बाजार में खुले आम बिक रहा है प्रतिबंधित बास्ता
Published: 2015-07-02 05:53 PM IST
प्रस्तुति- अनामिका श्रीवास्तवजगदलपुर, 2 जुलाई बस्तर का अदिवासी समाज अपनी अनोखी परंपराओं के कारण पूरे विश्व में जाना जाता है। सभ्य समाज के मन में हमेशा इनके रीति-रिवाज तथा परंपराओं को गहराई से जानने की उत्कंठा रहती है। किसी भी परिजन की मौत होने पर आदिवासियों का विश्वास है कि कुल देवता के नाराज होने के कारण ही उनके परिजन की मौत हुई है। भविष्य में कुलदेवता का प्रकोप परिवार के अन्य सदस्यों को न झेलना पड़े इसलिए वे पुराना मकान में रहना तत्काल छोड़ देते हैं तथा अपने रिश्तेदारों के घर रहकर पुराने मकान को गिरा देते हैं और नई बांस बल्लियां लाकर नया आशियाना बसाते हैं। इस नये मकान में वे विधि-विधान के साथ कुलदेवता को स्थापित करते हैं।
मृत परिजन के क्रियाकर्म पर हजारों रूपए खर्च करने के अलावा अंधविश्वास के चलते उन्हें नये मकान बनाने का खर्च भी वहन करना पड़ता है। दक्षिण बस्तर के कटेकल्याण क्षेत्र के अलावा पखनार, बास्तानार, अलनार, छिंदबहार, तथा चंद्रगिरी आदि इलाकों में रहने वाले आदिवासियों में वर्षों से यह अजीबो-गरीब यह परंपरा चली आ रही है। आदिवासी समाज अभी भी अंधविश्वास और पुरानी परंपराओं के बीच कूपमंडूक की तरह जीवन बीता रहे हैं। घर के बाहर पेड़ से गिर कर या किसी विपदा से मौत को ग्रामीण दुर्घटना मानते हैं, लेकिन उनके ही किसी परिजन की मौत घर पर हो जाती है, तो इसे कुलदेवता का प्रकोप मानकर अपने घर को तोड़ देते हैं और नया मकान बनाकर रहने लगते हैं। शिक्षा के प्रसार के साथ नई पीढ़ी के लोग बीमार परिजन को चिकित्सा सहायता दिलाने सिरहा-गुनिया के बदले चिकित्सकों के पास अस्पताल ले जाना बेहतर समझते हैं, तथा पढऩे लिखने के बाद अंधविश्वासों से तौबा कर रहे हैं, लेकिन अशिक्षित तथा पुरानी पीढ़ी के लोग अपनी पुरानी परंपरा का ही पालन करना उचित समझते हैं।
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