रविवार, 12 जुलाई 2015

आदिवासी सांस्‍कृतिक संग्रहालय, सिलवासा





प्रस्तुति- हुमरा असद


आदिवासी सांस्‍कृतिक संग्रहालय, इस क्षेत्र के आदिवासी लोगों की संस्‍कृति, सभ्‍यता, परम्‍परा, समाज, जीवन के प्राचीन गौरव, समृद्ध विरासत को चित्रित करती है और इसी को समर्पित है। यह संग्रहालय, शहर के केंद्र में स्थित है और इसका प्रवेश द्वार हस्‍तनिर्मित तोरण और मालाओं से सजाया गया है। इस संग्रहालय के आंगन में एक आदिवासी मॉडल को प्रदर्शन के लिए रखा गया है। आपको यह पुतला वास्‍तव सा प्रतीक होगा जबतक कि आप उसे स्‍वंय छू न ले। छूने के बाद ही पता चलता है कि यह स्‍टेचू है।


इस संग्रहालय के प्रदर्शनी कमरे में प्रवेश करने से पहले जूते उतारने होते है जो कि आदिवासी जनजीवन का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। इस प्रर्दशनी में आदिवासी पुरूषों और महिलाओं के द्वारा पहने जाने वाले विदेशी गहने, उनकी दैनिक गतिविधियों के सामान, घरेलू सामान, बरतन, मछली पकड़ने की छड़, कृषि और शिकार के उपकरण और संगीत वाद्ययंत्रों का प्रदर्शन किया जाता है।
इस संग्रहालय की दीवारें, खंजर, भालों, धनुष, तीर, एक पुरानी शैली वाली बंदूक, रिसाला, ढालें और शादियों में इस्‍तेमाल होने वाले विशेष सामान, आदिवासियों की संस्‍कृति और सामाजिक कार्यक्रमों की तस्‍वीरों का भी प्रदर्शन किया गया है। यहां जनजातिय नृत्‍य की भी तस्‍वीरें है जैसे - दुबला जनजाति के द्वारा किया जाने वाला घेरिया नृत्‍य, कोंकण नृत्‍य जिसमें मास्‍क पहना जाता है, ढोल डांसर और अद्भुत पिरामिड नृत्‍य जिसे तुर डांसर करते है।
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