हर 75 मणिपुरी पर एक सुरक्षाकर्मी, फिर भी हिंसा बेकाबू क्यों?

मणिपुर

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  • Author,दीपक मंडल
  • पदनाम,बीबीसी संवाददाता

मणिपुर में तीन महीने पहले शुरू हुई हिंसा को काबू करने के लिए 40 हज़ार से अधिक सुरक्षाकर्मी लगाए जा चुके हैं.

इनमें सेना से लेकर असम राइफल्स, बीएसएफ, सीआरपीएफ, एसएसबी और आईटीबीपी के जवान और अधिकारी शामिल हैं.

मणिपुर की आबादी लगभग 30 लाख है. यानी औसतन 75 लोगों पर एक सुरक्षाकर्मी. इसके बावजूद हिंसा रुक नहीं रही है.

पिछले दो-तीन दिनों के दौरान नए सिरे से भड़की हिंसा में छह लोगों की मौत हो चुकी है.

हिंसा की एक ताज़ा घटना में शनिवार को विष्णुपुर के क्वाता इलाके में मैतेई समुदाय के तीन लोगों को बड़े ही बर्बर तरीके से मार डाला गया.

हिंसा करने वाले बंदूकों और मोर्टार से एक दूसरे पर हमले कर रहे हैं. ये हथियार वहां पुलिस मुख्यालयों से लूटे गए हैं.

सुरक्षाबलों की भारी तैनाती के बावजूद हमलावर घाटी और पहाड़ी इलाकों के बफर जोन को तोड़ कर लोगों को निशाना बना रहे हैं.

मणिपुर पर पूरे देश और दुनिया की निगाहें हैं. अंतरराष्ट्रीय मीडिया में मणिपुर की जातीय हिंसा के बारे में काफी कुछ लिखा जा रहा है.

19 जुलाई को मणिपुर की दो महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न का भयावह वीडियो वायरल होने के बाद तो अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की चिंता और बढ़ गई है. इस वीडियो को देखकर पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर की हिंसा पर बयान दिया था.

उन्होंने कहा था, ‘’देश की बेइज्जती हो रही है, दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा’’

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नए सिरे से भड़की हिंसा

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राज्य में 3 मई के बाद भड़की हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. 50 हज़ार से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए हैं. बड़ी तादाद में लोगों के घर जला दिए गए हैं.

राज्य में खून-खराबे के कई दौर के बाद भी हिंसा थमती नजर नहीं आ रही है. शुक्रवार को विष्णुपुर के क्वाता इलाके में मैतेई समुदाय के तीन लोगों की बर्बर हत्या के बाद लोग सवाल उठा रहे हैं कि सेना और अर्द्धसैनिक बलों की इतनी भारी तैनाती भी हिंसा करने वालों को क्यों रोक नहीं पा रही है?

मैतेई समुदाय के इन लोगों को पहले तलवारों से काटा गया और फिर उनकी लाशें जला दी गई थीं.

सुरक्षा बलों का कहना है कि मैतेई और कुकी समुदाय के लोग एक दूसरे पर हमले न कर पाएं इसके लिए वो दोनों इलाकों के बीच बफर जोन बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

लेकिन राज्य में काम कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता के. ओनील कहते हैं, "बफर जोन घाटी में बनाए जा रहे हैं, पहाड़ियों में नहीं जो कुकी समुदाय के लोगों का इलाका है. लेकिन दिक्कत ये है कि एक हजार एकड़ से अधिक जमीन बफर जोन के अंदर है. इसमें धान की खेती होती है. लेकिन इस पर सेना और कुकी उग्रवादियों का कब्जा होने की वजह से मैतेई लोग खेती नहीं कर पा रहे हैं. यही वजह है कि बफर जोन में भी टकराव हो रहे हैं.’’

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ओनील से हमने पूछा कि 40 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों को लगाने के बाद 30 लाख की आबादी वाले इस राज्य में हिंसा रुक क्यों नहीं हो रही है?

इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, "40 हजार सुरक्षाकर्मी लगा दें या 50 हजार या फिर एक लाख, जब तक इस संकट को सुलझाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई जाएगी तब तक शांति नहीं हो सकती.’’

शांति के लिए राज्य सरकार की ओर से की जा रही कोशिशों का असर क्यों नहीं दिख रहा है?

ओनील कहते हैं, "राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के कोई आसार नहीं दिखते. मौजूदा सरकार के पास शांति कायम करने का कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है. सरकार ने अपनी ओर से शांति कायम करने के जो कदम उठाए हैं वे काफी लचर हैं. शांति कायम करने के लिए बनी कमेटियों में कई ऐसे लोग शामिल हैं जो हिंसा की साजिश रचने के आरोपी हैं.’’

क्या एन बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद ही शांति कायम हो पाएगी?

ओनील कहते हैं, "इस वक्त राज्य में तुरंत राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत है. इसके अलावा और कोई चारा नहीं दिखता. मैतेई और कुकियों के बीच हिंसा रोकना सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए.’’

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40 हज़ार से अधिक सुरक्षाकर्मियों के बावजूद हिंसा बेकाबू

बीबीसी संवाददाता नीतिन श्रीवास्तव इन दिनों मणिपुर में मौके से रिपोर्टिंग कर रहे हैं.

हमने उनसे भी यही सवाल किया कि राज्य में सुरक्षा बलों की इतनी भारी मौजूदगी के बावजूद हिंसा बेकाबू क्यों हैं?

उन्होंने कहा, "इसके लिए मणिपुर की भौगोलिक स्थिति समझना जरूरी है. राज्य में पहाड़ी और मैदानी या घाटी के इलाके आसपास हैं. पहाड़ी इलाकों में कुकी और मैदानी इलाकों में मैतेई लोग रहते आए हैं. लेकिन अब दोनों जगह मिश्रित आबादी है. ये इलाके आसपास भी हैं.’’

"एक-डेढ़ किलोमीटर के अंतराल पर ही भौगोलिक स्थिति बदल जाती है. यानी सफर के दौरान आप थोड़ी-थोड़ी देर में ही मैतेई और कुकी लोगों के इलाकों से गुजरते हैं. हिंसा न रुक पाने की एक वजह दोनों समुदायों के रिहाइशी इलाकों का एक दूसरे के नजदीक होना भी है.’’

सुरक्षा बलों के पास पूरे संसाधन हैं. इसके बावजूद हिंसक भीड़ को रोकना मुश्किल क्यों हो रहा है?

नीतिन श्रीवास्तव कहते हैं, "पिछले एक-डेढ़ महीनों के दौरान भीड़ बंदूकें या गोला-बारूद लेकर हमले करने नहीं आ रही है. ये लाठी-डंडे या ऐसे ही दूसरे औजार लेकर आती है. सुरक्षा बलों को ऐसी भीड़ पर गोली चलाने का आदेश नहीं है. एक खास बात ये है कि जब-जब सुरक्षा बलों की मौजूदगी में ऐसी हिंसा हुई है, तब-तब ज्यादा जानें नहीं गई हैं, सामान ज्यादा लूटा गया है. प्रॉपर्टी को नुकसान हुआ है. ’’

मणिपुर में सरकारी मशीनरी क्या कर रही है? राज्य में बिगड़े हालात को वो क्यों संभाल नहीं पा रही है?

नीतिन श्रीवास्तव कहते हैं, "इस हिंसा को रोकने में मणिपुर राज्य प्रशासन की भूमिका लगभग नगण्य है. हिंसा भड़कते ही सरकारी मशीनरी में काम कर रहे लोग मैतेई और कुकी लोग अपने-अपने इलाकों में चले गए. सिर्फ मुस्लिम मैतेई, नगा और कुछ तमिल मूल के लोग मुट्ठी भर अधिकारी और कर्मचारी रह गए हैं. लिहाजा प्रशासनिक कमजोरी बनी हुई है.’’

"जब तक प्रशासन मजबूत नहीं होगा तब तक सामान्य हालात बहाल होने में दिक्कत होगी. फौज तभी कारगर साबित होगी जब राज्य प्रशासन मजबूत होगा.’’

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हिंसा कैसे शुरू हुई?

दरअसल मैतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच तनाव कई दशकों से चल रहा है. लेकिन हाल के वर्षों में उनके बीच एक दूसरे की ज़मीनों के कब्ज़े को लेकर तनाव बढ़ा है.

पिछले साल (2022) अगस्त में बीरेन सिंह सरकार ने एक नोटिस जारी कर पहाड़ी इलाके के चुराचांदपुर और नोने जिले के 38 गांवों को गैरकानूनी करार दिया था.

नोटिस में कहा गया था कि ये गांव संरक्षित वन क्षेत्र में आते हैं. इससे कुकियों के बीच भारी नाराज़गी फैल गई.

उनका कहना था कि बगैर ठीक से अधिसूचना जारी कर उनके गांवों को अवैध घोषित किया गया. इसके साथ ही सरकार ने इस साल मार्च में इन इलाकों में अफीम की खेती को नष्ट करना शुरू कर दिया.

हालात तब और बिगड़ने शुरू हुए जब मणिपुर हाई कोर्ट ने इस साल ( 2023) 14 अप्रैल के अपने आदेश में राज्य सरकार को कहा कि वो मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की सिफारिश भेजे.

14 अप्रैल का आदेश मैतेई ट्राइब यूनियन की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया था. इसमें मणिपुर सरकार को निर्देश दिया गया था कि वो मैतेई समुदाय को जनजातीय समुदाय में शामिल करने की सिफारिश केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय को भेजे.

हाई कोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश में मैतेई समुदाय की मांग को मानते हुए कहा कि राज्य सरकार ‘चार सप्ताह’ के भीतर मैतेई समुदाय को जनजाति समुदाय में शामिल करने की सिफारिश केंद्र को भेज दे.

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सड़कों पर संघर्ष

‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि उग्र लोगों की एक भीड़ ने तीन मई की हिंसा से पहले 27 अप्रैल को चुराचांदपुर में एक जिम को जला दिया था. एक दिन बाद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को इस जिम का उद्घाटन करना था.

फिर 28 अप्रैल को कुकी लोगों की एक भीड़ ने जमीन खाली कराने के खिलाफ निकाले गए मार्च के दौरान वन विभाग के दफ्तर को जला दिया.

इसके बाद मैतई समुदाय के लोगों को जनजातीय दर्जा देने की सिफारिश करने वाले कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ पहाड़ी जिलों में ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च निकाला गया.

लेकिन रेडिकल मैतेई समूह मैतेई लिपुन ने इस मार्च के ख़िलाफ़ मार्च निकाला और नाकेबंदी की.

इसके बाद खून-खराबा और बढ़ गया और हालात पुलिस के नियंत्रण से बाहर हो गए. 3 मई को राज्य में शुरू हुई हिंसा में अब तक 160 लोगों की मौत हो चुकी है. और हालात अभी भी पूरी तरह काबू में नहीं आए हैं.

तीन मई को निकाले गए मार्च के दौरान पुलिस को कई तोरबंग और कांगवई इलाके में दोनों समुदायों के लोगों के घर जलाए जाने की ख़बरें मिलने लगी. उसी दोपहर मैतेई बहुल बिष्णुपुर में चर्च जलाने की खबरें आने लगीं.

शाम तक बिष्णुपुर और चुराचांदपुर में कुकी और मैतेई लोगों के बीच सड़कों पर संघर्ष होने लगे. फिर उग्र भीड़ ने चुराचांदपुर और आसपास के इलाकों में पुलिस थानों से हथियार लूटना शुरू कर दिया.

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रात होते-होते दोनों ओर के लोगों ने एक दूसरे के घरों को आग लगाना शुरू कर दिया था.

इस बीच, अफवाह फैली कुकी समुदाय के लोगों ने मैतेई महिलाओं के साथ बलात्कार किया और उनकी हत्या कर दी है.

इसके बाद खून-खराबा और बढ़ गया और हालात पुलिस के नियंत्रण से बाहर हो गए. 3 मई को राज्य में शुरू हुई हिंसा में अब तक 160 लोगों की मौत हो चुकी है. और हालात अभी भी पूरी तरह काबू में नहीं आए हैं.

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