इसका निर्माण ताजमहल से कुछ ही दूरी पर स्थित आंवलखेड़ा में किया जा रहा है. इसके साथ ही ब्रह्मकमल का निर्माण भी किया जा रहा है. दो तलों में बन रहे इस मंदिर की खासियत इसमें लगाया जाने वाला लेंस होगा जिससे सूर्य की किरणें मंदिर के भीतर पहुंचेंगी. सूर्योदय से सूर्यास्त तक मंदिर सूर्य की रोशनी से ही प्रकाशित रहेगा. अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी की जन्मस्थली आंवलखेड़ा में इस अनूठे सूर्य मंदिर और ब्रह्मकमल का निर्माण कार्य अंतिम दौर में है और नवंबर तक मंदिर के उद्घाटन की योजना है. आध्यात्मिक ऊर्जा ही नहीं, पर्यटन के लिहाज से भी यह आकर्षण का केंद्र होगा. जहां दर्शनार्थी प्रेम का प्रतीक ताजमहल के दर्शनार्थ आगरा आते हैं, वहीं सूर्य मंदिर की खासियतें जानने के लिए अब वे आंवलाखेड़ा आ सकेंगे.
भारत में उत्कल के कोणार्क के बाद अब आंवलखेड़ा में भगवान भास्कर के अद्भुत मंदिर तथा ब्रह्मकमल का दर्शन होंगे. अब यहां सूर्य से अध्यात्म और तकनीक की किरणें फूटेंगी. इनके बीच ध्यान का अवसर साधकों के लिए अनूठा अनुभव वाला होगा.
शहर से 25 किलोमीटर दूर जलेसर रोड पर स्थित आंवलखेड़ा को आध्यात्मिक पर्यटन स्थल के रूप में तैयार किया जा रहा है. गायत्री परिवार के मुख्यालय हरिद्वार स्थित शांतिकुंज द्वारा तीर्थों की परंपरा में एक नया प्रयोग करते हुए आध्यात्मिक दृष्टि से अमूल्य धरोहर के रूप में इस सूर्य मंदिर को विकसित किया जा रहा है. सामाजिक परिवर्तन की चाह, आत्म परिष्कार की उमंग, अध्यात्म के वैज्ञानिक स्वरूप के जिज्ञासु यहां आकर मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे.
सूर्य मंदिर के अतिरिक्त जन्मस्थली परिसर में ब्रह्मकमल का निर्माण भी हो रहा है. बाकी पुराने परिसर को ज्यों का त्यों संवारा जा रहा है. मंदिर दो तलों में बनाया गया है जहां प्रखर किरणें सूर्यदेव का श्रृंगार करेंगी. इसके शिखर पर एक लेंस लगाया जाएगा. यही मंदिर की खासियत है. इस लेंस पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों से मंदिर में स्थापित भगवान भास्कर की मूर्ति और भवन प्रकाशित होगा. ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि सूर्योदय से सूर्यास्त तक मंदिर में सूर्य की रोशनी से ही प्रकाश रहे, कृत्रिम प्रकाश की आवश्यकता न रहे.
सूर्य मंदिर के नीचे के तल में स्वस्तिक भवन बनाया गया है. इसमें पं श्रीराम शर्मा आचार्य के जीवनवृत्त, व्यक्तित्व और कृतित्व को प्रदर्शित करने वाली विशाल प्रदर्शनी लगाई जाएगी. उनके द्वारा लिखी गई 3200 पुस्तकें, चारों वेद, 108 उपनिषद, छह दर्शन, 20 स्मृति, 18 पुराण, गीता एवं रामायण सारांश, गायत्री महाविज्ञान तथा दैनिक जीवन से जुड़ी वस्तुएं यहां देखने को मिलेंगी ताकि श्रद्धालु दर्शनार्थी उनके बारे में जानकारियां प्राप्त कर सकें.
अभियंता शरद पारधी ने बताया, ‘मंदिर का निर्माण अगस्त 2011 से शुरू हुआ. परिसर का नक्शा नागपुर के आर्किटेक्ट अशोक मोखा द्वारा तैयार किया गया है. दिल्ली की कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा तीन साल से चल रहे निर्माण कार्य में अनुमान के मुताबिक छह महीने का समय और लग सकता है. इस भव्य सूर्य मंदिर में दिल्ली और नागपुर से आए कुशल कारीगर काम कर रहे हैं.’
मंदिर में स्थापित की गई सूर्यदेव की मूर्ति चेन्नई से तैयार होकर आई है. मंदिर के शिखर पर लगने वाले लेंस के लिए वृत्ताकार जगह छोड़ दी गई है. शिखर को एंगल से मजबूती दी गई है. जिसे कांच से ढक लिया गया है. इसलिए मंदिर परंपरागत मंदिरों से कुछ भिन्न नजर आता है.
जानकारों का मानना है कि लेंस लगने के बाद मंदिर भव्य और अनूठेपन की मिसाल कायम करेगा. अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या के अनुसार, ‘गुरु चरणों में समर्पित योजना को पूरा होने के बाद लोग आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहेंगे. सामान्य मंदिरों से अलग अध्यात्म पिपासुओं को यहां अलग अनुभव मिलेगा.’
गायत्री शक्तिपीठ, आंवलखेड़ा के व्यवस्थापक घनश्याम देवांगन के अनुसार यहां सूर्य से अध्यात्म और तकनीक की किरणें भी फूटेंगी. इनके बीच ध्यान करने का अवसर साधकों के लिए अनूठा अनुभव युक्त होगा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें