रविवार, 12 जुलाई 2015

जहां मौत पर नृत्य किया जाता है




 प्रस्तुति- हुमरा असद


गाड़ासरई (डिण्डौरी). आदिवासी बहुल डिण्डौरी जिला आदिवासी संस्कृति एवं प्राचीन परम्पराओं के लिए विख्यात है। ग्रामीण आज भी पुरानी परम्पराओं का बाकायदा निर्वहन कर अपनी संस्कृति को संजोए हुए हैं। गाड़ासरई से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम किकरातालाब में वर्षों से एक अजीबोगरीब परम्परा चली आ रही है जिसमें व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् दशगात्र एवं तेरहवीं कर्म को इस अंदाज में मनाया जाता है जैसे सामान्य तौर पर लोग शादियों में जश्न मनाते हैं।

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दशगात्र के कार्यक्रम में बाकायदा लोकगीत बजाये जाते हैं जिसमें बाहर से बुलाई गर्इं नृत्यांगनायें नृत्य करते हुए अपने कदमों को थिरकाती हैं।इतना ही नही आयोजन में उपस्थित ग्रामीणों की फरमाईश पर भी नृत्यांगनायें ठुमके लगाकर माहौल खुशनुमा बना देती हैं। बालाओं के नृत्य पर उपस्थित जन सारी रात रूपए उड़ते हैं और अंत में परम्परा के अनुसार पूरे गांव को सामूहिक भोज के साथ दशगात्र कर्म की समाप्ति की जाती है।

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ऐसी है परम्परा :- इस परम्परा को देखकर पहली बार आयोजन में शिरकत करने वाले लोग यह नही समझ पाते कि कार्यक्रम दुख के निमित्त आयोजित किया गया है या फिर किसी खुशी के निमित्त। सरपंच फूलचंद मरावी बताते हैं कि जिस प्रकार बच्चे के जन्म के समय लोग खुशियां मनाते हैं, लोग इस दौरान विभिन्न आयोजन भी बड़े पैमाने पर करते हैं। ठीक इसी प्रकार हमारे गांव में भी परम्परा चली आ रही है कि जब भी कोई व्यक्ति प्राण त्यागकर संसार से विदा होता है तो विलाप कर दुख मनाकर मृत व्यक्ति की आत्मा को हम दुख नही पहुंचाते बल्कि उसे खुशी-खुशी विदाई दी जाती है। उन्होंने यह भी बतलाया कि जब हम आत्मा के किसी शरीर में प्रवेश करने अर्थात बच्चे की जन्म लेने की खुशियां मनाते हैं तो फिर शरीर से आत्मा की विदाई का भी जश्न मनाना चाहिए।
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