रविवार, 12 जुलाई 2015

जहां वेश्याव़ति से चलती है रोजी रोटी


भारत के वो चार गांव जहां वेश्याव़ति से चलती है रोजी रोटी
मध्य प्रदेश का बचारा समूह पहले यह जनजाति राजाओं की दरबानी करने का काम करता था. बाद में मातृप्रधान इस जनजाति ने वेश्यावृति का विरल्प चुना. परिवार का सहारा बनने के नाम पर बचारा जनजाति सबसे बड़ी बेटी को वेश्यावृति के पेशे में लाए जाने को समाजिक रूप से स्वीकार्य माना जाता है. लड़की का सौदा खुद बाप या भाई करते हैं. इस छोटी सी जनजाति की लड़कियों पर इस पेशे में बने रहने का इतना दबाव है कि अगर वे इसका विरोध करती हैं तो उन्हें समाज से अलग कर दिया जाता है नटपुरवा, उत्तर प्रदेश -यूपी का यह गांव नट जाती के लोगों का गांव है. 5000 लोगों की आबादी वाले इस गांव में वेश्याव़ति पिछले 400 सालों से प्रमुख पेशा रहा है. गांव के बच्चे मां के साथ पलते बढ़ते हैं और उन्हें शायद ही पता चल पाता है कि उनका पिता कौन है. समाजिक कार्यकर्ताओं के तमाम प्रयासों के बावजूद लंबे समय से इस समस्या से अभिशप्त इस गांव को इससे से बाहर नहीं निकाला जा सका है. कर्नाटक की देवदासियां देवदासियां हिंदू देवी येल्लमा की पूजा अर्चना करती हैं. देवदासी का अर्थ देवी/देवताओं की महिला दासी लगाया जा सकता है. इस प्रथा में बच्चियों की शादी भगवान से करवा दी जाती है. इसके बाद उन्हें अपना जीवन भगवान को दे देना होता है. इसके बाद उनकी वर्जिनिटी (कौमार्य) की निलामी पूरे गांव के बीच की जाती है. फिर वो अपना पूरा जीवन वेश्यावृति के सहारे बिताती हैं. इससे मिलने वाला पैसे वो अपने परिवार को भेजती हैं. सुनने से ही घिन्न दिलाने वाली यह प्रथा गैर कानूनी करार दिए जाने के बाद अभी भी जारी है.मध्य प्रदेश -की बचारा जनजाती- पहले यह जनजाति राजाओं की दरबानी करने का काम करता थी. बाद में मातृप्रधान इस जनजाति ने वेश्यावृति का विरल्प चुना. परिवार का सहारा बनने के नाम पर बचारा जनजाति सबसे बड़ी बेटी को वेश्यावृति के पेशे में लाए जाने को समाजिक रूप से स्वीकार्य माना जाता है. लड़की का सौदा खुद बाप या भाई करते हैं. इस छोटी सी जनजाति की लड़कियों पर इस पेशे में बने रहने का दबाव इतना ज्यादा है कि अगर वे इसका विरोध करती हैं तो उन्हें समाज से अलग कर दिया जाता है.

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