- आदर्श राठौर
- बीबीसी हिंदी के लिए
“कई बार हमारे पास ऐसे बच्चे आते हैं जिनमें आयरन की बहुत कमी होती है. कुछ की हालत इतनी नाज़ुक होती है कि उन्हें ख़ून चढ़ाना पड़ता है.”
दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट और बच्चों में रक्त संबंधित समस्याओं और कैंसर के इलाज की विशेषज्ञ डॉक्टर प्राची जैन बताती हैं कि मां के स्तनपान छुड़ाने की सही प्रक्रिया न अपनाने की वजह से बहुत से बच्चों की सेहत बिगड़ जाती है.
दूध या शिशु आहार (बेबी फॉर्मुला) पर शिशुओं की निर्भरता कम करके उन्हें धीरे-धीरे ठोस आहार देना शुरू करने की प्रक्रिया को वीनिंग (weaning) या स्तनपान छुड़ाना कहा जाता है.
इस प्रक्रिया को सही समय पर शुरू करना बहुत ज़रूरी होता है.
डॉक्टर प्राची जैन बताती हैं कि इंडियन अकेडमी ऑफ़ पीडिएट्रिक्स के मुताबिक़, ''छह महीने तक बच्चों को सिर्फ़ मां का दूध पिलाना चाहिए और फिर वीनिंग शुरू कर देनी चाहिए.''
वह कहती हैं, “छह महीने के बाद स्तनपान कराने वाली मां को इसकी मात्रा धीरे-धीरे घटाकर शिशु को ठोस आहार देना शुरू करना ज़रूरी है. इस उम्र के बाद बच्चे तेज़ी से बढ़ते हैं. अगर उन्हें सिर्फ़ दूध देंगे तो आयरन और अन्य पोषक तत्वों की कमी से उन्हें कई दिक्कतें आ सकती हैं.”
स्तनपान छुड़ाने के तरीके
वीनिंग के दो तरीक़े हैं. पहला तो पारंपरिक तरीक़ा है, जिसमें माता-पिता या देखभाल करने वाले तय करते हैं कि कब बच्चे को ठोस आहार देना है.
इस तरीक़े में बच्चों को प्यूरी (तरल आहार) या मसलकर बहुत नरम किया हुआ खाना हाथ या चम्मच से खिलाना शुरू किया जाता है. इस तरीक़े को ‘पैरेंट-लेड वीनिंग’ (Parent-lead weaning) भी कहा जाता है.
दूसरा तरीक़ा है- ‘बेबी-लेड वीनिंग’ (Baby-lead weaning) जो 2000 के दशक की शुरुआत से चलन में आया है.
इसमें बच्चों को अलग से पीसकर तरल आहार देने की बजाय वही चीज़ें परोसी जाती हैं, जो घर के बाक़ी सदस्यों के लिए बनी होती हैं. बस उस खाने को बहुत छोटे, नरम टुकड़ों या निवालों में बांट दिया जाता है. फिर बच्चा ख़ुद अपने हाथ से इन्हें खाता है.
लेकिन शोध क्या कहते हैं?
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बेबी-लेड वीनिंग या संक्षेप में बीएलडब्ल्यू को नर्स और लेखिका गिल रैप्ली ने पहचान दिलाई थी. इसके बाद बच्चों से जुड़ी किताबों, सोशल मीडिया अकाउंट्स और न्यूट्रीशनिस्ट ने इस शब्द का व्यापक इस्तेमाल शुरू किया.
स्तनपान छुड़ाने के इस तरीक़े का समर्थन करने वाले इसके कई फ़ायदे गिनाते हैं. जैसे, इससे बच्चों को भूख के मुताबिक़ खाने और तरह-तरह की चीज़ें खाने की आदत पड़ती है.
लेकिन क्या वैज्ञानिक शोध भी यही कहते हैं? और सबसे बड़ी बात, क्या बेबी-लेड वीनिंग या बीएलडब्ल्यू सुरक्षित है?
बच्चों से स्तनपान छुड़ाने के तरीकों और उनके फ़ायदों या नुक़सान का आकलन करना आसान नहीं है.
2022 में फ़्रेंच सोसाइटी ऑफ़ पीडिएट्रिक्स की पोषण पर बनी एक कमेटी ने पाया था कि बेबी-लेड वीनिंग के ख़तरों और फ़ायदों पर मात्र 13 शोध प्रकाशित हुए हैं.
इनमें भी 11 शोध माता-पिता या बच्चों की देखभाल करने वालों से किए गए सवाल-जवाब पर आधारित थे.
ऐसा भी देखने को मिला है कि जिन शोधों में माता-पिता ने बताया कि वे बेबी-लेड वीनिंग करते हैं, उनमें से कई को इसके बारे में सही जानकारी ही नहीं थी.
फ्रेंच एसोसिएशन फ़ॉर एंबुलेटरी पीडिएट्रिक्स द्वारा किए गए शोध के मुताबिक़, ''26 फ़ीसदी माता-पिता ने कहा कि वे BLW करवा रहे हैं, मगर पूछताछ में पता चला कि उनमें से कई अपने बच्चों को पिसी हुई चीज़ें तरल आहार के रूप में चम्मच से खिला रहे थे. सिर्फ़ सात प्रतिशत ने सही प्रक्रिया अपनाई थी.''
लेकिन क्या हम इस विषय पर अब तक हुए शोधों से किसी नतीजे पर पहुंच सकते हैं?
फ़ायदे क्या हैं?
शोध बताते हैं कि जो परिवार बेबी-लेड वीनिंग करते हैं, ''वे अक्सर एकसाथ खाना खाते हैं. साथ ही, खाने के समय माहौल शांत और कम तनाव भरा रहता है.''
इसी तरह मांओं का कहना था कि वे परंपरागत तरीक़े से वीनिंग करवाने वालों की तुलना में कम दबाव और चिंता महसूस करती हैं.
हालांकि, ये सब बातें परिवार के माहौल पर भी निर्भर करती हैं. जैसे कि इत्मिनान से और परिवार के साथ खाना खाने वाले लोगों द्वारा बच्चों को बेबी-लेड वीनिंग करवाने की संभावनाएं ज़्यादा हो सकती हैं.
बच्चों को बीएलडब्ल्यू से कई फ़ायदे होने के दावे भी किए जाते हैं. कहा जाता है कि चूंकि बच्चे ख़ुद खाना खा रहे होते हैं, ऐसे में वे समझ जाते हैं कि पेट भर गया है और अब और खाना नहीं खाना है. सैद्धांतिक तौर पर देखें तो ऐसा होने पर उनके मोटापे का शिकार होने का ख़तरा कम हो जाता है.
कुछ शोध भी इस बात का समर्थन करते हैं. एक अध्ययन में पाया गया है कि बीएलडब्ल्यू करने वाले बच्चों को पेट भरने का अहसास हो जाता था और इससे उनका वज़न सामान्य से अधिक होने की आशंका घट जाती है.
हालांकि, न्यूज़ीलैंड में 206 शिशुओं पर किए गए एक अन्य शोध में अलग-अलग तरीक़े से वीनिंग करने वाले बच्चों के वज़न और भूख में अंतर नहीं पाया गया.
एक और तर्क दिया जाता है कि बीएलडब्ल्यू वाले बच्चे नई चीज़ें खाने को लेकर काफ़ी उत्सुक रहते हैं क्योंकि उन्हें शुरू से ही कई सारे स्वाद और क़िस्म की चीज़ों का अनुभव होता है.
न्यूज़ीलैंड में किया गया एक शोध इस बात की पुष्टि करता है. इसमें पाया गया कि दो साल का होने पर BLW वाले बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में ज़्यादा तरह के फल और सब्ज़ियां चाव से खा रहे थे.
हालांकि, शोधकर्ता कहते हैं कि परंपरागत वीनिंग में भी बच्चों को अलग-अलग तरह का खाना खिलाना चाहिए.
अमेरिकन अकेडमी ऑफ़ पीडिएट्रिक्स की कमेटी ऑन न्यूट्रिशन के प्रमुख मार्क कॉर्किन्स कहते हैं, “छह से 12 महीने तक सिर्फ़ प्यूरी (तरल आहार) खिलाने की सलाह हम नहीं देते. हम कहते हैं कि बिल्कुल शुरू में ही प्यूरी देनी चाहिए. आठ महीने का हो जाने पर छोटे निवालों के रूप में ठोस आहार दना चाहिए. उन्हें एक साल का हो जाने पर ठोस खाने से वाकिफ़ करवा देना चाहिए, फिर आप चाहे किसी भी तरीके से वीनिंग करवा रहे हों.”
ख़तरे क्या हैं?
डॉक्टर प्राची जैन बताती हैं, “बेबी-लेड वीनिंग के समय माता-पिता को अक्सर चिंता रहती है कि बच्चा खा कम, गिरा ज़्यादा रहा है. लेकिन यह बड़ी बात नहीं है, वह धीरे-धीरे वह सीख जाएगा. जब बच्चा प्लेट से ख़ुद खाना खाता है तो वह चीज़ों को पकड़ना, उठाना, खाना और चबाना सीखता है. उसे हाथों और आंखों का समन्वय बिठाने में मदद मिलती है.”
बच्चों को ठोस आहार देने को लेकर जो बड़ा ख़तरा रहता है, वह है गले में खाना अटकना. तो क्या बीएलडब्ल्यू वाले बच्चों के गले में खाना अटकने की आशंका ज़्यादा होती है?
एक सीमित शोध में पाया गया कि बीएलडब्ल्यू और वीनिंग के अन्य तरीकों में गले में खाना अटकने के ख़तरे में ज़्यादा अंतर नहीं है.
न्यूज़ीलैंड में किए शोध के मुताबिक़, छह से 8 महीने के बच्चों में उबकाई मारना और गले में खाना अटकना सामान्य बात है और ऐसा तरल आहार लेते समय भी हो सकता है. 1151 बच्चों पर किए गए एक अन्य शोध में भी ऐसा ही पाया गया है.
एक और ख़तरा है. चूंकि बीएलडब्ल्यू से बच्चों को परिवार के लिए बना खाना खाने को बढ़ावा मिलता है, ऐसे में वे बहुत ज़्यादा मीठा या नमक खा सकते हैं.
मार्क कॉर्किन्स का कहना है, “बच्चों को खाना परोसने वालों की ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है. स्वाभाविक तौर पर हमें दो ही चीजें ज्यादा पसंद होती हैं- नमकीन और मीठी. लेकिन ये हमेशा हमारे लिए अच्छी नहीं होती. अगर आप थाली में ब्रॉकली और स्ट्रॉबेरी रखेंगे तो मैं क्या खाना पसंद करूंगा? ऐसे में सिर्फ़ ब्रॉकली परोसनी चाहिए.”
पोषण को लेकर चिंता
बेबी-लेड वीनिंग को लेकर एक और चिंता यह है कि कहीं बच्चे कम खाना न खा रहे हों या पोषण से वंचित न रह जाएं.
एक शोध में पाया गया कि था कि बीएलडब्ल्यू वाले बच्चे अक्सर सामान्य से कम वज़न वाले थे. मगर न्यूज़ीलैंड वाले शोध में ऐसा नहीं था क्योंकि वहां माता-पिता से बच्चों को ज़्यादा ऊर्जा देने वाला और पोषक तत्वों से भरपूर खाना परोसने के लिए कहा गया था.
51 बच्चों पर किए गए एक छोटे से शोध में पाया गया कि बीएलडब्ल्यू और पारपंरिक वीनिंग में बच्चे लगभग बराबर ऊर्जा वाला भोजन लेते हैं मगर बीएलडब्ल्यू वाले बच्चों के आहार में आयरन, ज़िंक और विटामिन बी 12 कम होता है.
एक अन्य अध्ययन के मुताबिक, बीएलडब्ल्यू करवाने वाले माता-पिता अक्सर अपने बच्चों को आयरन से भरपूर खाना खिलाते हैं. न्यूज़ीलैंड में किए गए शोध में दोनों तरह की वीनिंग वाले बच्चों में 12 महीने के होने पर आयरन के स्तर में कोई अंतर नहीं था.
क्या है सही तरीक़ा?
बच्चों को BLW के फ़ायदे पहुंचाने और इससे होने वाले नुक़सान से बचाने का एक तरीक़ा वो हो सकता है जो न्यूज़ीलैंड में किया गया. यानी बच्चों को पोषक तत्वों और ऊर्जा से भरपूर खाना परोसा जाए. लेकिन इस मामले में और भी ज़्यादा शोध किए जाने की ज़रूरत है.
डॉक्टर प्राची कहती हैं कि दोनों तरह की वीनिंग के अपने फ़ायदे और नुक़सान हैं और अब तक किए गए शोध इस नतीजे पर नहीं पहुंचते कि कौन सा तरीक़ा बेहतर है.
वह कहती हैं, “हम बीच का रास्ता अपना सकते हैं. वीनिंग अपनी निगरानी में करनी चाहिए. भले ही प्यूरी न बनाएं मगर खाने को मसलकर नरम करके बच्चे को परोसा जा सकता है ताकि वह आराम से ख़ुद उसे खा सके. बच्चों को गिरियां (nuts), पॉपकॉर्न या अनार के दाने जैसी चीज़ें सीधे नहीं देनी हैं क्योंकि ये गले में अटक सकती हैं. बच्चे पर जल्दी-जल्दी खाने का दबाव भी नहीं बनाना है और अगर वह इनकार कर रहा हो तो उसे जबरन भी नहीं खिलाना है.”
विशेषज्ञ कहते हैं कि दूध छुड़ाकर बच्चे को सामान्य आहार पर लाने की प्रक्रिया धीमी होनी चाहिए. मगर सबसे महत्वपूर्ण है कि इस दौरान बच्चों को पर्याप्त पोषण मिलता रहे.
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