रविवार, 12 जुलाई 2015

यह है दामादों का गांव

 

 

 

 

Click to Downloadबुरहानपुर [ रिज़वान अंसारी ] बुरहानपुर में निंबोला गांव ऐसा गांव है जहां हर चैथे घर में जमाई निवास करता है, और ऐसा कोई आज या कल से नहीं पिछले पांच दशक से होता चला आ रहा है, लिहाजा इलाके में इस गांव को अब जमाई राजाओं के गांव के नाम पहचाना जाने लगा है
जानकार के अनुसार बेरोजागारी, बहन बेटी से गांव वालों का लगाव के चलते इस गांव में जमाई राजा के आकर निवास किए जाने को वजह मानी जाती है।
बुरहानपुर जिले का निंबोला गांव, यह गांव अपनी एक विशेषता के चलते ना केवल जिले में बल्कि पूरे प्रदेश में एक अलग पहचान बना चुका है
इस गांव को इलाके में जमाई वाला गांव भी कहा जाता है दरअसल करीब एक हजार परिवार वालें इस गांव में लगभग 400 परिवारों में जमाई अपनी ससुराल में स्थाई रूप से निवास करते है यह परंपरा यहां रहने वाले सभी समाज के लोगों को भा गई है |
पिछले पांच दशक से चली आ रही इस परंपरा का युवा भी बखूबी अनुसरण कर रहे है और दशकों से जमाई बन गांव में रह रहे जमाई गांव में मिलने वाले सम्मान से काफी गदगद है गांव के वरिष्ठ जमाई प्रल्हाद मोतीराम महाजन का कहना है वह महाराष्ट्र के रावेर तहसील रसुलपुर के निवासी है और 50 साल पूर्व शादी के बाद वह निंबोला गांव में बस गए उन्हें गांव में काफी मान सम्मान मिलता है।
लगभग पांच दशक से अपने गांव में जमाईयों को मान सम्मान मिलता देख इससे प्रभावित गांव के युवाओं ने अब बजाए गांव के बाहर विवाह करने के गांव की ही युवती से विवाह कर गांव जमाई बनने की पहल शुरू की है इससे भी उन्हें गांव में काफी मान सम्मान मिल रहा है अब यह युवा जमाई अपने गांव को जमाईयों को सबसे अधिक सम्मान देने वाले गांव होने का दावा कर रहे है इन्ही युवाओं में से एक है।
जानकारों के अनुसार पिछले पांच दशक से गांव वालों की अपनी बहन बेटी के प्रति गहरा लगाव, दूसरे गांव या प्रदेश में ब्याही बेटी के पति के सामने रोजगार की समस्या उत्पन्न होने पर जमाई के ससुराल में रोजगार के लिए आने व यही स्थाई रूप से बस जाने के चलते यह परंपरा शुरू हुई है इतना ही नहीं गांव में सभी जमाईयों को आर्थिक सामाजिक व राजनैतिक रूप से भी काफी मान सम्मान दिया जाता है इसके इतर जमाई वाला गांव का दर्जा पाने के पीछे एक किवदंति भी प्रचलित है वह यह की कई साल पहले अपनी बेटी के ससुराल में परेशानी में रहने से परेशान एक पिता गांव के नीम के पेड के पास सोया जहां उसे स्वप्न आया कि वह अपनी बेटी जमाई को गांव में ले आए उस पिता ने स्वप्न के मुताबिक ही किया और उसकी समस्या हल हो गई तब से अब तक गांव में यह ही परंपरा चली आ रही है।
आम तौर पर ससुराल में घर जमाई बनना समाज में अच्छा नहीं माना जाता है लेकिन बुरहानपुर का निंबोला गांव यहां सभी जमाईयों ओ काफी फलदायी साबित हो रहा है और तो और घर जमाई बनकर रहने वाले जमाईयों को गांव समाज का बजाए तिरस्कार के मान सम्मान मिल रहा है जो कि काबिले तारिफ है

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