शनिवार, 12 जुलाई 2014

मच्छर के सेक्स जीवन से छेड़छाड़





प्रस्तुति-- आनंद प्रकाश

मलेरिया, डेंगू या पीला बुखार, मच्छरों के कारण होने वाली बीमारियां सिर्फ दवाओं के छिड़काव या पानी की सफाई से काबू में आती नहीं दिख रहीं. वैज्ञानिकों ने इसका अनूठा तरीका निकाला है.
सूरज ढलते ही मच्छरों की फौज बाहर निकल आती है. इस समय इनके छोटे दिमाग में दो ही काम होते हैं, खाना और सेक्स. बदकिस्मती की बात यह है कि शाम को मादा मच्छर का आहार खून होता है, और यही सारी बीमारियों की जड़ है. वैज्ञानिक इनकी संख्या को हमेशा के लिए काबू करने पर काम कर रहे हैं. मच्छरों की प्रजनन क्षमता को बदल कर वैज्ञानिक मच्छरों पर काबू करने की योजना बना रहे हैं.
इस विधि में विकिरण के जरिए नर मच्छरों का स्टेरिलाइजेशन किया जाता हैं. वियना के पास अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए की प्रयोगशाला में वैज्ञानिक ऐसे कीटनाशक के विकास की उम्मीद में हैं जिसका असर लंबे समय तक हो.
नर मच्छर जीवनचक्र के दौरान कई बार संभोग करता है जबकि मादा पूरे जीवन काल में सिर्फ एक बार. इंसानों में मच्छरों के कारण फैलने वाली बीमारियों में जिम्मेदारी मादा मच्छरों की होती है. इसलिए वैज्ञानिक इस बात पर भी गौर कर रहे हैं कि इस कीटनाशक की प्रक्रिया नर मच्छर पर ही कराई जाए. मकसद है प्रजनन क्षमता को खत्म कर मच्छरों की आबादी रोकना.
स्टेरिलाइट इंसेक्ट तकनीक एसआईटी द्वारा वैज्ञानिक नर मच्छरों पर प्रयोगशाला में विकिरण कर उनकी प्रजनन क्षमता बदलने पर काम करते हैं. इसके बाद वे इन मच्छरों को खुले वातावरण में छोड़ देते हैं. इससे पहले यह तकनीक फसल की दुश्मन एक खास तरह की मक्खी स्क्रू वर्म पर भी आजमाई गई और सफल रही.
कीटविज्ञानी एंड्रयू पार्कर मानते हैं कि इससे केवल स्थानीय स्तर पर ही समस्या का निपटारा हो सकता है. साथ ही वह कहते हैं, "अगर हम स्थानीय स्तर पर मलेरिया और मच्छरों से मुक्ति पा सकते हैं तो फिर कीटनाशकों के छिड़काव की जरूरत नहीं रह जाती है. यानि यह तकनीक इस बात का अवसर देती है कि आप कीटनाशकों के इस्तेमाल को कम कर सकें." वहीं सेंटर ऑफ अफ्रीकन स्टडीस के डॉक्टर रॉख डैबायर कहते हैं, "विकिरण तकनीक से हम कीटनाशकों के इस्तेमाल को पूरी तरह खत्म तो नहीं कर पाएंगे लेकिन हां नियंत्रण संबंधी कार्यक्रम में मदद जरूर मिलेगी." इन इलाकों में ज्यादा से ज्यादा नर मच्छरों पर विकिरण कर उन्हें खुले में छोड़ने की जरूरत है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मलेरिया साल भर में साढ़े सात लाख जानें ले लेता है. ज्यादातर मामले सब सहारा अफ्रीकी इलाकों के हैं.
रिपोर्ट: केरी स्कीरिंग/एसएफ
संपादन: आभा मोंढे

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