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प्रस्तुति- हुमरा असद, सृष्टि शरण
First Published:31-12-14 10:37 PMLast Updated:31-12-14 10:37 PM
कमला की दोमंजिली इमारत की तरफ उंगली से इशारा करते हुए एक स्थानीय
महिला फुसफुसाती है, ‘उसे यह मत बताना कि मैंने उसके घर के बारे में आपको
बताया है।’ कमला हरियाणा के जींद जिले की एक पॉश कॉलोनी में रहती है। अपने
पड़ोसियों में वह इस बात के लिए कुख्यात है कि स्थानीय क्षेत्र के कुंवारों
के लिए वह अलग-अलग राज्यों से दुल्हन खरीद कर लाती है। दिखने में मोटी और
नाटी कमला हालांकि विनम्र है, लेकिन सावधान रहती है। बैंगनी सलवार-कमीज और
काले ओवरकोट पहने कमला मुझ से बात करने से पहले अपने परिवार के सदस्यों को
कमरे से बाहर जाने के लिए कहती है। बातचीत शुरू करने से पहले वह मुझसे
पूछताछ करती है, ‘आपसे किसने कहा कि मैं इस तरह की शादियां करवाती हूं?’
वधुओं का व्यापार उत्तर पश्चिम भारत में पनपता जा रहा है। लिंग अनुपात का बढम्ता अंतर और प्रति परिवार खेती लायक जमीन में आ रही कमी के कारण इस क्षेत्र के पुरुषों को बड़ी मुश्किल से अपने अनुसार रिश्ता मिलता है। विकल्प के रूप में वे दूसरे राज्यों की तरफ देखने को मजबूर हैं और उनकी इस मांग की पूर्ति कमला जैसी नेटवर्क बनाए रखने वाली महिलाएं, ब्रोकरों और एजेंटों के जरिये दूसरे राज्यों से दुल्हन लाकर करती हैं। ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेंस एसोसिएशन की राज्य संयुक्त सचिव सविता बैरवाल कहती हैं, ‘यहां लोगों के पास रोजगार नहीं है। इस कारण उनका विवाह नहीं होता।’ यूनिसेफ के अनुसार, 1991 से भारत के 80 फीसदी जिलों में लिंगानुपात का अंतर बढ़ता जा रहा है। एक तरफ लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या घट रही है, वहीं एक अनुमान के मुताबिक अनैतिक चिकित्सा पेशेवरों द्वारा किया जा रहा भ्रूण लिंग निर्धारण और कन्या भ्रूण गर्भपात का व्यापार 1000 करोड़ तक पहुंच गया है।
हालिया हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी के एक नेता ओपी धनखड़ ने जींद में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि यदि वे सत्ता में आ जाते हैं तो जिनकी शादी नहीं हो पा रही है, वह उनके लिए बिहार से दुल्हन लाएंगे।
अपने बेटों के लिए पत्नियों की मांग को लेकर ब्रोकर के पास जाने की प्रवृत्ति, ट्रैफिकर्स के काम करने का ढंग तथा पैसों के खेल को समझने के लिए हम हरियाणा के जींद और हिसार के चार ट्रैफिकर्स से मिले। इनमें से कुछ पंजीकृत मैरिज ब्यूरो की आड़ में यह काम करते हैं, लेकिन ज्यादातर का कारोबार जुबानी ही चल रहा है। मुख्य रूप से उनके स्रेत क्षेत्र असम, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, बिहार, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और नेपाल हैं। वह इन जगहों का दौरा नियमित रूप से करते रहते हैं, पर अधिकतर सौदा फोन पर होता है। वे लड़की की उम्र और रूप-रंग के अनुसार 50 हजार से दो लाख रुपये की मांग करते हैं। स्रेत क्षेत्र और गंतव्य स्थान के ट्रैफिकर्स आपस में पैसों का बंटवारा कर लेते हैं। यह राशि जोखिम के अनुसार तय होती है कि खरीदार लड़की से शादी करना चाहता है या फिर उसे बेच देना चाहता है। (कथित ट्रैफिकर्स के नाम बदल दिए गए हैं)
‘इस धंधे में मुनाफा काफी अच्छा है’
कमला अपने बॉस पांडेय से अलग होकर खुद अपना कारोबार खड़ा करना चाहती है। पांडेय पिछले सात सालों से कमला को लड़कियां उपलब्ध करा रहा है। वह पांडेय को कोसते हुए कहती है, ‘यदि सौदा एक लाख में तय होता है तो वह खुद 70 हजार रुपये ले लेता है। सारा पैसा वही हड़प जाता है।’ उसके अनुसार, पांडेय छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश की लड़कियों के दलालों के सीधे संपर्क में है। वह दुल्हन के लिए इन राज्यों की यात्रा करता है। वह कहती है, ‘यदि कोई हरियाणा या दिल्ली में लड़की को देखना चाहता है तो उसके लिए 10 हजार रुपये अतिरिक्त लगते हैं। इस चक्कर में यदि पुलिस केस होता है तो उसका भी भुगतान खरीदार को ही करना पड़ता है।’
जिस सुबह हम कमला से मिले, वह उसी दिन हिमाचल प्रदेश की पांच दिवसीय यात्रा से लौटी थी। हालांकि वह कहती है कि सारा व्यापार फोन पर ही करती है और यात्राएं नहीं करती। उसका एक और कार्यालय दिल्ली से जुड़े एनसीआर क्षेत्र फरीदाबाद में है। वह पांडेय का नंबर डॉयल करती है और हमें जोर देकर कहती है, ‘सिस्टम समझ यार!’
पांडेय बिजी है, बाद में फोन करने के लिए कहता है। वह कहती है, ‘पुलिस और नागरिक एजेंसियों की चिंता मत करो। वहां मेरे बहुत आदमी हैं। इसमें मुनाफा सच में शानदार है।’ हम वहां से अपना ताम-झाम समेट कर निकलने लगे, क्योंकि उसे किसी और से मिलने के लिए देर हो रही थी। लेकिन इससे पहले उसने हमसे पूछा कि दूसरी बार कब मिल रहे हैं। वह सुनिश्चित कर लेना चाहती थी कि क्या सच में हमें दुल्हन खरीदनी है और यह भी कि कहीं हम उसके लिए कोई जाल तो नहीं बिछा रहे। वह बोली, ‘तुम सीआईडी वाले तो नहीं हो ना?’ जब वह आश्वस्त हो गई तो उसने ऑफर दिया, ‘मेरे पास छत्तीसगढ़ से पिछले ही हफ्ते दो लड़कियां आई हैं। यदि तुम लोग एक-दो दिन में चाहते हो तो बताओ।’
कमला ने हरियाणा और पंजाब के ज्यादातर ट्रैफिकर्स के बारे में जानने का भी दावा किया। वह हमें सतर्क करते हुए बोली, ‘इस व्यापार में हर तरह के लोग हैं। मैं तुम्हारा बुरा नहीं चाहती, इसलिए यह बता रही हूं।’
‘बहुत विकल्प मिलेंगे’
लगभग 13 साल पहले बलराम हिसार जिले के डाबरा गांव से अपने एक दोस्त के साथ त्रिपुरा की राजधानी अगरतला गया था। वहीं उसने शादी की और तब से वह अपनी पत्नी तनुजा के साथ पूर्वोत्तर राज्यों के लगभग 50 दौरे कर चुका है। बलराम कहता है, ‘पिछले 12 सालों में मैं त्रिपुरा से 104 लड़कियां ला चुका हूं। आप जब भी वहां चलना चाहते हैं, मुझे बताइए। वहां एक ही जगह 50-60 लड़कियां मिल जाएंगी। आपको चुनने के लिए बहुत सारे विकल्प मिलेंगे।’ उसकी 30 साल पार कर चुकी आठवीं पास पत्नी तनुजा पूरे व्यापार को संभालती है। हरियाणा में ग्राहकों से बात करती है, फोन नंबर का आदान-प्रदान करती है, स्रेत क्षेत्र के अपने एजेंटों के साथ मजबूत नेटवर्क बना कर रखती है और यात्राओं की व्यवस्था करती है। इस दंपती का अनुमान है कि ट्रैफिकर्स द्वारा लगभग पांच हजार लड़कियां त्रिपुरा से हरियाणा और पंजाब लाई गई हैं। बलराम बताता है, ‘हम अकेले नहीं हैं, जो यह कर रहे हैं। मेरी पत्नी की तरह बहुत सारी औरतें हैं, जो अपने पैत्तृक राज्यों से दुल्हन खरीद कर लाती हैं।’
तनुजा बताती है, ‘त्रिपुरा जाकर वहां से वापस आने में एक सप्ताह लग जाता है और हमें ही सारा खर्चा उठाना पड़ता है।’ वह हमें आगाह करती हैं, ‘लड़कियों के परिवार वाले इतने गरीब होते हैं कि वे आपकी मेजबानी भी ठीक से नहीं कर सकते। आपको वहां रहने-खाने का सारा खर्च खुद ही उठाना पड़ेगा।’ दंपती का स्रेत क्षेत्र असम का तेजपुर भी है। उन्होंने हमें तेजपुर में लड़कियां दिखाईं। एक लड़की उनके साथ लगभग 15 दिनों से थी। बलराम उसे दिखा कर बोला, ‘उसे देखिए और तय करिये कि क्या आपके पास इसके लिए संभावित दूल्हा है।’ इस बीच बलराम ने एक बार भी पैसे का जिक्र नहीं किया, न कोई अनुमान बताया। जब हमने उससे पैसा बताने को कहा तो उसने कहा कि पहले उस व्यक्ति से मिलवाइए, जिसके लिए आए हैं, फिर पैसे की बात होगी।
‘एजेंट के जरिये व्यापार सुरक्षित है’
‘दो नंबर की बहुत हैं, जितनी चाहे ले लो। लेकिन वास्तव में शादी के लिए चाहते हैं तो समय देना होगा।’ जींद मालसारी खेडम गांव के एक ट्रैफिकर अजय ने कहा। वह दुल्हनों के दलालों से परेशान है। पानीपत की एक महिला ब्रोकर ने व्यापार छोडम् दिया है। उसके दूसरे स्रेत गाजियाबाद के एक एजेंट ने कीमत बढ़ दी है। फोन पर वह डेढ़ लाख रुपये की मांग करता है। अजय बरस पड़ता है, ‘अगर मैं तुम्हें इतना दूंगा तो कमाऊंगा क्या?’ हम उसे कहते हैं कि कम से कम पांच दुल्हनें चाहिए। सभी ट्रैफिकर्स के अलग-अलग राज्यों में स्रेत हैं, इसलिए इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा नहीं है। धरमवीर उत्तराखंड से लड़िकयों का सौदा करता है, इंदर सिंह असम से लाता है और राधेश्याम का नेटवर्क झारखंड में है। एक गांव वाला बताता है कि यहां लगभग हर पड़ोसी गांव में ऐसी 20 से 50 लड़कियां मिल जाएंगी। वर्तमान में इस क्षेत्र में अजय का एकमात्र स्रोत पास के गांव के सरकारी स्कूल का एक प्रधानाध्यापक है। अजय कहता है, ‘एक बिहारी लड़की की कीमत 70 हजार रुपये है और हिमाचल की लड़की के लिए आपको इसकी दोगुनी कीमत देनी पड़ेगी।’ अजय आगे कहता है, ‘बिहार की दस यात्राओं के बावजूद मैं गरीबी से जूझ रहे इन परिवारों से सीधे लड़कियों का सौदा नहीं करना चाहता। जिस दिन मैं इन ब्रोकरों को हटा कर सीधे सौदे करना चाहूंगा, वे लड़कियों तक मेरी पहुंच मुश्किल कर देंगे।’ वह यह भी बताता है कि एजेंट के जरिये लड़कियों को लाना ज्यादा सुरक्षित है, क्योंकि स्रोत क्षेत्र से उठ सकने वाले सारे कानूनी पहलुओं का ध्यान एजेंट रखते हैं।
‘अगर ऐसा न करें तो लड़के कुंवारे रह जाएंगे’
35 साल का हिसार में रहनेवाला कुश्ती पहलवान सुभाष कहता है कि वह केवल इसी काम पर आश्रित नहीं है। उसकी एक आटा चक्की और किराने की दुकान है। उसके मिट्टी के घर के पीछे से उसका खेत दिखता है। वह कहता है, ‘भगवान की दया से मेरे पास सब कुछ है।’ 12 साल पहले जब उसे पता चला कि उसे डायबिटीज है, तब से वह अपना वजन घटाने के लिए जूझ रहा है। वह कहता है कि बस आमदनी बढ़ाने के लिए साइड बिजनेस के रूप में यह धंधा किया है। सुभाष कहता है, ‘तुम्हें कितनी लड़कियां चाहिए। मेरे पास छत्तीसगढ़ और असम की ‘साफ-सुथरी’ कुंवारी लड़कियां हैं। वे गरीब परिवारों की हैं। उनके लिए आपको कीमत चुकानी होगी और मैं भी अपना हिस्सा लूंगा।’ वह आगे कहता है, ‘असमिया लड़कियों को हरियाणा में एडजस्ट होने में मुश्किल होती है, क्योंकि भाषा एक समस्या बन जाती है। विकल्प के रूप में वह राजस्थान के अलवर जिले, लखनऊ और गाजियाबाद की लड़कियों के बारे में भी सुझाता है।’
सुभाष हमसे पहली मुलाकात में ही काफी खुल गया था। उसकी पत्नी बीच में बोल पड़ती है कि वे सिर्फ शादी की सुविधा मुहैया कराते हैं। लड़कियों का व्यापार नहीं करते। जब हम गोरी और खूबसूरत लड़की पर जोर देते हैं तो वह नेपाल का नाम लेता है। वह कहता है, ‘हमारे पास बेहद खूबसूरत बच्चियां हैं।’ जब हम उससे कीमत के बारे में पूछते हैं तो वह कहता है कि सब कुछ सौदे और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। पैसा तो कुछ मिनटों में तय हो जाता है।
पुलिस से बचने के लिए व्यापारियों ने ऐसी शादियों को कोर्ट में रजिस्टर करवाना शुरू कर दिया है। हालांकि यह पूर्व शर्तों में शामिल नहीं होता। वह कंधे उचका कर कहता है, ‘आप लडम्की का अंगूठा एक सादे कागज पर ले लेना।’ सुभाष कहता है कि खेती योग्य जमीन कई हिस्सों में बंटने से इधर कुछ वर्षो में यह व्यापार तेजी से फैला है। यदि लडम्कों के पास ढेर सारी जमीन न हो तो उनकी शादी में काफी दिक्कत आती है। उनके पास बस एक ही विकल्प बचता है कि बाहर से लड़कियां खरीद कर लाई जाएं। सुभाष कहता है, ‘हालांकि इस तरह के रिश्ते से नस्ल अच्छी नहीं होगी, लेकिन अगर बाहर से लड़कियां न लाई जाएं तो हमारे यहां के सारे लड़के कुंवारे रह जाएंगे। इसलिए इसे रोकना आसान नहीं।’
वधुओं का व्यापार उत्तर पश्चिम भारत में पनपता जा रहा है। लिंग अनुपात का बढम्ता अंतर और प्रति परिवार खेती लायक जमीन में आ रही कमी के कारण इस क्षेत्र के पुरुषों को बड़ी मुश्किल से अपने अनुसार रिश्ता मिलता है। विकल्प के रूप में वे दूसरे राज्यों की तरफ देखने को मजबूर हैं और उनकी इस मांग की पूर्ति कमला जैसी नेटवर्क बनाए रखने वाली महिलाएं, ब्रोकरों और एजेंटों के जरिये दूसरे राज्यों से दुल्हन लाकर करती हैं। ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेंस एसोसिएशन की राज्य संयुक्त सचिव सविता बैरवाल कहती हैं, ‘यहां लोगों के पास रोजगार नहीं है। इस कारण उनका विवाह नहीं होता।’ यूनिसेफ के अनुसार, 1991 से भारत के 80 फीसदी जिलों में लिंगानुपात का अंतर बढ़ता जा रहा है। एक तरफ लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या घट रही है, वहीं एक अनुमान के मुताबिक अनैतिक चिकित्सा पेशेवरों द्वारा किया जा रहा भ्रूण लिंग निर्धारण और कन्या भ्रूण गर्भपात का व्यापार 1000 करोड़ तक पहुंच गया है।
हालिया हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी के एक नेता ओपी धनखड़ ने जींद में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि यदि वे सत्ता में आ जाते हैं तो जिनकी शादी नहीं हो पा रही है, वह उनके लिए बिहार से दुल्हन लाएंगे।
अपने बेटों के लिए पत्नियों की मांग को लेकर ब्रोकर के पास जाने की प्रवृत्ति, ट्रैफिकर्स के काम करने का ढंग तथा पैसों के खेल को समझने के लिए हम हरियाणा के जींद और हिसार के चार ट्रैफिकर्स से मिले। इनमें से कुछ पंजीकृत मैरिज ब्यूरो की आड़ में यह काम करते हैं, लेकिन ज्यादातर का कारोबार जुबानी ही चल रहा है। मुख्य रूप से उनके स्रेत क्षेत्र असम, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, बिहार, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और नेपाल हैं। वह इन जगहों का दौरा नियमित रूप से करते रहते हैं, पर अधिकतर सौदा फोन पर होता है। वे लड़की की उम्र और रूप-रंग के अनुसार 50 हजार से दो लाख रुपये की मांग करते हैं। स्रेत क्षेत्र और गंतव्य स्थान के ट्रैफिकर्स आपस में पैसों का बंटवारा कर लेते हैं। यह राशि जोखिम के अनुसार तय होती है कि खरीदार लड़की से शादी करना चाहता है या फिर उसे बेच देना चाहता है। (कथित ट्रैफिकर्स के नाम बदल दिए गए हैं)
‘इस धंधे में मुनाफा काफी अच्छा है’
कमला अपने बॉस पांडेय से अलग होकर खुद अपना कारोबार खड़ा करना चाहती है। पांडेय पिछले सात सालों से कमला को लड़कियां उपलब्ध करा रहा है। वह पांडेय को कोसते हुए कहती है, ‘यदि सौदा एक लाख में तय होता है तो वह खुद 70 हजार रुपये ले लेता है। सारा पैसा वही हड़प जाता है।’ उसके अनुसार, पांडेय छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश की लड़कियों के दलालों के सीधे संपर्क में है। वह दुल्हन के लिए इन राज्यों की यात्रा करता है। वह कहती है, ‘यदि कोई हरियाणा या दिल्ली में लड़की को देखना चाहता है तो उसके लिए 10 हजार रुपये अतिरिक्त लगते हैं। इस चक्कर में यदि पुलिस केस होता है तो उसका भी भुगतान खरीदार को ही करना पड़ता है।’
जिस सुबह हम कमला से मिले, वह उसी दिन हिमाचल प्रदेश की पांच दिवसीय यात्रा से लौटी थी। हालांकि वह कहती है कि सारा व्यापार फोन पर ही करती है और यात्राएं नहीं करती। उसका एक और कार्यालय दिल्ली से जुड़े एनसीआर क्षेत्र फरीदाबाद में है। वह पांडेय का नंबर डॉयल करती है और हमें जोर देकर कहती है, ‘सिस्टम समझ यार!’
पांडेय बिजी है, बाद में फोन करने के लिए कहता है। वह कहती है, ‘पुलिस और नागरिक एजेंसियों की चिंता मत करो। वहां मेरे बहुत आदमी हैं। इसमें मुनाफा सच में शानदार है।’ हम वहां से अपना ताम-झाम समेट कर निकलने लगे, क्योंकि उसे किसी और से मिलने के लिए देर हो रही थी। लेकिन इससे पहले उसने हमसे पूछा कि दूसरी बार कब मिल रहे हैं। वह सुनिश्चित कर लेना चाहती थी कि क्या सच में हमें दुल्हन खरीदनी है और यह भी कि कहीं हम उसके लिए कोई जाल तो नहीं बिछा रहे। वह बोली, ‘तुम सीआईडी वाले तो नहीं हो ना?’ जब वह आश्वस्त हो गई तो उसने ऑफर दिया, ‘मेरे पास छत्तीसगढ़ से पिछले ही हफ्ते दो लड़कियां आई हैं। यदि तुम लोग एक-दो दिन में चाहते हो तो बताओ।’
कमला ने हरियाणा और पंजाब के ज्यादातर ट्रैफिकर्स के बारे में जानने का भी दावा किया। वह हमें सतर्क करते हुए बोली, ‘इस व्यापार में हर तरह के लोग हैं। मैं तुम्हारा बुरा नहीं चाहती, इसलिए यह बता रही हूं।’
‘बहुत विकल्प मिलेंगे’
लगभग 13 साल पहले बलराम हिसार जिले के डाबरा गांव से अपने एक दोस्त के साथ त्रिपुरा की राजधानी अगरतला गया था। वहीं उसने शादी की और तब से वह अपनी पत्नी तनुजा के साथ पूर्वोत्तर राज्यों के लगभग 50 दौरे कर चुका है। बलराम कहता है, ‘पिछले 12 सालों में मैं त्रिपुरा से 104 लड़कियां ला चुका हूं। आप जब भी वहां चलना चाहते हैं, मुझे बताइए। वहां एक ही जगह 50-60 लड़कियां मिल जाएंगी। आपको चुनने के लिए बहुत सारे विकल्प मिलेंगे।’ उसकी 30 साल पार कर चुकी आठवीं पास पत्नी तनुजा पूरे व्यापार को संभालती है। हरियाणा में ग्राहकों से बात करती है, फोन नंबर का आदान-प्रदान करती है, स्रेत क्षेत्र के अपने एजेंटों के साथ मजबूत नेटवर्क बना कर रखती है और यात्राओं की व्यवस्था करती है। इस दंपती का अनुमान है कि ट्रैफिकर्स द्वारा लगभग पांच हजार लड़कियां त्रिपुरा से हरियाणा और पंजाब लाई गई हैं। बलराम बताता है, ‘हम अकेले नहीं हैं, जो यह कर रहे हैं। मेरी पत्नी की तरह बहुत सारी औरतें हैं, जो अपने पैत्तृक राज्यों से दुल्हन खरीद कर लाती हैं।’
तनुजा बताती है, ‘त्रिपुरा जाकर वहां से वापस आने में एक सप्ताह लग जाता है और हमें ही सारा खर्चा उठाना पड़ता है।’ वह हमें आगाह करती हैं, ‘लड़कियों के परिवार वाले इतने गरीब होते हैं कि वे आपकी मेजबानी भी ठीक से नहीं कर सकते। आपको वहां रहने-खाने का सारा खर्च खुद ही उठाना पड़ेगा।’ दंपती का स्रेत क्षेत्र असम का तेजपुर भी है। उन्होंने हमें तेजपुर में लड़कियां दिखाईं। एक लड़की उनके साथ लगभग 15 दिनों से थी। बलराम उसे दिखा कर बोला, ‘उसे देखिए और तय करिये कि क्या आपके पास इसके लिए संभावित दूल्हा है।’ इस बीच बलराम ने एक बार भी पैसे का जिक्र नहीं किया, न कोई अनुमान बताया। जब हमने उससे पैसा बताने को कहा तो उसने कहा कि पहले उस व्यक्ति से मिलवाइए, जिसके लिए आए हैं, फिर पैसे की बात होगी।
‘एजेंट के जरिये व्यापार सुरक्षित है’
‘दो नंबर की बहुत हैं, जितनी चाहे ले लो। लेकिन वास्तव में शादी के लिए चाहते हैं तो समय देना होगा।’ जींद मालसारी खेडम गांव के एक ट्रैफिकर अजय ने कहा। वह दुल्हनों के दलालों से परेशान है। पानीपत की एक महिला ब्रोकर ने व्यापार छोडम् दिया है। उसके दूसरे स्रेत गाजियाबाद के एक एजेंट ने कीमत बढ़ दी है। फोन पर वह डेढ़ लाख रुपये की मांग करता है। अजय बरस पड़ता है, ‘अगर मैं तुम्हें इतना दूंगा तो कमाऊंगा क्या?’ हम उसे कहते हैं कि कम से कम पांच दुल्हनें चाहिए। सभी ट्रैफिकर्स के अलग-अलग राज्यों में स्रेत हैं, इसलिए इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा नहीं है। धरमवीर उत्तराखंड से लड़िकयों का सौदा करता है, इंदर सिंह असम से लाता है और राधेश्याम का नेटवर्क झारखंड में है। एक गांव वाला बताता है कि यहां लगभग हर पड़ोसी गांव में ऐसी 20 से 50 लड़कियां मिल जाएंगी। वर्तमान में इस क्षेत्र में अजय का एकमात्र स्रोत पास के गांव के सरकारी स्कूल का एक प्रधानाध्यापक है। अजय कहता है, ‘एक बिहारी लड़की की कीमत 70 हजार रुपये है और हिमाचल की लड़की के लिए आपको इसकी दोगुनी कीमत देनी पड़ेगी।’ अजय आगे कहता है, ‘बिहार की दस यात्राओं के बावजूद मैं गरीबी से जूझ रहे इन परिवारों से सीधे लड़कियों का सौदा नहीं करना चाहता। जिस दिन मैं इन ब्रोकरों को हटा कर सीधे सौदे करना चाहूंगा, वे लड़कियों तक मेरी पहुंच मुश्किल कर देंगे।’ वह यह भी बताता है कि एजेंट के जरिये लड़कियों को लाना ज्यादा सुरक्षित है, क्योंकि स्रोत क्षेत्र से उठ सकने वाले सारे कानूनी पहलुओं का ध्यान एजेंट रखते हैं।
‘अगर ऐसा न करें तो लड़के कुंवारे रह जाएंगे’
35 साल का हिसार में रहनेवाला कुश्ती पहलवान सुभाष कहता है कि वह केवल इसी काम पर आश्रित नहीं है। उसकी एक आटा चक्की और किराने की दुकान है। उसके मिट्टी के घर के पीछे से उसका खेत दिखता है। वह कहता है, ‘भगवान की दया से मेरे पास सब कुछ है।’ 12 साल पहले जब उसे पता चला कि उसे डायबिटीज है, तब से वह अपना वजन घटाने के लिए जूझ रहा है। वह कहता है कि बस आमदनी बढ़ाने के लिए साइड बिजनेस के रूप में यह धंधा किया है। सुभाष कहता है, ‘तुम्हें कितनी लड़कियां चाहिए। मेरे पास छत्तीसगढ़ और असम की ‘साफ-सुथरी’ कुंवारी लड़कियां हैं। वे गरीब परिवारों की हैं। उनके लिए आपको कीमत चुकानी होगी और मैं भी अपना हिस्सा लूंगा।’ वह आगे कहता है, ‘असमिया लड़कियों को हरियाणा में एडजस्ट होने में मुश्किल होती है, क्योंकि भाषा एक समस्या बन जाती है। विकल्प के रूप में वह राजस्थान के अलवर जिले, लखनऊ और गाजियाबाद की लड़कियों के बारे में भी सुझाता है।’
सुभाष हमसे पहली मुलाकात में ही काफी खुल गया था। उसकी पत्नी बीच में बोल पड़ती है कि वे सिर्फ शादी की सुविधा मुहैया कराते हैं। लड़कियों का व्यापार नहीं करते। जब हम गोरी और खूबसूरत लड़की पर जोर देते हैं तो वह नेपाल का नाम लेता है। वह कहता है, ‘हमारे पास बेहद खूबसूरत बच्चियां हैं।’ जब हम उससे कीमत के बारे में पूछते हैं तो वह कहता है कि सब कुछ सौदे और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। पैसा तो कुछ मिनटों में तय हो जाता है।
पुलिस से बचने के लिए व्यापारियों ने ऐसी शादियों को कोर्ट में रजिस्टर करवाना शुरू कर दिया है। हालांकि यह पूर्व शर्तों में शामिल नहीं होता। वह कंधे उचका कर कहता है, ‘आप लडम्की का अंगूठा एक सादे कागज पर ले लेना।’ सुभाष कहता है कि खेती योग्य जमीन कई हिस्सों में बंटने से इधर कुछ वर्षो में यह व्यापार तेजी से फैला है। यदि लडम्कों के पास ढेर सारी जमीन न हो तो उनकी शादी में काफी दिक्कत आती है। उनके पास बस एक ही विकल्प बचता है कि बाहर से लड़कियां खरीद कर लाई जाएं। सुभाष कहता है, ‘हालांकि इस तरह के रिश्ते से नस्ल अच्छी नहीं होगी, लेकिन अगर बाहर से लड़कियां न लाई जाएं तो हमारे यहां के सारे लड़के कुंवारे रह जाएंगे। इसलिए इसे रोकना आसान नहीं।’
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