बुधवार, 31 मार्च 2021

धर्मेंद्र के संग मीना

 पंजाब से बंबई फिल्मों में लाइफ बनाने आए धर्मेंद्र को जब मीना कुमारी के साथ पहली फिल्म मिली तो वे बहुत उत्साहित थे. वे फिल्म उद्योग के लोगों और अपने परिचितों से पूछा करते थे कि मीना कुमारी कैसे मिजाज वाली हैं और उनके साथ काम करते टाइम क्या-क्या ध्यान रखना चाहिए. उनके एक परिचित ने तो कहा कि वे जिस फिल्म में होती हैं उसमें बाकी सब एक्टर्स का परफॉर्मेंस उनकी परछाई तले ढंक जाता है. वे ऐसी एक्ट्रेस हैं कि सीन में एक शब्द बोले बगैर, चेहरे की एक छोटी सी अदा से दर्शकों पर जादू कर जाती हैं. उसी परिचित ने धर्मेंद्र से कहा कि तुम तो जाते ही उनके पैर पकड़ लेना. ख़ैर धर्मेंद्र बाद में गए और मीना कुमारी उनसे बहुत अच्छे से मिलीं. उनकी प्रशंसा की.


एक डायरेक्टर ने मीना कुमारी पर किताब लिखने वाले एक ऑथर से कहा था कि दिलीप कुमार जैसे जानदार एक्टर को भी मीना कुमारी के सामने स्थिर रहने में मुश्किल होती थी. मधुबाला ने कहा था कि मीना जैसी आवाज़ किसी दूजी एक्ट्रेस की नहीं है. राज कपूर उनके आगे अपने डायलॉग भूल जाते थे और मीना को लंबे-लंबे डायलॉग सुनने से याद हो जाते थे. कमर्शियल बॉलीवुड फिल्मों के जो दर्शक नहीं हैं और समानांतर सिनेमा के प्रशंसक हैं वे जानें कि सत्यजीत रे ने मीना कुमारी के बारे में कहा था, “निश्चित रूप से वे बहुत ऊंची योग्यता वाली अभिनेत्री हैं.”


अपने करीब 33 साल के करियर में उन्होंने 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. इनमें उनका सबसे उम्दा काम ‘साहब बीबी और ग़ुलाम’ (1962) में है. ‘पाकीज़ा’ (1972) भी, जो उनकी सबसे यादगार फिल्म है. इसके अलावा गुलज़ार के निर्देशन वाली ‘मेरे अपने’ (1971) तो मस्ट वॉच है. इस फिल्म जैसा रोल मीना कुमारी को कोई दूजा नहीं है. उनकी फिल्म ‘मझली दीदी’ (1967) भी थी जो भारत की ऑफिशियल एंट्री के तौर पर ऑस्कर अवॉर्ड्स में गई थी. उनकी ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ (1960), राजकपूर के साथ फ़िल्म ‘शारदा’ (1958), ‘मिस मैरी’ (1957) जैसी कई फिल्में भी हैं जो एंजॉय की जा सकती हैं.


हिंदी सिनेमा में सबसे चर्चित जीवन जीने वाली मीना कुमारी के प्रेम संबंधों को लोग मज़े लेने वाले अंदाज में देखने की कोशिश करते हैं लेकिन इसमें अच्छी बात ये है कि मीना कुमारी ने समाज की परवाह किए बगैर प्रेम किया. कई पुरुषों से किया. और कभी किसी बाहरी नैतिकता को अनुमति नहीं दी कि वो उनकी रुचियों और जीवनशैली का फैसला करे. बहुत बेहतरीन अदाकारा और व्यक्ति मीना कुमारी आज ही के दिन जन्मी थीं. कुछ किस्सों में उन्हें याद कर रहे हैं.


#1. जन्मीं तो पिता अनाथालय के आगे रखकर चले गए


मीना कुमारी; बेबी मीना एक बाल भूमिका में.

बंबई की एक चॉल में उनकी मां इक़बाल बानो और पिता मास्टर अली बख़्श रहते थे. थियेटर आर्टिस्ट थे. पिता थियेटर में हार्मोनियम भी बजाते थे. बहुत तंगहाली थी. फिर 1 अगस्त 1932 को उनके घर मीना जन्मीं. घर में दो बेटियां पहले से थीं इसलिए उनके पैदा होने पर कोई खुशी मनाने की संभावना नहीं थी. डिलीवरी करने वाले डॉक्टर को फीस देने तक के पैसे नहीं थे. बताया जाता है कि अली बख़्श इतने निराश थे कि बच्ची को दादर के पास एक मुस्लिम अनाथालय के बाहर छोड़ दिया. लेकिन कुछ दूर गए थे कि बच्ची की चीखों ने उन्हें तोड़ दिया. वे लौटे और गोद में उठा लिया. बच्ची के शरीर पर लाल चींटियां चिपकी हुई थीं. उन्होंने उसे साफ किया और घर ले आए.

बेबी मीना जो बाद में सुपरस्टार मीना कुमारी बनी. 

वैसे मीना उनका असली नाम नहीं था. उनका नाम था महजबीन बानो. उनका नाम बदला प्रोड्यूसर विजय भट्ट ने. दरअसल घर के हालात ठीक नहीं थे और फिल्मों में बच्चों को रोल मिला करते थे. तो उनकी मां इक़बाल बानो बेटियों के लिए रोल ढूंढ़ा करती थीं. एक बार वे 7 साल की मीना को भी एक फिल्म स्टूडियो लेकर गईं जहां तब के बड़े प्रोड्यूसर विजय भट्ट बैठे थे. उन्होंने कहा कि इस बच्ची के लायक काम हो तो दीजिए. महजबीन का चेहरा उन्हें पसंद आ गया. उन्होंने फिल्म ‘लेदरफेस’ (1939) में बाल भूमिका में उन्हें ले लिया. बाद में विजय ने कहा कि अभी फिल्में वो लगातार कर रही है तो ये नाम ठीक नहीं, कुछ और रखते हैं. तो बात करके उन्होंने नाम बेबी मीना कर दिया. फिर बड़ी होकर वे मीना कुमारी कहलाईं.


#3. अशोक कुमार ने मज़ाक किया था, सच हो गया


फिल्म आरती (1962) और बंदिश (1955) में अशोक कुमार के साथ मीना कुमारी.

दादर में मीना का परिवार रहता था. सामने ही रूपतारा स्टूडियो पड़ता था जहां फिल्मों की शूटिंग होती रहती थी. एक बार वहां बड़ी बहन खुर्शीद काम कर रही थीं और कंपाउंड में मीना खेल रही थीं. पिता अली बख़्श उन्हें वहीं शूटिंग कर रहे सुपरस्टार अशोक कुमार के पास लेकर गए. अशोक कुमार उन्हें पहचान गए क्योंकि अली बख़्श छोटे-मोटे रोल किया करते थे. उन्होंने कहा कि साहब ये मेरी छोटी बेटी है. अशोक कुमार ने खुशी जताई. उन्होंने बेबी मीना की तरफ देखकर कहा कि बेटा अभी तो तुम बच्चों के रोल करती हो, जल्दी से बड़ी हो जाओ फिर हम तुम्हारे साथ काम करेंगे, तुम हमारी हीरोइन बनना. अपने इस बगैर सोचे किए मज़ाक पर वे हंसे और साथ बैठे लोग भी लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि एक दिन वाकई में ऐसा ही हो जाएगा. ये हुआ बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘तमाशा’ (1952) में जिसमें मीना को कास्ट किया गया और उनके को-स्टार थे अशोक कुमार और देव आनंद. आगे चलकर ‘परिणीता’ (1953), ‘बंदिश’ (1955), ‘शतरंज’ (1956), ‘एक ही रास्ता’ (1956), ‘आरती’ (1962), ‘बहू बेग़म’ (1967), ‘जवाब’ (1970) और ‘पाक़ीज़ा’ (1972) में भी दोनों ने साथ काम किया.


#4. इतनी पैसे लेती थीं जितने लोगों ने लाइफ में नहीं देखे थे


करियर की सबसे यादगार फिल्म पाक़ीज़ा (1972) में मीना कुमारी.

अपने दौर की सबसे ज्यादा फीस लेने वाली कुछ एक्ट्रेस में मीना कुमारी आती हैं. 1940 के बाद के दौर में वे एक फिल्म के लिए 10,000 रुपए की मोटी फीस लेती थीं. बाद के वर्षों में वे बहुत बड़ी स्टार बन गईं और उनकी फीस समय के साथ और मोटी हो गई. उनकी ऊंची फीस के बावजूद अपनी फिल्में ऑफर करने और रोल सुनाने के लिए प्रोड्यूसर्स उनके घर के बाहर लाइन लगाते थे.


#5. गुलज़ार के पास छोड़ गईं अपनी लिखी पोएट्री


गुलज़ार की फिल्म ‘मेरे अपने’ (1971) में मीना कुमारी.

उनकी कोई औपचारिक स्कूली पढ़ाई नहीं हुई थी, बावजूद इसके मीना कुमारी कई भाषाएं जानती थीं और बहुत सारी किताबें पढ़ती थीं. उन्हें शायरी और कविताएं लिखने का बहुत चाव था. कैफी आज़मी से भी उन्होंने सीखा. पोएट्री के लिए मीना कुमारी का यही पैशन था कि वे गुलज़ार के करीब आ गई थीं. तब उनकी शादी कमाल अमरोही से हो चुकी थी. जब मीना गुज़र गईं तो अपने पीछे अपनी लिखी बहुत सी पोएट्री और दूसरा कंटेंट गुलज़ार के पास छोड़ गईं.


#6. कमाल अमरोही से प्रेम ऐसे शुरू हुआ


फिल्म पाक़ीज़ा के सेट पर पति और डायरेक्टर कमाल अमरोही के साथ मीना.

मीना कुमारी एक बार अंग्रेजी मैगजीन पढ़ रही थीं और उसमें उन्होंने कमाल अमरोही की फोटो देखी जो तब हिंदी सिनेमा के जाने-माने राइटर-डायरेक्टर हो चुके थे. उन्होंने ‘महल’ (1949) जैसी सुपरहिट फिल्म बनाई थी. मीना उनके व्यक्तित्व, पढ़ाई-लिखाई और सोच से बहुत प्रभावित हुई. जब मीना का एक्सीडेंट हुआ तो दोनों बहुत करीब आ गए थे. प्रेम शुरू हुआ. एक-दूसरे को वे ख़त लिखा करते थे. पूरी-पूरी रात फोन पर बातें किया करते थे. और इसके बाद परिवार वालों के खिलाफ जाते हुए मीना ने छुपकर कमाल से शादी कर ली. वे बिना बताए ही कमाल के घर पहुंच गई थीं और वहीं रहने लगीं.


#7. पति ने कायदों में बांधना चाहा तो स्टाइल से उनको छोड़ दिया


कमाल और मीना का रिश्ता करीब एक दशक चला. बाद में इसमें खटास आने लगी. कमाल भी उन्हें लेकर बहुत पज़ेसिव थे और बहुत रूढ़िवादी थे. उन्होंने कई बंदिशें लगा रखी थीं. शर्तें बना रखी थीं. जैसे उनके मेक-अप रूप में किसी मर्द का घुसना मना था. इसी तरह उन्होंने एक असिस्टेंट मीना कुमारी के साथ लगा रखा था ताकि वे हर पल नजर रख सके. लेकिन मीना ने हर नियम को तोड़ा. बताया जाता है कि उन्होंने एक बार स्टूडियो में गुलज़ार को बुलाया और सबके सामने अपना स्नेह प्रदर्शित किया. उसके बाद पति के घर से चली गईं और अपनी बहन के वहां रहने लगीं.


#8. जिस शराब को छूती भी नहीं थीं उसी ने बाद में जान ले ली 

शराब ने मीना कुमारी को मार दिया. लेकिन ऐसा नहीं है कि वे पहले पीती थीं. इस लत के दो कारण बताए जाते हैं. एक तो ये कहा जाता है कि उन्हें नींद लेने में दिक्कत होने लगी थी तो उनके डॉक्टर सईद ने नींद की गोली की जगह ब्रांडी का एक पेग लेने की सलाह दी. दूसरी अटकल ये है कि डायरेक्टर अबरार अल्वी की फिल्म ‘साहब बीवी और ग़ुलाम’ (1963) की शूटिंग की दौरान ये हुआ. उन्होंने फिल्म में जमींदार की बंगाली पत्नी छोटी बहू का रोल किया था जो अपने अय्याश पति का प्यार पाने और ध्यान आकर्षित करने की नाकाम कोशिशों में लगी है. वो उसे खुश करने के लिए शराब पीने लगती है और बाद में दूसरे पुरुष के पास प्यार ढूंढ़ती है. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान अपने रोल में डूबने के लिए मीना ब्रांडी के छोटे पेग पीने लगीं. लेकिन उन्हें इसकी लत लग गई. बाद में इसी ने उन्हें बीमार कर दिया और जान ले ली.


#9. पूरी जिंदगी पता नहीं लगने दिया कि अंगुलियां कटी हुई हैं

एक बार मीना अपनी बहन के साथ महाबलेश्वर से लौट रही थीं. रास्ते में उनकी कार का जोरदार एक्सीडेंट हुआ. मीना का एक हाथ बुरी तरह घायल हो गया. ये भी बात थी कि हाथ शायद काटना पड़े. लेकिन हाथ बच गया लेकिन उनकी दो अंगुलियां काटनी पड़ी. अपने पूरे करियर में उन्होंने किसी फिल्म में दर्शकों को पता नहीं लगने दिया कि उनकी दो अंगुलियां नहीं हैं. वे खुद को ऐसे कैरी करती थीं और इतनी खूबसूरती से मूव करती थीं कि वो हाथ सामने होते हुए भी सबकुछ परफेक्ट लगता था.


#10. धर्मेंद्र से इश्क किया और उन्हें एक्टिंग करनी सिखाई 


धर्मेंद्र के साथ मीना कुमारी.

उनका धर्मेंद्र से प्रेम बहुत चर्चित था. धर्मेंद्र पंजाब के एक गांव से आए सीधे-साधे युवक थे. शादीशुदा थे. वहीं मीना कुमारी सुपरस्टार थीं. फिल्म ‘पूर्णिमा’ (1965) में उन्हें मीना के साथ साइन किया गया. मीना को तब जिंदगी में स्थिर प्रेम की तलाश थी जिसकी गोदी में वो सिर रख सकें. धर्मेंद्र में उन्हें वही दिखा. बताया जाता है कि उन्होंने धर्मेंद्र को ग्रूम किया. उन्हें एक्टिंग सिखाई. जिन फिल्मों में दोनों ने साथ किया उनके लिए वो एक-एक सीन खुद बोलकर और एक्ट करके धर्मेंद्र को बताती और सिखाती थीं. बारीकियां बताती थीं. उनके व्यक्तित्व को मीना ने उभारा. वे उनकी मेंटॉर थीं. ये मीना जैसी सुपरस्टार के साथ की शुरुआती फिल्में थीं जिनकी वजह से ही धर्मेंद्र का करियर खड़ा हो गया. अगर वे नहीं होती तो वे इतने बड़े स्टार बन पाते सोचना मुश्किल है. और बाद के वर्षों में खुद धर्मेंद्र ने भी मीना कुमारी के इस योगदान से इनकार नहीं किया. वे उनसे प्यार करते थे. उनके और मीना के करीबी बताते हैं कि जब धर्मेंद्र मीना कुमारी के कमरे से बाहर निकलते थे तो रो रहे होते थे. वे उनकी मानसिक पीड़ा नहीं देख पाते थे और खुद को रोने से नहीं रोक पाते थे. खैर, दोनों का प्रेम कोई मजबूत शक्ल नहीं ले सका लेकिन दोस्ती हमेशा बनी रही. जब मीना कुमारी बहुत ज्यादा बीमार हो गईं तो आखिर तक जो चंद फिल्मी दोस्त उनसे मिलने आते थे उनमें धर्मेंद्र भी एक थे.

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