दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।
रविवार, 12 जुलाई 2015
कुंवारों का गांव
प्रस्तुति- हुमरा असद
कुवांरों की फौज, नहीं मिल रहे रिश्ते !
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद के कलाप गांव में धन और धान्य की कोई
कमी नहीं है, किन्तु सुविधाओं के अभाव में आज के आधुनिक दौर में भी लोग
आदिम युग की तरह जीने पर मजबूर हैं. यह हकीकत है उत्तराखंड के एक गांव कलाप
की. यहां की भोगोलिक स्थिति युवकों की शादी-ब्याह के लिए मुश्किल बन गई
हैं. इस गांव में कई कुंवारे हैं किन्तु इन्हें शादी
के लिए कोई लड़की नहीं मिल रही. उत्तरकाशी के कलाप गांव में रोजमर्रा के
सामानों के लिए 25 किमी की पैदल दौड़ यहां के बाशिंदों की जिंदगी की
दुश्वारी की कहानी खुद ब खुद बयां करती है. आलम यह है कि गांव की
दुश्वारियों को देखते हुए यहां कोई अपनी बेटी नहीं ब्याहता. गांव में 50 से
ज्यादा कुंवारे ब्याह की बाट जोह रहे हैं. कई लोग तो रक्तसंबंधियों में ही
शादियां कर रहे हैं जिससे कई आनुवांशिक समस्याएं भी सामने आ रही हैं.
उत्तरकाशी के मोरी प्रखंड में 66.99 हेक्टेयर पर बसे 96 परिवारों वाले कलाप
गांव का दौरा किया तो यहां की दुश्वारियां सामने आईं. लोगों की आजीविका
आलू, राजमा, रामदाना के उत्पादन और भेड़-बकरी पालन पर टिकी है. प्राकृतिक
आपदाओं और निकटवर्ती गोविंद वन्य जीव विहार की बंदिशों ने इस गांव को
सदियों पीछे के दौर में धकेल दिया है. गांव को बाकी दुनिया से जोड़ने वाला
सूपिन नदी का झूला पुल 2003 की बाढ़ में बह गया. नैटवाड़ से इस गांव का
इकलौता अश्व मार्ग भी तहस नहस हो गया. घर की जरूरत का सामान लोग करीब 25
किमी लंबे जंगल और चट्टानी दुर्गम रास्ते से पीठ पर ढोकर ले जाते हैं. डेढ़
साल से गांव में बिजली नहीं आई है. ग्रामीण चीड़ के छिलकों से घर रोशन कर
रहे हैं. रास्ता न होने से गांव में उत्पादित आलू, राजमा आदि सड़क तक
पहुंचाने का खच्चर भाड़ा छह सौ रुपए है. ऐसे में हाड़तोड़ मेहनत कर फसल
उगाना भी घाटे का सौदा है. गांव की पांच एकड़ उपजाऊ जमीन बाढ़ में बह गई.
चट्टानी पहाड़ी पर दो फिट से भी कम मिट्टी वाली जमीन कृषि उपयोगी नहीं है.
भेड़ बकरी पालन भी सिमट गया है. इस गांव में कोई बेटी ब्याहने को राजी नहीं
है. यहां 50 से ज्यादा विवाह योग्य बेरोजगार कुंवारे बैठे हैं. रक्त
संबंधों में वैवाहिक रिश्तों की मजबूरी संतति पर भारी पड़ रही है. 2001 में
इस गांव की कुल 426 की जनसंख्या थी. दस सालों के भीतर महज 43 का इजाफा हुआ
जबकि गांव से पलायन भी नगण्य है. कलाप गांव के लोगों को पलायन न करने की
सजा मिल रही है. इस गांव को पीएम नरेंद्र मोदी की सांसद आदर्श ग्राम योजना
के से उम्मीद थोड़ा बढ़ी है की यहां की सांसद इस गांव को गोद ले. दुनिया से
अलग-थलग पड़े इस गांव में कोई बेटी ब्याहने को राजी नहीं है. गांव के 70
फीसदी लोग एक जाति के तीन कुनबों के बीच वैवाहिक रिश्ते बनाने को मजबूर हैं
और रक्त संबंधों में वैवाहिक रिश्ते के कारण संतान का गर्भ में ही मरने,
पैदा होने के कुछ समय बाद मरने तथा अपंग होने के साथ ही रक्त कैंसर जैसी
खून संबंधी बीमारियों का खतरा रहता है.
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