा’ के गीत आज भी किसी ताज़ा हवा की मानिंद तैरा करते हैं. “चलो दिलदार चलो”, “इन्हीं लोगों ने ले लीना” और “चलते चलते मुझे कोई मिल गया था” भारतीय सिनेमा संगीत के मील के पत्थरों में शुमार होते हैं. ‘पाकीज़ा’ में दिया गया ग़ुलाम मोहम्मद का संगीत अमर हो चुका है.


उन्होंने अनिल बिस्वास और नौशाद सरीखे संगीत निर्देशकों के साथ काम किया. ‘संजोग’ से लेकर ‘आन’ तक वे नौशाद के असिस्टेंट रहे. नौशाद के संगीत में उनके बजाए तबले और ढोलक के पीसेज़ एक तरह से मोटिफ़ का काम करते थे.


‘आन’ के बाद ग़ुलाम मोहम्मद ने स्वतंत्र काम करना शुरू कर दिया. ‘पारस’, ‘मेरा ख्वाब’. ‘टाइगर क्वीन’ और ‘डोली’ जैसी फिल्मों से ग़ुलाम मोहम्मद ने अपनी जगह बनाना शुरू किया. उन्होंने ‘पगड़ी’, ‘परदेस’, ‘नाजनीन’, ‘रेल का डिब्बा’, ‘हूर-र-अरब’, ‘सितारा’ और ‘दिल-ए-नादान’ में भी संगीत दिया. अगर उनकी धुनों को सरसरी सुना जाए तो उनमें एक तरह का दोहराव नज़र आता है पर संजीदगी से सुनने पर उनके गीतों की खुसूसियत ज़ाहिर होना शुरू करती है. उनकी उत्कृष्टता के नमूनों के तौर पर ‘कुंदन’ का गाना “जहां वाले हमें दुनिया में क्यों पैदा किया …” और ‘शमा’ का “दिल गम से जल रहा है पर धुआँ न हो …” के ज़िक्र अक्सर किया जाता है.


फ़िल्मी गीतों में मटके को बाकायदा एक वाद्य की तरह प्रयोग करने वाले ग़ुलाम मोहम्मद पहले संगीतकार थे. ‘पारस’ और ‘शायर’ फिल्मों के गीतों में इनका स्पष्ट प्रयोग देखा जाता है.


फ़िल्म ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ के लिए उन्हें राष्ट्रपति सम्मान दिया गया. सिचुएशन-फ्रेंडली धुनें बनाना ग़ुलाम मोहम्मद की विशेषता थी.

लेकिन उनका सबसे बड़ा शाहकार थी ‘पाकीज़ा’. बदकिस्मती से यह फ़िल्म उनकी मौत के बाद जाकर रिलीज़ हो सकी.


साभार.

https://www.kafaltree.com/ghulam-mohammad-bollywood-music-director/

मंगलवार, 23 मार्च 2021

संगीतकार निसार बज़मी को लोग भूल गये

  22 मार्च को पुराने ज़माने के भूले बिसरे संगीतकार मरहूम निसार बज़्मी साहब की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए,उनके संगीत में रफ़ी साहब के सदाबहार नग़मों की सूची पेश है...उनके पास लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी ने सहायक के रूप में काम किया,दिवंगत आनंद बक्षी जी ने फिल्मी गीत की शुरुआत इन्ही के संगीत में भला आदमी से की थी।..


*रफ़ी-निसार बज़्मी के सदाबहार नग़मे*

*संकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

*फ़िल्म-कर भला*

१)-

दिलवाले,भला कर भला- *साथ आशा*

२)-

अब कोई जाए कहाँ- *साथ आशा*

३)-

ओ दिलबर,आ नज़र मिला- *साथ आशा*

४)-

चले कहाँ लेके,मेरे दिल का क़रार- *साथ लता*

५)-

दीवाने,अगर मगर काहे सोचे- *साथ आशा*

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*फ़िल्म-शोला जो भड़के*

६)-

तेरी क़सम ओ दिलरूबा- *साथ आशा*

७)-

ऐसी चाल न चलो,कलेजा हिल जाएगा- *साथ सुमन कल्याणपुर*

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*फ़िल्म-हल्ला गुल्ला 1954*

८)-

यूँ न छेड़ो बलम,कोई आ जायेगा- *साथ आशा*

९)-

कोई तिरछी नज़र से देख रहा है- *साथ आशा*

१०)-

दिल पुकारे आ,ना तड़पा- *साथ आशा*

११)-

दिल धड़का,मैं फड़का,शोला उल्फ़त का- *साथ आशा*

१२)-

मतलब की दुनिया का है ये कैसा- *साथ आशा*

१३)-

नैनो के तीर जिधर टूट पड़े- *साथ आशा*

१४)-

मैं हूँ बाँका छबीला जवानों- *साथ आशा*

१५)-

जाने क्या बात हुई,नज़र ऊँची है- *साथ आशा*

१६)-

होने वाली होके रहेगी बात- *साथ आशा*

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*फ़िल्म-प्यारा दुश्मन 1955*

१७)-

प्यार किया नहीं जाता,हो जाता है- *साथ आशा*

१८)-

ये दुनिया है आनी जानी- *साथ आशा*

१९)-

महँगा हो या सस्ता हो,पर सौदा कर लो प्यार का- *एकल*

२०)-

आ तुझको बुलाए,ये प्यासी निग़ाहें- *साथ आशा*

२१)-

जाने वाले तू अगर मामे से डरना- *एकल*

२२)-

कुछ बोलो ज़रा,मुँह खोलो ज़रा- *साथ आशा*

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*फ़िल्म रूपलेखा 1949*

२३)-

तुम हो जाओ नज़ारें,कभी चाँदनी रातों से- *साथ सुरिंदर कौर*

२४)-

तीर पे तीर खाये जा,जुल्म-ओ-सितम उठाये जा- *एकल*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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सोमवार, 22 मार्च 2021

मुकेश की मीठी मीठी यादें यादें

 संगीत का जादू 

मुकेश .......ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना


' मुकेश चंद माथुर ' 
मशहूर गायक,अभिनेता मुकेश का असली नाम 'मुकेश चंद माथुर ' था मुकेश चंद माथुर का जन्म 22 जुलाई 1923 को हुआ था अपने पिता लाला जोरावर चंद माथुर और माँ चाँद रानी की दस संतानों में मुकेश चंद माथुर सातवें नंबर पर थे.उनके पिता लाला जोरावर चंद माथुर इंजीनियर थे और वह चाहते थे कि मुकेश उनके नक्शे कदम पर चलें लेकिन वह अपने जमाने के प्रसिद्ध गायक अभिनेता 'कुंदनलाल सहगल' के प्रशंसक थे और उन्हीं की तरह गायक अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते थे दिल्ली के मंदिर मार्ग स्थित एम बी स्कूल ( अब एन पी बॉय्ज़ सीनियर सेकेंड्री स्कूल ) से उन्होंने मैट्रिक किया था दिलचस्प बात यह है कि संगीतकार रोशन भी इन्हीं के साथ पढ़ते थे  मुकेश ने दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद स्कूल छोड़ दिया और दिल्ली लोक निर्माण विभाग में सहायक सर्वेयर की नौकरी कर ली जहां उन्होंने सात महीने तक काम किया मुकेश की आवाज़ बहुत खूबसूरत थी उनके एक दूर के रिश्तेदार अभिनेता 'मोतीलाल' ने तब पहचाना जब उन्होंने उसे अपने बहन की शादी में गाते हुए सुना। मुकेश जी की बहन सुंदर प्यारी जी का विवाह था इन बहन के ससुर के चचेरे भाई के नाते फ़िल्म अभिनेता मोती लाल भी बारात में आए थे मोतीलाल अपने दोस्त फ़िल्म निर्माता और अभिनेता तारा हरीश को भी साथ लाये थे उस समय फेरों में बहुत समय लगता था और जब तक बारात पंडाल में प्रवेश नहीं कराती थी जब तक दूल्हे का सेहरा नहीं गया जाता था इसलिए बारातियों का मनोरंजन करने के लिए मुकेश को खड़ा कर दिया गया उनके गाने सुन अभिनेता मोती लाल और तारा हरीश बहुत प्रभावित हुए इस दौरान मुकेश जी मैट्रिक करके दिल्ली में ही सीपीडब्लूडी में सर्वेयर की नौकरी करने लगे लेकिन अभी सात-आठ महीने बीते थे कि मोती लाल का तार आ गया कि मुंबई आ जाओ मुकेश वह तार देख बहुत ख़ुश हुए लेकिन पिताजी को यह सब पसंद नहीं था लेकिन मुकेश जी ने ज़िद करके जैसे तैसे पिता को मना लिया.और नौकरी छोड़कर अक्तूबर 1939 में वह मुंबई चले गए 


मोतीलाल उन्हें बम्बई ले गये और अपने घर में रखा यही नहीं उन्हें अपने साथ रखकर 'पंडित जगन्नाथ प्रसाद' से संगीत सिखाने का भी इंतजाम कर दिया ये वो दौर हुआ करता था जब 'के.एल सहगल ' की तूती बोलती थी। इस दौरान मुकेश को एक हिन्दी फ़िल्म 'निर्दोष' (1941) में मुख्य कलाकार का रोल मिला। लेकिन फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह से नकार दी गयी पार्श्व गायक के तौर पर उन्हें अपना पहला काम 1945 में फ़िल्म 'पहली नज़र ' में मिला। जिसमें अदाकारी मोतीलाल ने की लेकिन मुकेश पर तो के.एल. सहगल सवार थे और वो उनकी आवाज़ में ही गा रहे थे  ''दिल जलता है तो जलने दे '' गाना अगर आप सुने तो आप को इस बात का एहसास भी होगा इस गीत में मुकेश के आदर्श गायक के.एल सहगल के प्रभाव का असर साफ़-साफ़ नज़र आता है। मोती लाल जी ने उन्हें के.एल. सहगल की आवाज़ से बाहर आने को कहा ......पहली नजर' में अनिल विश्वास के संगीत निर्देशन में 'दिल जलता है तो जलने दे' गीत के बाद मुकेश कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए लेकिन मुकेश ने इस गीत को सहगल की शैली में ही गाया था सहगल ने जब यह गीत सुना तो उन्होंने कहा, "अजीब बात है, मुझे याद नहीं आता कि मैंने कभी यह गीत गाया है." इसी गीत को सुनने के बाद सहगल ने मुकेश को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था......के.एल. सहगल की आवाज़ में गाने वाले मुकेश ने पहली बार 1949 में फ़िल्म 'अंदाज़' से अपनी आवाज़ को अपना 'अंदाज़' दिया। उसके बाद तो मुकेश की आवाज़ हर गली हर नुक्कड़ और हर चौराहे पर गूंजने लगी। लोग अब उनकी आवाज को पहचानने लगे थे लंबे संघर्ष के बाद ही उनके गायन को सफलता मिली.

लता दीदी के साथ गायक मुकेश 
मुकेश के दिल के अरमान हीरो बनने के थे और यही वजह है कि गायकी में कामयाब होने के बावजूद भी वह अदाकारी करने के इच्छुक थे। पार्श्व गायक मुकेश को फ़िल्म इंडस्ट्री में अपना मकाम हासिल कर लेने के बाद, कुछ नया करने की चाह जगी और इसलिए इन्होंने फ़िल्म निर्माता (प्रोड्यूसर) बन गये। साल 1951 में फ़िल्म ‘मल्हार’ और 1956 में ‘अनुराग’ बनाई  अभिनय का शौक बचपन से होने के कारण ‘माशूका’ और ‘अनुराग’ में बतौर हीरो भी आये। लेकिन बॉक्स ऑफिस पर ये दोनों फ़िल्में फ्लॉप रहीं। कहते हैं कि इस दौर में मुकेश आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। बतौर अभिनेता-निर्माता मुकेश को सफलता नहीं मिली। गलतियों से सबक लेते हुए फिर से सुरों की महफिल में लौट आये। 50 के दशक के आखिरी सालों में मुकेश फिर पार्श्व गायन के शिखर पर पहुँच गये।.....  यहूदी, मधुमती, ( 1958)  अनाड़ी (1959 ) जैसी फ़िल्मों ने उनकी गायकी को एक नयी पहचान दी मुकेश यहूदी फ़िल्म के गाने में अपनी आवाज़ देकर फिर से फ़िल्मी दुनिया पर छा गए और फिर ‘जिस देश में गंगा बहती है’ (1960) के गाने के लिए वे फ़िल्मफेयर के लिए नामकित हुए। 'प्यार छुपा है इतना इस दिल में, जितने सागर में मोती' ( सरस्वतीचंद्र -(1968 ) ,और 'ड़म ड़म ड़िगा ड़िगा' (छलिया-1960 ) जैसे गाने संगीत प्रेमियों के ज़बान पर चलते रहते थे। इन्हें गीतों ने मुकेश को प्रसिद्धि की ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया। उन्होंने अपनी गायन प्रतिभा को निखारने के लिए बहुत परिश्रम किया


दर्द भरे नगमों के बेताज बादशाह मुकेश के गाए गीतों में जहां संवेदनशीलता दिखाई देती है वहीं निजी ज़िंदगी में भी वह बेहद संवेदनशील इंसान थे  और दूसरों के दुख-दर्द को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास करते थे। .......एक बार एक लड़की बीमार हो गई। उसने अपनी मां से कहा कि....''अगर मुकेश उन्हें कोई गाना गाकर सुनाएं तो वह ठीक जाएगी  " मां ने जवाब दिया कि ...''मुकेश बहुत बड़े गायक हैं, भला उनके पास तुम्हारे लिए कहां समय है ? अगर वह आते भी हैं तो इसके लिए काफ़ी पैसे लेंगे।'' तब उसके डॉक्टर ने मुकेश को उस लड़की की बीमारी के बारे में बताया। मुकेश तुरंत लड़की से मिलने अस्पताल गए और उसे गाना गाकर सुनाया। और इसके लिए उन्होंने कोई पैसा भी नहीं लिया। लड़की को खुश देखकर मुकेश ने कहा ....“यह लड़की जितनी खुश है उससे ज्यादा खुशी मुझे मिली है। 1946 में मुकेश की मुलाकात एक गुजराती लड़की से हुई। नाम था बची बेन ( सरल मुकेश )।......सरल से मिलते ही मुकेश उनके प्रेम में डूब गए। मुकेश दोनों परिवारों के तमाम बंधनों की परवाह न करते हुए अपने जन्मदिन 22 जुलाई 1946 को सरल के साथ शादी के अटूट बंधन में बंध गए। यहां एक बार फिर मोतीलाल ने उनका साथ देते हुए अपने तीन अन्य साथियों के साथ एक मंदिर में शादी की सारी रस्में पूरी कराई। मुकेश जी के एक बेटा नितिन मुकेश और रीटा और नलिनी दो बेटिया है सरल मुकेश ने मुकेश की जीवन संगनी बन कर हर कदम पर उनका साथ दिया

महेंद्र कपूर और मन्ना डे के साथ मुकेश 
साल 1974 में फ़िल्म' रजनीगंधा 'के गाने के लिए मुकेश को राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार दिया गया। विनोद मेहरा और फ़िरोज़ ख़ान जैसे नये अभिनेताओं के लिए भी इन्होंने गाने गाये। 70 के दशक में भी इन्होंने अनेक सुपरहिट गाने दिये जैसे फ़िल्म 'धरम करम 'का 'एक दिन बिक जाएगा। ' फ़िल्म आनंद और अमर अकबर एंथनी की वो बेहतरीन नगमें। ......साल 1976 में यश चोपड़ा की फ़िल्म 'कभी कभी 'के शीर्षक गीत के लिए मुकेश को अपने करियर का चौथा फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला और इस गाने ने उनके करियर में फिर से एक नयी जान फूँक दी। मुकेश के गायन में शामिल यह सहजता ओढ़ी हुई नहीं थी यह उनके व्यवहार में भी शामिल थी एक मशहूर रेडियो प्रोग्राम में मुकेश को याद करते हुए गायक 'महेंद्र कपूर ' ने उनसे जुड़े कुछ किस्से सुनाए थे. ....पहला किस्सा कुछ यूं था कि महेंद्र कपूर को उनके गीत ‘नीले गगन के तले’- ( हमराज़ (1967 ) के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला तो किसी और गायक ने उन्हें इस बात की बधाई तक नहीं दी जबकि मुकेश बधाई देने खुद उनके घर पहुंचे थे मुकेश ऐसा तब कर रहे थे जब महेंद्र कपूर उनसे सालों जूनियर थे इसी रेडियो प्रोग्राम में महेंद्र कपूर ने मुकेश से जुड़ा एक और किस्सा साझा किया था....... एक बार उनके बेटे के स्कूल प्रिंसिपल ने उनसे अनुरोध किया कि वे स्कूल के एक कार्यक्रम में मुकेश को बुलवाना चाहते हैं और यदि महेंद्र कपूर चाहें तो यह हो सकता है महेंद्र इसके तैयार हो गए उन्होंने मुकेश से कार्यक्रम में आने के लिए बात की और साथ ही यह भी पूछा कि... वे इसके लिए कितने पैसे लेंगे? कार्यक्रम में आने पर मुकेश ने सहमति जता दी और पैसों की बात पर कहा....‘मैं तीन हजार लेता हूं.’ ....इसके बाद मुकेश उस कार्यक्रम में गए गाना गाया और मजेदार बात यह रही कि बिना रुपये लिए ही वापस आ गए बकौल महेंद्र अगले दिन जब उन्होंने बताया कि कल बच्चों के साथ बहुत मजा आया तब मैंने पूछा कि ...'आपने रुपये तो ले लिए थे न ?....'. तो उन्होंने आश्चर्य जताते हुए पूछा ..'कैसे रुपये?'.... मैंने कहा कि आपने जो कहा था कि तीन हजार रुपये.? ........इस पर वे बोले कि मैंने कहा था कि....' तीन हजार लेता हूं पर यह नहीं कहा था कि "तीन हजार लूंगा." ....‘मुकेश जी ने महेंद्र कपूर से कहा कि कल को अगर नितिन ( मुकेश के पुत्र नितिन मुकेश ) तुम्हें अपने स्कूल में बुलाएगा तो क्या तुम उसके लिए पैसे लोगे?’ ......मुकेश की यही सहजता थी जो उनके लिए जूनियर-सीनियर का भेद पैदा नहीं होने देती थी इसका एक और उदाहरण ये है कि लता मंगेशकर फिल्म उद्योग में भी उनसे जूनियर थी और उम्र में भी लेकिन मुकेश उन्हें हमेशा " दीदी "कहा करते थे मुकेश अपने काम के प्रति इतने समर्पित थे कि जब तक उनकी रिकॉर्डिंग नहीं हो जाती थी तब तक वह सिर्फ़ पानी और गरम दूध ही लेते थे जिससे उनका गला बिलकुल ठीक रहे और उनके सुरों में रत्तीभर भी कमी न आए मुकेश की एक ख़ास बात यह भी रही कि उन्होंने संगीत की बहुत ज्यादा विधिवत शिक्षा भी नहीं ली कुछ दिग्गज गायकों को सुन सुन कर और गीत गा गा कर ही मुकेश ने ख़ुद को संवारा, निखारा.संगीतकार खेमचंद्र प्रकाश के चचेरे भाई जगन्नाथ प्रसाद से मुकेश ने शास्त्रीय संगीत सीखा था इनके अलावा वह किसी के शागिर्द नहीं रहे पर अब्दुल करीम खाँ और बड़े ग़ुलाम अली खाँ की चीज़ें बहुत सुनते थे और इनका बहुत सम्मान करते थे. 

अपने अंतिम सफर पर मुकेश 
भले ही मुकेश को राजकपूर की आवाज कहा जाता रहा हो पर मुकेश ने सबसे ज्यादा गीत दिलीप कुमार के लिए गाए हैं और उनके द्वारा गाए गए गीत सबसे ज्यादा दिलीप कुमार पर ही फिल्माए गए है। मुकेश को सामान्यतया दर्द भरे गीतों का जादूगर माना जाता रहा। राज कपूर की लगभग सभी फिल्मों की आवाज़ मुकेश थे कभी तो ऎसा लगता है मानो जैसे ईश्वर ने मुकेश को राजकपूर के लिए ही बनाया है या फिर राजकपूर मुकेश के लिए बने हैं।मुकेश की लोकप्रियता सात समंदर पार तक तब पहुंची जब सन 1951 में आर के की 'आवारा' फ़िल्म रिलीज़ हुई. मुकेश को सर्वाधिक लोकप्रियता तब मिली जब उन्होंने राज कपूर के लिए विशेषकर राज कपूर द्वारा निर्मित फ़िल्मों के लिए गाना शुरू किया मुकेश के गीतों को सबसे ज्यादा लोकप्रियता जहां आर के स्टूडियो की फ़िल्मों से ही मिली लेकिन उन्हें राज कपूर द्वारा निर्मित किसी भी फ़िल्म के गीतों के लिए कोई भी बड़ा पुरस्कार नहीं मिला हालांकि यह गनीमत है कि मुकेश को मिले चार फ़िल्मफेयर पुरस्कारों में पहला फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जिस 'अनाड़ी' फ़िल्म के लिए मिला उसके नायक राज कपूर ही थे और जिस गीत 'सब कुछ सीखा हमने' के लिए यह पुरस्कार मिला वह राज कपूर पर ही फ़िल्माया गया था राज कपूर के बाद मुकेश के गीत जिस अभिनेता पर सबसे ज्यादा जमे और पसंद किए गए वह मनोज कुमार ही हैं जिनकी लगभग 20 फ़िल्मों में मुकेश ने अपने स्वर दिये जिनमें हरियाली और रास्ता, हिमालय की गोद में, पत्थर के सनम, उपकार, पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान, संन्यासी, और दस नंबरी जैसी फ़िल्में शामिल हैं  ........1974 में रिलीज फिल्म 'रजनीगंधा' (1974) के गाने 'कई बार यूं ही देखा है' के लिए मुकेश नेशनल अवॉर्ड से भी सम्मानित किए गए। मुकेश राजकपूर की फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' (1978) के गाने 'चंचल निर्मल शीतल' की रिकॉर्डिंग पूरी करने के बाद वह अमरीका में एक कंर्सट में भाग लेने के लिए गए जहां 27 अगस्त 1976 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया ,ये भाग्य की विडंबना ही कही जाएगी की लता मंगेशकर जिसे वो दीदी बुलाते थे उस कंर्सट में उनके साथ थी और मुकेश जी का पार्थिव शरीर ले कर वो मुंबई वापिस आई मुकेश के निधन की खबर सुनकर राज सन्न रह गए और उनके मुंह से निकल पड़ा- 'आज मैंने अपनी आवाज़ खो दी मुकेश के जाने से मेरी आवाज और आत्मा दोनों चली गई.'.


60 के दशक में मुकेश का करियर अपने चरम पर था और अब मुकेश ने अपनी गायकी में नये प्रयोग शुरू कर दिये थे उस वक्त के अभिनेताओं के मुताबिक उनकी गायकी भी बदल रही थी। पिछले कुछ बरसों में विभिन्न म्यूज़िकल रिएलिटी शो के चलते फ़िल्म संगीत की दुनिया में गायक-गायिकाओं की बाढ़ सी आ गयी है लेकिन मुकेश का आज भी कोई सानी नहीं है अपने उस दौर में मुकेश शिखर के तीन पार्श्व गायकों में थे मुकेश शादी से पहले रोज़ रात को डायरी लिखा करते थे लेकिन गुजराती परिवार की सरल मुकेश उर्फ़ बची बेन से 1946 में शादी होने के बाद उनका डायरी लिखना कम हो गया था जब उनसे किसी ने पूछा जाता की आप डायरी क्यों लिखते हैं इस पर मुकेश जी ने कहा था, "मैं अपनी ज़िंदगी की यादों को संजोना चाहता हूँ, ख़ुशियों को, दुखों को, संघर्षों को. मेरी इच्छा है कि एक दिन मैं अपनी आत्मकथा लिखूँ '' लेकिन बदक़िस्मती से उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका असल में जीवन की आपाधापी में मुकेश समय से पहले ही दुनिया से चले गए वरना उनके और भी बहुत से गीत हम सभी को सुनने को मिलते और शायद उनकी आत्मकथा भी पढ़ने को मिलती..

एक बार मुकेश कहीं बाहर विदेश गए हुए थे उसी दौरान फिल्म 'विश्वास' (1969) की रिकॉर्डिंग करनी पड़ी इस फ़िल्म के लिए 'चांदी की दीवार न तोड़ी' जैसे कुछ दिलकश गीत मुकेश पहले ही रिकॉर्ड करा चुके थे लेकिन एक गीत 'आपसे हमको बिछड़े हुए एक जमाना बीत गया' अभी रिकॉर्ड होना था.तब फ़ैसला किया गया कि अभी इस गीत को मनहर उधास की आवाज़ में रिकॉर्ड करा लिया जाये बाद में जब मुकेश आएंगे तो मनहर की जगह उनके ही स्वर में रिकॉर्ड कर लेंगे. मनहार और सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में यह गीत स्वरबद्ध कर लिया गया.जब मुकेश मुंबई वापस आए तो उनको कहा गया कि अब वह इस गीत को रिकॉर्ड करा दें. लेकिन जब मुकेश ने वह गीत सुना तो गीत सुनकर बोले- क्या कमी है इस गीत में, मनहर ने इसे इतना अच्छा गाया है तो उस बेचारे को हटाकर मुझसे क्यों गवा रहे हो.'' इसके बाद वह गीत मनहर के स्वर में ही रहा मुकेश की यह बात सभी को हैरान करने वाली थी कोई और होता तो ऐसा कभी नहीं कहता यही बात बताती है कि मुकेश जितने अच्छे गायक थे उतने अच्छे इंसान भी थे.

कहते है की 'सेड सांग्स ' कभी पुराने नहीं होते ये हर मौसम में ताजे रहते है मुकेश के गाये सेड सांग्स के कारण ही उन्हें  विरहा का मर्म समझने वाला गायक माना जाता है मुकेश एक सुरीली आवाज़ के मालिक थे और यही वजह है कि सिर्फ हिन्दुस्तान ही नहीं, बल्कि विदेश के संगीत प्रेमियों के दिलों में भी वो बसते है मुकेश के गीतों की चाहत उनके चाहने वालों के दिलों में सदा जीवित रहेगी।उनके गीत हम सबके लिए प्रेम, हौसला और आशा का वरदान हैं। मुकेश जैसे महान गायक न केवल दर्द भरे गीतों के लिए,बल्कि वो तो हम सबके दिलों में सदा के लिए बसने के लिए बने थे। उनकी आवाज़ का अनोखापन, भीगे स्वर संग हल्की-सी नासिका लिए हुए न जाने कितने संगीत प्रेमियों के दिलों को छू जाती है। वो एक महान गायक तो थे ही, साथ ही एक बहुत अच्छे इंसान भी थे। वो सदा मुस्कुराते रहते थे और खुशी-खुशी लोगों से मिलते थे मुकेश भावनाओं को सबसे सच्ची आवाज देने वाले गायक थे और यही बात मुकेश को आज भी लोकप्रिय बनाए हुए है. ...‘गर्दिश में तारे रहेंगे सदा...’ गाते हुए मुकेश बहुत-कुछ खत्म होने बाद भी थोड़ा बहुत बचा रहने की दिलासा देते हैं....... हताशा और दिलासा का यह दर्शन मुकेश के कई गानों में है ये दोनों भाव निकलते दर्द से ही हैं, उस दर्द से जो हम सबके जीवन का अनिवार्य हिस्सा है इसलिए हर शब्द जो मुकेश के गले से निकलता है हमारे आसपास से गुजरता हुआ महसूस होता है हम आज भी इस गाने को सुनते हुए इसके दर्शन की पूरी कद्र करते हैं हम आज भी घंटों का वक्त खर्च कर मुकेश को न सिर्फ सुनते हैं बल्कि याद भी करते हैं तभी तो इस गाने में मजबूरन उन्हें भी कहना पड़ता है ‘...हर इक पल मेरी हस्ती है, हर इक पल मेरी जवानी है.’.....मुकेश ने अपने 35 साल के फ़िल्म संगीत करियर में लगभग 525 हिन्दी फ़िल्मों में लगभग 900 गीत ही गाये जो रफ़ी, किशोर कुमार और लता मंगेशकर की तुलना में बहुत ही कम हैं लेकिन मुकेश के गाये गीतों की लोकप्रियता इतनी ज्यादा रही कि अक्सर लोग यही समझते हैं कि मुकेश ने भी हज़ारों फ़िल्म गीत गाये होंगे राज कपूर, मनोज कुमार,साथ ही मुकेश ने राजेश खन्ना, शशि कपूर, जीतेंद्र, सहित दिलीप कुमार, धर्मेन्द्र और अमिताभ बच्चन जैसे कई बड़े नायकों पर फ़िल्मांकित गीतों को अपनी आवाज़ दी.उन्होंने अनिल बिस्वास, हुस्नलाल भगतराम, खेम चंद्र प्रकाश, रोशन, बुलों सी रानी, मदन मोहन, जयदेव, सी रामचन्द्र, सरदार मलिक, चित्रगुप्त, सचिन देव बर्मन, नौशाद से लेकर शंकर जयकिशन, लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल, कल्याणजी आनंदजी, ख्य्याम, रवि, उषा खन्ना, राहुल देव बर्मन, सलिल चौधरी, बप्पी लहिड़ी, राजेश रोशन और रवीन्द्र जैन तक चोटी के संगीतकारों की धुनों पर गीत गाये देश भर में ही नहीं दुनिया के कई देशों में अपने गीतों के शो पेश करके मुकेश ने सभी को मंत्रमुग्ध कर लिया यहाँ तक मुकेश को अपने गीतों के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और फ़िल्मफेयर जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिले

मुकेश .- (1923-1976 )

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