बेशर्मी की यह मिशाल
कि हमारी सरकार ही बन गयी गोरों की दलाल
आज़ादी पर विशेष :
दिल्ली में एक ऐसा पार्क है जो शहीदों की याद में नहीं बल्कि दमनकारी फिरंगी शासकों की याद में बना है
Friday, 14 August 2015 - 6:35pm IST |
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एक तरफ जहां हम देश की आज़ादी की 69वीं वर्षगांठ मना रहे
हैं, वहीं दूसरी तरफ धीरपुर गांव में गुलाम भारत की याद दिलाने
वाले कॉरोनेशन पार्क के पुर्ननिर्माण का काम चल रहा है। गांव के लोग चाहते
हैं कि सरकार कॉरोनेशन पार्क में ब्रिटिश शासकों की मूर्तियों की जगह हमारे
देश के महान क्रांतिकारियों की स्मारक बनवाए।
अंग्रेज़ शासकों की मूर्तियां लगाकर यहां भव्य कब्रिस्तान बनाया जा रहा है। धीरपुर गांव के लोगों के लिए कॉरोनेशन पार्क गुलामी के दर्द की निशानी के सिवाए और कुछ भी नहीं। कॉरोनेशन पार्क के आसपास रहने वाले लोग नहीं चाहते कि उनकी आने वाली पीढ़ी गुलाम भारत की याद दिलाने वाली निशानी देखें।
धीरपुर में रहने वाले 70 वर्षीय रामफल मलिक बताते हैं 'हमारे पूर्वज 1860 में खेती करने के लिए यहां आकर बस गए थे। ब्रिटिश शासन में अंग्रेज़ों की बर्बरता के कई किस्से मेरे पिता मुझे बताया करते थे। 1911 में भी जब अंग्रेज़ों ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया था, तो पूरे धीरपुर गांव को छावनी में तब्दील कर दिया था। सेना को निर्देश दिए गए थे चाहे जो हो जाए समारोह के दौरान कोई ग्रामीण गांव से बाहर ना निकल पाए।'
रामफल बताते हैं कि '1911 में कॉरोनेशन पार्क में ही अंग्रेज़ों ने जॉर्ज फ्रेडरिक अर्नेस्ट अल्बर्ट-V को आधिकारिक रूप से भारत की सत्ता सौंपी थी। धीरपुर गांव की ज़मीन पर ही अंग्रेज़ों ने बहुत बड़े समारोह का आयोजन किया था जिसमें जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना समेत भारत के कई कद्दावार नेता शामिल हुए थे। लेकिन पास में गांधी आश्रम होते हुए भी गांधी जी ने यहां आने से मना कर दिया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि गुलाम भारत के एक लोकप्रिय नेता ने समारोह में आने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें लगता था कि यह गुलामी को और मजबूत करने का जश्न है।'
रामफल बताते हैं कि आज भी कॉरोनेशन पार्क में कोई सच्चा देशभक्त आना पसंद नहीं करता। धीरपुर गांव में रहने वाले लोगों ने अंग्रेज़ों के बहुत ज़ुल्म सहे लेकिन आज़ादी की लड़ाई में गांधी जी का साथ नहीं छोड़ा। हमने सोचा था कि इस जगह पर स्वतंत्रता से जुड़ी यादें संजोई जाएंगी लेकिन ब्रिटिश राजवंश के पुतले हमारी आज़ादी नहीं हमारी गुलामी के दिनों को याद दिलाते हैं। उनके अनुसार 2016 में इसका उद्घाटन करने खुद ब्रिटेन की महारानी के आने का प्रोग्राम है इसलिए यहां काम जोर-शोर से चल रहा है।
धीरपुर गांव में रहने वाले समाजसेवी विनोद शर्मा को भी कॉरोनेशन पार्क को देखकर अपने बुज़ुर्गों पर हुए अत्याचार और गुलाम भारत की याद आती है। विनोद शर्मा कहते है, "गांव वालों को यह बात बिल्कुल रास नहीं आ रही कि गुलामी की निशानी पर करोड़ों रूपये खर्च किए जा रहे हैं। आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हम देश की आज़ादी के लिए मरने वाले क्रांतिकारियों की स्मारक बनाने की बजाए गुलामी की याद दिलाने वाले पार्क पर करोड़ों रुपये खर्च करने में लगे हैं। क्या इसलिए हमारे बुज़ुर्गों ने इतना संघर्ष किया था, अपनी जान गंवाई थी?"
ब्रिटिश राज की याद दिलाते लगभग 60 एकड़ में फैले कॉरोनेशन पार्क में जॉर्ज-V की 60 फीट ऊंची मूर्ति है जिसे 1860 में इंडिया गेट के पास से लाकर कॉरोनेशन पार्क में लगाया गया है और साथ ही ब्रिटिश शासन के समय इंडिया के गर्वनर जनरल और वायसराय रहे चार अंग्रेज अधिकारियों की मूर्तियां भी हैं।
अंग्रेज़ शासकों की मूर्तियां लगाकर यहां भव्य कब्रिस्तान बनाया जा रहा है। धीरपुर गांव के लोगों के लिए कॉरोनेशन पार्क गुलामी के दर्द की निशानी के सिवाए और कुछ भी नहीं। कॉरोनेशन पार्क के आसपास रहने वाले लोग नहीं चाहते कि उनकी आने वाली पीढ़ी गुलाम भारत की याद दिलाने वाली निशानी देखें।
धीरपुर में रहने वाले 70 वर्षीय रामफल मलिक बताते हैं 'हमारे पूर्वज 1860 में खेती करने के लिए यहां आकर बस गए थे। ब्रिटिश शासन में अंग्रेज़ों की बर्बरता के कई किस्से मेरे पिता मुझे बताया करते थे। 1911 में भी जब अंग्रेज़ों ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया था, तो पूरे धीरपुर गांव को छावनी में तब्दील कर दिया था। सेना को निर्देश दिए गए थे चाहे जो हो जाए समारोह के दौरान कोई ग्रामीण गांव से बाहर ना निकल पाए।'
रामफल बताते हैं कि '1911 में कॉरोनेशन पार्क में ही अंग्रेज़ों ने जॉर्ज फ्रेडरिक अर्नेस्ट अल्बर्ट-V को आधिकारिक रूप से भारत की सत्ता सौंपी थी। धीरपुर गांव की ज़मीन पर ही अंग्रेज़ों ने बहुत बड़े समारोह का आयोजन किया था जिसमें जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना समेत भारत के कई कद्दावार नेता शामिल हुए थे। लेकिन पास में गांधी आश्रम होते हुए भी गांधी जी ने यहां आने से मना कर दिया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि गुलाम भारत के एक लोकप्रिय नेता ने समारोह में आने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें लगता था कि यह गुलामी को और मजबूत करने का जश्न है।'
रामफल बताते हैं कि आज भी कॉरोनेशन पार्क में कोई सच्चा देशभक्त आना पसंद नहीं करता। धीरपुर गांव में रहने वाले लोगों ने अंग्रेज़ों के बहुत ज़ुल्म सहे लेकिन आज़ादी की लड़ाई में गांधी जी का साथ नहीं छोड़ा। हमने सोचा था कि इस जगह पर स्वतंत्रता से जुड़ी यादें संजोई जाएंगी लेकिन ब्रिटिश राजवंश के पुतले हमारी आज़ादी नहीं हमारी गुलामी के दिनों को याद दिलाते हैं। उनके अनुसार 2016 में इसका उद्घाटन करने खुद ब्रिटेन की महारानी के आने का प्रोग्राम है इसलिए यहां काम जोर-शोर से चल रहा है।
धीरपुर गांव में रहने वाले समाजसेवी विनोद शर्मा को भी कॉरोनेशन पार्क को देखकर अपने बुज़ुर्गों पर हुए अत्याचार और गुलाम भारत की याद आती है। विनोद शर्मा कहते है, "गांव वालों को यह बात बिल्कुल रास नहीं आ रही कि गुलामी की निशानी पर करोड़ों रूपये खर्च किए जा रहे हैं। आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हम देश की आज़ादी के लिए मरने वाले क्रांतिकारियों की स्मारक बनाने की बजाए गुलामी की याद दिलाने वाले पार्क पर करोड़ों रुपये खर्च करने में लगे हैं। क्या इसलिए हमारे बुज़ुर्गों ने इतना संघर्ष किया था, अपनी जान गंवाई थी?"
ब्रिटिश राज की याद दिलाते लगभग 60 एकड़ में फैले कॉरोनेशन पार्क में जॉर्ज-V की 60 फीट ऊंची मूर्ति है जिसे 1860 में इंडिया गेट के पास से लाकर कॉरोनेशन पार्क में लगाया गया है और साथ ही ब्रिटिश शासन के समय इंडिया के गर्वनर जनरल और वायसराय रहे चार अंग्रेज अधिकारियों की मूर्तियां भी हैं।
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